दिलीप कुमार के जीवन की एक घटना – आप जो भी हैं लेकिन कभी घमंड मत करिये

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True Motivational Story of Dilip Kumar and JRD Tata in Hindi दोस्तों कभी खुद पे घमंड या गुरुर नहीं करना चाहिए। आप जो भी हैं – सफल या असफल, गरीब या अमीर कभी खुद के ऊपर घमंड मत करिये और दूसरों को कम मत आंकिए। अंग्रेजी में ये कहावत है – “There is always someone …

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70th Republic Day Shayari in Hindi for 26 January 2019 with Images

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70th Happy Republic Day Shayari in Hindi 2019 with Gantantra Diwas Images, SMS, Wishes. 26 January Shayari with Photos in Hindi, Hindi Republic Day Wishes, Republic Day Messages 2019. अलग है भाषा, धर्म जात, और प्रांत, भेष, परिवेश, पर हम सब का एक ही गौरव है, राष्ट्रध्वज तिरंगा श्रेठ याद रखेंगे वीरो तुमको हरदम, यह …

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23 Indian Republic Day Quotes in Hindi with Slogans

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Inspirational Republic Day Quotes in Hindi Republic Day Slogans 1. मुकुट हिमालय हृदय में तिरंगा आँचल में गंगा लायी है सब पुण्य, कला और रत्न लुटाने देखो भारत माता आयी है….. भारत माता की जय… 2. देशभक्तों के बलिदान से स्वतन्त्र हुए हैं हम कोई पूछे कौन हो तो गर्व से कहेंगे भारतीय हैं हम …

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स्वस्थ रहने के 5 सरल वास्तु उपाय

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स्वस्थ रहने के 5 सरल वास्तु उपाय | Vastu tips For Health at Home

स्वस्थ शरीर में ही ईश्वर का निवास होता है। यदि कोई व्यक्ति स्वस्थ ही नहीं है, तो ऐसे में वह ईश्वर की बनाई, इतनी प्यारी मानव शरीर रचना का आनंद ही नहीं उठा सकता है। बेशक आप करोड़पति हों या अरबपति हों, अब अगर व्यक्ति स्वस्थ ही नहीं है तो वह भला धन का क्या आनंद ले सकता है? इसलिए ही धर्म शास्त्रों में भी स्वास्थ्य का विशेष महत्त्व बताया गया है। अब आप अगर वास्तु शास्त्र को मानते हैं तो वास्तु के इन सरल उपायों को करने से भी आप खुद को काफी बीमारीयों से दूर रख सकते हैं।

आइये जानते हैं स्वस्थ रहने के 5 उपायों के बारें में-

1. शयनकक्ष पर ध्यान दें

शयनकक्ष घर का एक ऐसा स्थान होता है जहाँ व्यक्ति आराम करता है और अपना अधिकतर समय बिताना चाहता है। कई बार हम ऐसा महसूस करते हैं कि अपने शयनकक्ष में हमें अच्छी नींद नहीं आती है या सुबह उठने पर भी हमारी नींद पूरी नहीं हो रही होती है। तो इसका अर्थ साफ़ है कि शयनकक्ष में नकारात्मक ऊर्जा हावी हो रही है जो जल्द ही आपको बीमार कर सकती है इसलिए शयनकक्ष कभी भी पूरी तरह से बंद नहीं होना चाहिए। सुबह की ताज़ी हवा आने के लिए कमरे में उपयुक्त खिड़की होनी चाहिए। शयनकक्ष में झूठे बर्तन बहुत अधिक समय तक नहीं रखने चाहिए। साथ ही साथ और महत्वपूर्ण बात कि अगर आप शयनकक्ष में कोई तस्वीर लगा रहे हैं तो नकारात्मक तस्वीर का तो प्रयोग बिलकुल भी ना करें।

2.  सर उत्तर और पैर दक्षिण दिशा में सोते समय नहीं हो

रात को सोते समय अच्छी नींद यदि नहीं हो पाती है तो इससे आप खुद को बीमार बना रहे हैं। वास्तु के अनुसार अच्छी नींद व्यक्ति को काफी बिमारियों से दूर रखती है। रात को सोते समय ध्यान दें कि आपका सर उत्तर और पैर दक्षिण दिशा में सोते समय नहीं रहें। इन दिशाओं में इस प्रकार सोने से सर दर्द और अनिंद्रा की बीमारियाँ, व्यक्ति को परेशान करने लगती हैं।

3. टीवी का प्रयोग, भोजन करते समय ना करें

भोजन करते समय व्यक्ति को टेलीविजन नहीं देखना चाइये। ऐसा करने से एक तो भोजन की जगह व्यक्ति का ध्यान, टीवी की तरफ रहता है और वास्तु के अनुसार टेलीविजन से नकारात्मक ऊर्जा निकलती हैं जो हमारे मस्तिष्क और मन पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है।

4. शौचालय और रसोई घर पास-पास ना हों

व्यक्ति की अधिकतर बीमारियाँ तो रसोईघर से ही निकलती हैं। घर खरीदते या लेते समय, इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि कहीं घर में शौचालय और रसोई घर पास-पास में तो नहीं हैं। वास्तु में ऐसा होना, बिमारियों को आमंत्रण बताया गया है।

5. घर में जरूर हो तुलसी का पौधा और सूर्य की पेन्टिंग 

वास्तु के अनुसार तुलसी का पौधा अपने आप में एक अचूक दवा है। यदि घर में तुलसी जी का कोई पौधा है तो यह छोटा सा उपाय ही कई छोटी या मौसमी बीमारियों को व्यक्ति से दूर कर देता है। साथ ही सूर्य की पेंटिंग या क्रिस्टल भी नकारात्मक ऊर्जा को व्यक्ति से दूर करती हैं।

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देशभक्ति कविता इन हिंदी : चन्द्रशेखर आजाद! Desh Bhakti Poem

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देश प्रेम पर देशभक्ति कविता ये देशभक्ति कविता (Hindi Deshbhakti Kavita/Poem) महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद के बलिदान और उनके आजाद भारत के सपने पर आधारित है| इस हिंदी देशभक्ति कविता में कवि ने अपनी बातों से झकझोर कर रख दिया है| जिस आजादी के लिए चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह जैसे वीरों ने अपनी कुर्बानी …

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आजादी पर 5 देश भक्ति गीत ( Desh Bhakti Geet in Hindi )

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ये देश भक्ति गीत उन शहीदों को समर्पित हैं जिन्होंने अपने लहू की बूंदों से आजाद भारत की धरती को सींचा है| इन लोकप्रिय Desh Bhakti Geet in Hindi और गानों के माध्यम से हम आजादी के उन दीवानों को नमन करते हैं जिन्होंने मातृभूमि की रक्षा के लिए हँसते हँसते अपने प्राणों की आहुति …

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63 Desh Bhakti Shayari in Hindi | देश भक्ति शायरी सुविचार

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देश भक्ति शायरी चूमा था वीरों ने फांसी का फंदा यूँ ही नहीं मिली थी आजादी खैरात में 1: चैन ओ अमन का देश है मेरा, इस देश में दंगा रहने दो लाल हरे में मत बांटो, इसे शान ए तिरंगा रहने दो 2: दिलों की नफरत को निकालो वतन के इन दुश्मनों को मारो …

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84+ Latest Designer Sarees Images Photos for Traditional Indian Women

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Indian Traditional HD Latest Designer Sarees Images Photos and Wallpaper Download Free Online for Beautiful Bhartiya Women with Silk, Banarasi, Multi Color, Pink Very Attractive. सारी बीच नारी है कि नारी बीच सारी है। सारी ही की नारी है कि नारी की ही सारी है.. नारी और साड़ी इन दोनों का रिश्ता ऐसा ही है …

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सर्दियों में स्वस्थ रहने के 13 उपाय / नुस्खे

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दोस्तों सर्दियों का मौसम सभी को पसंद होता है, सर्दियाँ होती ही इतनी लुभावनी हैं कि हम सब सर्दियाँ आने का इंतज़ार करते रहते हैं| लेकिन ये अपने साथ कुछ खतरे भी लेकर आती है, जिसमें बार बार बीमार पड़ जाना भी शामिल है| इसीलिए आज हम आपको इस पोस्ट में सर्दियों में स्वस्थ रहने …

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Website Me Google Map Embed Kaise Kare in Hindi

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अपनी Website Me Google Map Embed Kaise Kare ये जानने के लिए आपको ये लेख ध्यान से पढ़ना होगा, क्यूंकि यहां हम वेबसाइट पर गूगल मैप ऐड करने के बारे में विस्तार से बता रहे हैं| हाल ही में हिंदीसोच की टीम ने Google Map Code Generator Software बनाया है जिसकी मदद से आप अपनी …

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What is my IP address | मेरा इप एड्रेस क्या है | Show my IP address

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IP CHECK

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क्या Smartphone से Blogging की जा सकती है ?

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ये सवाल कि “क्या Smartphone से Blogging की जा सकती है ?” शायद आप में, या उन सभी लोगों के मन में जरुर एक न एक बार जरुर उठा होगा जो कि blogging के दुनिया में अभी तक कदम ही नहीं रखा है| वैसे ऐसे सवाल का मन में उठना बहुत ही सहज बात हैं| …

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Country Codes Top Level Domains List in Hindi

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इस रोचक technical लेख में हम Country Codes Top Level Domains List in Hindi के बारे में जानेंगे| सन 1996 से पहले सभी वेबसाइट का tld .COM ही हुआ करता था| उस समय किसी वेबसाइट को देखकर यह जानना बहुत मुश्किल हो जाया करता था कि यह वेबसाइट किस देश की है? या किस देश …

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SaleKaro.in Pe Domain Sell Kaise Kare

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अपने पुराने या Useless Domain Sell Kaise Kare| आजकल ऑनलाइन बिजनिस का जमाना है, हर बिजनिस आज ऑनलाइन हो चुका है| अपना बिजनिस ऑनलाइन चलाने के लिए हर व्यक्ति को एक वेबसाइट की जरूरत होती है और उस वेबसाइट के लिए सबसे जरूरी चीज़ है – Domain (डोमेन) Domain दरअसल, वेबसाइट का नाम होता है …

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कुम्भ मेला 2019 – कुम्भ स्नान की प्रमुख तिथियां और काल निर्धारण

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कुम्भ मेला 2019

2019 में प्रयागराज में अर्धकुम्भ मेले का आयोजन किया जा रहा है। यह मेला 15 जनवरी 2019 से आरंभ हो रहा है जो कि 4 मार्च तक चलने वाला है।

2019 कुम्भ स्नान की प्रमुख तिथियां

कुम्भ स्नान वैसे तो 15 जनवरी से आरंभ हो रहा है जो कि 4 मार्च तक चलेगा। कुम्भ के दौरान पारौणिक ग्रंथों में 51 दिन के कल्पवास का विधान है। जिसमें कुम्भ स्नान आरंभ होने के पश्चात कुम्भ के अंतिम दिन तक स्नान करने का महत्व माना जाता है। लेकिन इसमें भी कुछ प्रमुख तिथियां विशेष रूप से पुण्य फलदायी मानी जाती हैं। जो कि इस प्रकार हैं:-

मकर संक्रांति – कुंभ मेले का आरंभ इसी दिन से हो रहा है। चूंकि इस दिन सूर्य धनु राशि से गोचर कर मकर राशि में प्रवेश करते हैं जिसे मकर संक्रांति कहते हैं। इससे पहले सूर्य का गोचर दक्षिणायन माना जाता है। दक्षिणायन से उत्तरायण में सूर्य का आना बहुत ही शुभ माना जाता है इसलिये यह तिथि स्नान दान तपादि के लिये बहुत ही शुभ मानी जाती है। मकर संक्रांति का पर्व 15 जनवरी को है। मकर संक्रांति पर कुम्भ में स्नान करना बहुत ही सौभाग्यशाली है।

पौष पूर्णिमा – पौष माह की पूर्णिमा भी स्नान दान के लिये बहुत शुभ मानी जाती है। कुम्भ मेले की औपचारिक शुरुआत इस तिथि से होती है साथ ही कल्पवास भी इसी तिथि से शुरु होता है। यह तिथि 21 जनवरी को है।

मौनी अमावस्या – मौनी अमावस्या का दिन बहुत ही शुभ होता है। इस दिन कुम्भ में स्नान के लिये श्रद्धालुओं का विशाल जनसमूह उमड़ता है। यह तिथि 4 फरवरी के पड़ रही है।

बसंत पंचमी – बसंत पंचमी विद्या व वाणी की देवी मां सरस्वती की पूजा का दिन माना जाता है। कल्पवास करने वाले श्रद्धालुओं के लिये भी यह बहुत ही पुण्य तिथि होती है। इस दिन स्नान के पश्चात श्रद्धालु पीतांबर धारण करते हैं। यह तिथि 10 फरवरी को पड़ रही है।

माघी पूर्णिमा – 19 फरवरी को माघी पूर्णिमा का स्नान किया जाता है। इस देव गुरु बृहस्पति की पूजा की जाती है। कुम्भ स्नान का महत्व इस दिन इसलिये बढ़ जाता है क्योंकि यह मान्यता है कि इस दिन पवित्र नदियों में स्नान के लिये स्वर्गलोक से स्वयं देवता उतर कर आते हैं।

महाशिवरात्रि – 4 मार्च को भगवान शिवशंकर की आराधना का महापर्व महाशिवरात्रि है। महाशिवरात्रि कुम्भ मेले का भी अंतिम दिन है। इसलिये इस दिन भी स्नान का विशेष महत्व रहेगा।

कुम्भ मेले का काल निर्धारण

अब यह प्रश्न स्वाभाविक ही है कि सूर्य, चंद्रमा, शनि और गुरु का ऐसा क्या योगदान रहा है कि इन्हीं को कुंभ मेले के काल निर्धारण का आधार बनाया गया है तो हम आपको बताते हैं कि स्कंदपुराण में इन ग्रहों के योगदान का उल्लेख मिलता है। दरअसल जब समुद्र मंथन के पश्चात अमृत कलश यानि सुधा कुम्भ की प्राप्ति हुई तो देवताओं व दैत्यों में उसे लेकर युद्ध छिड़ गया। 12 दिनों तक चले युद्ध में 12 स्थानों पर कुम्भ से अमृत की बूंदें छलकी जिनमें चार हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक भारतवर्ष में हैं बाकि स्थान स्वर्गलोक में माने जाते हैं। इस दौरान दैत्यों से अमृत की रक्षा करने में सूर्य, चंद्रमा, शनि व गुरु का बहुत ही अहम योगदान रहा। स्कंदपुराण में लिखा है कि –

चन्द्रः प्रश्रवणाद्रक्षां सूर्यो विस्फोटनाद्दधौ।

दैत्येभ्यश्र गुरू रक्षां सौरिर्देवेन्द्रजाद् भयात्।।

सूर्येन्दुगुरूसंयोगस्य यद्राशौ यत्र वत्सरे।

सुधाकुम्भप्लवे भूमे कुम्भो भवति नान्यथा।।

 यानि चंद्रमा ने अमृत छलकने से, सूर्य ने अमृत कलश टूटने से, बृहस्पति ने दैत्यों से तथा शनि ने इंद्र के पुत्र जयंत से इस कलश को सुरक्षित रखा।

कुंभ मेला तभी लगता है जब ये ग्रह विशेष स्थान में होते हैं। इसमें देव गुरु बृहस्पति वृषभ राशि में होते हैं। सूर्य व चंद्रमा मकर राशि में होते हैं। माघ मास की अमावस्या यानि मौनी अमावस्या की स्थिति को देखकर भी कुम्भ मेले का आयोजन किया जाता है। कुल मिलाकर ग्रह ऐसे योग बनाते हैं जो कि स्नान दान व मनुष्य मात्र के कल्याण के लिये बहुत ही पुण्य फलदायी होता है।

जिन-जिन स्थानों में कुम्भ मेले का आयोजन होता है उन स्थानों पर यह योग आमतौर पर 12वें साल में बनता है। कभी कभी 11वें साल भी ऐसे योग बन जाते हैं। सूर्य और चंद्रमा की स्थिति तो हर स्थान पर हर साल बनती है। इसलिये हर वर्ष वार्षिक कुंभ मेले का भी आयोजन होता है। उज्जैन और नासिक में जहां यह सिंहस्थ के नाम से जाना जाता है वहीं हरिद्वार व प्रयागराज में कुंभ कहा जाता है। चारों स्थानों पर मेले का आयोजन भिन्न-भिन्न तिथियों में पड़ता है।

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Happy Makar Sankranti Images in Hindi 2019 & Sankranti Photos

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View and Download Happy Makar Sankranti Images in Hindi with 2019 Wishes, Pics, Photos, Free HD Makar Sankranti Photos Gallery and Latest Makar Sankranti Wishes in Hindi for Facebook Messages, Whatsapp DP, Wallpapers. सबसे पहले आप सभी को मकर संक्रांति की शुभकामनायें और बहुत बहुत बधाइयाँ… 14 जनवरी 2019 को वर्ष का प्रथम त्यौहार मकर …

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37 Makar Sankranti Shayari in Hindi for 2019 | मकर संक्रांति शायरी और शुभकामनायें

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We Have Beautiful Whatsapp Shayari for Makar Sankranti Festival, Hindi Makar Sankranti Status, Happy Makar Sankranti Shayari in Hindi and 2019 Makar Sankranti Hindi Quotes for Facebook, Whatsapp. May God give his all blessings on you on the auspicious occasion of Makar Sankranti. मकर संक्रांति भारत वर्ष में वैदिक काल से ही मनाया जाता है| …

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39 Happy Lohri Wishes in Hindi 2019 | लोहड़ी शायरी हिंदी और पंजाबी

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अपने सभी प्रियजनों को व्हाट्सप्प पर लोहड़ी शायरी (Happy Lohri Wishes in Hindi/Punjabi) भेजने के लिए यहाँ से Images एवं SMS सेलेक्ट करें| यहाँ बेहतरीन Lohri Wishes, Hindi व Punjabi दोनों भाषा में उपलब्ध हैं| आपको Lohri Messages भेजना हो या कोई बेहतरीन Lohri Images तो हमारे इस कलेक्शन का फायदा उठायें और इसबार जमकर …

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Happy Lohri Wallpaper HD 2019 Free Download (Lohri Festival Images)

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We Have HD Wallpapers for Lohri Festival, Lohri Beautiful Images, Happy Lohri HD Wallpapers, Lohri Festival Pictures, Happy Lohri Wallpapers for 2019, Lohri Wishing Photos for Whatsapp, Laptop Backgrounds. लोहड़ी का पर्व पूरे उत्तर भारत में मनाया जाता है| खासकर पंजाब में यह त्यौहार बहुत ही प्रसिद्ध है, पंजाबी संस्कृति और पंजाबी स्टाइल से मनाया …

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कुम्भ मेला – भक्ति और सभ्यता का संगम तथा विश्व का सर्वोच्च तीर्थराज

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कुम्भ मेला – Kumbha Mela

कुम्भ पर्व (mahakumbh) विश्व मे किसी भी धार्मिक प्रयोजन हेतु भक्तो का सबसे बड़ा संग्रहण है । सैंकड़ो की संख्या में लोग इस पावन पर्व में उपस्थित होते हैं । कुम्भ (kumbh) का संस्कृत अर्थ है कलश, ज्योतिष शास्त्र में कुम्भ राशि का भी यही चिन्ह है । हिन्दू धर्म में कुम्भ का पर्व हर १२ वर्ष के अंतराल पर चारों में से किसी एक पवित्र नदी के तट पर मनाया जाता है- हरिद्वार में गंगा, उज्जैन में शिप्रा, नासिक में गोदावरी और इलाहाबाद में संगम जहाँ गंगा, यमुना और सरस्वती मिलती हैं। इस मेले में करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु सम्मिलित होते है। ऐसी मान्यता है कि संगम के पवित्र जल में स्नान करने से आत्मा शुद्ध हो जाती है।

कुम्भ मेला (Kumbh Mela) धार्मिक मान्यता :

राक्षसों और देवताओं में जब अमृत के लिए लड़ाई हो रही थी तब भगवान विष्णु ने एक ‘मोहिनी’ का रूप लिया और राक्षसों से अमृत को जब्त कर लिया। भगवान विष्णु ने गरुड़ को अमृत पारित कर दिया, और अंत में राक्षसों और गरुड़ के संघर्ष में कीमती अमृत की कुछ बूंदें इलाहाबाद, नासिक, हरिद्वार और उज्जैन में गिर गई। तब से प्रत्येक 12 साल में इन सभी स्थानों में ‘कुम्भ मेला’ आयोजित किया जाता है।

अर्द्ध कुम्भ (Ardha Kumbh Mela 2019) और माघ मेला:

हरिद्वार और प्रयाग में दो कुंभ पर्वों के बीच छह वर्ष के अंतराल में अर्द्धकुंभ होता है। अर्द्ध या आधा कुम्भ, हर छह वर्षो में संगम के तट पर आयोजित किया जाता है। पवित्रता के लिए अर्द्ध कुम्भ भी पूरी दुनिया में लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करती है। माघ मेला संगम पर आयोजित एक वार्षिक समारोह है।

मुख्य स्नान तिथियों पर सूर्योदय के समय रथ और हाथी पर संतों के रंगारंग जुलूस का भव्य आयोजन होता है। पवित्र गंगा नदी में संतों द्वारा डुबकी लगाई जाती है। संगम तट इलाहाबाद में सिविल लाइंस से लगभग 7 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यहां पर गंगा, यमुना और सरस्वती नदी का संगम है, इसे त्रिवेणी संगम भी कहते हैं। यहीं कुम्भ मेला आयोजित किया जाता है जहां पर लोग स्नान करते हैं।

 इस पर्व को ‘स्नान पर्व’ भी कहते हैं। यही स्थान तीर्थराज कहलाता है। गंगा और यमुना का उद्गम हिमालय से होता है जबकि सरस्वती का उद्गम अलौकिक माना जाता है। मान्यता है कि सरस्वती का उद्गम गंगा-यमुना के मिलन से हुआ है जबकि कुछ ग्रंथों में इसका उद्गम नदी के तल के नीचे से बताया गया है। इस संगम स्थल पर ही अमृत की बूंदें गिरी थी इसीलिए यहां स्नान का महत्व है। त्रिवेणी संगम तट पर स्नान करने से शरीर और आत्मा शुद्ध हो जाती है। यहां पर लोग अपने पूर्वजों का पिंडदान भी करते हैं।

कुम्भ का अर्थ :

कुम्भ का शाब्दिक अर्थ कलश होता है। कुम्भ का पर्याय पवित्र कलश से होता है। इस कलश का हिन्दू सभ्यता में विशेष महत्व है। कलश के मुख को भगवान विष्णु, गर्दन को रुद्र, आधार को ब्रह्मा, बीच के भाग को समस्त देवियों और अंदर के जल को संपूर्ण सागर का प्रतीक माना जाता है। यह चारों वेदों का संगम है। इस तरह कुम्भ का अर्थ पूर्णतः औचित्य पूर्ण है। वास्तव में कुम्भ हमारी सभ्यता का संगम है। यह आत्म जाग्रति का प्रतीक है। यह मानवता का अनंत प्रवाह है। यह प्रकृति और मानवता का संगम है। कुम्भ ऊर्जा का स्त्रोत है। कुम्भ मानव-जाति को पाप, पुण्य और प्रकाश, अंधकार का एहसास कराता है। नदी जीवन रूपी जल के अनंत प्रवाह को दर्शाती है। मानव शरीर पंचतत्व से निर्मित है यह तत्व हैं-अग्नि, वायु, जल, पृथ्वी और आकाश।

कल्पवास :

प्रयाग में कल्पवास का अत्यधिक महत्व है। यह माघ के माह में और अधिक महत्व रखता है और यह पौष माह के 11वें दिन से माघ माह के 12वें दिन तक रहता है। कल्पवास को धैर्य, अहिंसा और भक्ति के लिए जाना जाता है और भोजन एक दिन में एक बार ही किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि जो कल्पवास की प्रतिज्ञा करता है वह अगले जन्म में राजा के रूप में जन्म लेता है।

ज्योतिषीय दृष्टिकोण :

समुद्र मंथन की कथा में कहा गया है कि कुम्भ पर्व का सीधा सम्बन्ध तारों से है। अमृत कलश को स्वर्ग लोक तक ले जाने में इंद्र के पुत्र जयंत को 12 दिन लगे। देवों का एक दिन मनुष्यों के 1 वर्ष के बराबर है इसीलिए तारों के क्रम के अनुसार हर 12वें वर्ष कुम्भ पर्व विभिन्न तीर्थ स्थानों पर आयोजित किया जाता है।

ज्योतिषीय गणना के अनुसार कुम्भ का पर्व 4 प्रकार से आयोजित किया जाता है :

इलाहबाद का कुम्भ पर्व

ज्योतिषशास्त्रियों के अनुसार जब बृहस्पति कुम्भ राशि में और सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है तब कुम्भ मेले का आयोजन किया जाता है। वर्ष २०१३ में १४ जनवरी से पूर्ण कुम्भ मेला इलाहाबाद में आयोजित किया जाएगा । प्रयाग का कुम्भ मेला सभी मेलों में सर्वाधिक महत्व रखता है

हरिद्वार के कुम्भ पर्व

हरिद्वार हिमालय पर्वत श्रृंखला के शिवालिक पर्वत के नीचे स्थित है । प्राचीन ग्रंथों में हरिद्वार को तपोवन, मायापुरी, गंगाद्वार और मोक्षद्वार आदि नामों से भी जाना जाता है। हरिद्वार की धार्मिक महत्‍ता विशाल है एवं यह हिन्दुओं के लिए एक प्रमुख तीर्थस्थान है । मेले की तिथि की गणना करने के लिए सूर्य, चन्द्र और बृहस्पति की स्थिति की आवश्यकता होती है। हरिद्वार का सम्बन्ध मेष राशि से है । पिछला कुम्भ मेला मकर संक्रांति (१४ जनवरी २०१०) से शाख पूर्णिमा स्नान(२८ अप्रैल २०१०) तक हरिद्वार में आयजित हुआ था । २०२२ में हरिद्वार में आयोजित होने वाले कुम्भ मेले के तिथि अभी निकालनी बाकी है ।

नासिक का कुम्भ पर्व

भारत में १२ में से एक जोतिर्लिंग त्र्यम्बकेश्वर नामक पवित्र शहर में स्थित है । यह स्थान नासिक से ३८ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और गोदावरी नदी का उद्गम भी यहीं से हुआ । १२ वर्षों में एक बार सिंहस्थ कुम्भ मेला नासिक एवं त्रयम्बकेश्वर में आयोजित होता है । ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार नासिक उन चार स्थानों में से एक है जहाँ अमृत कलश से अमृत की कुछ बूँदें गिरी थीं। कुम्भ मेले में सैंकड़ों श्रद्धालु गोदावरी के पावन जल में नहा कर अपनी आत्मा की शुद्धि एवं मोक्ष के लिए प्रार्थना करते हैं । यहाँ पर शिवरात्रि का त्यौहार भी बहुत धूम धाम से मनाया जाता है

उज्जैन का कुम्भ पर्व

उज्‍जैन का अर्थ है विजय की नगरी और यह मध्य प्रदेश की पश्चिमी सीमा पर स्थित है । इंदौर से इसकी दूरी लगभग ५५ किलोमीटर है । यह शिप्रा नदी के तट पर बसा है । उज्जैन भारत के पवित्र एवं धार्मिक स्थलों में से एक है । ज्योतिष शास्‍त्र के अनुसार शून्य अंश ( डिग्री) उज्जैन से शुरू होता है । महाभारत के अरण्य पर्व के अनुसार उज्जैन ७ पवित्र मोक्ष पुरी या सप्त पुरी में से एक है । उज्जैन के अतिरिक्त शेष हैं अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, काशी, कांचीपुरम और द्वारका । कहते हैं की भगवन शिव नें त्रिपुरा राक्षस का वध उज्जैन में ही किया था।

नागा साधुओं का रूप :

Kumbh melaकुम्भ मेले में शैवपंथी नागा साधुओं को देखने के लिए भीड़ उमड़ पड़ती है। कुम्भ के सबसे पवित्र शाही स्नान में सबसे पहले स्नान का अधिकार इन्हें ही मिलता है।  नागा साधु अपने पूरे शरीर पर भभूत मले, निर्वस्त्र रहते हैं। उनकी बड़ी-बड़ी जटाएं भी आकर्षण का केंद्र रहती है। हाथों में चिलम लिए और चरस का कश लगाते हुए इन साधुओं को देखना अजीब लगता है। मस्तक पर आड़ा भभूत लगा, तीनधारी तिलक लगा कर धूनी रमा कर, नग्न रह कर और गुफ़ाओं में तप करने वाले नागा साधुओं का उल्लेख पौराणिक ग्रंथों में भी मिलता है।

 

 

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रवि पुष्य योग 2019 | Ravi Pushya 2019

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रवि पुष्य योग 2019 | Ravi Pushya 2019

वैदिक ज्योतिष शास्त्र में 27 नक्षत्र हैं। इनमें 8वें स्थान पर पुष्य नक्षत्र आता है, जो बेहद ही शुभ एवं कल्याणकारी नक्षत्र है, इसलिए इसे नक्षत्रों का सम्राट भी कहा जाता है। जब यह नक्षत्र रविवार के दिन होता है तो इस नक्षत्र एवं वार के संयोग से रवि पुष्य योग बनता है। इस योग में ग्रहों की सभी बुरी दशाएँ अनुकूल हो जाती हैं, जिसका परिणाम सदैव आपके लिए शुभकारी होता है। रवि पुष्य योग को रवि पुष्य नक्षत्र योग भी कहा जाता है।

दिनांक आरंभ काल समाप्ति काल
रविवार, 20 जनवरी 29:22:45 31:14:05
रविवार, 17 फरवरी 16:45:39 30:57:29
रविवार, 17 मार्च 06:29:22 24:11:42
रविवार, 14 अप्रैल 05:57:28 07:40:18
रविवार, 17 नवंबर 22:59:19 30:45:42
रविवार, 15 दिसंबर 07:05:55 28:01:04

रवि पुष्य योग में इन कार्यों को करना माना जाता है बेहद शुभ

रवि पुष्य योग समस्त शुभ और मांगलिक कार्यों के शुभारंभ के लिए उत्तम माना गया है। यदि ग्रहों की स्थिति प्रतिकूल हो अथवा कोई अच्छा मुहूर्त नहीं भी हो, ऐसी स्थिति में भी रवि पुष्य योग सभी कार्यों के लिए परम लाभकारी होता है लेकिन विवाह को छोड़कर। इस योग में सोने के आभूषण, प्रॉपर्टी और वाहन आदि की खरीददारी करना लाभदायक होता है। रवि पुष्य योग में नए व्यापार और व्यवसाय की शुरुआत करना भी श्रेष्ठ बताया जाता है। इसके अलावा यह योग तंत्र-मंत्र की सिद्धि एवं जड़ी-बूटी ग्रहण करने में विशेष रूप से उपयोगी होता है।

1.  इस दिन साधना करने से उसमें निश्चित ही सफलता प्राप्त होती है।
2.  कार्य की गुणवत्ता एवं उसके प्रभाव में वृद्धि होती है।
3.  धन वैभव में वृद्धि होती है।
4.  यंत्र सिद्धि के लिए यह शुभ दिन होता है।
5.  जन्मकुंडली में स्थित सूर्य के दुष्प्रभाव दूर होते हैं।
6.  सूर्य का आशीर्वाद पाने के लिए इस दिन सुर्ख लाल वस्त्र पहनना शुभ होता है।
7.  जीवन में आर्थिक समृद्धि आती है।

रवि पुष्य योग पर करें ये धार्मिक कर्म और उपाय

●  रविवार के दिन गाय को गुड़ खिलाने से आर्थिक लाभ होता है।
●  रविवार के दिन मंदिर में दीपक जलाने से कार्य में आने वाली बाधा समाप्त होती है।
●  तांबे के लोटे में जल में दूध, लाल पुष्प और लाल चंदन डालकर सूर्य को अर्घ्य देने से शत्रु कमजोर होते हैं।

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ॐ नमः शिवाय मंत्र जप – इसे शिव पञ्चाक्षर मंत्र भी कहते है …

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ॐ नमः शिवाय – Om Namah Shivay Chant

ॐ नमः शिवाय (Om Namaḥ Shivaya) यह सबसे लोकप्रिय हिंदू मंत्रों में से एक है और शैव सम्प्रदाय का महत्वपूर्ण मंत्र है। नमः शिवाय का अर्थ “भगवान शिव को नमस्कार” या “उस मंगलकारी को प्रणाम!” है। इसे शिव पञ्चाक्षर मंत्र या पञ्चाक्षर मंत्र भी कहा जाता है, जिसका अर्थ “पांच-अक्षर” मंत्र (ॐ को छोड़ कर) है। यह भगवान शिव को समर्पित है। यह मंत्र श्री रुद्रम् चमकम् और रुद्राष्टाध्यायी में “न”, “मः”, “शि”, “वा” और “य” के रूप में प्रकट हुआ है। श्री रुद्रम् चमकम्, कृष्ण यजुर्वेद[1] का हिस्सा है और रुद्राष्टाध्यायी, शुक्ल यजुर्वेद का हिस्सा है।

ॐ नमः शिवाय का अर्थ

ॐ नमः शिवाय का अर्थ “भगवान शिव को नमस्कार” या “उस मंगलकारी को प्रणाम!” है।

सिद्ध शैव और शैव सिद्धांत परंपरा जो शैव संप्रदाय का हिस्सा है, उनमें नमः शिवाय को भगवान शिव के पंच तत्त्व बोध और उनकी पाँच तत्वों पर सार्वभौमिक एकता को दर्शाता मानते हैं :

“न” ध्वनि पृथ्वी का प्रतिनिधित्व करता है
“मः” ध्वनि पानी का प्रतिनिधित्व करता है
“शि” ध्वनि आग का प्रतिनिधित्व करता है
“वा” ध्वनि प्राणिक हवा का प्रतिनिधित्व करता है
“य” ध्वनि आकाश का प्रतिनिधित्व करता है

इसका कुल अर्थ है कि “सार्वभौमिक चेतना एक है“।

पंचाक्षर अर्थ

शैव सिद्धांत परंपरा में यह पाँच अक्षर इन निम्नलिखित का भी प्रतिनिधित्व करते हैं 

“न” ईश्वर की गुप्त रखने की शक्ति (तिरोधान शक्ति) का प्रतिनिधित्व करता है
“मः” दुनिया का प्रतिनिधित्व करता है
“शि” शिव का प्रतिनिधित्व करता है
“वा” उसका खुलासा करने वाली शक्ति (अनुग्रह शक्ति) का प्रतिनिधित्व करता है
“य” आत्मा का प्रतिनिधित्व करता है

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क्यों खाया पांडवों ने अपने मृत पिता के शरीर का मांस – Story of Mahabharata

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क्यों खाया पांडवों ने अपने मृत पिता के शरीर का मांस – Story of Mahabharata

पौराणिक इतिहास में कई ऐसे क़िस्से हैं जो हमे रोमांचित करते हैं। यही नहीं, इनसे जुड़ी घटनाएँ हमें प्रेरित भी करती हैं। किन्तु ऐसी कई कथाएँ हैं जिससे हम अनभिज्ञ हैं। आज हम आपको एक ऐसी चौंकाने वाली घटना के विषय में बताएंगे, जिसे अपने शायद ही सुना होगा।

अम्बालिका और ऋषि व्यास के पुत्र थे पाण्डु। उनके ज्येष्ठ भ्राता धृतराष्ट्र के नेत्रहीन होने के कारण उन्हें हस्तिनापुर का राजा घोषित कर दिया गया था। पांडु की दो रानियाँ थीं–कुंती और माद्री, जिनसे उनके पाँच पुत्र थे युधिष्ठर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव। पाँचों पुत्रों में से युधिष्ठर, भीम और अर्जुन की माता कुंती थीं तथा नकुल और सहदेव की माता माद्री थीं।

क्यों दिया ऋषि ने पाण्डु को श्राप

एक बार महाराज पाण्डु अपनी दोनों रानियों कुंती और माद्री के साथ वन में गए थे। वहाँ उन्होंने मृग के भ्रम में बाण चला दिया जो एक ऋषि को लग गया। जिस समय ऋषि को बाण लगा उस वक़्त वह अपनी पत्नी के साथ सहवासरत थे, इसलिए उन्होंने पाण्डु को श्राप दे दिया की जब भी वह अपनी पत्नी या किसी भी अन्य स्त्री के साथ सम्भोग करेंगे तो उनकी मृत्यु हो जाएगी।

कैसे हुआ पाण्डवों का जन्म

पांडु की पत्नी कुंती को कुँवारेपन में ॠषि दुर्वासा ने उनकी सेवा-भावना से प्रसन्न होकर वरदान के रूप में एक मंत्र दिया था। उस मंत्र के आह्वान से वह किसी भी देवता को बुला सकती थीं और उनसे संतान प्राप्ति की कामना कर सकती थीं।

तब कुंती और माद्री दोनों ने ही भगवान का आह्वान किया और पाँच पुत्रों को प्राप्त किया–युधिष्ठर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव। इन पाँचों को पांडव कहा जाता है।

पाण्डु ने अपने पुत्रों को क्यों कहा था उनके मृत शरीर का मांस खाने के लिए

चूँकि पाण्डु के पुत्र वरदान से प्राप्त हुए थे इसलिए उनका ज्ञान और कौशल उनके पुत्रों में नहीं आ पाया था। इसलिए उन्होंने अपने पुत्रों से कहा था कि वे उनके मृत्यु के बाद उनके शरीर का माँस मिल बाँट कर खा लें ताकि उनका  ज्ञान बच्चों में स्थानांतरित हो जाए।

पांडवो द्वारा पिता का मांस खाने के सम्बन्ध में दो मान्यता प्रचलित है। एक ओर जहाँ यह माना जाता है कि पाण्डु के शरीर का मांस पाँचों भाइयों ने मिलकर खाया था वहीं दूसरी ओर ऐसी मान्यता है कि पांडवो में सिर्फ सहदेव ने पिता की इच्छा का पालन करते हुए उनके शरीर का मांस खाया था इसलिए उसके पास सबसे ज़्यादा ज्ञान था।

सहदेव ने पाण्डु के शरीर का कौन सा हिस्सा खाया था?

कहा जाता है कि सहदेव ने पांडु के मस्तिष्क के तीन हिस्से खाये थे। पहले टुकड़े को खाते ही सहदेव को इतिहास का ज्ञान हुआ, दूसरे टुकड़े को खाने पर वर्तमान का और तीसरे टुकड़े को खाते ही भविष्य का।

किसने दिया था सहदेव को शाप?

इस बात का कहीं-कहीं उल्लेख है कि भगवान श्री कृष्ण के अलावा सहदेव को भविष्य में होने वाले महाभारत के युद्ध के बारे में ज्ञान था। श्री कृष्ण को इस बात का भय था कि कहीं सहदेव भविष्य की बातों को उजागर न कर दें, इसलिये उन्होंने उसे शाप दे दिया की अगर वो ऐसा करेगा तो उसकी मृत्यु हो जाएगी।

कैसे हुई पांडु की मृत्यु?

ऋषि के श्राप से पाण्डु बहुत दुःखी थे और उन्होंने अपना राज-पाट त्यागकर वन में ही रहने का निर्णय किया था। उन्होंने अपनी पत्नियों को भी हस्तिनापुर लौट जाने को कहा था। किन्तु कुन्ती और माद्री ने पाण्डु के साथ वन में ही अपना जीवन व्यतीत करने का फ़ैसला कर लिया था। एक दिन पाण्डु और माद्री वन में विहार कर रहे थे, उस समय पाण्डु अपने काम-वेग पर नियंत्रण न रख सके और माद्री के साथ सम्भोग कर लिया। इस तरह ऋषि के शाप के अनुसार पाण्डु की मृत्यु हो गयी।

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