कैलाश मानसरोवर यात्रा मार्ग और यात्रा के पहले और दौरान सावधानी और जरुरी जानकारी

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कैलाश मानसरोवर यात्रा मार्ग – Mount Kailash Mansarovar Tour

सनातन धर्म में कैलाश का अपना महत्व रहा है. 22000 फीट ऊंचे इस पर्वत को कैलाश कहा जाता है, जिसका सम्बन्ध आदियोगी शिव से माना जाता है. ये पर्वत तिब्बत में त्रान्शिमाल्या का एक अंश है, काफी ऊंचे और ठन्डे स्थान पर ये तीर्थ स्थल होने की वजह से प्रति वर्ष यहाँ बहुत कम ही तीर्थ यात्री आ पाते हैं, कैलाश की यात्रा पर केवल भारत ही नहीं अन्य देशों के श्रद्धालु भी जाते हैं। वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद बंद हुये इस मार्ग को धार्मिक भावनाओं के मद्देनज़र दोनों देशों की सहमति से वर्ष 1981 में पुनः खोल दिया गया था। समुद्रतल से 25 हज़ार फुट की ऊंचाई पर स्थित कैलास पर्वत पर पहले बिना किसी काग़ज़ात के ही आवागमन होता था।

भारत सरकार के सौजन्य से हर वर्ष मई-जून में सैकड़ों तीर्थयात्री कैलाश मानसरोवर की यात्रा करते हैं। इसके लिए उन्हें भारत की सीमा लांघकर चीन में प्रवेश करना पड़ता है, क्योंकि यात्रा का यह भाग चीन में है हिन्दू धर्म के अनुसार कहते है कि जिसको भोले बाबा का बुलावा होता है, वही इस यात्रा को कर सकता है। सामान्यतया यह यात्रा 28 दिन में पूरी होती है। यात्रा का कठिन भाग चीन में है। भारतीय भू-भाग में चौथे दिन से पैदल यात्रा आरम्भ होती है। भारतीय सीमा में कुमाउँ मंडल विकास निगम इस यात्रा को संपन्न कराती है।

कैलाश मानसरोवर यात्रा के पहले इन बातो का ध्यान

कैलाश मानसरोवर की यात्रा करने से पहले तीर्थ यात्रियों को कुछ बातों को ध्यान में रखना पड़ता है। उन्हें किसी भी प्रकार की स्वास्थ्य संबंधी समस्या नहीं होनी चाहिए। चूंकि यह तीर्थस्थान चीन की सीमा में स्थित है, इसलिए उन्हें विदेश मंत्रालय में अपना प्रार्थनापत्र देना होता है। चीन से वीजा मिलने के बाद ही आप कैलाश मानसरोवर की यात्रा कर सकते हैं।

दिल्ली के सरकारी अस्पताल में दो दिन तक आपके फिजिकल फिटनेस की जांच की जाती है। जांच में फिट होने के बाद ही आपको इस यात्रा की अनुमति मिल पाती है। दरअसल, कैलाश मानसरोवर की यात्रा के दौरान आपको 20 हज़ार फीट की ऊंचाई तक भी जाना पड़ सकता है। इसी कारण इस यात्रा को धार्मिक यात्रा के साथ ही प्राकृतिक रूप से प्रकृति से रूबरू व प्राकृतिक सौंदर्य को जानने के लिए भी जाना जाता है।

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कैलाश मानसरोवर यात्रा के दौरान इन बातो का ध्यान

इस स्थान तक पहुँचने के लिए कुछ विशेष तथ्यों का ध्यान रखना आवश्यक है। जैसे इसकी ऊँचाई 3500 मीटर से भी अधिक है। यहाँ पर ऑक्सीजन की मात्रा काफ़ी कम हो जाती है, जिससे सिरदर्द, साँस लेने में तकलीफ आदि परेशानियाँ प्रारंभ हो सकती हैं। इन परेशानियों की वजह शरीर को नए वातावरण का प्रभावित करना है।

इच्छुक श्रद्धालुओं से सरकार जनवरी से आवेदन लेना प्रारम्भ कर देती है। कैलास में चीनी लोगों की भाषा, संस्कृति और रहन-सहन भिन्न होने के कारण भारतीय श्रद्धालुओं को वहां काफ़ी परेशानी का सामना करना पड़ता है। श्रद्धालुओं को कैलाश मानसरोवर में 12 दिन बिताने का मौक़ा मिलता है। चीन शासित तिब्बत के दुर्गम पर्वतीय क्षेत्रों में लगातार 12 दिन तक रहने वाले प्रत्येक श्रद्धालु के साथ वहां किसी प्रकार की सचल स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध नहीं रहती है। चीन की सीमा में भारत से धारचेन, तिब्बत, आधार से प्रवेश किया जाता है। प्राकृतिक अद्भुत नजारों और पर्वतों की रंग-बिरंगी शृंखलाओं के मध्य होकर जाने वाले श्रद्धालुओं को कैलाश मानसरोवर की हज़ारों फुट सीधी चढ़ाई भी जोखिम भरी नहीं लगती है।

भारत से कैलाश मानसरोवर (सड़क मार्ग)

भारत सरकार सड़क मार्ग द्वारा मानसरोवर यात्रा प्रबंधित करती है। यहाँ तक पहुँचने में क़रीब 28 से 30 दिनों तक का समय लगता है। यहाँ के लिए सीट की बुकिंग एडवांस भी हो सकती है और निर्धारित लोगों को ही ले जाया जाता है, जिसका चयन विदेश मंत्रालय द्वारा किया जाता है।

भारत से कैलाश मानसरोवर (वायु मार्ग)

वायु मार्ग द्वारा काठमांडू तक पहुँचकर वहाँ से सड़क मार्ग द्वारा मानसरोवर झील तक जाया जा सकता है। कैलाश तक जाने के लिए हेलिकॉप्टर की सुविधा भी ली जा सकती है। काठमांडू से नेपालगंज और नेपालगंज से सिमिकोट तक पहुँचकर, वहाँ से हिलसा तक हेलिकॉप्टर द्वारा पहुँचा जा सकता है। मानसरोवर तक पहुँचने के लिए लैंडक्रूजर का भी प्रयोग कर सकते हैं। काठमांडू से ल्हासा के लिए ‘चाइना एयर’ वायुसेवा उपलब्ध है, जहाँ से तिब्बत के विभिन्न कस्बों – शिंगाटे, ग्यांतसे, लहात्से, प्रयाग पहुँचकर मानसरोवर जा सकते हैं।

कैलाश मानसरोवर की यात्रा के लिए भारत सरकार द्वारा व्यवस्थाएं की जाती हैं. लोग या तो सरकारी ज़रिये से इस जगह की यात्रा कर सकते हैं अथवा ख़ुद से भी जा सकते हैं |

  • उत्तराँचल पुलिस और आईटीबीपी की तरफ से भारत सरकार द्वारा ज़ारी कुमाओं मंडल विकास निगम जैसी योजनाओं के साथ श्रद्धालुओं को इस स्थान का दर्शन कराया जाता है.
  • ये यात्रा भारत और चीन के बीच समझौते के तहत होता है, अतः इस तीर्थ यात्रा को हर तरह की कूटनैतिक सुरक्षा दी जाती है.
  • एक यात्रा का कुल खर्च 65000 रूपए का होता है, जिसमे से 20- 25000 रूपए कई राज्य सरकारों द्वारा सब्सिडी के तौर पर दी जाती है.

इसके लिए भारत सरकार प्रति वर्ष जनवरी के महीने में विज्ञापन जारी करती है. इसके लिए दिए जा रहे आवेदन के लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं लगता है. दस्तावेजों में 2 पासपोर्ट साइज़ की तस्वीर और वैद्य पासपोर्ट की आवश्यकता होती है. आवेदन का अंतिम समय प्रति वर्ष 15 से 20 मार्च के दौरान होता है. सभी चुने गये श्रद्धालुओं को अप्रैल के अंतिम दिनों में टेलीग्राम द्वारा चयन की सुचना दी जाती है, और मई के तीसरे सप्ताह के अन्दर एक 5000 का डिमांड ड्राफ्ट भेजने की बात कही जाती है. ये खर्च कुल यात्रा खर्च के साथ जोड़  दिया जाता है. ये चार्ज रिफंडेबल नहीं होता है. अतः किसी कारण वश यदि आवेदक यात्रा में नहीं जाता है तो उन्हें 5000 रूपए वापस नहीं किये जायेंगे.

कैलाश मानसरोवर का मौसम 

तिब्बत शुष्क और ठण्ड प्रदेश है. अतः यहाँ जाने वाले श्रद्धालुओं को हर तरह के मौसम के लिए तैयार रहना पड़ता है. जून, जुलाई से सितम्बर के महीने तक यहाँ का तापमान 15 से 20 डिग्री के मध्य रहता है. इन महीनों में दोपहर में हवाएं चलती हैं तथा सुबह और शाम के समय का तापमान 0 डिग्री अथवा उससे भी कम हो सकता है.

 

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