योगिनी एकादशी 2018 – सांसारिक सुख के साथ मोक्षदात्री है यह एकादशी

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योगिनी एकादशी 2018 – Yogini Ekadashi Vrat Puja

हिंदू धर्म में आस्था रखने वालों के लिये हर मास आने वाली कृष्ण और शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का महत्व बहुत अधिक है। पौराणिक ग्रंथों में हर एकादशी का अपना अलग महत्व बताया गया है। इन्हीं विशेषताओं के कारण इनके नाम भी भिन्न भिन्न रखे गये हैं। कुल मिलाकर साल भर में चौबीस एकादशियां होती हैं मल मास की एकादशियों को मिलाकर इनकी संख्या 26 हो जाती है। इन्हीं एकादशियों में एक एकादशी का व्रत ऐसा भी है जिसके करने से समस्त पाप तो नष्ट होते ही हैं साथ ही इस लोक में भोग और परलोक मुक्ति भी इस एकादशी का उपवास रखने से मिलती है। यह है आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी जिसे योगिनी एकादशी कहते हैं। आइये जानते हैं योगिनी एकादशी के महत्व और इसकी कथा के बारे में।

योगिनी एकादशी व्रतकथा -Yogini Ekadashi Vrat Katha

योगिनी एकादशी का यह व्रत काफी प्रचलित है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार तो तीनों लोकों में इस एकादशी को बहुत महत्व दिया गया है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार ही योगिनी एकादशी व्रत की कथा कुछ इस प्रकार है।

महाभारत काल की बात है कि एक बार धर्मराज युधिष्ठिर भगवान श्री कृष्ण से एकादशियों के व्रत का माहात्म्य सुन रहे थे। उन्होंनें भगवान श्री कृष्ण से कहा कि भगवन आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या महत्व है और इस एकादशी का नाम क्या है? भगवान श्री कृष्ण ने कहा हे राजन इस एकादशी का नाम योगिनी है। समस्त जगत में जो भी इस एकादशी के दिन विधिवत उपवास रखता है प्रभु की पूजा करता है उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।

वह अपने जीवन में तमाम सुख-सुविधाओं, भोग-विलास का आनंद लेता है और अंत काल में उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। योगिनी एकादशी का यह उपवास तीनों लोकों में प्रसिद्ध है। तब युद्धिष्ठर ने कहा प्रभु योगिनी एकादशी के महत्व को आपके मुखारबिंद से सुनकर मेरी उत्सुकता और भी बढ़ गई है कृपया इसके बारे थोड़ा विस्तार से बतायें। अब भगवान श्री कृष्ण कहने लगे हे धर्मश्रेष्ठ मैं पुराणों में वर्णित एक कथा सुनाता हूं उसे ध्यानपूर्वक सुनना।

स्वर्गलोक की अलकापुरी नामक नगर में कुबेर नाम के राजा राज किया करते थे। वह बड़े ही नेमी-धर्मी राजा था और भगवान शिव के उपासक थे। आंधी आये तूफान आये कोई भी बाधा उन्हें भगवान शिव की पूजा करने से नहीं रोक सकती थी। भगवान शिव के पूजन के लिये उनके लिये हेम नामक एक माली फूलों की व्यवस्था करता था। वह हर रोज पूजा से पहले राजा कुबेर को फूल देकर जाया करता। हेम अपनी पत्नी विशालाक्षी से बहुत प्रेम करता था, वह बहुत सुंदर स्त्री थी। एक दिन क्या हुआ कि हेम पूजा के लिये पुष्प तो ले आया लेकिन रास्ते में उसने सोचा अभी पूजा में तो समय है क्यों न घर चला जाये उसने आते-आते अपने घर की राह पकड़ ली।

घर आने बाद अपनी पत्नी को देखकर वह कामास्कत हो गया और उसके साथ रमण करने लगा। उधर पूजा का समय बीता जा रहा था और राजा कुबेर पुष्प न आने से व्याकुल हुए जा रहे थे। जब पूजा का समय बीत गया और हेम पुष्प लेकर नहीं पंहुचा तो राजा ने अपने सैनिकों को भेजकर उसका पता लगाने की कही। सैनिकों ने लौटकर बता दिया कि महाराज वह महापापी है महाकामी है अपनी पत्नी के साथ रमण करने में व्यस्त था। यह सुनकर तो कुबेर का गुस्सा सांतवें आसमान पर पंहुच गया। उन्होंनें तुरंत हेम को पकड़ लाने की कही। अब हेम कांपते हुए राजा कुबेर के सामने खड़ा था।

कुबेर ने हेम को क्रोधित होते हुए कहा कि हे नीच महापापी तुमने कामवश होकर भगवान शिव का अनादर किया है मैं तूझे शाप देता हूं कि तू स्त्री का वियोग सहेगा और मृत्युलोक में जाकर कोढ़ी होगा। अब कुबेर के शाप से हेम माली भूतल पर पंहुच गया और कोढ़ग्रस्त हो गया। स्वर्गलोक में वास करते-करते उसे दुखों की अनुभूति नहीं थी। लेकिन यहां पृथ्वी पर भूख-प्यास के साथ-साथ एक गंभीर बिमारी कोढ़ से उसका सामना हो रहा था उसे उसके दुखों का कोई अंत नजर नहीं आ रहा था लेकिन उसने भगवान शिव की पूजा भी कर रखी थी उसके सत्कर्म ही कहिये कि वह एक दिन घूमते-घूमते मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में पंहुच गया। इनके आश्रम की शोभा देखते ही बनती थी।

ब्रह्मा की सभा के समान ही मार्कंडेय ऋषि की सभा का नजारा भी था। वह उनके चरणों में गिर पड़ा और महर्षि के पूछने पर अपनी व्यथा से उन्हें अवगत करवाया। अब ऋषि मार्केंडय ने कहा कि तुमने मुझसे सत्य बोला है इसलिये मैं तुम्हें एक उपाय बताता हूं। आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष को योगिनी एकादशी होती है। इसका विधिपूर्वक व्रत यदि तुम करोगे तो तुम्हारे सब पाप नष्ट हो जाएंगें। अब माली ने ऋषि को साष्टांग प्रणाम किया और उनके बताये अनुसार योगिनी एकादशी का व्रत किया। इस प्रकार उसे अपने शाप से छुटकारा मिला और वह फिर से अपने वास्तविक रुप में आकर अपनी स्त्री के साथ सुख से रहने लगा।

भगवान श्री कृष्ण कथा सुनाकर युधिष्ठर से कहने लगे, हे राजन 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के पश्चात जितना पुण्य मिलता है उसके समान पुण्य की प्राप्ति योगिनी एकादशी का विधिपूर्वक उपवास रखने से होती है और व्रती इस लोक में सुख भोग कर उस लोक में मोक्ष को प्राप्त करता है।

योगिनी एकादशी व्रत व पूजा विधि – Yogini Ekadashi Vrat Puja Vidhi

योगिनी एकादशी के उपवास की शुरुआत दशमी तिथि की रात्रि से ही हो जाती है। व्रती को दशमी तिथि की रात्रि से ही तामसिक भोजन का त्याग कर सादा भोजन ग्रहण करना चाहिये और ब्रह्मचर्य का पालन अवश्य करें। हो सके तो जमीन पर ही सोएं। प्रात:काल उठकर नित्यकर्म से निजात पाकर स्नानादि के पश्चात व्रत का संकल्प लें। फिर कुंभस्थापना कर उस पर भगवान विष्णु की मूर्ति रख उनकी पूजा करें।

भगवान नारायण की मूर्ति को स्नानादि करवाकर भोग लगायें। पुष्प, धूप, दीप आदि से आरती उतारें। पूजा स्वंय भी कर सकते हैं और किसी विद्वान ब्राह्मण से भी करवा सकते हैं। दिन में योगिनी एकादशी की कथा भी जरुर सुननी चाहिये। इस दिन दान कर्म करना भी बहुत कल्याणकारी रहता है। पीपल के पेड़ की पूजा भी इस दिन अवश्य करनी चाहिये। रात्रि में जागरण करना भी अवश्य करना चाहिये। इस दिन दुर्व्यसनों से भी दूर रहना चाहिये और सात्विक जीवन जीना चाहिये।

2018 में योगिनी एकादशी – Yogini Ekadashi In 2018

योगिनी एकादशी तिथि – 9 जुलाई 2018

पारण का समय – 05:34 से 08:19 बजे तक (10 जुलाई 2018)

पारण के दिन द्वादशी तिथि समाप्त – 06:45 बजे (10 जुलाई 2018)

एकादशी तिथि आरंभ – 23:30 बजे (8 जुलाई 2018)

एकादशी तिथि समाप्त – 21:27 बजे (9 जुलाई 2018)

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आषाढ़ माह 2018 – जानें आषाढ़ माह के व्रत व त्यौहार

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आषाढ़ माह 2018 – Ashadh mah Vrat Katha Amavasya 

आषाढ़ वर्षा ऋतु के आरंभ का माह माना जाता है। यह हिंदू पंचाग के अनुसार वर्ष का चौथा मास भी होता है। ज्येष्ठ माह में पड़ने वाली भयंकर गर्मी से राहत मिलने के आसार आषाढ़ माह में ही नज़र आते हैं। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार अक्सर जून या जुलाई माह में आषाढ़ का महीना पड़ता है। साल 2018 में आषाढ़ मास 29 जून से आरंभ होगा व 27 जुलाई को आषाढ़ पूर्णिमा के साथ समाप्त होगा। आइये जानते हैं आषाढ़ माह के महत्व व इसके व्रत व त्यौहारों के बारे में।

आषाढ़ माह का महत्व

हिंदू वर्ष के चौथे महीने नाम आषाढ़ है यह मास ज्येष्ठ व सावन मास के बीच आता है। इस माह से ही वर्षा ऋतु का आगमन भी होता है। हिंदू पंचांग में सभी महीनों के नाम नक्षत्रों पर आधारित हैं। मास की पूर्णिमा को चंद्रमा जिस नक्षत्र में होता है उस महीने का नाम उसी नक्षत्र के नाम पर रखा गया है। आषाढ़ नाम भी पूर्वाषाढ़ा और उत्तराषाढ़ा नक्षत्रों पर आधारित हैं। आषाढ़ माह की पूर्णिमा को चंद्रमा इन्हीं नक्षत्रों में रहता है जिस कारण इस महीने का नाम आषाढ़ पड़ा है। संयोगवश यदि पूर्णिमा के दिन उत्ताराषाढ़ा नक्षत्र हो तो यह बहुत ही पुण्यदायी माना जाता है। इस संयोग में दस विश्वदेवों की पूजा की जाती है। इसी माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को जगन्नाथ जी की रथ यात्रा निकाली जाती है।

आषाढ़ माह के व्रत व त्यौहार – Festival & Vrat in Ashadh 2018

योगिनी एकादशी – Yogini Ekadashi

आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को योगिनी एकादशी कहा जाता है यह तिथि बहुत ही शुभ मानी जाती है। एकादशी व्रत में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। अंग्रेजी कलैंडर के अनुसार यह योगिनी एकादशी 9 जुलाई को है।

आषाढ़ अमावस्या – Ashadh Amavasya 2018

अमावस्या तिथि बहुत ही पवित्र मानी जाती है विशेष कर स्नान, दान-पुण्य, पितृ कर्म आदि के लिये तो बहुत ही पुण्य फलदायी मानी जाती है। आषाढ़ मास की अमावस्या अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 13 जुलाई को शुक्रवार के दिन है। शनिवार के दिन आने वाली अमावस्या शनि अमावस्या के रूप में भी जानी जाती है। इसलिये यह दिन बहुत ही सौभाग्यशाली है। कालसर्प दोष एवं शनि संबंधी दोषों के निवारण शनि अमावस्या को किये जा सकते हैं।

गुप्त नवरात्रि – Gupt Navratri 2018

प्रत्येक वर्ष में चार नवरात्रि होते हैं। वर्ष की पहली नवरात्रि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में आरंभ होती है जिन्हें वासंती नवरात्र भी कहते हैं वहीं बड़े स्तर पर शारदीय नवरात्र मनाये जाते हैं जो कि आश्विन मास के शुक्ल पक्ष से आरंभ होते हैं। लेकिन चैत्र के पश्चात आषाढ़ व आश्विन माह के बाद माघ माह में भी शुक्ल पक्ष से नवरात्रि शुरु होते हैं लेकिन इन्हें गुप्त नवरात्र कहा जाता है। आषाढ़ माह में गुप्त नवरात्र 13 जुलाई से शुरु होंगे।

जगन्नाथ यात्रा – Jaggnath Yatra 2018 

आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया से भगवान जगन्नाथ की यात्रा निकाली जाती है। इसमें भगवान श्री कृष्ण, माता सुभद्रा व बलराम का पुष्य नक्षत्र में रथोत्सव निकाला जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष जगन्नाथ यात्रा यह तिथि 13 जुलाई को निकाली जायेगी।

देवशयनी एकादशी – Devshayni Ekadashi 2018

देवशयनी एकादशी बहुत ही खास एकादशी होती है। यहां से धर्म-कर्म का दौर शुरु हो जाता है और सभी मांगलिक कार्यक्रमों पर विराम लग जाता है। दरअसल भगवान विष्णु इस दिन से चतुर्मास के लिये सो जाते हैं और देवउठनी एकादशी को ही जागते हैं। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी देवशयनी एकादशी कही जाती है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह तिथि 23 जुलाई को है।

यह भी जरूर पढ़े – जानिए क्यों नहीं करते है शुभ कार्य देवशयनी एकादशी के बाद

आषाढ़ पूर्णिमा – Ashadh Purnima 2018

आषाढ़ पूर्णिमा का दिन बहुत ही खास होता है। इस दिन को गुरु पूर्णिमा, व्यास पूर्णिमा आदि के रूप में भी मनाया जाता है। आषाढ़ पूर्णिमा अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 27 जुलाई को है।

 

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परिवार में आपसी कलह और लड़ाइयों का सबसे बड़ा कारण

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आज के समय में शायद ही कोई ऐसा परिवार होगा, जिसमें लड़ाई झगड़े ना होते हों| हर परिवार में क्लेश या लड़ाईयां बहुत ही सामान्य चीजें हो गई हैं| परिवार के बड़े बुजुर्ग हमेशा इस बात से परेशान रहते हैं कि परिवार के सभी सदस्य आपस में लड़ते क्यों हैं? एक दूसरे के साथ भाईचारे से क्यों नहीं रहते? एक ही परिवार के लोग आपस में एक दूसरे के खून के प्यासे क्यों हो बैठे हैं? क्यों एक भाई दूसरे भाई को देखकर जलना शुरु कर देता है? क्यों परिवार का एक सदस्य दूसरे सदस्य को देखकर ईर्ष्या करने लगता

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ATM Se Paise Kaise Nikale Jate Hai in Hindi

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आइये जानें कि एटीएम कार्ड और पासवर्ड का इस्तेमाल करके ATM Se Paise Kaise Nikale Jate Hai. पैसे निकालने के लिए अपने एटीएम कार्ड को एटीएम मशीन में डालना होता है, इसके बाद पासवर्ड भरकर आप पैसे निकाल सकते हैं| यहाँ हम आपको ATM इस्तेमाल करने की पूरी प्रक्रिया को समझाने वाले हैं – आज भी बहुत सारे लोग ATM का इस्तेमाल नहीं करते क्यूंकि उनको एटीएम से पैसे निकालने नहीं आते| साथ ही कुछ लोग तो एटीएम का इस्तेमाल करने से भी डरते हैं क्यूंकि उनको लगता है कि यह कार्ड Insecure है और कोई उनके पैसे चुरा सकता

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कैसे छोड़ें बुरी आदतें Bad Habits in Hindi

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Get Rid of Bad Habits in Hindi एक बार की बात है, किसी दूर गाँव में एक किसान रहता था जिसका एक बेटा था। यूँ तो वह बहुत धनी था लेकिन किसान अपने बेटे की कुछ गन्दी आदतों से बहुत परेशान था, बहुत प्रयासों के बाद भी उसका बेटा बुरी आदतों को छोड़ने को तैयार नहीं था। धनी किसान बेटे को एक ऋषि के पास ले गया और ऋषि को सारी बात बताई। ऋषि ने किसान को विश्वास दिलाया कि वह उसके बेटे की सारी गन्दी आदतें छुड़ा देंगे। ऋषि बेटे को लेकर एक जंगल में गए वहाँ बहुत सारे पेड़ पौधे थे। ऋषि

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ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैंजनियां …

अगर आप दरिद्रता से बचना चाहते है तो इस पौराणिक कथा को अवश्य पढ़े और जाने की दरिद्रा कहां – कहां रहती है ?

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समुद्र मंथन के समय हलाहल के निकलने के पश्चात् दरिद्रा की, तत्पश्चात् लक्ष्मी जी की उत्पत्ति हुई । इसलिए दरिद्रा को ज्येष्ठ भी कहते हैं । ज्येष्ठा का विवाह दु:सह ब्राह्मण के साथ हुआ । विवाह के बाद दु:सह मुनि अपनी पत्नी के साथ विचरण करने लगे । जिस देश में भगवान का उद्घोष होता, होम होता, वेदपाठ होता, भस्म लगाये लोग होते – वहां से ज्येष्ठा दोनों कान बंद कर दूर भाग जाती ।

यह देखकर दु:सह मुनि उद्विग्न हो गये । उन दिनों सब जगह धर्म की चर्चा और पुण्य कृत्य हुआ ही करते थे । अत: दरिद्रा भागते भागते थक गयी, तब उसे दु:सह मुनि निर्जन वन में ले गये । ज्येष्ठा डर रही थी कि मेरे पति मुझे छोड़कर किसी अन्य कन्या से विवाह न कर लें । दु:सह मुनि ने यह प्रतिज्ञा कर कि ‘मैं किसी अन्य कन्या से विवाह नहीं करूंगा ’ पत्नी को आश्वस्त कर दिया ।

आगे बढ़ने पर दु:सह मुनि ने महर्षि मार्कण्डेय को आते हुए देखा । उन्होंने महर्षि को साष्टांग प्रणाम किया और पूछा कि ‘इस भार्या के साथ मैं कहां रहूं और कहां न रहूं ?’ मार्कण्डेय मुनि ने पहले उन स्थानों को बताना आरंभ किया, जहां दरिद्रा को प्रवेश नहीं करना चाहिए –

‘जहां रुद्र के भक्त हों और भस्म लगाने वाले लोग हों, वहां तुम लोग प्रवेश न करना । जहां नारायण, गोविंद, शंकर, महादेव आदि भगवान के नाम का कीर्तन होता हो, वहां तुम दोनों को नहीं जाना चाहिए, क्योंकि आग उगलता हुआ विष्णु का चक्र उन लोगों के अशुभ को नाश करता रहता है । जिस घर में स्वाहा, वष्टकार और वेद का घोष होता हो, जहां के लोग नित्यकर्म में लगे हुए भगवान की पूजा में लगे हुए हों, उस घर को दूर से ही त्याग देना । जिस घर में भगवान की मूर्ति हो, गाएं हो, भक्त हों, उस घर में भी तुम दोनों मत घुसना ।’

तब दु:सह मुनि ने पूछा – ‘महर्षे ! अब आप हमें यह बताएं कि हमारे प्रवेश के स्थान कौन कौन से हैं ?’ महर्षि मार्कण्डेय जी ने कहा – ‘जहां पति पत्नी परस्पर झगड़ा करते हों, उस घर में तुम दोनों निर्भय होकर घुस जाओ । जहां भगवान की निंदा होती हो, जप, होम आदि न होते हों, भगवान के नाम नहीं लिए जाते हों, उस घर में घुस जाओ । जो लोग बच्चों को न देकर स्वयं खा लेते हों, उस घर में तुम दोनों घुस जाओ । जिस घर में कांटेदार, दूधवाले, पलाश के वृक्ष और निंब के वृक्ष हों, जिस घर में दोपहरिया, तगर, अपराजिता के फूल का पेड़ हो, वे घर तुम दोनों के रहने योग्य हैं, वहां अवश्य जाओ ।

जिस घर में केला, ताड़, तमाल, भल्लातक (भिलाव), इमली, कदंब, खैर के पेड़ हों, वहां तुम दरिद्रा के साथ घुस जाया करो । जो स्नान आदि मंगल कृत्य न करते हों, दांत मुख साफ नहीं करते, गंदेकपड़े पहनते, संध्याकाल में सोते या खाते हों, जुआ खेलते हों, ब्राह्मण के धन का हरम करते हों, दूसरे की स्त्री से संबंध रखते हों, हाथ – पैर न धोते हों, उन घरों में दरिद्रा के साथ तुम रहो ।’

मार्कण्डेय ऋषि के चले जाने के बाद दु:सह ने अपनी पत्नी दरिद्रा से कहा – ‘ज्येष्ठे ! तुम इस पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ जाओ । मैं रसातल जाकर रहने के स्थान का पता लगाता हूं ।’ दरिद्रा ने पूछा – ‘नाथ ! तब मैं खाऊंगी क्या ? मुझे कौन भोजन देगा ?’ दु:सह ने कहा – ‘प्रवेश के स्थान तो तुझे मालूम ही हो गये हैं, वहां घुसकर खा पी लेना । हां, यह याद रखना कि जो स्त्री पुष्प, धूप आदि से तुम्हारी पूजा करती हो, उसके घर में मत घुसना ।’ इतना कहकर दु:सह रसातल में चले गये ।

ज्येष्ठा वहीं बैठी हुई थी कि लक्ष्मी के साथ भगवान विष्णु वहां आ गये । ज्येष्ठा ने भगवान विष्णु से कहा – ‘मेरे पति रसातल चले गये हैं, मैं अब अनाथ हो गयी हूं, मेरी जीविका का प्रबंध कर दीजिये ।’ भगवान विष्णु ने कहा – ‘ज्येष्ठे ! जो माता पार्वती, शंकर और मेरे भक्तों की निंदा करते हैं, उनके सारे धन पर तुम्हारा ही अधिकार है । उनका तुम अच्छी तरह उपभोग करो । जो लोग भगवान शंकर की निंदा कर मेरी पूजा करते हैं, ऐसे मेरे भक्त अभागे होते हैं, उनके धन पर भी तुम्हारा ही अधिकार है ।’ इस प्रकार ज्येष्ठा को आश्वासन देकर भगवान विष्णु लक्ष्मी सहित अपने निवासस्थान वैकुण्ठ को चले गये |

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तेरी महिमा अजब निराली, पशुपति भोले भंडारी ….

हे गोविन्द हे गोपाल, हे गोविन्द हे गोपाल हे दयाल लाल …

हे गोविन्द हे गोपाल अब तो जीवन हारे ….

ऊँ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे ….

काज सुधारे भोले भक्तो के रखवाले, मतवाले, रखवाले ….

कभी प्रयास करना बंद ना करें ~ छात्रों के लिए प्रेरक कहानी

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कभी प्रयास करना बंद ना करें एक बार एक Science की Research प्रयोगशाला में एक experiment किया गया। एक बड़े शीशे के टैंक में बहुत सारी छोटी छोटी मछलियाँ छोड़ी गयीं और फिर ढक्कन बंद कर दिया। अब थोड़ी देर बाद एक बड़ी शार्क मछली को भी टैंक में छोड़ा गया लेकिन शार्क और छोटी मछलियों के बीच में एक काँच की दीवार बनायी गयी ताकि वो एक दूसरे से दूर रहें। शार्क मछली की एक खासियत होती है कि वो छोटी छोटी मछलियों को खा जाती है। अब जैसे ही शार्क को छोटी मछलियाँ दिखाई दीं वो झपट कर

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वक्री मंगल 2018 में किस राशि को करेंगे खुशहाल तो कौन रह जायेगा बदहाल ? 

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वक्री मंगल 2018 – Mangal Vakri 2018 

वर्तमान में मंगल मकर राशि (Mangal in Makar rashi) में गोचर कर रहे हैं। 27 जून 2018 को मध्यरात्रि के पश्चात 2 बजकर 35 मिनट पर मंगल की चाल में बदलाव होगा। अपनी उच्च राशि मकर में विचरण कर रहे मंगल इस समय से उल्टी चाल चलने लगेंगे यानि मंगल वक्री होकर गोचर करने लगेंगें। इसका प्रभाव यह होगा कि मंगल के उच्च होकर गोचर करने से जिन्हें उम्मीद की किरण नज़र आने लगी थी उनके लिये फिर से कुछ समय के लिये निराशा के बादल उमड़ घुमड़ कर आ सकते हैं।

मंगल का वक्री होना ज्योतिषशास्त्र के अनुसार एक बड़ी घटना है। क्योंकि मंगल की चाल से ही मंगल व अमंगल का विचार किया जाता है। मंगल ऊर्जा के कारक माने जाते हैं। स्वभाव में अहंकार की, क्रोध की भावना बढ़ सकती है। नकारात्मकता हावि होने का प्रयास कर सकती है। आपकी राशि से मंगल भाव स्थान के अनुसार क्या परिणाम लेकर आ सकते हैं आइये जानते हैं।

मेष राशि पर वक्री मंगल का प्रभाव 

मेष राशि वालों के लिये मंगल दसवें यानि कर्म भाव में वक्री हो रहे हैं। इस समय आप पर काम का बोझ थोड़ा बढ़ने के आसार हैं। काम का दबाव से अनावश्यक तनाव भी आपको हो सकता है। पिता या पिता के समान किसी व्यक्ति से आपके मतभेद बढ़ सकते हैं, उनके साथ मनमुटाव हो सकता है। स्वास्थ्य के प्रति भी आपको सचेत रहने की आवश्यकता इस समय रहेगी। हालांकि माता की सेहत में इस समय सुधार महसूस कर सकते हैं।

वृष राशि पर वक्री मंगल का प्रभाव 

वृषभ राशि वालों के लिये मंगल भाग्य स्थान में उच्च होकर गोचररत हैं जहां वे वक्री हो रहे हैं। हाल ही में मंगल के कारण आपके जो कार्य आसानी से बन रहे थे आप देखेंगें कहीं न कहीं उनमें आपको बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है। यदि किसी परियोजना में धन निवेश किया है तो उसमें भी हो सकता है आपको अपेक्षित परिणाम न मिलें। कड़ी मेहनत के बावजूद अनुकूल परिणाम न मिलने से आप थोड़े निराश भी रह सकते हैं।

मिथुन राशि पर वक्री मंगल का प्रभाव 

मिथुन राशि वालों के लिये अष्टम भाव में मंगल वक्री हो रहे हैं। कामकाजी जीवन में आपको दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। हाल ही में यदि आपको नई जिम्मेदारियां मिली हैं तो उनका दबाव महसूस कर सकते हैं। टारगेट बढ़ने से भी आपको उन्हें पूरा करने की चिंता सता सकती है। जो काम आसानी से बनते नज़र आ रहे थे उनके पूरा होने में विलंब हो सकता है। इस समय आपके प्रतिद्वंदी भी आप पर हावि रह सकते हैं। आपके लिये सलाह है कि धैर्य के साथ इस समय को व्यतीत करें।

कर्क राशि पर वक्री मंगल का प्रभाव 

कर्क राशि वालों के लिये सप्तम भाव में मंगल का वक्री होना दांपत्य जीवन के लिये अमंगल के संकेत कर रहा है। करियर के दृष्टिकोण से देखा जाए तो आपके कार्यों की गति धीमी रह सकती है। अपने स्वास्थ्य का भी आपको इस समय ध्यान रखने की आवश्यकता रहेगी क्योंकि अपनी हेल्थ में थोड़ी गिरावट महसूस कर सकते हैं। इस समय आपकी बचत में सेंध लग सकती है। अनावश्यक खर्चों से जितना हो सके बचने का प्रयास करें।

सिंह राशि पर वक्री मंगल का प्रभाव 

सिंह राशि वाले जातकों के लिये छठे घर में मंगल का वक्री होना स्वास्थ्य के मामले में सचेत रहने की ओर संकेत कर रहा है। शारीरिक तौर पर कमजोरी महसूस कर सकते हैं। खान पान का ध्यान रखें। साथ ही इस वक्त का तकाजा यह है कि आप अपने प्रतिद्वंदियों, विपक्षियों, विरोधियों से भी सावधान रहें। भाग्य का साथ आपको हो सकता है इस समय कम मिले। हाल ही में यदि आपने धन निवेश किया है। तो उससे होने वाले धन लाभ में भी कमी आ सकती है।

कन्या राशि पर वक्री मंगल का प्रभाव 

कन्या राशि वालों के लिये मंगल पंचम स्थान में वक्री हो रहे हैं। संतान पक्ष को लेकर आप चिंति रह सकते हैं। यह चिंता उनकी शिक्षा से भी जुड़ी हो सकती है। रोमांटिक लाइफ में पार्टनर के साथ इस समय खटपट होने के पूरे-पूरे आसार नज़र आ रहे हैं। आपके लिये इस समय यात्राओं के योग भी बन रहे हैं जिनमें फिजूलखर्ची की प्रबल संभावनाएं हैं। आपके लिये सलाह है कि व्यर्थ में पैसा बहाने की अपनी प्रवृति पर थोड़ा नियंत्रण रखने का प्रयास करें। फाइनेंशियली देखा जाए तो धन निवेश करने के लिहाज से भी यह समय सही नहीं है। मिलने वाले लाभ हो सकता है अपेक्षानुसार न मिलें।

तुला राशि पर वक्री मंगल का प्रभाव 

आपकी राशि से मंगल का सुख भाव यानि चतुर्थ स्थान में वक्र हो रहे हैं। चौथे भाव के वक्री मंगल आपके लिये माता के साथ संबंधों में थोड़ी खटास पैदास करने वाले रह सकते हैं। इस समय आप भौतिक सुख साधनों की कमी भी महसूस कर सकते हैं। रोमांटिक लाइफ में भी हो सकता है आपको परेशानियों का सामना करना पड़े। कार्यक्षेत्र में कुछ बदलाव हो सकते हैं जिसके लिये संभव है आपको स्थान भी परिवर्तित करना पड़े। अतीत में किये किसी निवेश से आपको जो धन लाभ मिल रहा है उसमें थोड़ी कमी आ सकती है।

वृश्चिक राशि पर वक्री मंगल का प्रभाव 

मंगल आपकी राशि के स्वामी भी हैं जो कि पराक्रम में उच्च होकर गोचर कर रहे हैं। पराक्रम में उच्च मंगल के वक्री होने से आपको मिलने वाले लाभ हो सकता है अपेक्षा से थोड़े कम हों। इस समय व्यवसायी जातकों को कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ सकता है। भाग्य से भी आपको इस समय अनुकूल सहयोग मिल सकता है। इस समय आप पर काम का दबाव भी कुछ ज्यादा ही रहेगा जिससे आप थोड़ा तनाव भी महसूस कर सकते हैं। लेकिन कुल मिलाकर देखा जाये तो वक्री मंगल आपके लिये लाभकारी रहने वाले हैं।

धनु राशि पर वक्री मंगल का प्रभाव 

धनु राशि वालों के लिये मंगल धन भाव में वक्री हो रहे हैं। इस समय यदि आपको पैतृक संपत्ति से कुछ मिलने की उम्मीद है तो इसमें देरी हो सकती है। रोमांटिक लाइफ के लिये भी वक्री मंगल अनुकूल नहीं कहे जा सकते। आपको परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। प्रेम संबंधों में अड़चन आ सकती है। मंगल आपके लिये इस समय यात्रा के योग भी बना रहे हैं यात्रा के दौरान सचेत रहें धन हानि के योग भी बन रहे हैं। भाग्य के भरोसे इस समय बिल्कुल न बैठें। भाग्य का साथ आपको कम ही मिलने वाला है।

मकर राशि पर वक्री मंगल का प्रभाव 

मंगल आपकी राशि में ही गोचररत हैं। आपकी राशि में मंगल के वक्री होने से आपकी लाइफ कुछ इस कदर प्रभावित होने वाली है। यदि आपने कहीं बाहर घुमने का प्रोग्राम बना रखा है तो हो सकता है उसे कुछ समय के लिये टालना पड़े। यानि यात्रा में विलंब की संभावना है। यदि घर या गाड़ी खरीदने को लेकर भी प्रयासरत हैं तो आपको इसके लिये कुछ और समय तक इंतजार करना पड़ सकता है। सेहत की बात करें तो आपका स्वास्थ्य सामान्य बने रहने के आसार हैं। रोमांटिक लाइफ में पार्टनर के साथ संबंधो को लेकर थोड़ा स्ट्रेस में रह सकते हैं।

कुंभ राशि पर वक्री मंगल का प्रभाव 

कुंभ राशि वालों के लिये 12वें भाव में मंगल का वक्री होना प्रोपर्टी के लेन-देन संबंधी मामलों में देरी के संकेत कर रहा है। इस समय आप थोड़े आलसी भी रह सकते हैं। घर से लेकर दफ्तर तक दुनियादारी से आप निराश हो सकते हैं। आपके लिये सलाह है कि जितना हो सके अपने आप को शांत रखने का प्रयास करें। प्रतिस्पर्धियों, विरोधियों, विपक्षियों से आपका विवाद बढ़ सकता है। मानसिक स्वास्थ्य पर आपको खास तौर पर ध्यान देने की आवश्यकता रहेगी। इस समय ध्यान व योग क्रियाएं आपकी सहायक हो सकती हैं, इनके लिये समय अवश्य निकालें।

मीन राशि पर वक्री मंगल का प्रभाव

मीन राशि वाले जातकों के लिये मंगल लाभ घर में वक्री हो रहे हैं। लेकिन आप पर किसी भी तरह से वक्री मंगल का अशुभ प्रभाव दिखाई नहीं दे रहा। आप अपने जीवन के लगभग सभी क्षेत्रों में इस समय एक प्रगति देख सकते हैं। हालांकि इस समय आपको थोड़ा सचेत रहने की आवश्यकता अवश्य रहेगी। वह इस मामले में कि आपका आत्मबल काफी मजबूत रहेगा। जिस कारण आप ओवरकोन्फिडेंस का शिकार हो सकते हैं।

अति आत्मविश्वास के कारण आप कोई गलत कदम भी उठा सकते हैं। हमारी सलाह है कि संयम व धैर्य से काम लें व किसी भी तरह से किसी विवाद या बेकार की बहसबाजी में न पड़ें। देखा जाये तो वक्री मंगल अन्य राशियों की तुलना में आप पर कुछ अधिक मेहरबान हैं इसलिये इस शुभ समय का भरपूर लाभ उठाएं

मंगल की वक्रता में मंगल मंत्र का जाप करना चाहिए, श्री हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए तथा हनुमान जी को सिंदूर चढा़ना चाहिए. बंदरों को गुड़-चने खिलाना चाहिए. माँस व मदिरा, धूम्रपान से परहेज करना चाहिए.

 

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बुध का मिथुन राशि से कर्क राशि में परिवर्तन – राहू और बुध होंगे साथ, बनेंगें या फिर बिगड़ेंगें हालात ?

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बुध का कर्क राशि में परिवर्तन – Mercury Transit into Cancer 2018

बुध ग्रह के परिवर्तन का ज्योतिषीय दृष्टि से बहुत महत्व माना जाता है। राशि चक्र की तीसरी राशि मिथुन एवं छठी राशि कन्या के स्वामी बुध परिवर्तित होकर राशिनुसार जिस भी भाव में दाखिल होते हैं उसके अनुसार परिणाम देते हैं। साथ ही बुध के साथ जिस प्रकृति का ग्रह बैठा हो तो बुध का परिणाम भी उक्त ग्रह की प्रकृति के अनुसार होता है। गत 10 जून को बुध ने राशि परिवर्तन कर मिथुन में प्रवेश किया था। अब 25 जून को फिर से बुध राशि बदल रहे हैं। देश की राजधानी दिल्ली के समयानुसार सांय 6 बजकर 13 मिनट पर बुध मिथुन राशि से कर्क में चले जायेंगें। ऐसे में सभी 12 राशियों के लिये बुध क्या परिणाम लेकर आ सकते हैं आइये जानते हैं।

मेष राशि पर प्रभाव 

मेष राशि वालों के बुध का परिवर्तन चतुर्थ घर में हो रहा है। आपके लिये बुध का परिवर्तन सकारात्मक परिणाम लेकर आ सकता है। जो जातक घर या गाड़ी खरीदने के लिये प्रयासरत हैं उनके लिये समय अनुकूल कहा जा सकता है। मित्रों का भी आपको पूरा सहयोग मिलने की संभावना है। मातृ पक्ष की ओर से भी आपके लिये समय अच्छा रहेगा। छोटी-छोटी यात्राएं आपको करनी पड़ सकती हैं। खर्च बढ़ने के भी आसार हैं। अपनी जेब पर नियंत्रण रखें।

वृषभ राशि पर प्रभाव 

आपकी राशि से तीसरे स्थान में बुध का परिवर्तन हो रहा है। यह समय आपके भाग्य में उन्नति लाने वाला रह सकता है। जो जातक नये कार्य का आरंभ करना चाहते हैं उनके लिये भी समय सौभाग्यशाली रह सकता है। इस समय आप काफी विवेकशील रहेंगें और अपनी बुद्धि व कौशल का परिचय देते हुए कार्यों में सफलता प्राप्त कर सकते हैं। छोटी मोटी यात्राओं के योग भी हैं। कामकाज के सिलसिले में की गई यात्राएं सफलतादायक रहने के आसार हैं।

मिथुन राशि पर प्रभाव 

आपकी ही राशि से बुध का परिवर्तन हो रहा है लेकिन बावजूद उसके बुध का यह परिवर्तन आपके लिये सकारात्मक कहा जा सकता है इस समय आप अपने भीतर एक नई ऊर्जा को महसूस कर सकते हैं। धन प्राप्ति के योग भी आपके लिये बन रहे हैं। पारिवारिक संबंध भी अच्छे रहने के आसार हैं। विवाहित जातकों को ससुराल पक्ष की ओर से कोई शुभ समाचार प्राप्त हो सकता है।

कर्क राशि पर प्रभाव 

बुध परिवर्तन के पश्चात आपकी ही राशि में गोचररत हो रहे हैं। यह समय आपके लिये मिलेजुले परिणाम लेकर आने के संकेत कर रहा है। स्वास्थ्य को लेकर आपको सचेत रहने की आवश्यकता है। स्वास्थ्य को लेकर आपके खर्चों में बढ़ोतरी भी हो सकती है। इस समय आपका मन भी काफी चंचल, अस्थिर रहने के आसार हैं। हालांकि कामकाजी क्षेत्र में समय आपके अनुकूल कहा जा सकता है। कोई नया कार्य, नई परियोजना आरंभ करने के लिहाज से यह आपके लिये शुभ समय कहा जा सकता है। परिवार में अपने से छोटे सदस्यों का प्यार भी आपको मिल सकता है।

सिंह राशि पर प्रभाव 

बुध का परिवर्तन आपकी राशि से 12वें स्थान में हो रहा है। यह समय आपके लिये खर्चों में बढ़ोतरी करने वाला रहा सकता है। अपनी सुख-सुविधाओं को बढ़ाने के लिये आप खर्च कर सकते हैं। इस समय जोखिम वाले कार्यों में धन निवेश न करें तो बेहतर है। महत्वपूर्ण निर्णयों को लेकर आप असमंजस की स्थिति में भी रह सकते हैं। यात्राओं के योग भी आपके लिये बन रहे हैं, कामकाजी यात्राएं सफल रह सकती हैं साथ ही संपत्ति की बिक्री का सौदा आपके लिये लाभकारी रह सकता है।

कन्या राशि पर प्रभाव 

कन्या जातकों के लिये बुध का परिवर्तन बहुत ही अच्छा कहा जा सकता है बुध आपके लाभ घर में आ रहे हैं। ऐसे में यह समय आपके लिये कार्यों में सफलता तो जीवन में सुख प्रदान करने वाला रहने के आसार हैं। रोमांटिक जीवन की बात करें तो साथी का भरपूर सहयोग आपको मिल सकता है। बड़े भाई से भी सुख व धन प्राप्ति के योग हैं।

तुला राशि पर प्रभाव 

तुला जातकों के लिये कर्मक्षेत्र में बुध का आना सामान्य परिणाम लाने वाला रह सकता है। हालांकि आपके लिये कोई नया व्यवसाय या फिर नई नौकरी के अवसर तो उपलब्ध हो सकते हैं लेकिन यदि आप इस समय भाग्य पर भरोसा करेंगें तो मात खा सकते हैं। आपको केवल और केवल कर्म करने पर अपना पूरा फोकस इस समय रखना चाहिये। स्वयं पर विश्वास करें। आपको सफलता दिलाने में इस समय आप स्वयं ही स्वयं की मदद कर सकते हैं।

वृश्चिक राशि पर प्रभाव 

वृश्चिक जातकों के लिये बुध का परिवर्तन भाग्य स्थान में होने से आपको भाग्य का पूरा सहयोग मिलने के आसार हैं। इस समय आपके लिये विवेक से काम लेना बेहतर रहेगा क्योंकि बुध के प्रभाव से आपकी विवेकशीलता बढ़ने के आसार हैं। नये लोगों से जुड़ने के अवसर आपको मिल सकते हैं। प्रेम-प्यार के मामले में भी समय आपके लिये सकारात्मक है। साथ ही आपका रूझान इस समय धार्मिक कार्यों की ओर भी हो सकता है।

धनु राशि पर प्रभाव 

धनु जातकों के लिये यह समय अपने धैर्य का परिचय देने का है। किसी भी कार्य को करने में कोई हड़बड़ी न दिखाएं। जल्दबाजी में लिया गया निर्णय आपके लिये हो सकता है हितकर न हो। अपनी सेहत के प्रति भी इस समय सचेत रहें। रोमांटिक जीवन आपका सुखमय बने रहने के आसार हैं। आप खुद को अपने साथी के काफी करीब महसूस कर सकते हैं। विवाहित जातक भी दांपत्य जीवन का पूरा आनंद लेंगें और पर परिस्थिति में जीवन साथी का सहयोग मिलना आपको सुकून दे सकता है।

मकर राशि पर प्रभाव 

मकर जातकों के लिये भी बुध का राशि परिवर्तन सकारात्मक परिणाम लेकर आने वाला रह सकता है। दांपत्य जीवन का आपको भरपूर आनंद मिलने के आसार हैं। मकर जातकों के लिये विवाह के योग भी बन रहे हैं विशेषकर मकर कन्याओं को अच्छा रिश्ता मिल सकता है। भाग्य का भी आपको इस समय साथ मिलेगा विशेषकर नया कार्य आरंभ करने में आप लाभ प्राप्ति की उम्मीद कर सकते हैं। सुख-सुविधाएं जुटाने के लिये आप अपने खर्चों में बढ़ोतरी भी कर सकते हैं।

कुंभ राशि पर प्रभाव 

कुंभ जातकों के लिये समय थोड़ा संभलकर रहने का है विशेषकर स्वास्थ्य के प्रति सजग रहें। बुध के परिवर्तन से आप उदर संबंधी समस्याओं को महसूस कर सकते हैं। व्यवसायी जातकों के खर्च बढ़ सकते हैं। अपनी किसी नई परियोजना के लिये आपको कर्ज़ भी लेना पड़ सकता है। विद्यार्थी जातक भी अपनी पाठ्यपुस्तकों में कम ही रूचि लें इसकी संभावनाएं हैं।

मीन राशि पर प्रभाव 

मीन जातकों के लिये बुध का परिवर्तन अच्छा कहा जा सकता है। जो विवाहित जातक लंबे समय से संतान प्राप्ति के लिये प्रयासरत हैं उन्हें खुशखबरी मिल सकती है। प्रतियोगि परीक्षाओं की तैयारी करने वाले जातकों के लिये भी यह समय काफी अच्छा रह सकता है। जो जातक नया कार्य आरंभ करने के इच्छुक है उनके लिये भी समय अनुकूल है। कुल मिलाकर आपके लिये यह समय सौभाग्यशाली रहने के आसार हैं।

यह राशिफल सामान्य ज्योतिषीय आकलन के आधार पर लिखा गया है। बुध के साथ अन्य ग्रह क्या योग बना रहे हैं? आपकी जन्मकुंडली, वर्ष कुंडली या फिर गोचर कुंडली में बुध किस भाव में विराजमान हैं इन सब के लिये आपको किसी भी ज्योतिषीय विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए

 

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मुझे तुमने दाता बहुत कुछ दिया है, तेरा शुक्रिया है, तेरा शुक्रिया …

जबसे सांवरे से नाता मैंने जोड़ा, मैंने श्याम के भरोसे सब छोड़ा …

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जबसे सांवरे से नाता मैंने जोड़ा – Jab se Sanware se nata mene Joda mp3 downlaod

जबसे सांवरे से नाता मैंने जोड़ा,
मैंने श्याम के भरोसे सब छोड़ा,
स्वार्थ के रिश्तो से मैंने अपना नाता तोडा,
जबसे सांवरे से नाता मैंने जोड़ा….

चाहे किस्मत ने ली हो परीक्षा कड़ी,
चाहे गम की बदरिया हो कितनी बड़ी,
चाहे कितना जटिल हो कोई रोड़ा,
मैंने श्याम के भरोसे सब छोड़ा….

जीतता ज़िंदगी की हर बाजी रहा मैं तो,
इस की रजा में ही राजी रहा,
इस दयालु से नाता मैंने जोड़ा,
जबसे सांवरे से नाता मैंने जोड़ा…..

मुझको विशवास है श्याम आएगा,
कोई कितना भी बिगाड़े ये बनायेगा
सच्चे विश्वास पे आये ये दौड़ा,
जबसे सांवरे से नाता मैंने जोड़ा….

ना ही शिकवा कोई ना शिकायत करी,
मेने ने ना कभी कोई चाहत करी,
चाहे ज्यादा मिले थोड़ा मैंने श्याम के भरोसे सब छोड़ा,
जबसे सांवरे से नाता मैंने जोड़ा

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सब की नैया पार लग्गैया कृष्णा कन्हिया साँवरे …

राम नाम के हीरे मोती, मैं बिखराऊं गली गली …

जय राधे राधे राधे जय गिरधर गोपाला …

नकारात्मक सोच से छुटकारा Overcome Negative Thoughts in Hindi

http://bit.ly/2K4BPzv

नकारात्मक सोच से छुटकारा How to Overcome Negative Thoughts in Hindi हम सब की जिंदगी एक गाड़ी की तरह है और इस गाड़ी का शीशा हमारी सोच, हमारा व्यवहार, हमारा नजरिया है। बचपन में तो यह शीशा बिल्कुल साफ़ होता है, एकदम क्लियर। लेकिन जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते है। हमारे आस-पास के लोगों की वजह से, हमारे वातावरण की वजह से, हमारे अपनों की वजह से हमारा खुद के बारे में विश्वास बदलता जाता है। मतलब इस शीशे पे लोगो की वजह से, वातावरण की वजह से, अपनी वजह से धूल, मिटटी, कचरा जमता जाता है। और इस धूल

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मेरे सर पे हाथ रखदो राधा रानी, राधा रानी महारानी …

मन रे ! तू काहे ना धीर धरे, वो निर्मोही मोह ना जाने …

मुझे अपनी शरण में लेलो राम, ले लो राम …

काहे तेरी अंखियो में पानी, कृष्ण दीवानी मीरा …

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काहे तेरी अंखियो में पानी, कृष्ण दीवानी मीरा – Kahe Teri Ankhiyo Me Pani Mp3 Download

काहे तेरी अंखियो में पानी,
कृष्ण दीवानी मीरा, कृष्ण दीवानी
मीरा प्रेम दीवानी, मीरा कृष्ण दीवानी
दीवानी प्रेम दीवानी, मीरा प्रेम दीवानी

हस के तू पी ले विष का प्याला,
काहे का डर तोरे संग गोपाला ।
तेरे तन की ना होगी हानि,
कृष्ण दीवानी मीरा, कृष्ण दीवानी…

सब के लिए मैं मुरली बजाऊं,
नाच नाच सरे जग को नचाऊ ।
सिर्फ राधा नहीं है मेरी रानी,
कृष्ण दीवानी मीरा, कृष्ण दीवानी…

प्रीत में भक्ति जब मिल जाए,
जग तो क्या सृष्टि हिल जाए ।
झुक जावे अभिमानी,
कृष्ण दीवानी मीरा, कृष्ण दीवानी…

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खुद वो बदलाव बनिये जो आप दुनिया में देखना चाहते हैं – How to Change the World

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Change Yourself to Change the World विश्वनाथ पूरे गाँव में अकेले पढ़े लिखे इंसान थे। एक स्कूल में सरकारी टीचर के तौर पर काम करते थे। बच्चों को शिक्षा देते देते एक दिन विचार आया कि क्यों ना कुछ ऐसा किया जाए जिससे दुनिया बदल जाये? क्यों ना पूरी दुनिया को सुधारा जाये? बस मन में आये इस विचार ने विश्वनाथ को रात भर सोने नहीं दिया। सुबह उठते ही वो गाँव के सरपँच के पास पहुँचे और बोले कि मैं इस दुनिया को बदलना चाहता हूँ। सरपँच उनकी बात सुनकर हँसने लगा- गुरूजी इतना आसान नहीं है दुनिया को

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निर्जला एकादशी 2018 – एकादशियों में सबसे श्रेष्ठ, जाने व्रत कथा और तिथि, मुहूर्त

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निर्जला एकादशी 2018 – Nirjala Ekadashi Vrat

हिंदू पंचांग के अनुसार वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं। लेकिन अधिकमास की एकादशियों को मिलाकर इनकी संख्या 26 हो जाती है। सभी एकादशियों पर हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले भगवान विष्णु की पूजा करते हैं व उपवास रखते हैं। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने, पूजा और दान करने से व्रती जीवन में सुख-समृद्धि का भोग करते हुए अंत समय में मोक्ष को प्राप्त होता है। लेकिन इन सभी एकादशियों में से एक ऐसी एकादशी भी है जिसमें व्रत रखकर साल भर की एकादशियों जितना पुण्य कमाया जा सकता है। यह है ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी। इसे निर्जला एकादशी कहा जाता है। निर्जला-एकादशी का व्रत अत्यन्त संयम साध्य है। इस युग में यह व्रत सम्पूर्ण सुख़ भोग और अन्त में मोक्ष कहा गया है। कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष दोनों पक्षों की एकादशी में अन्न खाना वर्जित है।

निर्जला एकादशी 2018 का महत्व

हिन्दू माह के ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को निर्जला एकादशी का व्रत किया जाता है। निर्जला यानि यह व्रत बिना जल ग्रहण किए और उपवास रखकर किया जाता है। इसलिए यह व्रत कठिन तप और साधना के समान महत्व रखता है। हिन्दू पंचाग अनुसार वृषभ और मिथुन संक्रांति के बीच शुक्ल पक्ष की एकादशी निर्जला एकादशी कहलाती है। इस व्रत को भीमसेन एकादशी या पांडव एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक मान्यता है कि भोजन संयम न रखने वाले पाँच पाण्डवों में एक भीमसेन ने इस व्रत का पालन कर सुफल पाए थे। इसलिए इसका नाम भीमसेनी एकादशी भी हुआ।

हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत का मात्र धार्मिक महत्व ही नहीं है, इसका मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य के नजरिए से भी बहुत महत्व है। एकादशी का व्रत भगवान विष्णु की आराधना को समर्पित होता है। इस दिन जल कलश, गौ का दान बहुत पुण्य देने वाला माना गया है। यह व्रत मन को संयम सिखाता है और शरीर को नई ऊर्जा देता है। यह व्रत पुरुष और महिलाओं दोनों द्वारा किया जा सकता है। वर्ष में अधिकमास की दो एकादशियों सहित 26 एकादशी व्रत का विधान है। जहाँ साल भर की अन्य 25 एकादशी व्रत में आहार संयम का महत्व है। वहीं निर्जला एकादशी के दिन आहार के साथ ही जल का संयम भी जरुरी है। इस व्रत में जल ग्रहण नहीं किया जाता है यानि निर्जल रहकर व्रत का पालन किया जाता है।

निर्जला एकादशी व्रत पूजा विधि

इस व्रत में एकादशी तिथि के सूर्योदय से अगले दिन द्वादशी तिथि के सूर्योदय तक जल और भोजन का त्याग किया जाता है। इसके बाद दान, पुण्य आदि कर इस व्रत का विधान पूर्ण होता है। धार्मिक महत्व की दृष्टि से इस व्रत का फल लंबी उम्र, स्वास्थ्य देने के साथ-साथ सभी पापों का नाश करने वाला माना गया है। एकादशी के दिन सर्वप्रथम भगवान विष्णु की विधिपूर्वक पूजा करें। पश्चात् ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करे।

इस दिन व्रत करने वालों को चाहिए कि वह जल से कलश भरे व सफेद वस्त्र को उस पर ढककर रखें और उस पर चीनी तथा दक्षिणा रखकर ब्राह्मण को दान दें। साथ ही निर्जला एकादशी की कथा भी पढ़नी या सुननी चाहिये। द्वादशी के सूर्योदय के बाद विधिपूर्वक ब्राह्मण को भोजन करवाकर तत्पश्चात अन्न व जल ग्रहण करें। व्रती को ध्यान रखना चाहिये कि गलती से भी स्नान व आचमन के अलावा जल ग्रहण न हों। आचमन में भी नाममात्र जल ही ग्रहण करना चाहिये।

निर्जला एकादशी व्रत के पश्चात दान पुण्य

इस एकादशी का व्रत करके यथा सामर्थ्य अन्न, जल, वस्त्र, आसन, जूता, छतरी, पंखी तथा फलादि का दान करना चाहिए। इस दिन विधिपूर्वक जल कलश का दान करने वालों को वर्ष भर की एकादशियों का फल प्राप्त होता है। इस एकादशी का व्रत करने से अन्य तेईस एकादशियों पर अन्न खाने का दोष छूट जाएगा तथा सम्पूर्ण एकादशियों के पुण्य का लाभ भी मिलेगा। इस प्रकार जो इस पवित्र एकादशी का व्रत करता है, वह समस्त पापों से मुक्त होकर अविनाशी पद प्राप्त करता है। भक्ति भाव से कथा श्रवण करते हुए भगवान का कीर्तन करना चाहिए।

निर्जला एकादशी व्रत कथा

निर्जला एकादशी व्रत का पौराणिक महत्व और आख्यान भी कम रोचक नहीं है। जब सर्वज्ञ वेदव्यास ने पांडवों को चारों पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाले एकादशी व्रत का संकल्प कराया था। युधिष्ठिर ने कहा- जनार्दन! ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष में जो एकादशी पड़ती हो, कृपया उसका वर्णन कीजिये।

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा हे राजन् ! इसका वर्णन परम धर्मात्मा सत्यवतीनन्दन व्यासजी करेंगे, क्योंकि ये सम्पूर्ण शास्त्रों के तत्त्वज्ञ और वेद वेदांगों के पारंगत विद्वान हैं। तब वेदव्यासजी कहने लगे- कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष दोनों पक्षों की एकादशी में अन्न खाना वर्जित है। द्वादशी के दिन स्नान करके पवित्र हो और फूलों से भगवान केशव की पूजा करे। फिर नित्य कर्म समाप्त होने के पश्चात् पहले ब्राह्मणों को भोजन देकर अन्त में स्वयं भोजन करे।

यह सुनकर भीमसेन बोले- परम बुद्धिमान पितामह! मेरी उत्तम बात सुनिये। राजा युधिष्ठिर, माता कुन्ती, द्रौपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव ये एकादशी को कभी भोजन नहीं करते तथा मुझसे भी हमेशा यही कहते हैं कि भीमसेन एकादशी को तुम भी न खाया करो परन्तु मैं उन लोगों से यही कहता हूँ कि मुझसे भूख नहीं सही जायेगी।

भीमसेन की बात सुनकर व्यासजी ने कहा यदि तुम नरक को दूषित समझते हो और तुम्हें स्वर्गलोक की प्राप्ति अभीष्ट है और तो दोनों पक्षों की एकादशियों के दिन भोजन नहीं करना। भीमसेन बोले महाबुद्धिमान पितामह ! मैं आपके सामने सच कहता हूँ।

मुझसे एक बार भोजन करके भी व्रत नहीं किया जा सकता, तो फिर उपवास करके मैं कैसे रह सकता हूँ। मेरे उदर में वृक नामक अग्नि सदा प्रज्वलित रहती है, अत: जब मैं बहुत अधिक खाता हूँ, तभी यह शांत होती है। इसलिए महामुनि ! मैं पूरे वर्षभर में केवल एक ही उपवास कर सकता हूँ। जिससे स्वर्ग की प्राप्ति सुलभ हो तथा जिसके करने से मैं कल्याण का भागी हो सकूँ, ऐसा कोई एक व्रत निश्चय करके बताइये। मैं उसका यथोचित रुप से पालन करुँगा।

व्यासजी ने कहा- भीम! ज्येष्ठ मास में सूर्य वृष राशि पर हो या मिथुन राशि पर, शुक्लपक्ष में जो एकादशी हो, उसका यत्नपूर्वक निर्जल व्रत करो। केवल कुल्ला या आचमन करने के लिए मुख में जल डाल सकते हो, उसको छोड़कर किसी प्रकार का जल विद्वान पुरुष मुख में न डाले, अन्यथा व्रत भंग हो जाता है। एकादशी को सूर्योदय से लेकर दूसरे दिन के सूर्योदय तक मनुष्य जल का त्याग करे तो यह व्रत पूर्ण होता है। तदनन्तर द्वादशी को प्रभातकाल में स्नान करके ब्राह्मणों को विधिपूर्वक जल और सुवर्ण का दान करे। इस प्रकार सब कार्य पूरा करके जितेन्द्रिय पुरुष ब्राह्मणों के साथ भोजन करे।

वर्षभर में जितनी एकादशियाँ होती हैं, उन सबका फल निर्जला एकादशी के सेवन से मनुष्य प्राप्त कर लेता है, इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है। शंख, चक्र और गदा धारण करनेवाले भगवान केशव ने मुझसे कहा था कि ‘यदि मानव सबको छोड़कर एकमात्र मेरी शरण में आ जाय और एकादशी को निराहार रहे तो वह सब पापों से छूट जाता है।’

एकादशी व्रत करनेवाले पुरुष के पास विशालकाय, विकराल आकृति और काले रंगवाले दण्ड पाशधारी भयंकर यमदूत नहीं जाते। अंतकाल में पीताम्बरधारी, सौम्य स्वभाव वाले, हाथ में सुदर्शन धारण करने वाले और मन के समान वेगशाली विष्णुदूत आखिर इस वैष्णव पुरुष को भगवान विष्णु के धाम में ले जाते हैं। अत: निर्जला एकादशी को पूर्ण यत्न करके उपवास और श्रीहरि का पूजन करो। स्त्री हो या पुरुष, यदि उसने मेरु पर्वत के बराबर भी महान पाप किया हो तो वह सब इस एकादशी व्रत के प्रभाव से भस्म हो जाता है।

जो मनुष्य उस दिन जल के नियम का पालन करता है, वह पुण्य का भागी होता है। उसे एक-एक प्रहर में कोटि-कोटि स्वर्णमुद्रा दान करने का फल प्राप्त होता सुना गया है। मनुष्य निर्जला एकादशी के दिन स्नान, दान, जप, होम आदि जो कुछ भी करता है, वह सब अक्षय होता है, यह भगवान श्रीकृष्ण का कथन है। निर्जला एकादशी को विधिपूर्वक उत्तम रीति से उपवास करके मानव वैष्णवपद को प्राप्त कर लेता है। जो मनुष्य एकादशी के दिन अन्न खाता है, वह पाप का भोजन करता है। इस लोक में वह चाण्डाल के समान है और मरने पर दुर्गति को प्राप्त होता है।

जो ज्येष्ठ के शुक्लपक्ष में एकादशी को उपवास करके दान करेंगे, वे परम पद को प्राप्त होंगे। जिन्होंने एकादशी को उपवास किया है, वे ब्रह्महत्यारे, शराबी, चोर तथा गुरुद्रोही होने पर भी सब पातकों से मुक्त हो जाते हैं।

कुन्तीनन्दन! निर्जला एकादशी के दिन श्रद्धालु स्त्री पुरुषों के लिए जो विशेष दान और कर्त्तव्य विहित हैं, उन्हें सुनो- उस दिन जल में शयन करने वाले भगवान विष्णु का पूजन और जलमयी धेनु का दान करना चाहिए अथवा प्रत्यक्ष धेनु या घृतमयी धेनु का दान उचित है। पर्याप्त दक्षिणा और भाँति-भाँति के मिष्ठानों द्वारा यत्नपूर्वक ब्राह्मणों को सन्तुष्ट करना चाहिए। ऐसा करने से ब्राह्मण अवश्य संतुष्ट होते हैं और उनके संतुष्ट होने पर श्रीहरि मोक्ष प्रदान करते हैं। जिन्होंने साम, दाम, और दान में प्रवृत हो श्रीहरि की पूजा और रात्रि में जागरण करते हुए इस ‘निर्जला एकादशी’ का व्रत किया है, उन्होंने अपने साथ ही बीती हुई सौ पीढ़ियों को और आनेवाली सौ पीढ़ियों को भगवान वासुदेव के परम धाम में पहुँचा दिया है।

निर्जला एकादशी के दिन अन्न, वस्त्र, गौ, जल, शैय्या, सुन्दर आसन, कमण्डलु तथा छाता दान करने चाहिए। जो श्रेष्ठ तथा सुपात्र ब्राह्मण को जूता दान करता है, वह सोने के विमान पर बैठकर स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है। जो इस एकादशी की महिमा को भक्तिपूर्वक सुनता अथवा उसका वर्णन करता है, वह स्वर्गलोक में जाता है। चतुर्दशीयुक्त अमावस्या को सूर्यग्रहण के समय श्राद्ध करके मनुष्य जिस फल को प्राप्त करता है, वही फल इसके श्रवण से भी प्राप्त होता है।

पहले दन्तधावन करके यह नियम लेना चाहिए कि “मैं भगवान केशव की प्रसन्नता के लिए एकादशी को निराहार रहकर आचमन के सिवा दूसरे जल का भी त्याग करुँगा।” द्वादशी को देवेश्वर भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए। गन्ध, धूप, पुष्प और सुन्दर वस्त्र से विधिपूर्वक पूजन करके जल के घड़े के दान का संकल्प करते हुए निम्नांकित मंत्र का उच्चारण करे। संसारसागर से तारनेवाले हे देवदेव ह्रषीकेश ! इस जल के घड़े का दान करने से आप मुझे परम गति की प्राप्ति कराइये।

भीमसेन! ज्येष्ठ मास में शुक्लपक्ष की जो शुभ एकादशी होती है, उसका निर्जल व्रत करना चाहिए। उस दिन श्रेष्ठ ब्राह्मणों को शक्कर के साथ जल के घड़े दान करने चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य भगवान विष्णु के समीप पहुँचकर आनन्द का अनुभव करता है। तत्पश्चात् द्वादशी को ब्राह्मण भोजन कराने के बाद स्वयं भोजन करे। जो इस प्रकार पूर्ण रुप से पापनाशिनी एकादशी का व्रत करता है, वह सब पापों से मुक्त हो आनंदमय पद को प्राप्त होता है। यह सुनकर भीमसेन ने भी इस शुभ एकादशी का व्रत आरम्भ कर दिया। तबसे यह लोक मे ‘पाण्डव द्वादशी’ के नाम से विख्यात हुई।

निर्जला एकादशी 2018 तिथि व मुहूर्त 

वर्ष 2018 में निर्जला एकादशी 23 जून को है।

एकादशी तिथि – 23 जून 2018

पारण का समय – 13:46 से 16:32 बजे तक (24 जून 2018)

एकादशी तिथि आरंभ – 03:19 बजे (23 जून 2018)

एकादशी तिथि समाप्त – 03:52 बजे (24 जून 2018)

 

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ज्येष्ठ अधिक अमावस्या 2018 – जानें अधिक अमावस्या का महत्व व व्रत पूजा विधि

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ज्येष्ठ अधिक अमावस्या 2018 – Jyeshtha Adhik Amavasya  

अमावस्या तिथि को दान पुण्य के लिये, पितरों की शांति के लिये किये जाने वाले पिंड दान, तर्पण आदि के लिये बहुत ही सौभाग्यशाली दिन माना जाता है। साथ अमावस्या एक मास के एक पक्ष के अंत का भी सूचक है। हिंदू पंचांग जो पूर्णिमांत होते हैं उनके लिये यह मास का पंद्रहवां दिन तो जो अमांत होते हैं यानि अमावस्या को जिनका अंत होता है उनके लिये यह मास का आखिरी दिन होता है।

इस तरह हिंदू कैलेंडर में मास का निर्धारण करने के लिये भी यह तिथि बहुत महत्वपूर्ण है। अमावस्या के पश्चात चंद्र दर्शन से शुक्ल पक्ष का आरंभ होता है तो पूर्णिमा के पश्चात कृष्ण पक्ष की शुरूआत होती है। कृष्ण पक्ष के अंतिम दिन जब चंद्रमा बिल्कुल भी दिखाई नहीं देता तो वह दिन अमावस्या का होता है। वैसे तो सभी अमावस्या धर्म कर्म के कार्यों के लिये शुभ होती हैं लेकिन ज्येष्ठ अमावस्या का विशेष महत्व है।

क्यों खास है ज्येष्ठ अमावस्या – Jyeshtha Amavasya

दरअसल ज्येष्ठ अमावस्या को न्याय प्रिय ग्रह शनि देव की जयंती के रूप में मनाया जाता है। शनि दोष से बचने के लिये इस दिन शनिदोष निवारण के उपाय विद्वान ज्योतिषाचार्यों के करवा सकते हैं। इस कारण ज्येष्ठ अमावस्या का महत्व बहुत अधिक बढ़ जाता है। इतना ही नहीं शनि जयंती के साथ-साथ महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिये इस दिन वट सावित्री व्रत भी रखती हैं। इसलिये उत्तर भारत में तो ज्येष्ठ अमावस्या विशेष रूप से सौभाग्यशाली एवं पुण्य फलदायी मानी जाती है।

ज्येष्ठ अमावस्या व्रत व पूजा विधि – Jyeshtha Amavasya Vrat Pooja Vidhi

ज्येष्ठ अमावस्या को वैसे तो स्त्रियां वट सावित्री का व्रत रखती हैं लेकिन इस दिन स्त्री पुरुष दोनों ही उपवास रख सकते हैं। इसके लिये प्रात:काल उठकर नित्य क्रियाओं से निवृत होकर धार्मिक तीर्थ स्थलों, पवित्र नदियों, सरोवर में स्नान करने की मान्यता है। यदि ऐसा संभव न हो तो घर पर ही स्वच्छ जल में थोड़ा गंगाजल मिलाकर स्नान कर सकते हैं। स्नान के पश्चात सूर्यदेव को अर्घ्य देकर बहते जल में तिल प्रवाहित करने चाहिये।

इसके पश्चात पीपल वृक्ष में जल का अर्घ्य दिया जाता है। साथ ही शनि देव की पूजा भी की जाती है। जिसमें शनि चालीसा सहित शनि मंत्र का जाप भी आप कर सकते हैं। वट सावित्री व्रत रखने वाली स्त्रियां इस दिन यम देवता की पूजा करती हैं। पूजा के पश्चात सामर्थ्यनुसार दान-दक्षिणा अवश्य देनी चाहिये।

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2018 में कब है ज्येष्ठ अधिक अमावस्या – Jyeshtha Amavasya In 2018

2018 में ज्येष्ठ मास में ही अधिक मास का आरंभ भी हो रहा है इस कारण ज्येष्ठ मास में 2 अमावस्या व 2 पूर्णिमा सहित 4 एकादशियां होंगी। धर्म कर्म, स्नान-दान आदि के लिहाज से यह बहुत ही शुभ व सौभाग्यशाली मास है। ज्येष्ठ मास की प्रथम अमावस्या 15 मई को मंगलवार के दिन थी। इस दिन को शनि जयंती के रूप में भी मनाया गया था। ज्येष्ठ मास की अधिक अमावस्या 13 जून 2018 को है।

ज्येष्ठ अधिक अमावस्या तिथि आरंभ – 04:34 बजे (13 जून 2018)

ज्येष्ठ अधिक अमावस्या तिथि समाप्त – 01:13 बजे (14 जून 2018)

 

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ब्रह्मा के दुखो का नाश हेतु लिए गए अर्धनारीश्वर शिव अवतरण की सूंदर कथा

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अर्धनारीश्वर शिव अवतरण कथा – Ardhanarishvara Shiv Shkati Katha

सृष्टि के आदि में जब सृष्टिकर्ता ब्रह्माद्वारा रची हुई सृष्टि विस्तार को नहीं प्राप्त हुई, तब ब्रह्मा जी उस दु:ख से अत्यंत दु:खी हुए । उसी समय आकाशवाणी हुई – ‘ब्रह्मन ! अब मैथुनी सृष्टि करो ।’ उस आकाशवाणी को सुनकर ब्रह्मा जी ने मैथुनी सृष्टि करने का विचार किया, परंतु ब्रह्मा की असमर्थता यह थी कि उस समय तक भगवान महेश्वर द्वारा नारीकुल प्रकट ही नहीं हुआ था ।

इसलिए ब्रह्मा जी विचार करने के बाद भी मैथुनी सृष्टि न कर सके । ब्रह्मा जी ने सोचा कि भगवान शिव की कृपा के बिना मैथुनी सृष्टि नहीं हो सकती और उनकी कृपा प्राप्त करने का प्रमुख साधन उनकी तपस्या ही है । ऐसा सोचकर वे भगवान शिव की तपस्या करने के लिए प्रवृत्त हुए । उस समय ब्रह्मा जी शिव सहित परमेश्वर शंकर का प्रेमसहित ध्यान करते हुए घोर तप करने लगे ।

ब्रह्मा के उस तीव्र तप से शिव जी प्रसन्न हो गये । फिर कष्टहारी शंभु सच्चिदानंद की कामदा मूर्ति में प्रविष्ट होकर अर्धनारीश्वर रूप में ब्रह्मा के समक्ष प्रकट हुए । उन देवाधिदेव भगवान शिव को पराशक्ति शिवा के साथ एत ही शरीर में प्रकट हुए देखकर ब्रह्मा ने भूमि पर दण्ड की भांति लेटकर उन्हें प्रणाम किया । तदंतर विश्वकर्मा महेश्वर ने परम प्रसन्न होकर मेध की सी गंभीर वाणी में उनसे कहा – ‘वत्स ! मुझे तुम्हारा संपूर्ण मनोरथ पूर्णतया ज्ञात है ।

इस समय तुमने जो प्रजाओं की वृद्धि के लिए कठोर तप किया है, उससे मैं परम प्रसन्न हूं । मैं तुम्हें तुम्हारा अभीष्ट वर अवश्य पदान करुंगा ।’ इस प्रकार स्वभाव से ही मधुर तथा परम उदार शिव जी ने ऐसा कहकर अपने शरीर से शिवदेवी को पृथक कर दिया । फिर ब्रह्मा भगवान शिव से पृथक हुई पराशक्ति को प्रणाम करके उनसे प्रार्थना करने लगे ।

ब्रह्मा ने कहा – ‘शिवे ! सृष्टि के प्रारंभ में आपके पति देवाधिदेव परमात्मा शंभु ने मेरी सृष्टि की और उन्होंने मुझे सृष्टि रचने का आदेश दिया था । शिवे ! तब मैंने देवता आदि समस्त प्रजाओं की मानसिक सृष्टि की, परंतु बार बार रचना करने पर भी उनकी वृद्धि नहीं हो रही है । अत: अब मैं स्त्री पुरुष के समागम के द्वारा सृष्टि का निर्माण करके प्रजाओं की वृद्धि करना चाहता हूं, किंतु अभी तक आपसे अक्षय नारी कुल का प्राकट्य नहीं हुआ है ।

नारी कुल की सृष्टि करना मेरी शक्ति के बाहर है । सारी सृष्टियों का उद्गम स्थान आपके सिवाय कोई अन्य नहीं है । इसलिए मैं आपसे प्रार्थना करता हूं । आप मुझे नारीकुल की सृष्टि करने की शक्ति प्रदान करें । इसी में जगत का कल्याण निहित है । आप समस्त जगत के कल्याण के लिए तथा वृद्धि के लिए मेरे पुत्र दक्ष की पुत्री होकर अवतार ग्रहण करें ।’

ब्रह्मा के द्वारा इस प्रकार प्रार्थना करने पर शिवा ने ‘तथास्तु’ ऐसा ही होगा कहकर उन्हें नारीकुल की सृष्टि करने की शक्ति प्रदान की । उसके बाद उस जगन्माता ने अपनी भौंहों के मध्यभागव से अपने ही समान प्रभावशाली एक शक्ति की रचना की । उस शक्ति को देखकर कृपासागर भगवान शंकर जगदंबा से इस प्रकार बोले ।

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शिव जी ने कहा – ‘देवी ! ब्रह्मा ने कठोर तपस्या से तुम्हारी आराधना की है । अत: उन पर प्रसन्न हो जाओ और उनका संपूर्ण मनोरथ पूर्ण करो ।’

भगवान शंकर के आदेश को शिवदेवी ने सिर झुकाकर स्वीकार किया और ब्रह्मा के कथनानुसार दक्ष की पुत्री होने का वचन दिया । इस प्रकार शिवादेवी ब्रह्मा को सृष्टि रचना की अनुपम शक्ति प्रदान करके शंभु के शरीर में प्रविष्ट हो गयीं । तदंतर भगवान शंकर भी तुरंत अंतर्धान हो गये । तभी से इस लोक में स्त्री भाग की कल्पना हुई और मैथुनी सृष्टि प्रारंभ हुई ।
भगवान अर्धनारीश्वर से मैथुनी सृष्टि की शक्ति प्राप्तकर जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि की कल्पना की, तब उनका शरीर दो भागों में विभक्त हो गया ।

आधे शरीर से एक परम रूपवती स्त्री प्रकट हुई और आधे से एक पुरुष उत्पन्न हुआ । उस जोड़े में जो पुरुष था, वह स्वायंभुव मनु के नाम से प्रसिद्ध हुआ और स्त्री शतरूपा के नाम से प्रसिद्ध हुई । स्वायंभुव मनु उच्चकोटि के साधक हुए तथा शतरूपा योगिनी और तपस्विनी हुई । मनु ने वैवाहिक विधि से अत्यंत सुंदरी शतरूपा का पाणिग्रहण किया और उससे वे मैथुनजनित सृष्टि उत्पन्न करने लगे । उन्होंने शतरूपा के द्वारा प्रियव्रत और उत्तानपाद नामक दो पुत्र और तीन कन्याएं उत्पन्न कीं । कन्याओं के नाम थे – आकूति, देवहूति और प्रसूति ।

आकूति का विवाह प्रजापति रुचि, देवहूति का कर्दम और प्रसूति का विवाह प्रजापति दक्ष के साथ हुआ । कल्पभेद से दक्ष की साठ कन्याएं बतायी गयी हैं । ब्रह्मा जी को दिये गये वरदान के अनुसार भगवती शिवा ने इन्हीं दक्ष की कन्या होकर अवतार ग्रहण किया । इस प्रकार भगवान अर्धनारीश्वर की कृपा से मैथुनी सृष्टि की परंपरा चल पड़ी ।

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बुध का वृषभ से मिथुन राशि में परिवर्तन – जानिए स्वराशि मिथुन में बुध में किसके काम होंगे शुभ

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मिथुन राशि में बुध का परिवर्तन – Mercury transit 2018

मिथुन राशि में बुध का परिवर्तन 10 जून को हो रहा है। बुध राशि परिवर्तन कर स्वराशि मिथुन में प्रवेश कर रहे हैं। वाणी के कारक बुध का परिवर्तन ज्योतिष शास्त्र के नज़रिये से काफी अहम माना जाता है। लग्न के अनुसार बुध जिस लग्न से जिस भाव में गोचररत होते हैं उस के अनुसार सकारात्मक व नकारात्मक परिणाम देने वाले होते हैं। ऐसे में जानिए किन राशियों पर बुध अपनी कृपा बरसाएंगें।

मेष राशि पर बुध के परिवर्तन का प्रभाव 

मेष राशि से बुध का परिवर्तन पराक्रम भाव में हो रहा है जो कि आपके कार्य में कुछ दिनों तक फिजूल की भागदौड़ को कम करेगा। परिवर्तन के कुछ समय बाद ही सूर्य के साथ आने से बुधादित्य युति बनेगी जिससे आपके पराक्रम को निखारने का भी योग बन रहा है। आपको नाम व पहचान भी बुध दे सकते हैं। शत्रु और रोग से सतर्क रहें।

वृषभ राशि पर बुध के परिवर्तन का प्रभाव 

वृषभ राशि से बुध का परिवर्तन द्वितीय भाव में हो रहा है जो कि अचानक धन का योग भी बनाता है। अष्टम दृष्टि रहने से स्वास्थ्य में चिंताए दे सकता है। कुछ समय के पश्चात धन भाव में बुधादित्य युति होने से बड़े लाभ के संकेत भी आपके लिये बन सकते हैं। प्रेम संबंधों में मधुरता आयेगी। लंबे समय से चली आ रही दूरियां मिट सकती हैं।

मिथुन राशि पर बुध के परिवर्तन का प्रभाव 

मिथुन राशि में बुध का प्रवेश स्वराशि में प्रवेश है। मन और बुद्धि में नया ओज़ नई चमक दिखाई देगी। कार्य करने में मन लगा रहेगा। इस समय अपनी वाणी के प्रभाव से आप किसी का भी दिल जीत सकते हैं। किसी भी क्षेत्र में आपकी बात को ऊपर रखा जाएगा। दांपत्य जीवन में भी कुछ समय तक मधुरता बनी रहने के संकेत हैं। माता के प्रेम व सुख में वृद्धि होगी।

कर्क राशि पर बुध के परिवर्तन का प्रभाव 

कर्क राशि से बुध का परिवर्तन 12वां है। पिछले कुछ समय से आपके अत्यधिक खर्चे हो रहे होंगे, धन हानि का जो योग बना हुआ था उसमें कमी आयेगी। नेत्र संबंधी रोगों से सावधान रहें। पराक्रम भाव के स्वामी होने के कारण कार्य में आलस्य बना रहेगा जो कि आपके कार्य करने की क्षमता को प्रभावित कर सकता है।

सिंह राशि पर बुध के परिवर्तन का प्रभाव 

सिंह राशि में बुध का परिवर्तन लाभ भाव में हो रहा है। आपके अचानक रूके हुए कार्य बनने लगेंगें। मेहनत व लाभ में चार चांद लगने का संयोग है। कार्यक्षेत्र में आप पर कार्यभार बढ़ सकता है। जिसको पूर्ण करने के बाद भविष्य में उच्च सफलताओं के संकेत हैं। स्वास्थ्य संबंधी ध्यान भी रखें।

कन्या राशि पर बुध के परिवर्तन का प्रभाव 

कन्या राशि से बुध का परिवर्तन दशम घर में हो रहा है जो कि आपका कर्म भाव है। कार्यक्षेत्र में लंबे समय से बड़े अधिकारियों का दबाव कुछ समय के लिये कम हो सकता है और आपको इससे लाभ मिलने की संभावनाएं भी हैं। शारीरिक सुख का योग भी बन रहा है।

तुला राशि पर बुध के परिवर्तन का प्रभाव 

तुला राशि से बुध का परिवर्तन भाग्य स्थान में हो रहा है। परिवर्तन के कुछ समय पश्चात ही भाग्य स्थान में बुधादित्य योग बनेगा जिसके पश्चात आपके लिये इस समय को सौभाग्यशाली माना जा सकता है। लंबे समय से जीवन में बंधन महसूस कर रहे हैं तो आपको उस बंधन से मुक्ति मिल सकती है। धन व्यय होने के संकेत है। कोई परिपूर्ण जानकारी के बाद ही धन खर्च करें अन्यथा भविष्य में इसका खामियाज़ा भुगतना पड़ सकता है।

वृश्चिक राशि पर बुध के परिवर्तन का प्रभाव 

वृश्चिक राशि से बुध का परिवर्तन आठवें घर में हो रहा है। पारिवारिक कलह और शारीरिक कष्ट में आराम मिलने के संकेत हैं। लाभ घर का स्वामी अष्टम भाव में जाने से कुछ समय तक लाभ की आशा न करें। वाणी और विचार में संयम रखें और कार्य में भी धैर्य बनाये रखें। कुछ समय बाद आपका जीवन सामान्य बना रहेगा।

धनु राशि पर बुध के परिवर्तन का प्रभाव 

धनु राशि से बुध का परिवर्तन सप्तम घर में हो रहा है। दांपत्य जीवन मे चल रहे उथल पुथल किसी तीसरे व्यक्ति के हस्तक्षेप से पारिवारिक वातावरण शांतिमय बना रहेगा। कार्यक्षेत्र में लंबें समय से उन्नति न होने से जो दबाव महसूस कर रहे थे वह दबाव भी हट जायेगा। रोगों से सचेत रहें।

मकर राशि पर बुध के परिवर्तन का प्रभाव 

मकर राशि से बुध का परिवर्तन छठे घर में हो रहा है जो कि आपका रोग भाव है। गुप्त शत्रुओं व रोगों से सचेत रहें। भाग्य का स्वामी छठे घर में जाने से कुछ समय तक भाग्य का सहयोग भी हो सकता है आपको न मिले जिससे आपको अपने कर्म पर ही ध्यान देने की आवश्यकता होगी। प्रेमी से भी अच्छा व्यवहार बनाये रखें अन्यथा उसके दूर जाने के आसार भी हैं।

कुंभ राशि पर बुध के परिवर्तन का प्रभाव 

कुंभ राशि से बुध का परिवर्तन पांचवें घर में होगा। प्रेम के लिये आशावान जातकों के लिये यह समय शुभ रहने के आसार हैं। प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल होने का शुभ संकेत है। लाभ का योग भी बनेगा। यात्राओं में सावधानी बरतें।

मीन राशि पर बुध के परिवर्तन का प्रभाव 

मीन राशि से बुध का परिवर्तन चतुर्थ भाव में हो रहा है। मकान वाहन और पारिवारिक सुख का योग बन रहा है। लंबे समय से यदि परिवार से दूर हैं तो परिवार के साथ समय बिताने का अवसर भी मिल सकता है। दांपत्य जीवन में भी खुशियां बनी रहने के आसार हैं। पेट संबंधी रोगों का ध्यान रखें।

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भगवान श्री कृष्ण का संदेश Shri Krishna Story in Hindi

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Shri Krishna Inspirational Story in Hindi श्री कृष्ण का पूरा जीवन हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनके जीवन की हर एक घटना एक महत्वपूर्ण सन्देश देती है, चाहे बचपन की रास लीला हो या गीता का ज्ञान या फिर महाभारत का युद्ध, भगवान श्री कृष्ण के जीवन का हर एक पल मानव जाति के लिए एक शिक्षा है। बहुत दिनों से मेरे मन में महाभारत की इस घटना को आप लोगों से शेयर करने का प्लान था लेकिन फ़िलहाल हिंदीसोच पे हेल्थ से related आर्टिकल्स publish हो रहे हैं इस वजह से ये कहानी पहले शेयर नहीं कर पाया।

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परमा एकादशी 2018 – जानिए परम एकादशी व्रत की पूजा विधि और पौराणिक कथा

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परमा एकादशी – Parama Ekadashi 2018

परमा एकादशी (Parama Ekadashi hindi) जिसे पुरुषोत्तम एकादशी (Purushottami Ekadashi) भी कहते हैं अधिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। प्रत्येक वर्ष 24 एकादशियां आती हैं। मलमास में इनकी संख्या 24 से बढ़कर 26 हो जाती है। साल 2018 में परम एकादशी 10 जून को है। आइये जानते हैं परमा एकादशी की व्रत कथा, पूजा विधि व महत्व के बारे में।

परमा एकादशी का महत्व

वैसे तो प्रत्येक एकादशी व्रत जीवन में सुख-समृद्धि की कामना व मोक्ष प्राप्ति के लिये किया जाता है। लेकिन अधिक मास में व्रत-उपवास, दान-पुण्य करने का महत्व अधिक ही होता है। क्योंकि इस मास में पुरुषोत्तम भगवान की विशेष कृपा होती है। जो जातक अपनी लाइफ में धन के अभाव से झूझ रहे हैं। लाइफ में गरीबी के कारण परेशानियों का सामना कर रहे हैं। जो मृत्योपरांत मोक्ष की कामना रखते हैं उनके लिये परमा एकादशी का उपवास बहुत महत्वपूर्ण है।

परमा एकादशी की पौराणिक कथा

परमा एकादशी की पौराणिक कथा भगवान श्री कृष्ण युद्धिष्ठिर को सुनाते हुए कहते हैं कि अधिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी जहां पद्मिनी एकादशी होती है वहीं कृष्ण पक्ष की एकादशी परमा या पुरुषोत्तम एकादशी कहलाती है। हे युधिष्ठिर मैं तुम्हें इस एकादशी का माहात्म्य कहती एक कथा सुनाता हूं इसे ध्यान से सुनें।

एक समय में काम्पिल्य नामक नगरी होती थी। उस नगरी में सुमेधा नाम के एक ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ रहते थे। दोनों बहुत ही नेक, बहुत ही धर्मपरायण थे। अपने सामर्थ्य के अनुसार अतिथियों की आवभगत भी करते थे। लेकिन धन के अभाव के कारण कई बार उन्हें अपनी निर्धनता का दु:ख भी होता था। एक दिन सुमेधा ने अपनी पत्नी के सामने प्रस्ताव रखा कि वह धन कमाने के लिये परदेश जाना चाहता है। इस गरीबी में तो गुजारा करने में बहुत दिक्कत है। पत्नी ने जवाब दिया कि हम अपने मार्ग पर अडिग हैं। किसी का बूरा नहीं करते, भगवान की भक्ति करते हैं।

इसके बावजूद भी हमारे साथ ऐसा हो रहा है तो इसमें जरूर भगवान की कुछ मर्जी छिपी होगी। हो सकता है यह हमारे पूर्वजन्मों का फल हो। इसलिये कहीं जाने की आवश्यकता नहीं है भगवान जो करेंगें वह भली ही करेंगें। अपनी पत्नी के विश्वास भरे इन शब्दों को सुनकर सुमेधा ने परदेश जाने का विचार त्याग दिया और वैसे ही जीवन चलने लगा। एक दिन क्या हुआ कि कौण्डिल्य ऋषि उधर से गुजर रहे थे तो ब्राह्मण दंपति के यहां विश्राम के लिये रूक गये।

अपने सामर्थ्य के अनुसार दोनों ने ऋषि की सेवा की। उनके सेवा भाव को देखकर ऋषि प्रसन्न हुए। सुमेधा ने ऋषि से कहा महाराज हमारे पास एक स्वच्छ मन और नि:स्वार्थ सेवा भाव के अलावा कुछ नहीं है। हमें अपनी गरीबी के कारण कई बार बड़ी असमर्थता का अहसास होता है। इस स्थिति में परिवर्तन लाने का कोई उपाय बताएं।

हे युधिष्ठिर तब महर्षि कौण्डिल्य कहते हैं कि हे विप्रवर मल मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी जो कि परमा एकादशी होती है यदि विधिनुसार अपनी पत्नी के साथ इस एकादशी को उपवास रखें तो आपके दिन भी बदल सकते हैं। ऋषि के बताये अनुसार ही दोनों ने उपवास रखा। जिसके बाद सच में दोनों के दिन बदल गये। इतना ही नहीं सुख पूर्वक जीवन व्यतीत करने के पश्चात उन्होंने विष्णु लोक में गमन किया।

तो हे युधिष्ठिर यह एकादशी बहुत ही खास है। इससे दरिद्र से भी दरिद्र के दिन फिर जाते हैं।

परमा एकादशी व्रत व पूजा विधि

एकादशी व्रत में जिन नियमों का पालन किया जाता है परमा एकादशी में उन नियमों की पालना तो की ही जाती है साथ ही परमा एकादशी का उपवास पांच दिनों तक रखने का विधान भी है। इस व्रत का पालन कठिन बताया जाता है। एकादशी के दिन स्नानादि के पश्चात स्वच्छ होकर भगवान विष्णु की प्रतिमा के समक्ष बैठकर हाथ में जल व फूल ले संकल्प लिया जाता है। भगवान विष्णू का पूजन किया जाता है। पांच दिनों तक व्रत का पालन किया जाता है। पांचवे दिन ब्राह्मण भोज करवाने व उन्हें दान-दक्षिणा देकर विदा करने के पश्चात व्रत का पारण करने चाहिए। हालांकि सामर्थ्य के अनुसार आप इस उपवास का पारण द्वादशी के दिन भी कर सकते हैं।

परमा एकादशी व्रत तिथि व मुहूर्त 2018

परमा एकादशी तिथि – 10 जून 2018

पारण का समय – 05:28 से 08:13 (11 जून 2018)

एकादशी तिथि आरंभ – 12:58 (09 जून 2018)

एकादशी तिथि समाप्त – 11:54(10 जून 2018)

 

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WhatsApp डाउनलोड करना है : Android Phone में WhatsApp Install करे

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अगर आपको Whatsapp Download Karna Hai या अपने फोन में Whatsapp Chalu Karna Hai तो हम आपको Whatsapp डाउनलोड और इनस्टॉल करने का पूरा process बताने जा रहे हैं| Whatsapp स्मार्ट फोन के लिए बनाया गया एक फ्री messaging app है| Whatsapp की हेल्प से आप पूरे वर्ल्ड में कहीं भी अपने मित्रों को मैसेज, वीडियो, पीडीएफ, फोटो या अन्य कोई डॉक्यूमेंट भेज सकते हैं| Whatsapp दुनिया का सबसे famous messenger app है जिसपर करीब 1 अरब से ज्यादा लोग active हैं| किसी भी व्यक्ति के फोन में कोई app हो या ना हो लेकिन whatsapp हर व्यक्ति के स्मार्ट

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Lyrical: Mauli Mauli Song (Vitthal) – Lai Bhaari – Ajay Atul, Riteish Deshmukh, Salman Khan

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शुक्र का मिथुन राशि से कर्क राशि में परिवर्तन – इन राशियों की हो जाएगी बल्ले बल्ले

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शुक्र का मिथुन राशि से कर्क राशि में परिवर्तन – Venus Transit into Cancer Sign 2018

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार राशिचक्र की 12 राशियों में वृषभ व तुला राशि के स्वामी शुक्र एक शुभ ग्रह माने जाते हैं। इन्हें लाभ व सुख-समृद्धि का कारक भी माना जाता है। शुक्र के बल से ही प्रेम व दांपत्य जीवन में सफलता मिलती है। इसलिये शुक्र का गोचर ज्योतिषीय आकलन के लिये बहुत मायने रखता है। 9 जून 2018 को शुक्र का राशि परिवर्तन मिथुन राशि से कर्क राशि में हो रहा है। ऐसे में समस्त राशियों को शुक्र कैसे प्रभावित करेंगें आइये जानते हैं।

मेष पर शुक्र के राशि परिवर्तन का प्रभाव 

शुक्र का परिवर्तन आपकी राशि से चतुर्थ भाव में हो रहा है जो कि आपका सुख भाव है। चतुर्थ घर का शुक्र हमेशा राजयोग का कारक माना गया है। जिससे की हमारे सुख सुविधाओं में वैभव में ऐश्वर्य में वृद्धि होती है। आपकी राशि से सातवें घर के स्वामी एवं धन के स्वामी होने के कारण अविवाहित जातकों के लिये विवाह संबंधी शुभ समाचार लाने वाला भी रह सकता है। धन भाव का स्वामी होने के कारण धन वृद्धि का योग भी आपके लिये बना सकता है। कर्म भाव को भी दृष्टित रखने के कारण आपके कार्यक्षेत्र में भी उन्नति व सफलता देने वाला रहेगा। शरीर में पानी आदि की कमी हो सकती है जिससे स्वास्थ्य के प्रति आपको सचेत रहने की आवश्यकता है।

वृषभ पर शुक्र के राशि परिवर्तन का प्रभाव 

आपके राशि स्वामी शुक्र आपकी राशि से तीसरे स्थान में परिवर्तन कर रहे हैं जो कि आपका पराक्रम क्षेत्र है। आपके समकक्ष व्यक्ति आपकी तरह काम करके आगे बढ़ने पर आपमें ईर्ष्या की भावना भी पनप सकती है। शुक्र आपकी राशि में लग्न और छठे घर के स्वामी होने के कारण शत्रु व रोग से आपकी रक्षा भी करेंगें। भाग्य स्थान में दृष्टित होने के कारण आपको अपने भाग्य में वृद्धि दिखाई दे सकती है। कार्यक्षेत्र में किसी भी प्रकार के वाद-विवाद से स्वयं को दूर रखें। सामर्थ्य से ज्यादा कार्य न करें अन्यथा यह आपके लिये अपेक्षाकृत परिणाम देने वाला नहीं रहेगा।

मिथुन पर शुक्र के राशि परिवर्तन का प्रभाव 

आपकी राशि से शुक्र का परिवर्तन दूसरे स्थान पर हो रहा है जो अचानक से आपके संचित धन में कमी लाने का संकेत दे रहा है। धन व्यय का योग बना रहा है। शुक्र आपकी राशि से पंचम एवं द्वादश भाव के स्वामी हैं। शुरुआती कुछ समय में संतान, प्रेम संबंध एवं शिक्षा के मामलों में दिक्कतें पेश आ सकती हैं लेकिन उसके पश्चात आपको सकारात्मक परिणाम मिलने आरंभ होंगें। द्वादश भाव का स्वामी होने के कारण धन न दें जिससे उसके वापस आने की संभावनाएं कम रहती हैं। वस्त्र एवं आभूषणों में इस समय धन व्यय कर सकते हैं।

कर्क पर शुक्र के राशि परिवर्तन का प्रभाव 

आपकी राशि से में ही शुक्र का परिवर्तन हो रहा है। जिससे आपको अपने स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता है। आपके स्वभाव में उग्रता का अहसास आपको हो सकता है। इसका उचित जगह पर इस्तेमाल करें। शरीर में विशेषकर चेहरे का खास तौर पर ध्यान रखें। चोट, अग्नि आदि से बचें इससे विकार पैदा होने की संभावनाएं बन सकती हैं। आपकी राशि में शुक्र चतुर्थ एवं एकादश भाव के स्वामी हैं। चौथा घर आपके लिये सुख एवं समृद्धि वाला है समय के साथ-साथ आपको सुख-समृद्धि में वृद्धि करेगा। परिवार व माता के साथ समय व्यतीत करने का अवसर भी मिल सकता है। एकादश भाव का स्वामी होने के कारण अपेक्षित लाभ मिलने के योग भी बन सकते हैं। आपके व्यवहार आपकी कार्यशैली में भी सकारात्मक बदलाव देखने को मिल सकते हैं।

सिंह पर शुक्र के राशि परिवर्तन का प्रभाव 

सिंह राशि के जातकों के लिये शुक्र का परिवर्तन आपकी राशि 12वें घर में होगा। यह समय आपके लिये कोर्ट कचहरी या रोग आदि में धन व्यय होने के योग बना सकता है। मस्तिष्क एवं नेत्र संबंधी रोगों के प्रति सचेत रहें। कभी कभी शत्रुओं से परेशानियां भी बढ़ सकती हैं। आपकी राशि से शुक्र तृतीय एवं कर्म भाव के स्वामी हैं। समय बढ़ने के साथ साथ आपको कार्य करने में काफी आनंद आयेगा। आपके कार्य कौशल की प्रशंसा भी सहकर्मियों द्वारा की जा सकती है। इसका आपको अपेक्षित परिणाम भी मिल सकता है। वहीं कर्मभाव का स्वामी होने के कारण आपके पास कार्य की बहुलता रहेगी। यह समय आपको अपने सपनों को साकार करने का मौका भी दे सकता है जिन्हें आप अपनी पूरी प्रतिबद्धता के साथ पूरा करें।

कन्या पर शुक्र के राशि परिवर्तन का प्रभाव 

कन्या राशि के जातकों के लिये शुक्र का परिवर्तन आपकी राशि से ग्यारहवें भाव में हो रहा है जो कि आपका लाभ का स्थान है। शुक्र पंचम भाव को दृष्टित कर रहे हैं जिसके कारण संबंधो, शिक्षा व संतान के मामले में कुछ समय के लिये परेशानियां बढ़ सकती हैं। आपकी राशि में शुक्र भाग्य व धन भाव के स्वामी होने के कारण समय के साथ साथ आपके भाग्य के बलवान होने के संकेत हैं साथ धार्मिक रूझान भी आपका बढ़ेगा। धन भाव का स्वामी होने के कारण आपके लिये धन वृद्धि के योग भी बनेंगें। द्वीतिय स्थान के स्वामी ज्योतिषशास्त्र में मारकेश भी माने जाते हैं। छोटे मोटे रोगों को अनदेखा न करें जो कि आपके लिये कष्टप्रद रह सकते हैं।

तुला पर शुक्र के राशि परिवर्तन का प्रभाव 

तुला राशि के जातकों के लिये आपकी राशि से शुक्र का परिवर्तन दसवें घर में होगा जो कि आपका कर्मभाव है। चतुर्थ भाव दृष्ट होने के कारण समय के साथ-साथ आपकी सुख सुविधाएं, एश्वर्य एवं वैभव में भी वृद्धि हो सकती है। आपकी राशि में शुक्र लग्न व आठवें घर के स्वामी भी हैं। लग्न से आपको शारीरिक व्याधियों से छुटकारा मिल सकता है, जीवन की सुख सुविधाओं का आनंद लेने का योग भी है। अष्टमेश होने के कारण शारीरिक कमजोरी के संकेत भी कर रहा है।

वृश्चिक पर शुक्र के राशि परिवर्तन का प्रभाव 

वृश्चिक राशि के जातकों के लिये शुक्र का परिवर्तन आपकी राशि से नवें घर में हो रहा है जो कि आपका भाग्य का स्थान है। इस समय केवल अपने कर्म पर ध्यान दें। आपकी राशि में शुक्र सप्तम एवं द्वादश भाव के स्वामी हैं। शुरुआत में कुछ समय के लिये दांपत्य जीवन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है तथा फिजूल खर्ची के योग भी आपके लिये बन सकते हैं। सप्तम भाव का स्वामी होने के कारण रोग वृद्धि भी हो सकती है जिससे आपको मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। पराक्रम भाव में दृष्टि होने के कारण आप अपने कर्म से सभी प्रकार की परेशानियों से छुटकारा पा सकते हैं।

धनु पर शुक्र के राशि परिवर्तन का प्रभाव 

धनु राशि के जातकों के लिये शुक्र का परिवर्तन आपकी राशि से अष्टम भाव में होगा जो कि आपकी स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं में वृद्धि कर सकता है। अपने या किसी करीबी के स्वास्थ्य के कारण यात्राएं भी करनी पड़ सकती हैं। किसी प्रकार के कानूनी, अदालती कार्रवाई का शिकार भी आपको होना पड़ सकता है सतर्क रहें। धन भाव में शुक्र की दृष्टि होने के कारण समय के साथ-साथ धन वृद्धि होने के योग भी हैं। आपकी राशि में शुक्र लाभ व छठे घर के स्वामी हैं। शत्रु वृद्धि भी करवा सकता है। लाभ का स्वामी होने के कारण आपको अच्छे धन लाभ के संकेत भी बन रहे हैं।

मकर पर शुक्र के राशि परिवर्तन का प्रभाव 

मकर राशि के जातकों के लिये शुक्र का परिवर्तन आपकी राशि से सप्तम घर में हो रहा है। सप्तम भाव आपका दांपत्य जीवन तथा उदर संबंधी विकारों को भी देखता है। शुरुआती कुछ समय आपके दांपत्य जीवन के लिये नकारात्मक रह सकता है। वाद-विवाद के कारण मानसिक परेशानियां हो सकती हैं। समय के साथ-साथ यह आपके दांपत्य जीवन को सामान्य करने की क्षमता भी रखता है। प्रथम भाव में दृष्टि होने के कारण आप अपने अंदर एक नई ऊर्जा का संचार महसूस कर सकते हैं। आपकी राशि में शुक्र कर्म एवं पंचम भाव के स्वामी हैं। शुरुआती कुछ समय आपके संबंधों में दिक्कत दे सकता है लेकिन बाद में संबंधों में प्रगाढ़ता आयेगी इसी तरह के उतार-चढ़ाव आप कर्मक्षेत्र में भी देख सकते हैं।

कुंभ पर शुक्र के राशि परिवर्तन का प्रभाव 

कुंभ जातकों के लिये शुक्र छठे घर में आ रहे हैं जो कि आपका शत्रु व रोग का घर है। पुराने शत्रुओं व पुराने रोगों से सावधान रहें, अचानक उभार ले सकते हैं। व्यय भाव में दृष्टि होने के कारण शुरुआती कुछ समय आपके लिये फिजूलखर्ची वाला रह सकता है। लेकिन इसके पश्चात भविष्य की योजनाओं को लेकर निवेश कर सकते हैं। आपकी राशि से शुक्र भाग्य एवं सुख भाव के स्वामी भी हैं जो कि आपके लिये भाग्यवर्धक समय बना रहे हैं। भाग्य एवं कर्म की सहायता से आप अपने जीवन में सभी प्रकार की सुख सुविधाओं का आनंद भी लेंगें।

मीन पर शुक्र के राशि परिवर्तन का प्रभाव 

मीन राशि वालों के लिये शुक्र पंचम भाव में परिवर्तित होंगें जो कि आपका संतान, शिक्षा व प्रेम संबंधों का कारक है। प्रेम जीवन में पार्टनर से रिश्तों में सकारात्मक प्रभाव दिखाई दे सकते हैं। लाभ भाव में दृष्टि होने के कारण शुरुआती कुछ दिनों तक आपको परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। इसके पश्चात स्थिति सामान्य बन सकती है। आपकी राशि में शुक्र पराक्रम एवं अष्टम भाव के स्वामी होने के कारण आपकी पराक्रम क्षमता को तो बढ़ायेगा ही तथा कार्य करने में आपकी रूचि से प्रभावित होकर लोग आपकी प्रशंसा भी कर सकते हैं। अष्टम भाव का स्वामी होने के कारण स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं शुरुआत में बढ़ा सकता है। इसका विशेष ध्यान रखें लेकिन कुछ समय के पश्चात यह स्थिति भी सामान्य हो जायेगी।

 

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रामायण चौपाई – मंगल भवन अमंगल हारी, द्रवहु सुदसरथ अचर बिहारी …

जीमेल का पासवर्ड भूल जाये तो क्या करे, जानें in Hindi

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Gmail Ka Password Bhul Jaye to Kya Kare in Hindi जीमेल का पासवर्ड भूल जाये तो क्या करें ? अक्सर जब हम कई दिनों तक अपनी जीमेल ID को लॉगिन नहीं करते तो हम उसका पासवर्ड भूल जाते हैं या फिर पासवर्ड कठिन होने की वजह से हमें याद नहीं रहता और जब हम Gmail ID login करना चाहते हैं तो दिक्कत का सामना करना पड़ता है| अगर आप भी पासवर्ड भूल जाने की वजह से अपनी Gmail ID को access नहीं कर पा रहे हैं तो परेशान ना हों क्यूंकि यहां हम आपको इसका Step by Step solution बताने

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जैसे राधा ने माला जपी श्याम की, मैने ओढ़ी चुनरिया तेरे नाम की

Jai Dev Jai Dev, Jai Mangal Murti – Ganesh Aarti Marathi

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Sukh karta dukh harta Varta vighnachi Noorvi poorvi prem krupya jayachi Sarwangi sundar utishendu rachi Kanthi jhalke maad mukhta padhanchi Jai dev jai …

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हनुमदीश्वर महादेव की कथा – हनुमान जी के क्षणिक घमंड को ऐसे दूर किया प्रभु श्री राम ने

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श्रीराम और हनुमान कथा – Shriram & Hanuman Story

रामायण और महाभारत में ऐसी कई कथाये हैं, जिसमे महाबली हनुमान ने दूसरों का घमंड तोडा हो। विशेषकर महाभारत में श्रीकृष्ण ने हनुमान जी के द्वारा ही अर्जुन, बलराम, भीम, सुदर्शन चक्र, गरुड़ एवं सत्यभामा का घमंड थोड़ा था। इसमें कोई शंका नहीं कि महाबली हनुमान में अपार बल था। रामायण के बाद उनके बल का वर्णन करते हुए श्रीराम कहते हैं कि “यद्यपि रावण की सेना में स्वयं रावण, कुम्भकर्ण एवं मेघनाद जैसे अविजित वीर थे और हमारी सेना में भी स्वयं मैं, लक्ष्मण, जामवंत, सुग्रीव, विभीषण एवं अंगद जैसे योद्धा थे किन्तु इन सब में से कोई भी हनुमान के बल की समता नहीं कर सकता।

इस पूरे विश्व में परमपिता ब्रह्मा, नारायण एवं भगवान रूद्र के अतिरिक्त कदाचित ही कोई और हनुमान को परास्त करने की शक्ति रखता है।” इतने बलवान होने के बाद भी हनुमान अत्यंत विनम्र और मृदुभाषी थे एवं अहंकार तो उन्हें छू भी नहीं गया था। इस पर भी रामायण में एक ऐसी कथा आती है जब हनुमान को क्षणिक घमंड हो गया था। किन्तु जिनके स्वामी स्वयं श्रीराम हों उन्हें उबरने में समय नहीं लगता।

हनुमदीश्वर महादेव की कथा – Hanumadishwar Mahadev katha 

श्री रामेश्वरम में ज्योतिर्लिंग की स्थापना के सम्बन्ध में एक अन्य ऐतिहासिक कथा भी प्रचलित है, लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद अयोध्या लौटतेसमय श्रीराम ने समुद्र लांघने के बाद गन्धमादन पर्वत पर रुककर विश्राम किया | उनके साथ सीताजी तथा अन्य सभी सेनानायक थे, श्रीराम के आगमन का समाचार सुनकर बहुत सारे ऋषि-महर्षि दर्शन के लिए पहुंचे |

ऋषियों ने श्रीराम से कहा आपने पुलस्त्य कुल का विनाश किया है, जिससे आपको ब्रह्महत्या का पातक लग गया है | श्रीराम ने ऋषियों से इस दोष से मुक्ति का रास्ता पूछा, ऋषियों ने आपस में विचार-विमर्श के बाद श्रीराम को बताया कि आप एक शिवलिंग की स्थापना कर शास्त्रीय विधि से उसकी पूजा कीजिए | शिवलिंग पूजन से आप सब प्रकार से दोषमुक्त हो जाएंगे, ऋषियों की सभा में शिवलिंग स्थापना का निर्णय होने के बाद श्रीराम ने हनुमानजी को कि आप कैलाश जाकर महादेव की आज्ञा से एक शिवलिंग लाइए |

हनुमानजी पवनवेग से कैलाश पहुँच गए किन्तु शिव के दर्शन नहीं मिले, हनुमानजी ने महादेव का ध्यान किया | उनकी आराधना से प्रसन्न शिवजी ने उन्हें दर्शन दिया, उसके बाद शंकरजी से पार्थिव शिवलिंग प्राप्त कर गन्धमादन वापस आ गए |
इस प्रक्रिया में हनुमानजी को काफ़ी देरी लग गई, इधर ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष की दशमी तिथि बुधवार के दिन शिवलिंग की स्थापना का अत्यन्त उत्तम मुहूर्त निर्धारित था | मुहूर्त के बीत जाने की आशंका से तथा समय पर लिंग लेकर हनुमान जी के न पहुंचने के कारण ऋषियों ने मुहूर्त के अनुसार श्रीराम से लिंग-स्थापना करने की प्रार्थना की |

पुण्यकाल का विचार करते हुए ऋषियों ने माता जानकी द्वारा विधिपूर्वक बालू का ही लिंग बनाकर उसकी स्थापना करा दी, लौटने पर हनुमानजी ने देखा कि शिवलिंग स्थापना हो चुकी है, उन्हें बड़ा कष्ट हुआ | वह श्रीराम के चरणों में गिर पड़े और पूछा कि उनसे ऐसी क्या त्रुटि हुई जो प्रभु ने उनकी भक्ति और श्रम की लाज न रखी | भगवान श्रीराम ने हनुमानजी को शिवलिंग स्थापना का कारण समझाया, फिर भी हनुमान जी को पूर्ण सन्तुष्टि नहीं हुई |  भक्तवत्सल प्रभु ने कहा- हनुमानजी आप शिवलिंग को उखाड़ दीजिए, फिर मैं आपके द्वारा लाए शिवलिंग को उसके स्थान पर स्थापित कर देता हूँ |

श्रीराम की बात सुनकर हनुमानजी प्रसन्न हो गए, वह उस स्थापित लिंग को उखाड़ने के लिए झपट पड़े |  लिंग का स्पर्श करने से उन्हें बोध हुआ कि इसे उखाड़ना सामान्य कार्य नहीं है | बालू का लिंग वज्र बन गया था, उसको उखाड़ने के लिए हनुमान जी ने अपनी सारी ताक़त लगा दी, किन्तु सारा परिश्रम व्यर्थ चला गया |  अन्त में उन्होंने अपनी लम्बी पूँछ में उस लिंग को लपेट लिया और ज़ोर से खींचा, शिवलंग टस से मस न हुआ |  हनुमान जी उसे उखाड़ने के लिए ज़ोर लगाते रहे और अन्त में स्वयं धक्का खाकर तीन किलोमीटर दूर जाकर गिर पड़े तथा काफ़ी समय तक मूर्च्छित पड़े रहे |

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घायल होने के कारण उसके शरीर से रक्त बहने लगा जिसे देखकर श्री रामचन्द्रजी सहित सभी उपस्थित लोग व्याकुल हो गए. सीता माता ने उनके शरीर पर हाथ फेरा तो मातृस्नेह रस से हनुमानजी की मूर्च्छा दूर हो गई, हनुमानजी बड़ी ग्लानि हुई | वह श्री रामजी के चरणों पर पड़ गए, उन्होंने भाव विह्वल होकर भगवान श्रीराम की स्तुति की |  श्रीराम ने कहा-आपसे जो भूल हुई, उसके कारण ही इतना कष्ट मिला |

मेरे द्वारा स्थापित इस शिवलिंग को दुनिया की सारी शक्ति मिलकर भी नहीं उखाड़ सकती है, आपसे भूलवश महादेवजी के प्रति अपमान का अपराध हुआ है लेकिन यह कष्ट देकर मैंने प्रायश्चित करा दिया, आगे से सावधान रहें | अपने भक्त हनुमान जी पर कृपा करते हुए भगवान श्रीराम ने उनके द्वारा कैलाश से लाए शिवलिंग को भी वहीं समीप में ही स्थापित कर दिया |

श्रीराम ने ही उस लिंग का नाम ‘हनुमदीश्वर’ रखा | रामेश्वर तथा हनुमदीश्वर शिवलिंग की प्रशंसा भगवान श्रीराम ने स्वयं की है “स्वयं हरेण दत्तं हनुमान्नामकं शिवम्। सम्पश्यन् रामनाथं च कृतकृत्यो भवेन्नर:।।योजनानां सहस्त्रेऽपि स्मृत्वा लिंग हनूमत:। रामनाथेश्वरं चापि स्मृत्वा सायुज्यमाप्नुयात्।।तेनेष्टं सर्वयज्ञैश्च तपश्चकारि कृत्स्नश:। येन इष्टौ महादेवौ हनूमद्राघवेश्वरौ।।

अर्थात – भगवान शिव द्वारा प्रदत्त हनुमदीश्वर नामक शिवलिंग के दर्शन से मानव जीवन धन्य हो जाता है, जो मनुष्य हज़ार योजन दूर से भी यदि हनुमदीश्वर और श्रीरामनाथेश्वर-लिंग का स्मरण चिन्तन करता है, उसे शिवलोक की प्राप्ति होती है, इस शिवलिंग की महिमा का बखान करते हुए कहा गया है जिसने हनुमदीश्वर और श्रीरामेश्वर ज्योतिर्लिंग का दर्शन कर लिया, उसने सभी प्रकार के यज्ञ तथा तप के पुण्य प्राप्त कर लिया |

उसी समय से काले पाषाण से निर्मित हनुमदीश्वर महादेव रामेश्वरम तीर्थ का एक अभिन्न अंग बन गए। आज भी जो यात्री रामेश्वरम के दर्शन करने को जाते हैं वे पहले हनुमदीश्वर महादेव के दर्शन अवश्य करते हैं। जय हनुमदीश्वर महादेव।

हर हर महादेव
जय श्री राम

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Lalbaugcha Raja | Top 20 Marathi Ganpati Songs | Non Stop Marathi Ganpati Bhajans New 2016

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Listen “Lalbagcha Raja – Top 20” Ganpati Aarti Va Bhakti Geete – New 2016 Ganpati songs exclusively on Wings Marathi channel. गणपती मराठी सॉंग्स …

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Google Gmail Ka Password Kaise Change Kare in Hindi

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इस लेख में हम आपको सिखायेंगे कि अपने गूगल अकाउंट यानि Gmail Ka Password Kaise Change Kare. अपनी निजी जानकारियों को हैक होने से बचाने के लिए आपको अपने जीमेल का पासवर्ड समय -समय पर बदलते रहना चाहिए| जीमेल में हमारी अनेकों जरुरी जानकारियां होती हैं जिनको हमें हमेशा Safe रखना होता है परंतु सोचिये कि अगर आपका पासवर्ड किसी को पता चल जाये तो क्या होगा ? क्यों जरुरी है Gmail का Password Change करना आज के समय में ऑनलाइन बिजनिस बिना Gmail के संभव नहीं है| ऐसे में हमारी Gmail आईडी में बिजनिस या महत्वपूर्ण जानकारियां रखी होती

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जानिए भगवान ब्रह्मा के परिवार और वंशज का संक्षिप्त विवरण

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ब्रह्मा के परिवार और वंशज का संक्षिप्त विवरण 

ब्रह्मा हिन्दू धर्म में एक प्रमुख देवता हैं। वे हिन्दुओं के तीन प्रमुख देवताओं (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) में से एक हैं। ब्रह्मा को सृष्टि का रचयिता कहा जाता है। सृष्टि का रचयिता से आशय सिर्फ ‍जीवों की सृष्टि से है। पुराणों ने इनकी कहानी को मिथकरूप में लिखा। प्रमुख देवता होने पर भी इनकी पूजा बहुत कम होती है।

शास्त्रों में नहीं है ब्रह्मा की पूजा का विधान

इसका एक कारण यह बताया जाता है कि इन्होंने अपनी पुत्री सरस्वती पर कु्दृष्टि डाली थी। दूसरा कारण यह कि ब्रह्मांड की थाह लेने के लिए जब भगवान शिव ने विष्णु और ब्रह्मा को भेजा तो ब्रह्मा ने वापस लौटकर शिव से असत्य वचन कहा था। इनका अकेला लेकिन प्रमुख मंदिर राजस्थान में पुष्कर नामक स्थान पर है। कई लोग गलती से इन्हें ‘ब्रह्म’ भी मान लेते हैं।जबकि ‘ब्रह्म’ शब्द ‘ईश्वर’ के लिए प्रयुक्त होता है।

शास्त्रों के अनुसार ब्रह्मा जी के मानस पुत्र

पुराणों के अनुसार ब्रह्माजी के मानस पुत्र:- मन से मारिचि, नेत्र से अत्रि, मुख से अंगिरस, कान से पुलस्त्य, नाभि से पुलह, हाथ से कृतु, त्वचा से भृगु, प्राण से वशिष्ठ, अंगुषठ से दक्ष, छाया से कंदर्भ, गोद से नारद, इच्छा से सनक, सनन्दन, सनातन, सनतकुमार, शरीर से स्वायंभुव मनु, ध्यान से चित्रगुप्त आदि।

पुराणों में ब्रह्मा-पुत्रों को ‘ब्रह्म आत्मा वै जायते पुत्र:’ ही कहा गया है। ब्रह्मा ने सर्वप्रथम जिन चार-सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार पुत्रों का सृजन किया। उनकी सृष्टि रचना के कार्य में कोई रुचि नहीं थी। वे ब्रह्मचर्य रहकर ब्रह्म तत्व को जानने में ही मगन रहते थे। इन वीतराग पुत्रों के इस निरपेक्ष व्यवहार पर ब्रह्मा को महान क्रोध उत्पन्न हुआ।

ब्रह्मा के क्रोध से उत्पन हुए अर्धनारीश्वर

ब्रह्मा के उस क्रोध से एक प्रचंड ज्योति ने जन्म लिया। उस समय क्रोध से जलते ब्रह्मा के मस्तक से अर्धनारीश्वर रुद्र उत्पन्न हुआ। ब्रह्मा ने उस अर्धनारीश्वर रुद्र को स्त्री और पुरुष दो भागों में विभक्त कर दिया। पुरुष का नाम ‘का’ और स्त्री का नाम ‘या’ रखा। प्रजापत्य कल्प में ब्रह्मा ने रुद्र रूप को ही स्वयंभु मनु और स्त्री रूप में शतरूपा को प्रकट किया।

मनु और शतरूपा की संतान

इन दोनों ने ही प्रियव्रत, उत्तानपाद, प्रसूति और आकूति नाम की संतानों को जन्म दिया। फिर आकूति का विवाह रुचि से और प्रसूति का विवाह दक्ष से किया गया। दक्ष ने प्रसूति से 24 कन्याओं को जन्म दिया। इसके नाम श्रद्धा, लक्ष्मी, पुष्टि, धुति, तुष्टि, मेधा, क्रिया, बुद्धि, लज्जा, वपु, शान्ति, ऋद्धि, और कीर्ति हैं।

तेरह का विवाह धर्म से किया और फिर भृगु से ख्याति का, शिव से सती का, मरीचि से सम्भूति का, अंगिरा से स्मृति का, पुलस्त्य से प्रीति का पुलह से क्षमा का, कृति से सन्नति का, अत्रि से अनसूया का, वशिष्ट से ऊर्जा का, वह्व से स्वाह का तथा पितरों से स्वधा का विवाह किया। आगे आने वाली सृष्टि इन्हीं से विकसित हुई।

 

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