Happy New Year Speech Hindi क्या वाकई ये साल हमारे लिये नया साल होगा ?

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दोस्तों 2018 अब पुराना साल हो चुका है| आप सभी का नए साल 2019 में बहुत बहुत स्वागत है| नया साल हमारा इंतजार कर रहा है| सभी के मन में कुछ ना कुछ नयी उमंगें जरुर होंगी| सभी आने वाले नए साल को लेकर काफी उत्सुक होंगे| हममें से कई लोगों के सपने आने वाले …

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नैतिक शिक्षाप्रद कहानियाँ | दुनिया बदलने के लिए खुद को बदलिये

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एक बार की बात है किसी दूर राज्य में एक राजा शासन करता था। उसके राज्य में सारी प्रजा बहुत संपन्न थी, किसी को कोई भी दुःख नहीं था| ना ही किसी का कोई ऋण था। राजा के पास भी खजाने की कमी नहीं थी वह बहुत वैभवशाली जीवन जीता था। एक बार राजा के मन …

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Happy New Year Mubarak Shayari in Hindi 2019 | नए साल की शायरी

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कितना जरुरी है लक्ष्य बनाना? Why Goal Setting is Important in Hindi

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Why Goal Setting is Important in Hindi | कितना जरुरी है लक्ष्य बनाना एक बार एक आदमी सड़क पर सुबह सुबह दौड़ लगा रहा था, अचानक एक चौराहे पर जाकर जाकर वो रुक गया उस चौराहे पे चार सड़क थीं जो अलग रस्ते पे जाती थीं। एक बूढ़े व्यक्ति से उस आदमी ने पूछा – …

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दत्तात्रेय जयंती व्रत कथा और पूजा मुहूर्त 2018

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दत्तात्रेय जयंती~Dattatreya Jayanti

दत्तात्रेय जयंती को दत्त जयंती भी कहा जाता है, इस दिन भगवान दत्तात्र्य (दत्त) के जन्मदिन को मनाते है, हिंदू धर्म में भगवान दत्तात्रेय को त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश का एकरूप माना गया है। धर्म ग्रंथों के अनुसार श्री दत्तात्रेय भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं। वह आजन्म ब्रह्मचारी और अवधूत रहे इसलिए वह सर्वव्यापी कहलाए। यही कारण है कि तीनों ईश्वरीय शक्तियों से समाहित भगवान दत्तात्रेय की आराधना बहुत ही सफल, सुखदायी और शीघ्र फल देने वाली मानी गई है। मन, कर्म और वाणी से की गई उनकी उपासना भक्त को हर कठिनाई से मुक्ति दिलाती है। हिंदु कैलेंडर के अनुसार मार्गशिर्ष महीने की पूर्णिमा पर मनाया जाता है। दत्तात्रेय जयंती मुख्य रूप से महाराष्ट्र में मनाई जाती है। भक्तों का मानना ​​है कि वे दत्तात्रेय जयंती पर पूजा करते हुए जीवन के सभी पहलुओं में लाभ पाते हैं लेकिन इस दिन का मुख्य महत्व यह है कि यह व्यक्तियों के पितृ मुद्दों से रक्षा करता है।

दत्तात्रेय में ईश्वर और गुरु दोनों रूप समाहित हैं इसीलिए उन्हें ‘परब्रह्म मूर्ति सद्गुरु’ और ‘श्री गुरु देव दत्त’ भी कहा जाता हैं। भगवान दत्तात्रेय को नाथ संप्रदाय की नवनाथ परंपरा का भी अग्रज माना है।

दत्तात्रेय जयंती 2018~Dattatreya Jayanti 2018

दत्तात्रेय जयंती 22 दिसंबर 2018 को मनाई जाएगी.

दत्तात्रेय जयंती पूजा मुहूर्त

सूर्योदय 022-दिसंबर-2018 07:09:52
सूर्यास्त 022-दिसंबर-2018 17:29:11
पूर्णिमा तिथी शुरू 21-दिसंबर-2018 23:40:39
पूर्णिमा तिथी समाप्ति 22-दिसंबर-2018 23:20:39

यह भी पढ़ेभगवान् दत्तात्रेय के अचूक मंत्र जो करेंगे सम्पूर्ण जीवन को सुखी और मनोवांछित फल से भरपूर

दत्तात्रेय जयंती व्रत विधि~Dattatreya Jayanti Vrat Vidhi

  • दत्तात्रेय जयंती के दिन उपवास करना चाहिए
  • सुबह जल्दी स्नानं करके भगवान् दत्तात्रेय की पूजा करनी चाहिए
  • भगवान् दत्तात्रेय को दीप, धुप, चन्दन, हल्दी, मिठाई, फल, फूल अर्पित करना चाहिए
  • भगवान् दत्तात्रेय की सात परिक्रमा करनी चाहिए
  • शाम के समय भगवान् दत्तात्रेय स्रोत्र और मंत्र का जाप करना चाहिए

यह भी पढ़ेजानिए भगवान् दत्तात्रेय की जन्म कथा, साधना विधि, अवतार और उनके 24 गुरुओ के बारे मे

दत्तात्रेय जयंती कथा~Dattatreya Jayanti Katha

धर्म ग्रंथों के अनुसार एक बार तीनों देवियों पार्वती, लक्ष्मी तथा सावित्री जी को अपने पतिव्रत धर्म पर बहुत घमण्ड होता है अत: नारद जी को जब इनके घमण्ड के बारे में पता चला तो वह इनका घमण्ड चूर करने के लिए बारी-बारी से तीनों देवियों की परीक्षा लेते हैं जिसके परिणाम स्वरूप दत्तात्रेय का प्रादुर्भाव होता है.

नारद जी देवियों का गर्व चूर करने के लिए बारी-बारी से तीनों देवियों के पास जाते हैं और देवी अनुसूया के पतिव्रत धर्म का गुणगान करते हैं. लगे. देवी ईर्ष्या से भर उठी और नारद जी के जाने के पश्चात भगवान शंकर से अनुसूया का सतीत्व भंग करने की जिद करने लगी. सर्वप्रथम नारद जी पार्वती जी के पास पहुंचे और अत्रि ऋषि की पत्नी देवी अनुसूया के पतिव्रत धर्म का गुणगान करने लगे.

देवीयों को सती अनुसूया की प्रशंसा सुनना कतई भी रास नहीं आया. घमण्ड के कारण वह जलने-भुनने लगी. नारद जी के चले जाने के बाद वह देवी अनुसूया के पतिव्रत धर्म को भंग करने की बात करने लगी. ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश तीनों को अपनी पत्नियो के सामने हार माननी पडी़ और वह तीनों ही देवी अनुसूया की कुटिया के सामने एक साथ भिखारी के वेश में जाकर खडे़ हो गए. जब देवी अनुसूया इन्हें भिक्षा देने लगी तब इन्होंने भिक्षा लेने से मना कर दिया और भोजन करने की इच्छा प्रकट की.

देवी अनुसूया ने अतिथि सत्कार को अपना धर्म मानते हुए उनकी बात मान ली और उनके लिए प्रेम भाव से भोजन की थाली परोस लाई. लेकिन तीनों देवों ने भोजन करने से इन्कार करते हुए कहा कि जब तक आप नग्न होकर भोजन नहीं परोसेगी तब तक हम भोजन नहीं करेगें. देवी अनुसूया यह सुनते ही पहले तो स्तब्ध रह गई और गुस्से से भर उठी. लेकिन अपने पतिव्रत धर्म के बल पर उन्होंने तीनो की मंशा जान ली.

उसके बाद देवी ने ऋषि अत्रि के चरणों का जल तीनों देवों पर छिड़क दिया. जल छिड़कते ही तीनों ने बालरुप धारण कर लिया. बालरुप में तीनों को भरपेट भोजन कराया. देवी अनुसूया उन्हें पालने में लिटाकर अपने प्रेम तथा वात्सल्य से उन्हें पालने लगी. धीरे-धीरे दिन बीतने लगे. जब काफी दिन बीतने पर भी ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश घर नही लौटे तब तीनों देवियों को अपने पतियों की चिन्ता सताने लगी.

देवियों को अपनी भूल पर पछतावा होने लगा. वह तीनों ही माता अनुसूया से क्षमा मांगने लगी. तीनों ने उनके पतिव्रत धर्म के समक्ष अपना सिर झुकाया. माता अनुसूया ने कहा कि इन तीनों ने मेरा दूध पीया है, इसलिए इन्हें बालरुप में ही रहना ही होगा. यह सुनकर तीनों देवों ने अपने – अपने अंश को मिलाकर एक नया अंश पैदा किया. इसका नाम दत्तात्रेय रखा गया. इनके तीन सिर तथा छ: हाथ बने. तीनों देवों को एकसाथ बालरुप में दत्तात्रेय के अंश में पाने के बाद माता अनुसूया ने अपने पति अत्रि ऋषि के चरणों का जल तीनों देवो पर छिड़का और उन्हें पूर्ववत रुप प्रदान कर दिया.

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Prerak Prasang – मोची का लालच (प्रेरक प्रसंग)

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शिक्षाप्रद प्रेरक प्रसंग कथा – मोची का लालच किसी गाँव में एक धनी(Rich) सेठ रहता था उसके बंगले के पास एक जूते सिलने वाले गरीब मोची की छोटी सी दुकान थी। उस मोची की एक खास आदत थी कि जो जब भी जूते सिलता तो भगवान(God) के भजन गुनगुनाता रहता था लेकिन सेठ ने कभी …

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Bachon ki kahaniyan कहानियाँ, आखिर हम क्यों हैं सफलता से दूर

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Bachon ki kahaniyan एक बार मधुवन वन में एक कौआ खाने की तलाश में आकाश में उड़ रहा था । उन दिनों वो कौआ अपने जीवन से बहुत संतुष्ट था उसे लगता था कि वह बहुत खुश और जंगल का सबसे अच्छा प्राणी है। दूर उड़ते हुए उसकी नज़र अचानक एक हंस पर पड़ी , …

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मोक्षदा एकादशी 2018 – जाने महत्व और पूजा करने की विधि

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मोक्षदा एकादशी 2018 – जाने महत्व और पूजा करने की विधि

18 दिसंबर 2018 को गीता जयंती के साथ मोक्षदा एकादशी भी मनाई जा रही है. मार्गशीर्ष मास के शुक्लपक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहा जाता है, मान्यता है इस दिन व्रत करने से मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस व्रत का पालन करने से पितरों को मुक्ति मिलती है और मोक्ष प्राप्त होता है, इसी दिन महाभारत काल के समय भगवान कृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया था जब अर्जुन इस बात से विचलित हो गए थे कि उन्हें अपनों के विरुद्ध युद्ध लड़ना है | मान्यता है कि एकादशी से एक दिन पहले दशमी को सात्विक भोजन करना चाहिए और भगवान विष्णु का स्मरण करना चाहिए | आइये जानते हैं मोक्षदा एकादशी व्रत के महत्व व इसकी पौराणिक कथा को..

मोक्षदा एकादशी पूजा विधि

  • मोक्षदा एकादशी को पूरे दिन व्रत रखना चाहिए जो दशमी की रात से शुरू होकर द्वादशी की सुबह पूरा होता है.
  • भगवान विष्णु के साथ भगवान दामोदार और कुष्ण की धूप, दीप तुलसी से पूजा करें और फलहार का प्रसाद भी चढ़ाएं.
  • पूजा पाठ करने के बाद व्रत-कथा सुनें और गीता का सम्पूर्ण पाठ करें या अध्याय 11 का पाठ करें.

मोक्षदा एकादशी का महत्व

पौराणिक ग्रंथों में मोक्षदा एकादशी को बहुत ही शुभ फलदायी माना गया है। मान्यता है कि इस दिन तुलसी की मंजरी, धूप-दीप नैवेद्य आदि से भगवान दामोदर का पूजन करने, उपवास रखने व रात्रि में जागरण कर श्री हरि का कीर्तन करने से महापाप का भी नाश हो जाता है। यह एकादशी मुक्तिदायिनी तो है ही साथ ही इसे समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली भी माना जाता है। मान्यता है कि मोक्षदा एकादशी व्रतकथा पढ़ने-सुनने मात्र से ही वाजपेय यज्ञ के समान पुण्य की प्राप्ति होती है।

मोक्षदा एकादशी पौराणिक कथा

मोक्षदा एकादशी की पौराणिक कथा कुछ इस प्रकार है। एक समय की बात है गोकुल नगर पर वैखानस नाम के राजा राज किया करते थे। ये बहुत ही धार्मिक प्रकृति के राजा थे। प्रजा भी सुखचैन से अपने दिन बिता रही थी। राज्य में किसी भी तरह का कोई संकट नहीं था। एक दिन क्या हुआ कि राजा वैखानस अपने शयनकक्ष में आराम फरमा रहे थे। तभी क्या हुआ कि उन्होंने एक विचित्र स्वपन देखा जिसमें वे देख रहे हैं कि उनके पिता (जो मृत्यु को प्राप्त हो चुके थे) नरक में बहुत कष्टों को झेल रहे हैं। अपने पिता को इन कष्टों में देखकर राजा बेचैन हो गये और उनकी निंद्रा भंग हो गई। अपने स्वपन के बारे में रात भर राजा विचार करते रहे लेकिन कुछ समझ नहीं आया।

तब उन्होंनें प्रात:काल ही ब्राह्मणों को बुलवा भेजा। ब्राह्मणों के आने पर राजा ने उन्हें अपने स्वपन से अवगत करवाया। ब्राह्मणों को राजा के स्वपन से यह तो आभास हुआ कि उनके पिता को मृत्युपर्यन्त कष्ट झेलने पड़ रहे हैं लेकिन इनसे वे कैसे मुक्त हो सकते हैं इस बारे में कोई उपाय सुझाने में अपनी असमर्थता जताई। उन्होंनें राजा वैसानख को सुझाव दिया। आपकी इस शंका का समाधन पर्वत नामक मुनि कर सकते हैं। वे बहुत पंहुचे हुए मुनि हैं। अत: आप अतिशीघ्र उनके पास जाकर इसका उद्धार पूछें। अब राजा वैसानख ने वैसा ही किया और अपनी शंका को लेकर पर्वत मुनि के आश्रम में पंहुच गये। मुनि ने राजा के स्वपन की बात सुनी तो वे भी एक बार तो अनिष्ट के डर से चिंतित हुए। फिर उन्होंने अपनी योग दृष्टि से राजा के पिता को देखा। वे सचमुच नरक में पीड़ाओं को झेल रहे थे। उन्हें इसका कारण भी भान हो गया।

तब उन्होंनें राजा से कहा कि हे राजन आपके पिता को अपने पूर्वजन्म पापकर्मों की सजा काटनी पड़ रही है। उन्होंने सौतेली स्त्री के वश में होकर दूसरी स्त्री को सम्मान नहीं दिया, उन्होंनें रतिदान का निषेध किया था। तब राजा ने उनसे पूछा हे मुनिवर मेरे पिता को इससे छुटकारा कैसे मिल सकता है। तब पर्वत मुनि ने उनसे कहा कि राजन यदि आप मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी का विधिनुसार व्रत करें और उसके पुण्य को अपने पिता को दान कर दें तो उन्हें मोक्ष मिल सकता है। राजा ने ऐसा ही किया। विधिपूर्वक मार्गशीर्ष एकादशी का व्रत कर उसके पुण्य को अपने पिता को दान करते ही आकाश से मंगल गान होने लगा। राजा ने प्रत्यक्ष देखा कि उसके पिता बैकुंठ में जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि हे पुत्र मैं कुछ समय स्वर्ग का सुख भोगकर मोक्ष को प्राप्त हो जाऊंगा। यह सब तुम्हारे उपवास से संभव हुआ, तुमने नारकीय जीवन से मुझे छुटाकर सच्चे अर्थों में पुत्र होने का धर्म निभाया है। तुम्हारा कल्याण हो पुत्र।

राजा द्वारा एकादशी का व्रत रखने से उसके पिता के पापों का क्षय हुआ और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई इसी कारण इस एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहा गया। चूंकि इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने गीता का उपदेश भी दिया था इसलिये यह एकादशी और भी अधिक शुभ फलदायी हो जाती है।

यह भी पढ़े –

मोक्षदा एकादशी 2018 व्रत तिथि व मुहूर्त

  • एकादशी तिथि – 18 दिसंबर 2018
  • पारण का समय – 13:19 से 15:21 बजे तक (19 दिसंबर 2018)
  • पारण के दिन हरिवासर समाप्ति का समय – 13:17 बजे (19 दिसंबर 2018)
  • एकादशी तिथि आरंभ – 07:35 बजे (18 दिसंबर 2018)
  • एकादशी तिथि समाप्त – 7:57बजे (19 दिसंबर 2018)
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विवाह पंचमी 2018 – प्रभु श्री राम व माता सीता के विवाह की वर्षगांठ और अद्भुत संयोग

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विवाह पंचमी 2018 – प्रभु श्री राम व माता सीता के विवाह की वर्षगांठ और अद्भुत संयोग

दिनांक 12 दिसंबर 2018 को विवाह पंचमी है। श्रवण नक्षत्र है और चंद्रमा मकर राशि में है। इस दिन कोई अभिजीत मुहूर्त नहीं मिलेगा। सूर्य वृश्चिक में गोचर कर रहे हैं साथ ही गुरु भी वृश्चिक में ही हैं। माता सीता तथा प्रभु श्री राम के विवाह की वर्षगांठ के रूप में यह महान पर्व मनाया जाता है। इस दिन विवाह करने से कन्या का सुहाग अखंड रहता है।

ऐसी मान्यता है कि विवाह पंचमी के दिन भगवान राम और सीता का विवाह कराने से जिन जातको के विवाह में अड़चन या विलम्ब हो रहा हो या विवाह के बाद अनबन हो रही हो तो तुरंत समाधान निकलने लगते है | विवाह पंचमी के दिन रामचरित मानस और बालकांड में भगवान राम और सीता के विवाह प्रसंग का पाठ करना शुभ माना जाता है, इससे परिवार में सुख का वास होता है |

माता सीता और प्रभु श्री राम के विवाह के दिन को आज भी उत्सव के रूप में मनाया जाता है। मार्गशीर्ष महीने की शुक्ल पंचमी ही वह तिथि थी जब प्रभु श्री राम मिथिला में आयोजित सीता स्वयंवर को जीतकर माता सीता से विवाह किया था। इसीलिये इस दिन को विवाह पंचमी पर्व के रूप में मनाया जाता है। वर्ष 2018 में विवाह पंचमी का पर्व 12 दिसंबर को बुधवार के दिन है।

अंक ज्योतिष से भी है शुभ तिथि

अंक 12 का अंक 3 हुआ जिसका स्वामी ग्रह बृहस्पति हुआ। अंक 12 में 1 का अंक सूर्य तथा 2 का अंक चंद्रमा का है। चंद्रमा सूर्य के ही प्रकाश से प्रकाशित होता है। बाद का 2 का अंक 1 के तुरंत बाद आता है। यदि 12 दिसम्बर 2018 को पूरा अंक निकाला जाय तो अंक 8 आएगा जो कि शनि का अंक है। इस प्रकार सभी मुहूर्त में शनि के ही प्रभाव को महत्ता दी गई है। इस दिन किया जाने वाला कोई भी शुभ कार्य सफल होता है। अतः अंक ज्योतिष से यह विवाह का दिनांक उचित है।

कैसे हुआ था प्रभु श्री राम व माता सीता का विवाह

यह तो सभी जानते हैं कि प्रभु श्री राम और माता सीता का विवाह स्वयंवर के द्वारा हुआ था जिसमें भगवान श्री राम ने शिव धनुष को न सिर्फ उठाया बल्कि प्रत्यंचा चढ़ाते हुए वह टूट भी गया था। इसके पीछे भी एक रहस्य है, जानने के लिए ये वीडियो जरूर देखे –

विवाह पंचमी के दिन कई जगह नहीं होते विवाह

विवाह पंचमी का दिन धार्मिक दृष्टि से वैसे तो बहुत शुभ माना जाता है लेकिन कई क्षेत्रों में खासकर नेपाल के मिथिला में क्योंकि माता सीता वहीं प्रकट हुई थी, इस दिन बेटियों का विवाह करना शुभ नहीं माना जाता। इसके पिछे लोगों की यही मान्यता है कि विवाहोपरांत सीता को बहुत कष्ट झेलने पड़े थे। वनवास समाप्ति के पश्चात भी उन्हें सुख नहीं मिला और गर्भवती अवस्था में जंगल में मरने के लिये छोड़ दिया गया था।

महर्षि वाल्मिकी के आश्रम में ही समस्त दुख:सुख सहते उनकी उम्र बीती। इसी कारण लोग सोचते हैं कि उनकी बेटियों को भी माता सीता की तरह कष्ट न उठाने पड़ेंगे सो इस दिन विवाह नहीं करते। इतना ही नहीं विवाह पंचमी के पर्व को मनाने के लिये यदि कोई कथा का आयोजन भी करता है तो कथा सीता स्वयंवर और प्रभु श्री राम और माता सीता के विवाह संपन्न होने के साथ ही समाप्त कर दी जाती है। इससे आगे की कथा दुखों से भरी है इसलिये इस दिन कथा का सुखांत ही किया जाता है और विवाहोपरांत की कथा नहीं कही जाती।

मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम-सीता के शुभ विवाह के कारण ही विवाह पंचमी का पर्व अत्यंत पवित्र माना जाता है। भारतीय संस्कृति में राम-सीता आदर्श दम्पत्ति माने गए हैं। इस पावन दिन सभी को राम-सीता की आराधना करते हुए अपने सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए प्रभु से आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए।

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भगवान की आरती करते समय क्यों बजाई जाती है ताली?

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मानव का जीवन न जाने कितने सवालों से भरा है, हर चीज में एक सवाल है, जिनमें से कई चीजों से जुड़े सवाल तो अभी तक रहस्य बने हुए हैं। ऐसे ही अगर हिन्दू धर्म कि बात करें, तो यहां पर जब हम किसी भी भगवान कि पूजा-अर्चना करते हैं, तो तालियां बजाते हुए उनकी आराधना करते हैं और यह आज से नहीं बल्कि सदियों से चली आ रही एक परंपरा है, उसे ही देखते हुए आज तक लोग तालियां बजाते हुए भगवान की पूजा अर्चना करते हैं। लेकिन इन सब के पीछे क्या कभी आपने यह जानने कि कोशिश की है, कि जब भी हम भगवान कि पूजा या फिर आरती करते हैं तो तालियां क्यों बजाते हैं?

काफी पुराने समय से ही ताली बजाने का चलन है। भगवान की स्तुति, भक्ति, आरती आदि धर्म-कर्म के समय ताली बजाई जाती है।

विज्ञान के अनुसार ताली बजाना एक प्रकार का व्यायाम ही है, ताली बजाने से हमारे पूरे शरीर में खिंचाव होने लगता है और हमारे शरीर की मांसपेशियां एक्टिव हो जाती हैं। जोर-जोर से ताली बजाने की वजह से कुछ ही देर में हमारे शरीर से पसीना आना शुरू हो जाता है और पूरे शरीर में एक अलग तरह की उत्तेजना पैदा हो जाती है। हमारी हथेलियों में शरीर के अन्य अंगों की नसों के बिंदू होते हैं, जिन्हें एक्यूप्रेशर पाइंट कहा जाता है। ताली बजाने से इन बिंदुओं पर दबाव पड़ता है और इनसे संबंधित अंगों में रक्त संचार बढ़ता है, जिससे वे बेहतर काम करने लगते हैं। एक्यूप्रेशर पद्धति में ताली बजाना बहुत अधिक लाभदायक माना गया है। इन्हीं कारणों से ताली बजाना हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक है।

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हिंदू धर्म में आरती के दौरान ताली बजाना जिसे हम कर्तल ध्वनि के नाम से भी जानते हैं, यह एक स्वाभाविक क्रिया मानी जाती है। मंदिर हो या कोई पूजा स्थल, जहां भी आरती संपन्न हो रही होती है, वहां पर भक्ति भाव में लीन श्रद्धालु ताली अवश्य बजाते हैं। प्रायः किसी उत्सव, जन्मदिन या संत समागम के दौरान भी हर्षोल्लास के साथ कर्तल ध्वनि पैदा की जाती है। किसी के उत्साहवर्धन के लिए भी लोग ताली का प्रयोग करते हैं।

तो आपने यह जाना कि आरती के समय बजायी जाने वाली ताली से न केवल हम देवी-देवता को प्रसन्न कर सकते हैं बल्कि अपनी सेहत को मजबूत भी बनाते हैं। हम आशा करते हैं कि धर्म-कर्म से जुड़े इस लेख के माध्यम से आपका ज्ञानवर्धन हुआ होगा। यदि आप इस संबंध अपनी टिप्पणी करना चाहते हैं तो नीचे कमेंट बॉक्स में आप लिख सकते हैं।

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कैसे दूर करें Nervousness(नर्वस), How to Overcome Nervousness in Hindi

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जब भी हम कुछ नया काम करने जाते हैं तो हमेशा हमारे अंदर थोड़ी nervousness (घबराहट) आती ही है जो कि एक नेचुरल चीज़ है , जैसे जब कोई स्टूडेंट अपना पहला इंटरव्यू देने जाता है, जब कोई टीचर पहली बार छात्रों को पढ़ाता है, जब कोई employee किसी सेमिनार में प्रेजेंटेशन देने जा रहा …

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मार्गशीर्ष अमावस्या 2018 – अगहन अमावस्या का महत्व व व्रत पूजा विधि

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मार्गशीर्ष अमावस्या 2018 – Margashirsha Amavasya 

मार्गशीर्ष माह को हिंदू धर्म में काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। इसे अगहन मास भी कहा जाता है यही कारण है कि मार्गशीर्ष अमावस्या को अगहन अमावस्या भी कहा जाता है। वैसे तो प्रत्येक अमावस्या का अपना खास महत्व होता है और अमावस्या तिथि स्नान-दान-तर्पण आदि के लिये जानी जाती है। लेकिन चूंकि मार्गशीर्ष माह के बारे में स्वयं श्री कृष्ण कहते हैं कि महीनों में वह मार्गशीर्ष हैं इसका महत्व और अधिक बढ़ जाता है। जिस गीता को हिंदूओं में जीवन का दर्शन माना जाता है उस गीता का ज्ञान मान्यतानुसार भगवान श्री कृष्ण ने इसी माह में दिया था। अत: इस माह की अमावस्या तिथि भी बहुत ही पुण्य फलदायी मानी जाती है।

अगहन अमावस्या व्रत महत्व – Importance of Margashirsha Amavasya Vrat

शास्त्रों में कहा गया है कि देवताओं से पहले अपने पूर्वज़ों पितरों को प्रसन्न करना चाहिये। अक्सर अपने पितरों को प्रसन्न करने के प्रयास करते भी हैं। लेकिन जिस प्रकार श्राद्ध पक्ष की अमावस्या को सर्वपितृ अमावस्या मनाई जाती है उसी प्रकार अगहन अमावस्या यानि मार्गशीर्ष अमावस्या को व्रत रखने से भी पितर प्रसन्न किये जा सकते हैं। जिन जातकों की कुंडली में पितृ दोष हों, जिनकी कुंडली के योगों में संतान प्राप्ति के लक्षण ही न दिखाई देते हों, या फिर भाग्य स्थान में राहू नीच के हों इस प्रकार के पीड़ित योग वाले जातकों को इस अमावस्या का उपवास अवश्य करना चाहिये।

मान्यता है कि इसके रखने से उपासक को मनोवांछित फल प्राप्त होते हैं। पौराणिक ग्रंथों में तो यहां तक कहा गया है कि इस अमावस्या के उपवास से न केवल पितृगण बल्कि ब्रह्मा, इंद्र, रूद्र, अश्विनीकुमार, सूर्य, अग्नि, पशु-पक्षियों सहित सब भूत-प्राणियों की तृप्ति होती है।

यदि आप भी महसूस करते हैं कि आपके बनते हुए काम अचानक से बिगड़ जाते हैं और सफलता से कुछ ही कदम पहले आप असफल हो जाते हैं तो हो सकता है आपके पितर आपसे नाराज़ हों। अपनी कुंडली के बारे में ज्योतिषाचार्यों से एक बार अवश्य परामर्श करें, मार्गदर्शन हो सकता है।

मार्गशीर्ष अमावस्य व्रत पूजा विधि – Margashirsha Amavasya Vrat Puja Vidhi

प्रत्येक अमावस्या की तिथि पर स्नान दान का बहुत अधिक महत्व माना जाता है। मार्गशीर्ष अमावस्या के अवसर पर भी यमुना नदी में स्नान करना विशेषकर पुण्य फलदायी माना जाता है। इस दिन व्रत रखने के साथ साथ श्री सत्यनारायाण भगवान की पूजा व कथा करनी चाहिये। मान्यता है कि जो विधि विधान से यह पूजा करता है उसके लिये यह उपवास अमोघ फलदायी होता है। व्रती को स्नाना आदि के पश्चात सामर्थ्य अनुसार दान-दक्षिणा अवश्य देनी चाहिये इससे उसके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।

मार्गशीर्ष अमावस्या 2018 में कब है? – Margashirsha Amavasya Kab Hai

मार्गशीर्ष अमावस्या जिसे अगहन अमावस्य भी कहते हैं। मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि होती है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार साल 2018 में यह तिथि 7 दिसंबर को शुक्रवार के दिन है।

मार्गशीर्ष अमावस्या तिथि – 7 दिसंबर 2018
मार्गशीर्ष अमावस्या आरंभ – 12:12 बजे से (6 दिसंबर 2018)
मार्गशीर्ष अमावस्या समाप्त – 12:50 बजे तक (7 दिसंबर 2018)

https://ift.tt/2DA3uB5 http://bit.ly/2pnaflz Bhaktisanskar.com – भक्ति और अध्यात्म का संगम मार्गशीर्ष अमावस्या 2018 – अगहन अमावस्या का महत्व व व्रत पूजा विधि

Motivational Speech in Hindi रतन टाटा के अनमोल वचन

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Ratan Tata Best Motivational Speech in Hindi जीवन में केवल अच्छी शैक्षिक योग्यता या अच्छा कैरियर(Career) ही काफी नहीं है । आपका लक्ष्य होना चाहिए कि एक संतुलित और सफल जिंदगी जिया जाये । संतुलित जीवन का मतलब है आपका स्वास्थ्य (Health), लोगों से अच्छे सम्बन्ध और मन की शान्ति; सब कुछ अच्छा होना चाहिए …

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