पुरी जगन्नाथ रथ यात्रा 14 जुलाई 2018 से शुरू – जाने जगन्नाथ मंदिर से जुड़े रहस्य और जरूरी बातें

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पुरी जगन्नाथ रथ यात्रा 2018 – Puri Jagannath Rath Yatra

भगवान जगन्नाथ को विष्णु का 10वां अवतार माना जाता है, जो 16 कलाओं से परिपूर्ण हैं। पुराणों में जगन्नाथ धाम की काफी महिमा है, इसे धरती का बैकुंठ भी कहा गया है। यह हिन्दू धर्म के पवित्र चार धाम बद्रीनाथ, द्वारिका, रामेश्वरम और जगन्नाथ पुरी में से एक है। यहां भगवान जगन्नाथ बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विराजते हैं। यहां के बारे में मान्यता है कि श्रीकृष्ण, भगवान जगन्नाथ के रुप है और उन्हें जगन्नाथ (जगत के नाथ) यानी संसार का नाथ कहा जाता है। जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और उनकी बहन सुभद्रा की पूजा की जाती है। मंदिर में भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा सबसे दाई तरफ स्थित है। बीच में उनकी बहन सुभद्रा की प्रतिमा है और दाई तरफ उनके बड़े भाई बलभद्र (बलराम) विराजते हैं।

स्वस्थ हुए भगवान जगन्नाथजी, कल रथ से जाएंगे मौसी के घर

भगवान जगन्नाथ रथयात्र के लिए पूरी तरह स्वस्थ हो गए हैं और उनके कपाट फिर से भक्तों के लिए खोल दिए गए हैं। दरअसल मान्यता है कि ज्‍येष्‍ठ मास की पूर्णिमा से अमावस्‍या तक भगवान जगन्नाथजी बीमार रहते हैं और इन 15 दिनों में इनका उपचार शिशु की भांति चलता है जिसे अंसारा कहते हैं। आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा को भगवान स्वस्थ हो जाते हैं और द्वितीया तिथि को गुंडीचा मंदिर तक भगवान की रथ यात्रा निकलती है। इस वर्ष आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा तिथि क्षय है अमावस्या और प्रतिपदा एक ही दिन होने से आज ही प्रतिपदा के उत्सव मनाये गए हैं और कल 9 दिनों तक चलने वाली रथ यात्रा आरंभ होगी और भगवान अपनी मौसी के घर गुंडीचा मंदिर जाएंगे।

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जन्म-मरण के बंधन से हो जाते हैं मुक्त

भगवान जगन्नाथ की रथयात्र का उल्लेख स्कन्दपुराण में मिलता है। इस पुराण के अनुसार पुरी तीर्थ में स्नान करने से और जगन्नाथजी का रथ खींचने से सभी तीर्थों के दर्शन का पुण्य फल प्राप्त होता है और भक्त को जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। मान्यता है कि इस रथयात्रा के रथ के शिखर के दर्शन से मात्र से ही मनुष्यों के कई जन्मों के पाप कट जाते हैं।

सबसे पीछे होता है भगवान जगन्नाथ का रथ

रथयात्रा में सबसे आगे दाऊ बलभद्रजी का रथ, उसके बाद बीच में बहन सुभद्राजी का रथ तथा सबसे पीछे भगवान जगन्नाथजी का रथ होता है। बलभद्र के रथ को ‘पालध्वज’ कहते हैं, उसका रंग लाल एवं हरा होता है। सुभद्रा के रथ को ‘दर्पदलन’ कहते हैं और उसका रंग एवं नीला होता है। वही भगवान जगन्नाथ के रथ को ‘गरुड़ध्वज’ या ‘नन्दीघोष’ कहते हैं और इसका रंग लाल व पीला होता है।

इस तरह पहुंचते हैं मौसी के घर

भगवान जगन्नाथ भाई और बहन के साथ पुरी मंदिर से रथ पर निकलकर गुंडीचा मंदिर पहुंचते हैं इस सफर को ही रथयात्रा कहा जाता है। गुंडीचा मंदिर को भगवान की मौसी का घर कहते हैं। यहां भगवान हफ्ते भर रहते हैं और आषाढ़ शुक्ल दशमी के दिन फिर से वापसी यात्रा होती है, जो मुख्य मंदिर पहुंचती है। यह बहुड़ा यात्रा कहलाती है।

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11वीं शताब्दी में करवाया गया था मंदिर का निर्माण

भगवान जगन्नाथ का प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर जिसका निर्माण 11वीं शताब्दी में करवाया गया था। देश की चार धाम तीर्थ यात्रा बद्रीनाथ, द्वारका और रामेश्वरम के साथ एक धाम पुरी जगन्नाथ पुरी भी है। पूरा मंदिर घूमने में करीब 1 घंटे का वक्त लगता है और यह मंदिर हफ्ते के सातों दिन सुबह साढ़े 5 बजे से रात 10 बजे तक खुला रहता है। जब यह यात्रा निकाली जाती है, तब यहां की शोभा देखते ही बनती है।

रथयात्रा को लेकर कही गई हैं कई कहानियां

कुछ लोग मानते हैं कि कृष्ण की बहन सुभद्रा अपने मायके आई थीं तो उन्होंने अपने भाइयों से नगर भ्रमण करने की इच्छा जताई थी। तब कृष्ण और बलराम, सुभद्रा के साथ रथ में सवार होकर नगर घूमने गए थे। इसी के बाद से रथयात्रा का पर्व शुरू हुआ। इसके अलावा कहते यह भी हैं कि, गुंडीचा मंदिर में स्थित देवी, भगवान श्रीकृष्ण की मौसी हैं जो तीनों को अपने घर आने का निमंत्रण देती हैं।

नीलाम कर दी जाती हैं रथ की लकड़ी

बताया जाता है कि भगवान जगन्नाथ, बलभद्र व सुभद्रा तीनों के रथ नीम की लकड़ी से बनाए जाते हैं। भगवान की रथयात्रा के बाद रथों को लकड़ियों को नीलाम कर दिया जाता है। इस लकड़ी को भक्त बड़ी श्रद्धा से खरीदते हैं और अपने घरों में खिड़की, दरवाजे, पूजा स्थल आदि बनवाने में प्रयोग करते हैं।

 

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