श्रीराम और हनुमान कथा – Shriram & Hanuman Story
रामायण और महाभारत में ऐसी कई कथाये हैं, जिसमे महाबली हनुमान ने दूसरों का घमंड तोडा हो। विशेषकर महाभारत में श्रीकृष्ण ने हनुमान जी के द्वारा ही अर्जुन, बलराम, भीम, सुदर्शन चक्र, गरुड़ एवं सत्यभामा का घमंड थोड़ा था। इसमें कोई शंका नहीं कि महाबली हनुमान में अपार बल था। रामायण के बाद उनके बल का वर्णन करते हुए श्रीराम कहते हैं कि “यद्यपि रावण की सेना में स्वयं रावण, कुम्भकर्ण एवं मेघनाद जैसे अविजित वीर थे और हमारी सेना में भी स्वयं मैं, लक्ष्मण, जामवंत, सुग्रीव, विभीषण एवं अंगद जैसे योद्धा थे किन्तु इन सब में से कोई भी हनुमान के बल की समता नहीं कर सकता।
इस पूरे विश्व में परमपिता ब्रह्मा, नारायण एवं भगवान रूद्र के अतिरिक्त कदाचित ही कोई और हनुमान को परास्त करने की शक्ति रखता है।” इतने बलवान होने के बाद भी हनुमान अत्यंत विनम्र और मृदुभाषी थे एवं अहंकार तो उन्हें छू भी नहीं गया था। इस पर भी रामायण में एक ऐसी कथा आती है जब हनुमान को क्षणिक घमंड हो गया था। किन्तु जिनके स्वामी स्वयं श्रीराम हों उन्हें उबरने में समय नहीं लगता।
हनुमदीश्वर महादेव की कथा – Hanumadishwar Mahadev katha
श्री रामेश्वरम में ज्योतिर्लिंग की स्थापना के सम्बन्ध में एक अन्य ऐतिहासिक कथा भी प्रचलित है, लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद अयोध्या लौटतेसमय श्रीराम ने समुद्र लांघने के बाद गन्धमादन पर्वत पर रुककर विश्राम किया | उनके साथ सीताजी तथा अन्य सभी सेनानायक थे, श्रीराम के आगमन का समाचार सुनकर बहुत सारे ऋषि-महर्षि दर्शन के लिए पहुंचे |
ऋषियों ने श्रीराम से कहा आपने पुलस्त्य कुल का विनाश किया है, जिससे आपको ब्रह्महत्या का पातक लग गया है | श्रीराम ने ऋषियों से इस दोष से मुक्ति का रास्ता पूछा, ऋषियों ने आपस में विचार-विमर्श के बाद श्रीराम को बताया कि आप एक शिवलिंग की स्थापना कर शास्त्रीय विधि से उसकी पूजा कीजिए | शिवलिंग पूजन से आप सब प्रकार से दोषमुक्त हो जाएंगे, ऋषियों की सभा में शिवलिंग स्थापना का निर्णय होने के बाद श्रीराम ने हनुमानजी को कि आप कैलाश जाकर महादेव की आज्ञा से एक शिवलिंग लाइए |
हनुमानजी पवनवेग से कैलाश पहुँच गए किन्तु शिव के दर्शन नहीं मिले, हनुमानजी ने महादेव का ध्यान किया | उनकी आराधना से प्रसन्न शिवजी ने उन्हें दर्शन दिया, उसके बाद शंकरजी से पार्थिव शिवलिंग प्राप्त कर गन्धमादन वापस आ गए |
इस प्रक्रिया में हनुमानजी को काफ़ी देरी लग गई, इधर ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष की दशमी तिथि बुधवार के दिन शिवलिंग की स्थापना का अत्यन्त उत्तम मुहूर्त निर्धारित था | मुहूर्त के बीत जाने की आशंका से तथा समय पर लिंग लेकर हनुमान जी के न पहुंचने के कारण ऋषियों ने मुहूर्त के अनुसार श्रीराम से लिंग-स्थापना करने की प्रार्थना की |
पुण्यकाल का विचार करते हुए ऋषियों ने माता जानकी द्वारा विधिपूर्वक बालू का ही लिंग बनाकर उसकी स्थापना करा दी, लौटने पर हनुमानजी ने देखा कि शिवलिंग स्थापना हो चुकी है, उन्हें बड़ा कष्ट हुआ | वह श्रीराम के चरणों में गिर पड़े और पूछा कि उनसे ऐसी क्या त्रुटि हुई जो प्रभु ने उनकी भक्ति और श्रम की लाज न रखी | भगवान श्रीराम ने हनुमानजी को शिवलिंग स्थापना का कारण समझाया, फिर भी हनुमान जी को पूर्ण सन्तुष्टि नहीं हुई | भक्तवत्सल प्रभु ने कहा- हनुमानजी आप शिवलिंग को उखाड़ दीजिए, फिर मैं आपके द्वारा लाए शिवलिंग को उसके स्थान पर स्थापित कर देता हूँ |
श्रीराम की बात सुनकर हनुमानजी प्रसन्न हो गए, वह उस स्थापित लिंग को उखाड़ने के लिए झपट पड़े | लिंग का स्पर्श करने से उन्हें बोध हुआ कि इसे उखाड़ना सामान्य कार्य नहीं है | बालू का लिंग वज्र बन गया था, उसको उखाड़ने के लिए हनुमान जी ने अपनी सारी ताक़त लगा दी, किन्तु सारा परिश्रम व्यर्थ चला गया | अन्त में उन्होंने अपनी लम्बी पूँछ में उस लिंग को लपेट लिया और ज़ोर से खींचा, शिवलंग टस से मस न हुआ | हनुमान जी उसे उखाड़ने के लिए ज़ोर लगाते रहे और अन्त में स्वयं धक्का खाकर तीन किलोमीटर दूर जाकर गिर पड़े तथा काफ़ी समय तक मूर्च्छित पड़े रहे |
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घायल होने के कारण उसके शरीर से रक्त बहने लगा जिसे देखकर श्री रामचन्द्रजी सहित सभी उपस्थित लोग व्याकुल हो गए. सीता माता ने उनके शरीर पर हाथ फेरा तो मातृस्नेह रस से हनुमानजी की मूर्च्छा दूर हो गई, हनुमानजी बड़ी ग्लानि हुई | वह श्री रामजी के चरणों पर पड़ गए, उन्होंने भाव विह्वल होकर भगवान श्रीराम की स्तुति की | श्रीराम ने कहा-आपसे जो भूल हुई, उसके कारण ही इतना कष्ट मिला |
मेरे द्वारा स्थापित इस शिवलिंग को दुनिया की सारी शक्ति मिलकर भी नहीं उखाड़ सकती है, आपसे भूलवश महादेवजी के प्रति अपमान का अपराध हुआ है लेकिन यह कष्ट देकर मैंने प्रायश्चित करा दिया, आगे से सावधान रहें | अपने भक्त हनुमान जी पर कृपा करते हुए भगवान श्रीराम ने उनके द्वारा कैलाश से लाए शिवलिंग को भी वहीं समीप में ही स्थापित कर दिया |
श्रीराम ने ही उस लिंग का नाम ‘हनुमदीश्वर’ रखा | रामेश्वर तथा हनुमदीश्वर शिवलिंग की प्रशंसा भगवान श्रीराम ने स्वयं की है “स्वयं हरेण दत्तं हनुमान्नामकं शिवम्। सम्पश्यन् रामनाथं च कृतकृत्यो भवेन्नर:।।योजनानां सहस्त्रेऽपि स्मृत्वा लिंग हनूमत:। रामनाथेश्वरं चापि स्मृत्वा सायुज्यमाप्नुयात्।।तेनेष्टं सर्वयज्ञैश्च तपश्चकारि कृत्स्नश:। येन इष्टौ महादेवौ हनूमद्राघवेश्वरौ।।
अर्थात – भगवान शिव द्वारा प्रदत्त हनुमदीश्वर नामक शिवलिंग के दर्शन से मानव जीवन धन्य हो जाता है, जो मनुष्य हज़ार योजन दूर से भी यदि हनुमदीश्वर और श्रीरामनाथेश्वर-लिंग का स्मरण चिन्तन करता है, उसे शिवलोक की प्राप्ति होती है, इस शिवलिंग की महिमा का बखान करते हुए कहा गया है जिसने हनुमदीश्वर और श्रीरामेश्वर ज्योतिर्लिंग का दर्शन कर लिया, उसने सभी प्रकार के यज्ञ तथा तप के पुण्य प्राप्त कर लिया |
उसी समय से काले पाषाण से निर्मित हनुमदीश्वर महादेव रामेश्वरम तीर्थ का एक अभिन्न अंग बन गए। आज भी जो यात्री रामेश्वरम के दर्शन करने को जाते हैं वे पहले हनुमदीश्वर महादेव के दर्शन अवश्य करते हैं। जय हनुमदीश्वर महादेव।
हर हर महादेव
जय श्री राम
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