रामदीन जी द्वारा रचित मजदूर दिवस पर कविता
श्रमिक दिवस पर कविता
आज हम आप लोगों के समक्ष कवि रामदीन जी द्वारा रचित, मजदूर दिवस पर एक विशेष कविता प्रस्तुत कर रहे हैं –
मजदूर हैं हम, मजबूर नहीं
चलता है परदेश कमाने हाथ में थैला तान
थैले में कुछ चना, चबेना, आलू और पिसान…
टूटी चप्पल, फटा पजामा मन में कुछ अरमान
ढंग की जो मिल जाये मजूरी तो मिल जाये जहान।।
साहब लोगों की कोठी पर कल फिर उसको जाना है
तवा नहीं है फिर भी उसको तन की भूख मिटाना है…
दो ईटों पर धरे फावड़ा रोटी सेंक रहा है
गीली लकड़ी सूखे आंसू फिर भी सेंक रहा है।।
धुंआ देखकर कबरा कुत्ता पूंछ हिलाता आया
सोचा उसने मिलेगा टुकड़ा, डेरा पास जमाया…
मेहनतकश इंसानों का वह सालन बना रहा है
टेढ़ी मेढ़ी बटलोई में आलू पका रहा है।।
होली और दिवाली आकर उसका खून सुखाती है
घर परिवार की देख के हालत खूब रूलाई आती है…
मुन्ना टाफी नहीं मांगता, गुड़िया गुमसुम रहती है
साहब लोगों के पिल्लों को देख के मन भरमाती है।।
फट गया कुरता फिर दादा का, अम्मा की सलवार
पता नहीं किस बात पे हो गई दोनों में तकरार…
थे अधभरे कनस्तर घर में थी ना ऐसी कंगाली
नहीं गयी है मुंह में उसके कल से एक निवाली।।
लगता गुड़िया की मम्मी ने छेड़ी है कोई रार
इसी बात पर हो गई होगी दोनों में तकरार…
दो ईटों पर धरे फावड़ा रोटी सेंक रहा है
गीली लकड़ी सूखे आंसू फिर भी सेंक रहा है।।
मित्रों मजदूर किसी भी राष्ट्र के लिए नींव का कार्य करते हैं| जिस आलिशान मकान में बैठकर हम सुकून से रह पाते हैं, जिस सड़क पर हम शान से गाड़ियाँ चलाते हैं, जिन मशीनी सुख सुविधाओं से हम अपने जीवन को आसान बनाते हैं वो सभी चीजें इन मजदूरों के द्वारा ही बनाई जाती हैं| ये मजदूर एक से एक बड़ी कोठियों का निर्माण करते हैं लेकिन जीवनभर अपने लिए कभी छोटा सा घर भी नहीं बना पाते| अगर ये मजदूर ना हों तो एक सशक्त राष्ट्र की कल्पना भी नहीं की जा सकती|
1 मई को पूरे विश्व में मजदूर दिवस मनाया जाता है| इस दिन सभी मजदूर कर्मचारियों का अवकाश रहता है और लोग उनका आभार प्रकट करते हैं| इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए हमने आज ये कविता आपके समक्ष प्रस्तुत की है और आप सभी से आशा है कि आपको यह कविता बेहद पसंद आयेगी|
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