गंगा दशहरा – इस दिन गंगा स्नान से नष्ट होंगे ये दशों पाप, मिलेगी मुक्ति और अक्षत पुण्य

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गंगा दशहरा 2018 – Ganga Dussehra 2018 

दुनिया की सबसे पवित्र नदियों में एक है गंगा। गंगा के निर्मल जल पर लगातार हुए शोधों से भी गंगा विज्ञान की हर कसौटी पर भी खरी उतरी विज्ञान भी मानता है कि गंगाजल में किटाणुओं को मारने की क्षमता होती है जिस कारण इसका जल हमेशा पवित्र रहता है। यह सत्य भी विश्वव्यापी है कि गंगा नदी में एक डुबकी लगाने से सभी पाप धुल जाते हैं। हिन्दू धर्म में तो गंगा को देवी माँ का दर्जा दिया गया है। यह माना जाता है कि जब माँ गंगा का स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरित हुई तो वह ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि थी, तभी से इस तिथि को गंगा दशहरा के रूप में मनाया जाता है। वर्ष 2018 में गंगा दशहरा का यह पर्व 24 मई, गुरुवार को बड़ी धूमधाम से देशभर में मनाया जाएगा।

गंगा दशहरा का महत्व

कहा जाता है कि जिस दिन माँ गंगा पृथ्वी पर अवतरित हुई उस दिन एक बहुत ही अनूठा और भाग्यशाली मुहूर्त था। उस दिन ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथी और वार बुधवार था, हस्त नक्षत्र, व्यतिपात योग, गर योग, आनंद योग, कन्या राशि में चंद्रमा और वृषभ में सूर्य। इस प्रकार दस शुभ योग उस दिन बन रहे थे। माना जाता है कि इन सभी दस शुभ योगों के प्रभाव से गंगा दशहरा के पर्व में जो भी व्यक्ति गंगा में स्नान करता है उसके ये दस प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं। इन दस पापों में तीन पाप कायिक, चार पाप वाचिक और तीन पाप मानसिक होते हैं, इन सभी से व्यक्ति को मुक्ति मिलती है |

  • बिना आज्ञा या जबरन किसी की वस्तु लेना
  • हिंसा
  • पराई स्त्री के साथ समागम
  • कटुवचन का प्रयोग
  • असत्य वचन बोलना
  • किसी की शिकायत करना
  • असंबद्ध प्रलाप
  • दूसरें की संपत्ति हड़पना या हड़पने की इच्छा
  • दूसरें को हानि पहुँचाना या ऐसे इच्छा रखना
  • व्यर्थ बातो पर परिचर्चा

कहने का तात्पर्य है जिस किसी ने भी उपरोक्त पापकर्म किये हैं और जिसे अपने किये का पश्चाताप है और इससे मुक्ति पाना चाहता है तो उसे सच्चे मन से मां गंगा में डूबकी अवश्य लगानी चाहिये। यदि आप मां गंगा तक नहीं जा सकते हैं तो स्वच्छ जल में थोड़ा गंगा जल मिलाकर मां गंगा का स्मरण कर उससे भी स्नान कर सकते हैं।

कैसे करें गंगा की पूजा

इस दिन यदि संभव हो तो गंगा मैया के दर्शन कर उसे पवित्र जल में स्नान करें अन्यथा स्वच्छ जल में ही मां गंगा को स्मरण करते हुए स्नान करें यदि गंगाजल हो तो थोड़ा उसे भी पानी में मिला लें। स्नानादि के पश्चात मां गंगा की प्रतिमा की पूजा करें। इनके साथ राजा भागीरथ और हिमालय देव की भी पूजा-अर्चना करनी चाहिए। गंगा पूजा के समय प्रभु शिव की आराधना विशेष रूप से करनी चाहिए क्योंकि भगवान शिव ने ही गंगा जी के वेग को अपनी जटाओं पर धारण किया। इस पावन अवसर पर श्रद्धालुओं को माँ गंगा की पूजा-अर्चना के साथ दान-पुण्य भी करना चाहिए। सत्तू, मटका और हाथ का पंखा दान करने से दुगुना फल की प्राप्ति होती है। गंगा जी की पूजा में सभी वस्तुएँ दस प्रकार की होनी चाहिए, जैसे दस प्रकार के फूल, दस गंध, दस दीपक, दस प्रकार का नैवेद्य, दस पान के पत्ते, दस प्रकार के फल होने चाहिए|

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गंगा दशहरा की कथा 

हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार, जिस दिन माँ गंगा का धरती पर आगमन हुआ था उसे गंगा दशहरा कहा जाता है। माना जाता है भागीरथ के पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए धरती पर गंगा लाना चाहते थे। क्योंकि एक श्राप के कारण केवल माँ गंगा ही उनका उद्धार पर सकती थी। जिसके लिए उन्होंने माँ गंगा की कठोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर माँ गंगा ने दर्शन दिए और भागीरथ ने उनसे धरती पर आने की प्रार्थना की।

फिर गंगा ने कहा “मैं धरती पर आने के लिए तैयार हूँ, लेकिन मेरी तेज धारा धरती पर प्रलय ले आएगी। और अगर समय रहते धारा को नियंत्रित नहीं किया गया तो सृष्टि के नष्ट होने की संभावना है।” जिस पर भागीरथ ने उनसे इसका उपाय पूछा और गंगा ने शिव जी को इसका उपाय बताया। माना जाता है माँ गंगा के प्रचंड वेग को नियंत्रित करने के लिए भगवान शिव ने उन्हें अपनी जटाओं में समा लिया जिससे धरती को प्रलय से बचाया जा सके। और उसके बाद नियंत्रित वेग से गंगा को पृथ्वी पर प्रवाहित करा। जिसके बाद भागीरथ ने अपने पूर्वजों की अस्थियाँ प्रवाहित कर उन्हें मुक्ति दिलाई। तभी से इस दिन कोगंगा दशहरा या माँ गंगा के जन्म दिन के रूप में मनाया जानें लगा।

इस दिन भक्तगण माँ गंगा की पवित्र धारा में स्नान करते है। माना जाता है इस दिन गंगा में स्नान करने से सभी पाप नष्ट हो जाते है और व्यक्ति निरोग होता है। इस दिन प्रातःकाल सूरज उगने से पूर्व स्नान करने का खास महत्व होता है।

एक बात ध्यान रखें, गंगा दशहरा और गंगा सप्तमी (गंगा जयंती) में अंतर है। गंगा दशहरा वो समय होता है जब माँ गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ था जबकि गंगा जयंती वह दिन होता है जब गंगा का पुनः धरती पर अवतरण हुआ था।

गंगा मैया के मंत्र

‘नमो भगवते दशपापहराये गंगाये नारायण्ये रेवत्ये शिवाये दक्षाये अमृताये विश्वरुपिण्ये नंदिन्ये ते नमो नम:’

भावार्थ

हे भगवती, दसपाप हरने वाली गंगा, नारायणी, रेवती, शिव, दक्षा, अमृता, विश्वरूपिणी, नंदनी को नमन।।

‘ॐ नमो भगवति हिलि हिलि मिलि मिलि गंगे माँ पावय पावय स्वाहा’

भावार्थ

हे भगवती गंगे! मुझे बार-बार मिल और पवित्र कर।।

गंगा दशहरा के पावन पर्व की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं।

 

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