किस मनोकामना के लिए कौन से देवी-देवता को पूजना चाहिए?

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मनोकामना पूर्ति के लिए किस देवता की पूजा करे

हर व्यक्ति की अपनी-अपनी इच्छाएं और मनोकामनाएं होती हैं जिन्हे पूरा करने के लिए भगवान की भक्ति से बेहतर उपाय और कोई नहीं है। कहते हैं यदि सच्चे मन से भगवान की प्रार्थना और उपासना की जाए तो प्रभु सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। इसके अलावा यदि कोई व्यक्ति अपने जीवन की समस्याओं से छुटकारा पाना चाहता हो तो भी भगवान का पूजन श्रेष्ठ माना जाता है।

वैसे तो सभी भगवानों का पूजन मनोकामना पूर्ति के लिए अच्छा माना जाता है। लेकिन शास्त्रों में अलग-अलग मनोकामनाओं के लिए अलग-अलग देवी देवताओं के पूजन का विधान बताया गया है। जिसके बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं। इसलिए आज हम आपको किस मनोकामना के लिए कौन से देवी देवता का पूजन करना चाहिए इस बारे में बता रहे हैं। ताकि आप भी अपनी मनोकामना के अनुसार देवी देवता को प्रसन्न कर सकें और उनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकें।

मनोकामना के अनुसार कौन से देवी-देवता की पूजा करनी चाहिए?

शास्त्रों के अनुसार, प्रत्येक देवी-देवता को विशेष मनोकामना के लिए पूजना श्रेष्ठ होता है। इसलिए मनोकामना के अनुसार ही देवी-देवता का पूजन करना चाहिए। यहाँ उन्ही के बारे में विस्तार से बता रहे हैं।

विवाह से संबंधी मनोकामना

अगर विवाह में देरी, बार-बार विवाह में रुकावटें आना, वैवाहिक जीवन में समस्याएं, योग्य वर या वधु नहीं मिल पाना जैसी समस्याएं हो तो शिव-पार्वती, लक्ष्मी-नारायण, सीता-राम, राधा-कृष्ण और श्री गणेश भगवान का पूजा करनी चाहिए। इनके पूजन से विवाह संबंधी समस्याएं दूर होती हैं और विवाह शीघ्र होता है।

धन की मनोकामना

यदि कोई व्यक्ति धन से संबंधित कोई भी परेशानी झेल रहा है, कर्ज, दरिद्रता, आदि की समस्या है या कोई धन पाने की इच्छा रखते हैं को उसके लिए महालक्ष्मी, कुबेर देव और भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए। ये सभी धन से जुडी समस्यायों को दूर करने में मदद करते हैं।

हर कार्य में असफलता मिलने पर

बहुत से लोग होते हैं जिन्हे कई प्रयासों और बहुत मेहनत करने के बाद भी सफलता नहीं मिलती और अगर मिलती भी है तो वो उनकी मेहनत के अनुसार नहीं होती ऐसे में आपको किसी भी कार्य की शुरुवात से पूर्व श्री गणेश भगवान का पूजन करना चाहिए। इससे आपको हर कार्य में सफलता मिलेगी।

भूत-प्रेत से डर

भूत-प्रेत या भय के डर से मुक्ति पाने के लिए हनुमान जी का पूजन करना अच्छा होता है। कहते हैं, हनुमान जी के पूजन से मनुष्य के सभी डर दूर हो जाते हैं और वह निडर होता है। इनके पूजन से बल और बुद्धि भी मिलती है।

वैवाहिक जीवन में परेशानी 

अगर किसी दाम्पत्य का वैवाहिक जीवन अच्छा नहीं चल रहा है और पति पत्नी का रिश्ता तलाक तक पहुँच गया है, गृह कलेश बहुत ज्यादा होते हैं तो इस स्थिति में हनुमान जी की आराधना करनी चाहिए। कहते हैं श्री राम और माँ सीता का मिलन भी हनुमान जी ने ही कराया था। बजरंगबली के पूजन से वैवाहिक जीवन की सभी समस्याएं दूर होती हैं।

पढ़ाई में कमजोर के लिए 

अगर कोई बच्चा पढ़ाई में कमजोर है, बहुत मेहनत करने के बाद भी मार्क्स नहीं मिलते, खूब पढ़ने के बाद भी कुछ याद नहीं रहता तो इसके लिए माँ सरस्वती की आराधना करनी चाहिए। उन्हें बुद्धि और विद्या की देवी कहा जाता है। इनके पूजन से बुद्धि बढ़ती है। इसके अलावा बल, बुद्धि और विद्या के लिए हनुमान जी और श्री गणेश का पूजन करना भी शुभ फलदायी होता है।

परेशानी के अनुसार करें ग्रह का पूजन

गरीब व्यक्ति से परेशानी

यदि आपके जीवन में किसी गरीब व्यक्ति के कारण परेशानियां हो रही हैं और आप चाहकर भी उस परेशानी से निकल नहीं पा रहे हैं तो इसके लिए शनि देव, राहू और केतु का पूजन करना चाहिए और उनसे जुडी वस्तुओं का दान करना चाहिए। इसके अलावा शनि की वक्र दृष्टि से बचने के लिए भी शनि देव का पूजन करना लाभकारी होता है।

भूमि से संबंधित 

मकान, दूकान, भूमि, आदि से संबंधित हर प्रकार की परेशानी को दूर करने के लिए मंगल देव की आराधना करनी चाहिए। उन्हें भूमि का देव भी कहा जाता है इसलिए इनके पूजन से भूमि से जुड़ी परेशानियां दूर हो जाती हैं।

विवाह में देरी

विवाह में देरी या उससे संबंधित परेशानी होने पर बृहस्पति ग्रह का पूजन करना चाहिए। और उनसे संबंधित उपाय करने चाहिए। कहते हैं विवाह का करक बृहस्पति ग्रह होता है और विवाह संबंधी समस्यायों में उन्ही का पूजन करना चाहिए।

तो अब आप अच्छी तरह जान गए होंगे की किस मनोकामना के लिए किस देवी-देवता का पूजन करना चाहिए। यदि आप इस तरह से मनोकामना के अनुसार भगवान का पूजन करेंगे तो आप अपने जीवन की परेशानियों से मुक्ति पा सकेंगे।

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Samsung Elec says preorders for Galaxy S7 phones stronger

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Apple sets March 21 event, Wall Street sees new, smaller iPhone

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NASA plans to fix Mars spacecraft leak then launch in 2018

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Senators close to finishing encryption penalties

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YNAP sees slightly slower sales growth after strong 2015

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At Value-Focused Hotels, the Free Breakfast Gets Bigger

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Growing vegetables at home, six of the best

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Ice Cream Maker Free Chocolate

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6 Ways Drinking Warm Water Can Heal Your Body

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Cooking with kids – how to get them involved

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कीरो – जो हस्त रेखा शास्त्र के अलावा नक्षत्र शास्त्री, भविष्यवक्ता, अंक शास्त्री के महान ज्ञाता थे

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कीरो का जीवन परिचय – Biography of Cheiro

महान हस्त रेखा शास्त्री कीरो का पूरा नाम काउण्ट लुईस हेमन (Count Louis Hamon) था। ये पूरे संसार में ‘‘कीरो‘‘ उपनाम से प्रसिद्ध हुए। इनका जन्म सन् 1866 में नारमन के एक सम्पन्न परिवार में हुआ था। वे बाद में इंग्लैण्ड में जाकर बसे। आयु-पर्यन्त इंग्लैण्ड के वासी रहे। सन् 1936 में उनका निधन हुआ ।

हस्त रेखा शास्त्र के अलावा नक्षत्र शास्त्री, भविष्यवक्ता, अंक शास्त्री के रूप में भी उनका यश संसार के कोने-कोने में फैला। ज्योतिष विषय पर उनका अध्ययन इतना गहरा था कि अपने जीवन काल में उन्होंने जितनी प्रसिद्धि प्राप्त की, मृत्यु उपरांत साठ वर्ष से ऊपर का अरसा बीत जाने के बाद भी उनके लिखे ग्रंथ ज्योतिष विद्या में रूचि रखने वालों के लिए मील के पत्थर साबित हो रहे हैं। उनकी लिखी हस्त रेखा विषय पर पुस्तक जितनी प्रामाणिक मानी जाती है, उससे कम करके अंक शास्त्र, और नक्षत्र शास्त्र की विषयों पर लिखी पुस्तकों को नहीं माना जा सकता।

ईश्वर ने उन्हें अप्रतिम बुद्धि प्रदान करी थी

उनकी विश्व प्रसिद्ध भविष्यवाणिया उनके जीवन काल में जहा चर्चा का विषय बनती रहीं, वहीं उनकी मौत के बाद भी की गयी भविष्यवाणिया सत्य होकर लोगों को हैरत में डालती रहीं। ज्योतिष के विविध विषयों पर उन्होंने जिस तरह विषय को लेखन बद्ध किया, उसे देखकर विस्मय होता है कि एक व्यक्ति, इतने विषयों में पारंगत कैसे हो गया। इस सम्बन्ध में यही कहा जा सकता है कि स्वयं ईश्वर ने मानव मात्र के कल्याण हेतु उन्हें अप्रतिम बुद्धि प्रदान की थी ।

ज्योतिष ही नहीं इन विद्याओ के ज्ञाता भी थे

ज्योतिष और भविष्यवक्ता के रूप में प्रसिद्ध होने से पूर्व उन्हें एक अच्छा पत्रकार, प्राध्यापक, जनवक्ता और सम्पादक माना जाता रहा । अपनी इस प्रकृति जन्म प्रतिभा से उन्होंने इंग्लैण्ड और पैरिस में निवास के प्रारम्भिक दिनों में लोगों को परिचय कराया। बाद में जब वे ज्योतिष विषय के अध्ययन के लिए मैदान में उतरे तो फिर अन्य विषयों की और मुड़कर नहीं देखा। वे इसी विषय की गृढ़ता में उतरते चले गये। उन्हें आयु पर्यन्त और अधिक सीखने की लालसा और लगन रही। यही कारण है कि हस्त रेखा शास्त्री के रूप् में विख्यात् होने के बाद उसी पर बस न करके उन्होंनें नक्षत्र विद्या का पूर्ण अध्ययन किया तथा अंक शास्त्र पर महारत हासिल की।

कीरो ने इस बात की जानकारी दुनिया को दी कि हस्त रेखा, ज्योतिष शास्त्र और नक्षत्र शास्त्र के जन्मदाता भारतीय हिन्दू रहे हैं, जिनकी ज्ञानमयी सभ्यता और अनेकों प्राचीन ग्रंथ नष्ट हो गये हैं। इसके बाद भी वह ज्ञान और विद्या मौखिक रूप से भारत के कुछेक ज्ञानियों और पण्डितों के पास जीवित हैं ।

कीरो क भारत भ्रमण

भारत भूमि पर आकर कीरों ने जो कुछ महसूस किया, उसकी खोज में स्वयं लग गये। उन्हें भारत भ्रमण के दौरान यह ज्ञात हुआ कि आर्यो के समय में भी हस्त ज्योतिष और नक्षत्र विज्ञान की जानकारी भारतीयों को थी। उस समय के ज्ञान को प्रमाणित करने वाले कुछ ग्रंथों के अवशेषों के देखने का भी अवसर कीरोें को प्राप्त हुआ। कीरो ने इस बात को भी आगे चलकर जाना कि भारत की प्राचीन सभ्यता और उच्च ज्ञान के कुछ आंशिक प्रमाण अब भी बचे हुए हैं।

उन्हें उत्तर भारत के पश्चिमी भाग में जोशी जाति के कुछ विद्वानों के बारे में जानकारी मिली, जिनके पास नक्षत्र विज्ञान की प्रामाणिक जानकारीया पीढ़ी-दर -पीढ़ी सुरक्षित चली आ रही थीं। वे उनके बीच गये। उस ज्ञान को, उनके बीच रहकर सीखा-समझा, उसे पुस्तक रूप में उतार कर संसार के सामने पेश कर भारतीय ज्ञान को महिमा मण्डित किया ।

उन्हें जोशी घराने के बींच रहकर सीखने के दौरान एक ऐसा विलक्षण प्राचीन ग्रंथ देखने को मिला जो अपने आप में बड़ा अद्भुत था। उस ग्रंथ को उस घराने के लोग ही समझ सकते थे। वे उसे बहुमूल्य खजाने के रूप में अपने पास संजोए हुए थे। उस ग्रंथ के बारे में कीरो ने लिखा है –

” यह ग्रंथ आदमी की चमड़ी का बना हुआ था। इस ग्रंथ के पृष्ठों को अत्यंत सावधानी और निपुणता के साथ सम्भाला गया था। वह आकार में बहुत बड़ा था और इसमें सैंकड़ों विचित्र उदाहरण थे। इसमें यह लिखा था कि कब-कब उन चित्रों में दी हुई रेखाएं और चिन्ह प्रामाणिक सिद्व हुए थे। उस ग्रंथ में विचित्र बात यह थी कि वह किसी ऐसी लाल स्याही से लिखा गया था, जिसकी चमक और रंगत युगों के अन्तराल भी न मिटा पाये थे। लगता था ग्रन्थ अभी-अभी लिखा गया है। “

कीरो के मतानुसार हस्तरेखा और नक्षत्र विज्ञान भारत से ही दूसरे देशों में फैला। प्राचीन काल में चीन, तिब्बत और मिस़्त्र तक इस ज्ञान के फैलने का जिक्र मिलता है। बौद्व भिक्षुओं के माध्यम् से दो हजार वर्ष पूर्व यह विद्या भारत के पड़ौसी देशों में जहा-जहा बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार होता रहा, प्राचीन ग्रंथों के माध्यम से जाती रही । भारत के बाद, कीरो के मतानुसार यूनान में ईसा से 423 वर्ष पूर्व में विद्याएं मौजूद थीं।

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शुभ मुहूर्त 2019 – जानिए आने वाले नववर्ष में शुभ कार्यो के लिए शुभ मुहूर्त

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शुभ संयोग मुहूर्त 2019 – Shubh Muhurat 2019

हर काम को करने के लिए शुभ मुहूर्त पर विचार किया जाता है। और प्रत्येक मांगलिक कार्य के लिए अलग से शुभ मुहूर्त निकालें जाते हैं। कहा जाता है किसी भी काम को शुभ मुहूर्त में करने से उस काम में बरकत होती है और घर में खुशियां आती हैं।

लेकिन यह बात भी सभी जानते है की बिना शुभ मुहूर्त के कोई भी कार्य करना लाभकारी नहीं होता लेकिन कई बार किसी कारणवश मुहूर्त से पहले ही जरुरी कार्य करने पड़ जाते हैं। जबकि कई बार मुहूर्त निकलने के बाद पता चलता है की यह मुहूर्त पंचक में है या राहुकाल में पड़ रहा होता है। इस स्थिति में शुभ कार्य को करने के लिए दोबारा से मुहूर्त की गणना करना थोड़ा मुश्किल होता है, परन्तु हमारे शस्त्रों में इसका भी समाधान दिया गया है। और वो ही शुभ संयोग मुहूर्त।

शास्त्रों के अनुसार, अगर किसी काम को करने के लिए कोई मुहूर्त नहीं मिल रहा है। तो उस काम को करने के लिए शुभ संयोग मुहूर्त का प्रयोग किया जा सकता है। यह मुहूर्त हर काम को करने के लिए शुभ होता है। इस मुहूर्त में शुक्र अस्त, पंचक, भद्रा आदि पर विचार करने की भी आवश्यकता नहीं होती। यहाँ हम 2019 के लिए शुभ संयोग मुहूर्त दे रहे हैं।

शुभ मुहूर्त 2019 के लिए

गृह प्रवेश करना हो, मकान खरीदना हो, वाहन खरीदना हो, क्रय-विक्रय करना हो, मकान की रजिस्ट्री करनी हो, मकान की चाभी लेनी हो, मकान किराय पर देना हो, यात्रा में जाना हो, दुकान का उद्घाटन करना हो, ऑफिस का उद्घाटन करना हो, सगाई करनी हो, रोका करना हो या टीका करना हो, बच्चे का मुंडन कराना हो, एडमिशन करना हो इन सभी कार्यों को आप बेहिचक इस मुहूर्त में कर सकते है।

2019 शुभ मुहूर्त (शुभ संयोग मुहूर्त २०१९)

जनवरी 2019 शुभ मुहूर्त

तारीख वार कब से कब तक
2 जनवरी 2019 बुधवार 09:39 30:48
3 जनवरी 2019 गुरुवार 06:48 11:03
6 जनवरी 2019 रविवार 17:43 30:49
13 जनवरी 2019 रविवार 06:49 11:06
15 जनवरी 2019 मंगलवार 06:49 13:56
16 जनवरी 2019 बुधवार 14:12 30:49
20 जनवरी 2019 रविवार 29:22 30:48
21 जनवरी 2019 सोमवार 06:48 26:27
22 जनवरी 2019 मंगलवार 06:48 23:32
30 जनवरी 2019 बुधवार 06:46 16:40

फरवरी 2019 शुभ मुहूर्त

तारीख वार कब से कब तक
3 फरवरी 2019 रविवार 06:44 26:55
4 फरवरी 2019 सोमवार 06:43 30:01
10 फरवरी 2019 रविवार 19:37 30:39
12 फरवरी 2019 मंगलवार 22:11 30:38
13 फरवरी 2019 बुधवार 06:38 30:37
17 फरवरी 2019 रविवार 16:46 30:34
18 फरवरी 2019 सोमवार 06:34 14:02
19 फरवरी 2019 मंगलवार 06:34 11:03
23 फरवरी 2019 शनिवार 22:47 30:29
25 फरवरी 2019 सोमवार 22:08 30:28

मार्च 2019 शुभ मुहूर्त

तारीख

वार कब से

कब तक

4 मार्च 2019 सोमवार 06:22 12:10
8 मार्च 2019 शुक्रवार 23:16 30:17
10 मार्च 2019 रविवार 06:16 26:57
12 मार्च 2019 मंगलवार 06:14 28:53
13 मार्च 2019 बुधवार 06:13 30:12
15 मार्च 2019 शुक्रवार 27:44 30:10
17 मार्च 2019 रविवार 06:09 24:11
23 मार्च 2019 शनिवार 09:05 30:02
25 मार्च 2019 सोमवार 07:03 30:00
30 मार्च 2019 शनिवार 15:38 29:55

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शरद पूर्णिमा व्रत कथा व पूजा – श्री कृष्ण द्वारा गोपियो महारास रचाने से जुड़ी कथा

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शरद पूर्णिमा 2018 – शरद पूर्णिमा व्रत कथा व पूजा विधि

आश्विन मास की पूर्णिमाको मनाया जाने वाला त्यौहार शरद पूर्णिमा कीकथा कुछ इस प्रकार से है- पूर्णिमा तिथि हिंदू धर्म में एक खास स्थान रखती है। प्रत्येक मास की पूर्णिमा का अपना अलग महत्व होता है। लेकिन कुछ पूर्णिमा बहुत ही श्रेष्ठ मानी जाती हैं। अश्विन माह की पूर्णिमा उन्हीं में से एक है बल्कि इसे सर्वोत्तम कहा जाता है। अश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। इस पूर्णिमा पर रात्रि में जागरण करने व रात भर चांदनी रात में रखी खीर को सुबह भोग लगाने का विशेष रूप से महत्व है। इसलिये इसे कोजागर पूर्णिमा भी कहते हैं। आइये जानते हैं शरद पूर्णिमा का महत्व व व्रत पूजा विधि के बारे में।

शरद पूर्णिमा का महत्व

शरद पूर्णिमा इसलिये इसे कहा जाता है क्योंकि इस समय सुबह और सांय और रात्रि में सर्दी का अहसास होने लगता है। चौमासे यानि भगवान विष्णु जिसमें सो रहे होते हैं वह समय अपने अंतिम चरण में होता है। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा का चांद अपनी सभी 16 कलाओं से संपूर्ण होकर अपनी किरणों से रात भर अमृत की वर्षा करता है। जो कोई इस रात्रि को खुले आसमान में खीर बनाकर रखता है व प्रात:काल उसका सेवन करता है उसके लिये खीर अमृत के समान होती है।

मान्यता तो यह भी है कि चांदनी में रखी यह खीर औषधी का काम भी करती है और कई रोगों को ठीक कर सकती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार शरद पूर्णिमा इसलिये भी महत्व रखती है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों के साथ महारास रचा था। इसलिये शरद व जागर के साथ-साथ इसे रास पूर्णिमा भी कहा जाता है। लक्ष्मी की कृपा से भी शरद पूर्णिमा जुड़ी है मान्यता है कि माता लक्ष्मी इस रात्रि भ्रमण पर होती हैं और जो उन्हें जागरण करते हुए मिलता है उस पर अपनी कृपा बरसाती हैं।

शरद पूर्णिमा व्रत की कथा

शरद पूर्णिमा की पौराणिक कथा भगवान श्री कृष्ण द्वारा गोपियों संग महारास रचाने से तो जुड़ी ही है लेकिन इसके महत्व को बताती एक अन्य कथा भी मिलती है जो इस प्रकार है। मान्यतानुसार बहुत समय पहले एक नगर में एक साहुकार रहता था। उसकी दो पुत्रियां थी। दोनों पुत्री पूर्णिमा को उपवास रखती लेकिन छोटी पुत्री हमेशा उस उपवास को अधूरा रखती और दूसरी हमेशा पूरी लगन और श्रद्धा के साथ पूरे व्रत का पालन करती।

समयोपरांत दोनों का विवाह हुआ। विवाह के पश्चात बड़ी जो कि पूरी आस्था से उपवास रखती ने बहुत ही सुंदर और स्वस्थ संतान को जन्म दिया जबकि छोटी पुत्री के संतान की बात या तो सिरे नहीं चढ़ती या फिर संतान जन्मी तो वह जीवित नहीं रहती। वह काफी परेशान रहने लगी। उसके साथ-साथ उसके पति भी परेशान रहते। उन्होंने ब्राह्मणों को बुलाकर उसकी कुंडली दिखाई और जानना चाहा कि आखिर उसके साथ ऐसा क्यों हो रहा है। विद्वान पंडितों ने बताया कि इसने पूर्णिमा के अधूरे व्रत किये हैं इसलिये इसके साथ ऐसा हो रहा है। तब ब्राह्मणों ने उसे व्रत की विधि बताई व अश्विन मास की पूर्णिमा का उपवास रखने का सुझाव दिया।

इस बार उसने विधिपूर्वक व्रत रखा लेकिन इस बार संतान जन्म के पश्चात कुछ दिनों तक ही जीवित रही। उसने मृत शीशु को पीढ़े पर लिटाकर उस पर कपड़ा रख दिया और अपनी बहन को बुला लाई बैठने के लिये उसने वही पीढ़ा उसे दे दिया। बड़ी बहन पीढ़े पर बैठने ही वाली थी उसके कपड़े के छूते ही बच्चे के रोने की आवाज़ आने लगी। उसकी बड़ी बहन को बहुत आश्चर्य हुआ और कहा कि तू अपनी ही संतान को मारने का दोष मुझ पर लगाना चाहती थी। अगर इसे कुछ हो जाता तो। तब छोटी ने कहा कि यह तो पहले से मरा हुआ था आपके प्रताप से ही यह जीवित हुआ है। बस फिर क्या था। पूर्णिमा व्रत की शक्ति का महत्व पूरे नगर में फैल गया और नगर में विधि विधान से हर कोई यह उपवास रखे इसकी राजकीय घोषणा करवाई गई।

पूर्णिमा व्रत व पूजा विधि

पूर्णिमा ही नहीं किसी भी उपवास या पूजा का लिये सबसे पहले तो आपकी श्रद्धा का होना अति आवश्यक है। सच्चे मन से पूर्णिमा के दिन स्नानादि के पश्चात तांबे अथवा मिट्टी के कलश की स्थापना कर उसे वस्त्र से ढ़कें। तत्पश्चात इस पर माता लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें। यदि आप समर्थ हैं तो स्वर्णमयी प्रतिमा भी रख सकते हैं। सांयकाल में चंद्रोदय के समय सामर्थ्य अनुसार ही सोने, चांदी या मिट्टी से बने घी के दिये जलायें।

100 दिये जलायें तो बहुत ही उपयुक्त होगा। प्रसाद के लिये घी युक्त खीर बना लें। चांद की चांदनी में इसे रखें। लगभग तीन घंटे के पश्चात माता लक्ष्मी को यह खीर अर्पित करें। सर्वप्रथम किसी योग्य ब्राह्मण या फिर किसी जरुरतमंद अथवा घर के बड़े बुजूर्ग को यह खीर प्रसाद रूप में भोजन करायें। भगवान का भजन कीर्तन करते हुए रात्रि जागरण करें। सूर्योदय के समय माता लक्ष्मी की प्रतिमा विद्वान ब्राह्मण को अर्पित करें।

2018 में शरद पूर्णिमा

शरद पूर्णिमा या कहें कोजागर व्रत अश्विन माह की पूर्णिमा को रखा जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष यह तिथि 23-24 अक्तूबर को है।

शरद पूर्णिमा23-24 अक्तूबर 2018

चंद्रोदय – 17:14 बजे (23 अक्तूबर 2018)

चंद्रोदय – 17:49 बजे (24 अक्तूबर 2018)

पूर्णिमा तिथि आरंभ – 22:36 बजे (23 अक्तूबर 2018)

पूर्णिमा तिथि समाप्त – 22:14 बजे (24 अक्तूबर 2018)

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नीव भराई से गृह निर्माण तक का सम्पूर्ण वास्तु ज्ञान और उपाय

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नीव भराई से गृह निर्माण तक का सम्पूर्ण वास्तु ज्ञान और उपाय

हिन्दू रीती-रिवाजों और शास्त्रों के अनुसार, हर काम वास्तु, दिशा और मुहूर्त विचार के बाद ही करना चाहिए। गृह निर्माण, नींव पूजन, नींव भराई का काम शुरू करने से पहले देवों का आह्वान, हवन और शुभ मुहूर्त पर विचार कर लेना चाहिए। कहा जाता है यदि शुभ मुहूर्त में गृहारंभ से जुड़ा कोई भी कार्य किया जाए तो मकान जल्द ही बनकर तैयार हो जाता है।

वास्तु पूजन है जरुरी

इसके अलावा निर्माण कार्य से पूर्व वास्तु पूजन कराना भी आवश्यक होता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार, भवन निर्माण के किसी भी कार्य में वास्तु का बहुत अधिक महत्व होता है। यदि गृहारंभ के हर कार्य में वास्तु के नियमों का पालन किया जाए तो घर में सुख समृद्धि आती है और साथ-साथ वह घर परिवारजनों के जीवन में खुशियां लाता हैं।

नींव पूजन में नाग के जोड़े का महत्व

भूमि पूजन करते समय भी खास बातों का ध्यान रखा जाता। शास्त्रों के अनुसार, जमीन (धरती लोक) के नीचे पाताल लोक है, और पाताल लोक के स्वामी शेषनाग हैं। श्रीमद्भागवत महापुराण के पांचवें स्कंद के अनुसार पृथ्वी लोक के नीचे पाताल लोक है और उसके स्वामी शेषनाग है इसलिए किसी भी जमीन पर नींव पूजन या भूमि पूजन करते समय चांदी के नाग का जोड़ा नींव में रखा जाता है।

नींव रखने से पूर्व इन बातों का ध्यान रखें

भूमि पूजन, नींव खुदाई, कुआँ खुदाई, घर बनाना और गृह प्रवेश के समय वास्तु देव की पूजा करना आवश्यक होता है। पूजा के लिए शुभ दिन शुभ मुहूर्त या रवि पुष्य योग होना चाहिए। तभी पूजा करवाएं।

नींव खोदने के लिए दिशा-विचार

तालाब, मंदिर, कुआं या गृह निर्माण करते समय नींव खोदने के लिए दिशा विचार करना बहुत आवश्यक होता है।

मंदिर के लिए दिशा-विचार

मंदिर की नींव खुदवाते समय मीन, मेष, और वृष का सूर्य हो तो राहु का मुख ईशानकोण में; मिथुन, कर्क और सिंह में सूर्य हो तो राहु का मुख वायव्य-कोण में; कन्या, तुला और वृश्चिक में सूर्य हो तो नैऋत्य-कोण में एवं धनु, मकर और कुंभ में सूर्य हो तो आग्नेय-कोण में राहु का मुख रहता है।

घर बनवाने के लिए दिशा-विचार

घर बनवाना हो तो सिंह, कन्या और तुला के सूर्य में राहु का मुख ईशान-कोण में; वृश्चिक, धनु और मकर के सूर्य में राहु का मुख वायव्य-कोण में; कुंभ, मीन और मेष राशि के सूर्य में राहु का मुख नैऋत्य-कोण में एवं वृष, मिथुन और कर्क राशि के सूर्य में राहु का मुख आग्नेय कोण में रहता है।

जलाशय, कुआं, तालाब के लिए दिशा-विचार

जलाशय, कुआं, तालाब के लिए नींव खुदवाते समय मकर, कुंभ और मीन राशि के सूर्य में राहु का मुख ईशान-कोण में; मेष, वृष और मिथुन के सूर्य में राहु का मुख वायव्य-कोण में; कर्क, सिंह और कन्या के सूर्य में राहु का मुख नैऋत्य-कोण में एवं तुला, वृश्चिक और धनु राशि के सूर्य में राहु का मुख आग्नेय-कोण में रहता है। जलाशय की नींव खोदते समय मुख का भाग छोड़कर पृष्ठ भाग से खोदना शुभ होता है।

नींव की खुदाई

पूजन करने के बाद नींव की खुदाई हमेशा ईशान कोण में ही शुरू करनी चाहिए। ईशान कोण के बाद आग्नेय-कोण की खुदाई करनी चाहिए। आग्नेय-कोण के पश्चात् वायव्य-कोण की और उसके पश्चात् नैऋत्य-कोण की खुदाई करना शुभ होता है। विभिन्न कोणों की खुदाई करने के बाद दिशा की खुदाई करनी चाहिए। इसके लिए सबसे पहले पूर्व, फिर उत्तर, फिर पश्चिम और अंत में दक्षिण दिशा की खुदाई करनी चाहिए।

नींव की भराई

नींव की भराई, नींव की खुदाई की विपरीत दिशा में करनी चाहिए। इसके लिए सबसे पहले नैऋत्य-कोण की भराई करें, फिर वायव्य, आग्नेय और ईशान-कोण की भराई करें। दिशा के अनुसार सबसे पहले दक्षिण दिशा में भराई करें। फिर पश्चिम ,उत्तर व पूर्व में भराई करें।

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108 उपनिषद के नाम और 11 मुख्य उपनिषद

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108 उपनिषद के नाम – 11 मुख्य उपनिषद

हिन्दू धर्म के अनुसार कुल मिलाकर 108 उपनिषद् वर्णित है, यह सारे उपनिषद वास्तविक रूप से हिन्दू धर्म की दार्शनिक अवधारणा एवं विचारो का अद्भुत संग्रह है, जो अत्यंत प्राचीन एवं महत्त्वपूर्ण श्रुति धर्मग्रन्थ है | इन उपनिषदों में बौद्ध धर्म, जैन धर्म एवं सिख धर्म के बारे में भी सरलता से व्याख्यान किया गया है | इस ग्रन्थ में आप परमेश्वर, परमात्मा-ब्रह्म एवं आत्मा के स्वभाव और सम्बन्ध का समावेश सहज ही महसूस कर सकते है, तो आइये जानते है 108 उपनिषद के नाम –

सभी उपनिषद निम्न वेदों में बाटे गए है –

  • ऋग्वेद में कुल 10 उपनिषद
  • शुक्लपक्ष यजुर्वेद में कुल 19 हैं
  • कृष्णपक्ष यजुर्वेद में कुल 32 उपनिषद
  • सामवेद में कुल 16 हैं
  • अथर्ववेद में कुल 31 उपनिषद बटे हुए है |

108 उपनिषद

१. ईश = शुक्ल यजुर्वेद, मुख्य उपनिषद्
२. केन उपनिषद् = साम वेद, मुख्य उपनिषद्
३. कठ उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, मुख्य उपनिषद्
४. प्रश्न उपनिषद् = अथर्व वेद, मुख्य उपनिषद्
५. मुण्डक उपनिषद् = अथर्व वेद, मुख्य उपनिषद्
६. माण्डुक्य उपनिषद् = अथर्व वेद, मुख्य उपनिषद्
७. तैत्तिरीय उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, मुख्य उपनिषद्
८. ऐतरेय उपनिषद् = ऋग् वेद, मुख्य उपनिषद्
९. छान्दोग्य उपनिषद् = साम वेद, मुख्य उपनिषद्
१०. बृहदारण्यक उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, मुख्य उपनिषद्
११. ब्रह्म उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, संन्यास उपनिषद्
१२. कैवल्य उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, शैव उपनिषद्
१३. जाबाल उपनिषद् (यजुर्वेद) = शुक्ल यजुर्वेद, संन्यास उपनिषद्
१४. श्वेताश्वतर उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्
१५. हंस उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, योग उपनिषद्
१६. आरुणेय उपनिषद् = साम वेद, संन्यास उपनिषद्
१७. गर्भ उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्
१८. नारायण उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, वैष्णव उपनिषद्
१९. परमहंस उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, संन्यास उपनिषद्
२०. अमृत-बिन्दु उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, योग उपनिषद्
२१. अमृत-नाद उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, योग उपनिषद्
२२. अथर्व-शिर उपनिषद् = अथर्व वेद, शैव उपनिषद्
२३. अथर्व-शिख उपनिषद् =अथर्व वेद, शैव उपनिषद्
२४. मैत्रायणि उपनिषद् = साम वेद, सामान्य उपनिषद्
२५. कौषीतकि उपनिषद् = ऋग् वेद, सामान्य उपनिषद्
२६. बृहज्जाबाल उपनिषद् = अथर्व वेद, शैव उपनिषद्
२७. नृसिंहतापनी उपनिषद् = अथर्व वेद, वैष्णव उपनिषद्
२८. कालाग्निरुद्र उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, शैव उपनिषद्
२९. मैत्रेयि उपनिषद् = साम वेद, संन्यास उपनिषद्
३०. सुबाल उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्
३१. क्षुरिक उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, योग उपनिषद्
३२. मान्त्रिक उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्
३३. सर्व-सार उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्
३४. निरालम्ब उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्
३५. शुक-रहस्य उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्
३६. वज्रसूचि उपनिषद् = साम वेद, सामान्य उपनिषद्
३७. तेजो-बिन्दु उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, संन्यास उपनिषद्
३८. नाद-बिन्दु उपनिषद् = ऋग् वेद, योग उपनिषद्
३९. ध्यानबिन्दु उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, योग उपनिषद्
४०. ब्रह्मविद्या उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, योग उपनिषद्
४१. योगतत्त्व उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, योग उपनिषद्
४२. आत्मबोध उपनिषद् = ऋग् वेद, सामान्य उपनिषद्
४३. परिव्रात् उपनिषद् (नारदपरिव्राजक) = अथर्व वेद, संन्यास उपनिषद्
४४. त्रिषिखि उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, योग उपनिषद्
४५. सीता उपनिषद् = अथर्व वेद, शाक्त उपनिषद्
४६. योगचूडामणि उपनिषद् = साम वेद, योग उपनिषद्
४७. निर्वाण उपनिषद् = ऋग् वेद, संन्यास उपनिषद्
४८. मण्डलब्राह्मण उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, योग उपनिषद्
४९. दक्षिणामूर्ति उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, शैव उपनिषद्
५०. शरभ उपनिषद् = अथर्व वेद, शैव उपनिषद्
५१. स्कन्द उपनिषद् (त्रिपाड्विभूटि) = कृष्ण यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्
५२. महानारायण उपनिषद् = अथर्व वेद, वैष्णव उपनिषद्
५३. अद्वयतारक उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, संन्यास उपनिषद्
५४. रामरहस्य उपनिषद् = अथर्व वेद, वैष्णव उपनिषद्
५५. रामतापणि उपनिषद् = अथर्व वेद, वैष्णव उपनिषद्
५६. वासुदेव उपनिषद् = साम वेद, वैष्णव उपनिषद्
५७. मुद्गल उपनिषद् = ऋग् वेद, सामान्य उपनिषद्
५८. शाण्डिल्य उपनिषद् = अथर्व वेद, योग उपनिषद्
५९. पैंगल उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्
६०. भिक्षुक उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, संन्यास उपनिषद्
६१. महत् उपनिषद् = साम वेद, सामान्य उपनिषद्
६२. शारीरक उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्
६३. योगशिखा उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, योग उपनिषद्
६४. तुरीयातीत उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, संन्यास उपनिषद्
६५. संन्यास उपनिषद् = साम वेद, संन्यास उपनिषद्
६६. परमहंस-परिव्राजक उपनिषद् = अथर्व वेद, संन्यास उपनिषद्
६७. अक्षमालिक उपनिषद् = ऋग् वेद, शैव उपनिषद्
६८. अव्यक्त उपनिषद् = साम वेद, वैष्णव उपनिषद्
६९. एकाक्षर उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्
७०. अन्नपूर्ण उपनिषद् = अथर्व वेद, शाक्त उपनिषद्
७१. सूर्य उपनिषद् = अथर्व वेद, सामान्य उपनिषद्
७२. अक्षि उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्
७३. अध्यात्मा उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्
७४. कुण्डिक उपनिषद् = साम वेद, संन्यास उपनिषद्
७५. सावित्रि उपनिषद् = साम वेद, सामान्य उपनिषद्
७६. आत्मा उपनिषद् = अथर्व वेद, सामान्य उपनिषद्
७७. पाशुपत उपनिषद् = अथर्व वेद, योग उपनिषद्
७८. परब्रह्म उपनिषद् = अथर्व वेद, संन्यास उपनिषद्
७९. अवधूत उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, संन्यास उपनिषद्
८०. त्रिपुरातपनि उपनिषद् = अथर्व वेद, शाक्त उपनिषद्
८१. देवि उपनिषद् = अथर्व वेद, शाक्त उपनिषद्
८२. त्रिपुर उपनिषद् = ऋग् वेद, शाक्त उपनिषद्
८३. कठरुद्र उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, संन्यास उपनिषद्
८४. भावन उपनिषद् = अथर्व वेद, शाक्त उपनिषद्
८५. रुद्र-हृदय उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, शैव उपनिषद्
८६. योग-कुण्डलिनि उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, योग उपनिषद्
८७. भस्म उपनिषद् = अथर्व वेद, शैव उपनिषद्
८८. रुद्राक्ष उपनिषद् = साम वेद, शैव उपनिषद्
८९. गणपति उपनिषद् = अथर्व वेद, शैव उपनिषद्
९०. दर्शन उपनिषद् = साम वेद, योग उपनिषद्
९१. तारसार उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, वैष्णव उपनिषद्
९२. महावाक्य उपनिषद् = अथर्व वेद, योग उपनिषद्
९३. पञ्च-ब्रह्म उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, शैव उपनिषद्
९४. प्राणाग्नि-होत्र उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्
९५. गोपाल-तपणि उपनिषद् = अथर्व वेद, वैष्णव उपनिषद्
९६. कृष्ण उपनिषद् = अथर्व वेद, वैष्णव उपनिषद्
९७. याज्ञवल्क्य उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, संन्यास उपनिषद्
९८. वराह उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, संन्यास उपनिषद्
९९. शात्यायनि उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, संन्यास उपनिषद्
१००. हयग्रीव उपनिषद् (१००) = अथर्व वेद, वैष्णव उपनिषद्
१०१. दत्तात्रेय उपनिषद् = अथर्व वेद, वैष्णव उपनिषद्
१०२. गारुड उपनिषद् = अथर्व वेद, वैष्णव उपनिषद्
१०३. कलि-सन्तारण उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, वैष्णव उपनिषद्
१०४. जाबाल उपनिषद् (सामवेद) = साम वेद, शैव उपनिषद्
१०५. सौभाग्य उपनिषद् = ऋग् वेद, शाक्त उपनिषद्
१०६. सरस्वती-रहस्य उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, शाक्त उपनिषद्
१०७. बह्वृच उपनिषद् = ऋग् वेद, शाक्त उपनिषद्
१०८. मुक्तिक उपनिषद् (१०८) = शुक्ल यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद

हिन्दू धर्मानुसार 108 उपनिषदों में से 11 उपनिषद ही मुख्य माने जाते हैं, जिनके नाम इस प्रकार हैं

11 मुख्य उपनिषद

1. ईशावास्योपनिषद्
2. केनोपनिषद्
3. कठोपनिषद्
4. प्रश्नोपनिषद्
5. मुण्डकोपनिषद्
6. माण्डूक्योपनिषद्
7. ऐतरेयोपनिषद्
8. तैत्तरीयोपनिषद्
9. श्वेताश्वतरोपनिषद्
10. बृहदारण्यकोपनिषद्
11. छान्दोग्योपनिषद्

आदि शंकराचार्य ने इनमें से 10 उपनिषदों पर टीका लिखी थी। इनमें मांडूक्योपनिषद सबसे छोटा है (12 श्लोक) औऱ छांदोग्य सबसे बड़ा। इनमे इशावास्योपनिषद सबसे पुराना है क्योंकि यह यजुर्वेद का ही अंतिम अध्याय है।

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जानिए भगवान राम की बड़ी बहन का रहस्य, क्यों नहीं है रामायण में उनका उल्लेख ?

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भगवान राम की बड़ी बहन का रहस्य

महर्षि वाल्मीकि ने संस्कृत महाकाव्य रामायण की रचना की थी, जिसमें उन्होंने प्रभु श्री राम के जीवनकाल एवं उनके पराक्रम का वर्णन किया है। रामायण हिंदू धर्म के लोगों का एक बहुत ही महत्वपूर्ण ग्रन्थ है जिसकी कथा हम सभी ने कई बार सुनी, देखी या पढ़ी होगी। इसमें श्री राम के तीनों भाइयों लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के बारे में बताया गया है। राम के वनवास और सीता जी के हरण से लेकर रावण के वध, राम की अयोध्या वापसी और माता सीता का त्याग वर्णित है। लेकिन इसमें कई ऐसे रोचक और भिन्न क़िस्से भी हैं जिनसे शायद आप परिचित नहीं हैं। ऐसी ही एक कथा है भगवान श्री राम की बहन से संबंधित। आइए, देखते हैं कि कौन थीं भगवान राम की बहन और क्या है उनकी कहानी।

मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के माता-पिता, उनके भाइयों एवं उनकी पत्नी के बारे में तो सभी जानते हैं, लेकिन क्या आप यह जानते हैं की उनकी एक बहन भी थी, जिसका नाम शांता था। जैसा कि हम सब जानते हैं कि अयोध्या के राजा दशरथ की तीन रानियाँ थीं–रानी कौशल्या, रानी सुमित्रा और रानी कैकेयी। राम कौशल्या के पुत्र थे, सुमित्रा के दो पुत्र–लक्ष्मण और शत्रुघ्न–थे और कैकेयी के पुत्र भरत थे। लेकिन कौशल्या ने एक पुत्री को भी जन्म दिया था जो इन सब भाइयों में सबसे बड़ी थी और उसका नाम शांता रखा गया था। रामायण के अनुसार शांता वेद, कला तथा शिल्प में पारंगत थीं और अत्यधिक सुंदर कन्या थीं।

क्यों नहीं मिलता शांता का अधिक उल्लेख

एक बार रानी कौशल्या की बहन रानी वर्षिणी और उनके पति रोमपद, जो अंगदेश के राजा थे, अयोध्या आए। रोमपद और वर्षिणी की कोई संतान नहीं थी, इसलिए वो हमेशा दुःखी रहते थे। बातों-बातों में वर्षिणी ने कौशल्या और राजा दशरथ से कहा कि काश उनके पास भी शान्ता जैसी एक सुशील और गुणवती पुत्री होती। राजा दशरथ से उनकी पीड़ा देखी नहीं गयी और उन्होंने अपनी पुत्री शांता को उन्हें गोद देने का वचन दे दिया। शांता को पुत्री के रूप में पाकर रोमपद और वर्षिणी प्रसन्न हो गये और राजा दशरथ का आभार व्यक्त किया।

शांता का पालन-पोषण उन्होंने बहुत स्नेह से किया और माता-पिता के सभी कर्तव्य निभाए। इस प्रकार शांता अंगदेश की राजकुमारी बन गईं।

किससे और कैसे हुआ था शांता का विवाह

राजा रोमपद को अपनी पुत्री से बहुत लगाव था। एक बार एक ब्राह्मण उनके द्वार पर आया। किन्तु वे शांता से वार्तालाप में इतने व्यस्त थे कि उन्होंने ब्राह्मण की तरफ़ ध्यान ही नहीं दिया और उसे खाली हाथ ही लौटना पड़ा। ब्राह्मण इंद्र देव का भक्त था, इसलिए भक्त के अनादर से वे क्रोधित हो उठे और वरुण देव को आदेश दिया कि अंगदेश में वर्षा न हो। इन्द्रदेव की आज्ञा के अनुसार वरुण देव ने ठीक वैसा ही किया। वर्षा न होने के कारण अगंदेश में सूखा पड़ गया और चारों तरफ़ हाहाकार मच गया। इस समस्या का समाधान पाने के लिए राजा रोमपद ऋषि ऋंग के पास गए। ऋषि ऋंग ने उन्हें वर्षा के लिए एक यज्ञ का आयोजन करने को कहा।

ऋषि के निर्देशानुसार रोमपद ने पूरे विधि-विधान के साथ यज्ञ किया, जिसके फलस्वरूप अंगदेश में वर्षा होने लगी। तब ऋषि ऋंग से प्रसन्न होकर अंगराज ने अपनी पुत्री शांता का विवाह उनसे कर दिया। पुराणों के अनुसार ऋषि ऋंग विभंडक ऋषि के पुत्र थे।

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विवाह मुहूर्त 2019 शादी 2019 शुभ दिन शादी के लिए 2019 में

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विवाह मुहूर्त 2019 – Hindu Marriage Date in 2019 

Vivah Muhurat 2019- शादी के लिए शुभ मुहूर्त 2019, विवाह के लिए शुभ लग्न, विवाह शुभ मुहूर्त नक्षत्र और तिथि, शादी शादी की तारीख 2019, लग्न तारीख मुहूर्त महीने के हिसाब से, शुभ दिन विवाह मुहूर्त 2019 …


विवाह लग्न मुहूर्त 2019 

शादी से जुड़े प्रत्येक कार्य को शुभ मुहूर्त और सही समय में किया जाता है। हिन्दू धर्म के अनुसार शुभ विवाह की तिथि वर-वधु की जन्मराशी के आधार पर निकाली जाती है। लड़के और लड़की की कुंडली मिलान करने के बाद जो तारीख तय की जाती है वह शादी का शुभ मुहूर्त कहलाती है। विवाह में जितना अधिक महत्व उससे जुड़े कार्यों का होता है उतना ही महत्व शादी के शुभ मुहूर्त का होता है।

यहाँ हम आपको वर्ष 2019 में जनवरी, फरवरी, मार्च, अप्रैल, मई, जून, जुलाई, नवंबर और दिसंबर माह में विवाह के शुभ मुहूर्त, तारीख, नक्षत्र, तिथि और समय बता रहे है।

विवाह मुहूर्त चक्र : Vivah Muhurat Calculator

नक्षत्र

मूल, अनुराधा, मृगशिरा, रेवती, हस्त, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़, उत्तराभाद्रपद, स्वाति, मघा, रोहिणी

माह

ज्येष्ठ, माघ, फाल्गुन, वैशाख, मार्गशीर्ष, आषाढ़

गृह विचार

विवाह में कन्या के लिए गुरुबल, वर के लिए सूर्यबल और दोनों के लिए चंद्रबल का विचार किया जाता है।

गुरुबल विचार

बृहस्पति कन्या की राशि से नवम, पंचम, एकादश, द्वितीया और सप्तम राशि में शुभ होता है। दशम, तृतीय, षष्ठ और प्रथम राशि में दान देने से शुभ और चतुर्थ, अष्टम, द्वादश राशि में अशुभ होता है।

सूर्यबल विचार

सूर्य वर की राशि से तृतीय, षष्ठ, दशम, एकादश राशि में शुभ होता है। प्रथम, द्वितीय, पंचम, सप्तम और नवम राशि में दान देने से शुभ और चतुर्थ, अष्टम, द्वादश राशि में अशुभ होता है।

चंद्रबल विचार

चंद्रमा, वर और कन्या की राशि में तीसरा, छठा, सातवां, दसवां, ग्यारहवां शुभ होता है। पहला, दूसरा, पांचवां, नौवां, दान देने से शुभ और चौथा, आठवां, बारहवां अशुभ होता है।

शुभ लग्न

तुला, मिथुन, कन्या, वृष और धनु लग्न शुभ है। अन्य मध्यम होते हैं।

लग्न शुद्धि

लग्न से बारहवें शनि, दसवें मंगल, तीसरे शुक्र, लग्न में चंद्रमा और क्रूर ग्रह अच्छे नहीं होते। लग्नेश, शुक्र, चंद्रमा, छठे और आठवें में शुभ नहीं होते। लग्नेश और सौम्य ग्रह आठवें में अच्छे नहीं होते और सातवें में कोई भी ग्रह शुभ नहीं होता है।

शुभ विवाह मुहूर्त 2019 – शादी 2019, विवाह मुहूर्त

जनवरी 2019 विवाह मुहूर्त

विवाह की शुभ तिथि शुभ विवाह का समय विवाह का नक्षत्र विवाह की तिथि
17 जनवरी 2019 (गुरुवार) 22:34 से 31:18+ रोहिणी द्वादशी
18 जनवरी 2019 (शुक्रवार) 07:18 से 22:10 रोहिणी, मृगशिरा द्वादशी, त्रयोदशी
23 जनवरी 2019 (बुधवार) 07:17 से 13:40 मघा तृतीया
25 जनवरी 2019 (शुक्रवार) 14:48 से 31:16+ उत्तरा फाल्गुनी, हस्त पंचमी, षष्ठी
26 जनवरी 2019 (शनिवार) 07:16 से 15:05 हस्त षष्ठी
29 जनवरी 2019 (मंगलवार) 15:15 से 27:02+ अनुराधा दशमी

फरवरी 2019 विवाह मुहूर्त

विवाह की शुभ तिथि शुभ विवाह का समय विवाह का नक्षत्र विवाह की तिथि
1 फरवरी 2019 (शुक्रवार) 07:13 से 21:08 मूल द्वादशी, त्रयोदशी
8 फरवरी 2019 (शुक्रवार) 14:59 से 23:24 उत्तरा भाद्रपद चतुर्थी
9 फरवरी 2019 (शनिवार) 12:25 से 31:07+ उत्तरा भाद्रपद, रेवती पंचमी
10 फरवरी 2019 (रविवार) 07:07 से 13:06 रेवती पंचमी
15 फरवरी 2019 (शुक्रवार) 07:03 से 20:53 मृगशिरा दशमी, एकादशी
21 फरवरी 2019 (गुरुवार) 06:58 से 23:12 उत्तरा फाल्गुनी द्वितीया, तृतीया
23 फरवरी 2019 (शनिवार) 22:47 से 30:55+ स्वाती पंचमी
24 फरवरी 2019 (रविवार) 06:55 से 22:03 स्वाती षष्ठी
26 फरवरी 2019 (मंगलवार) 10:47 से 23:04 अनुराधा अष्टमी
28 फरवरी 2019 (गुरुवार) 07:21 से 19:35 मूल दशमी

 मार्च 2019 विवाह मुहूर्त

विवाह की शुभ तिथि शुभ विवाह का समय विवाह का नक्षत्र विवाह की तिथि
2 मार्च 2019 (शनिवार) 11:32 से 30:48+ उत्तरा आषाढ़ द्वादशी
7 मार्च 2019 (गुरुवार) 20:54 से 30:43+ उत्तरा भाद्रपद प्रतिपदा, द्वितीया
8 मार्च 2019 (शुक्रवार) 06:43 से 30:41+ उत्तरा भाद्रपद, रेवती द्वितीया, तृतीया
9 मार्च 2019 (शनिवार) 06:41 से 18:48 रेवती तृतीया
13 मार्च 2019 (बुधवार) 06:37 से 28:22+ रोहिणी सप्तमी

 अप्रैल 2019 विवाह मुहूर्त

विवाह की शुभ तिथि शुभ विवाह का समय विवाह का नक्षत्र विवाह की तिथि
16 अप्रैल 2019 (मंगलवार) 25:51+ से 29:58+ उत्तरा फाल्गुनी त्रयोदशी
17 अप्रैल 2019 (बुधवार) 05:58 से 18:32 उत्तरा फाल्गुनी त्रयोदशी
18 अप्रैल 2019 (गुरुवार) 14:58 से 19:26 हस्त चतुर्दशी
19 अप्रैल 2019 (शुक्रवार) 19:30 से 29:54+ स्वाती प्रतिपदा
20 अप्रैल 2019 (शनिवार) 05:54 से 17:58 स्वाती प्रतिपदा, द्वितीया
22 अप्रैल 2019 (सोमवार) 11:24 से 16:46 अनुराधा चतुर्थी
23 अप्रैल 2019 (मंगलवार) 25:00+ से 29:51+ मूल पंचमी
24 अप्रैल 2019 (बुधवार) 05:51 से 18:35 मूल पंचमी, षष्ठी
25 अप्रैल 2019 (गुरुवार) 25:39+ से 29:49+ उत्तरा आषाढ़ सप्तमी
26 अप्रैल 2019 (शुक्रवार) 05:49 से 23:15 उत्तरा आषाढ़ सप्तमी, अष्टमी

 मई 2019 विवाह मुहूर्त

विवाह की शुभ तिथि शुभ विवाह का समय विवाह का नक्षत्र विवाह की तिथि
2 मई 2019 (गुरुवार) 05:43 से 27:20+ उत्तरा भाद्रपद, रेवती त्रयोदशी
6 मई 2019 (सोमवार) 16:37 से 25:15+ रोहिणी द्वितीया
7 मई 2019 (मंगलवार) 23:23 से 29:39+ मृगशिरा तृतीया, चतुर्थी
8 मई 2019 (बुधवार) 05:39 से 13:40 मृगशिरा चतुर्थी
12 मई 2019 (रविवार) 17:33 से 29:35+ मघा नवमी
14 मई 2019 (मंगलवार) 08:53 से 23:47 उत्तरा फाल्गुनी दशमी, एकादशी
15 मई 2019 (बुधवार) 10:35 से 29:34+ हस्त द्वादशी
17 मई 2019 (शुक्रवार) 17:38 से 27:08+ स्वाती चतुर्दशी
19 मई 2019 (रविवार) 13:07 से 26:07+ अनुराधा प्रतिपदा
21 मई 2019 (मंगलवार) 08:45 से 13:25 मूल तृतीया
23 मई 2019 (गुरुवार) 05:30 से 29:30+ उत्तरा आषाढ़ पंचमी, षष्ठी
28 मई 2019 (मंगलवार) 18:59 से 26:29+ उत्तरा भाद्रपद दशमी
29 मई 2019 (बुधवार) 15:21 से 29:28+ उत्तरा भाद्रपद, रेवती एकादशी
30 मई 2019 (गुरुवार) 05:28 से 16:37 रेवती एकादशी

 जून 2019 विवाह मुहूर्त

विवाह की शुभ तिथि शुभ विवाह का समय विवाह का नक्षत्र विवाह की तिथि
8 जून 2019 (शनिवार) 22:59 से 29:26+ मघा षष्ठी, सप्तमी
9 जून 2019 (रविवार) 05:26 से 15:49 मघा सप्तमी
10 जून 2019 (सोमवार) 14:21 से 29:26+ उत्तराफाल्गुनी अष्टमी, नवमी
12 जून 2019 (बुधवार) 06:08 से 11:51 हस्त दशमी
13 जून 2019 (गुरुवार) 25:23+ से 29:27+ स्वाती द्वादशी
14 जून 2019 (शुक्रवार) 05:27 से 10:17 स्वाती द्वादशी
15 जून 2019 (शनिवार) 10:00 से 29:27+ अनुराधा त्रयोदशी, चतुर्दशी
16 जून 2019 (रविवार) 05:27 से 10:07 अनुराधा चतुर्दशी
17 जून 2019 (सोमवार) 17:00 से 29:27+ मूल प्रतिपदा
18 जून 2019 (मंगलवार) 05:27 से 11:51 मूल प्रतिपदा
19th जून 2019 (बुधवार) 13:30 से 18:58 उत्तरा आषाढ़ द्वितीया, तृतीया
25 जून 2019 (मंगलवार) 05:28 से 29:29+ उत्तरा भाद्रपद अष्टमी, नवमी
26 जून 2019 (बुधवार) 05:29 से 23:50 रेवती नवमी

 जुलाई 2019 विवाह मुहूर्त

विवाह की शुभ तिथि शुभ विवाह का समय विवाह का नक्षत्र विवाह की तिथि
6 जुलाई 2019 (शनिवार) 13:09 से 21:52 मघा पंचमी
7 जुलाई 2019 (रविवार) 20:14 से 29:33+ उत्तरा फाल्गुनी षष्ठी

 नवंबर 2019 विवाह मुहूर्त

विवाह की शुभ तिथि शुभ विवाह का समय विवाह का नक्षत्र विवाह की तिथि
8 नवंबर 2019 (शुक्रवार) 12:24 से 30:42+ उत्तरा भाद्रपद द्वादशी
9 नवंबर 2019 (शनिवार) 06:42 से 30:43+ उत्तरा भाद्रपद, रेवती द्वादशी, त्रयोदशी
10 नवंबर 2019 (रविवार) 06:43 से 10:43 रेवती त्रयोदशी
14 नवंबर 2019 (गुरुवार) 09:14 से 30:47+ रोहिणी, मृगशिरा द्वितीया, तृतीया
22 नवंबर 2019 (शुक्रवार) 09:01 से 30:53+ उत्तरा फाल्गुनी, हस्त एकादशी
23 नवंबर 2019 (शनिवार) 06:53 से 14:45 हस्त द्वादशी
24 नवंबर 2019 (रविवार) 12:48 से 25:05+ स्वाती त्रयोदशी
30 नवंबर 2019 (शनिवार) 18:04 से 31:00+ उत्तरा आषाढ़ पंचमी

 दिसंबर 2019 विवाह मुहूर्त

विवाह की शुभ तिथि शुभ विवाह का समय विवाह का नक्षत्र विवाह की तिथि
5 दिसंबर 2019 (गुरुवार) 20:08 से 31:04+ उत्तरा भाद्रपद नवमी, दशमी
6 दिसंबर 2019 (शुक्रवार) 07:04 से 16:32 उत्तरा भाद्रपद दशमी
11 दिसंबर 2019 (बुधवार) 22:54 से 31:08+ रोहिणी पूर्णिमा
12 दिसंबर 2019 (गुरुवार) 07:08 से 30:19+ मृगशिरा पूर्णिमा, प्रतिपदा

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ये 4 Motivational Stories in Hindi बदल देगीं आपकी जिंदगी

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हौंसला बढ़ाने वाली ये चार Inspiring Motivational Stories in Hindi आपको निराशा से निकालकर सफलता की ओर ले जायेंगी|   हर व्यक्ति के जीवन में कुछ कार्य ऐसे जरुर होते हैं जिन्हें करना हमेशा असंभव ही लगता है.. और जब कोई दूसरा व्यक्ति आकर उसी असंभव काम को संभव करके दिखा देता है तो हमें लगता है कि यार वो बहुत लकी है|   दरअसल, असंभव कार्य को करने के लिए जितनी कठोर मेहनत की आवश्यकता होती है, उतनी आपने कभी की ही नहीं..   कोई भी काम असंभव नहीं होता, बल्कि थोडा कठिन होता है| जब कोई काम इतना

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Best Happy Dussehra Images with Dussehra Wallpapers Greeting & Wishes

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Discover and Free Download Excellent Happy Dussehra Images, Dussehra Photos Wishes, Festival of Dussehra Image & HD Dussehra Wallpapers that you won’t find anywhere else.   दशहरा का पर्व हिन्दू धर्म में विशेष महत्त्व रखता है| दशहरा के दिन ही भगवान् श्री राम ने अहंकारी रावण का वध किया था| रावण के दस शीष थे, इसीलिए इस पर्व को दशहरा कहा जाता है| दशहरा का पर्व, असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक है| राक्षसराज रावण ने अपनी बहन सूपर्णखां के अपमान का बदला लेने के लिए माता सीता का हरण किया था| तब वीर हनुमान की मदद से भगवान्

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नवरात्र के दौरान यौन संबंध बनाना कितना सही और कितना गलत, जानें ..

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नवरात्र के दौरान यौन संबंध – Sex During Navratri ?

नवरात्र को नौ दिनों का हिंदू धर्म में बड़ा महत्व है। ऐसी मान्यता है कि इन दिनों में आध्यात्मिक उर्जा का विकास करना सहज होता है। इसकी वजह यह मानी जाती है कि माता आदि शक्ति इन 9 दिनों में अपने नौ रूपों के साथ धरती पर निवास करती हैं। इसलिए आदिकाल से ये 9 दिन शक्ति उपासना के दिन माने जाते हैं। साधु संतों से लेकर देवी-देवता और सामान्य मनुष्य भी माता की आराधना करते हैं। शास्त्रोंं का हवाला देते हुए पंडितजन कहते हैं कि इस दौरान सात्विक भोजन करना चाहिए और वासना रहित होकर साधना करें। आइए जानें इनके पीछे क्या धार्मिक मान्यताएं हैं और इस दौरान यौनाचार्य क्यों वर्जित माना गया है।

नवरात्र के दौरान यौनाचरण क्यों नहीं ?

आध्यात्मिक नजरिए से देखा जाए तो अगर आपके घर में नवरात्र की पूजा होती है तो इन दिनों में यौन संबंध बनाने से बचना चाहिए। क्योंकि हम पूरे पवित्र मन से मां की पूजा करते हैं, अगर हम यौन संबंधों के बारे में सोचेंगे तो मां की पूजा से मन विचलित होगा जिससे साधना अपूर्ण होगी और इस अवसार का लाभ पाने से वंचित रह जाएंगे।

धर्म भी और विज्ञान भी

नवरात्र के दौरान व्रत रखने की भी मान्यता है। घर में आप या आपका जीवनसाथ कोई व्रत रखता है तो यौनाचरण के कारण उनका व्रत भंग हो सकता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से व्रत के कारण शरीर में उर्जा की कमी होती है जिससे यौनाचरण के लिए साथी मानसिक और शारीरिक तौर पर तैयार नहीं होता है। इसलिए इन दिनों संयम रखने की बात को धर्म से जोड़कर देखा जाता है।

इसलिए नवरात्र में संयम है जरूरी

धार्मिक दृष्टिकोण यह भी कहता है कि नवरात्र के दिनों में जब माता धरती पर रहती हैं तो सभी स्त्रियों में उनका अंश मौजूद होता है। यही वजह है कि इस समय सुहागन महिलाओं की भी पूजा की जाती है और उन्हें सुहाग सामग्री देने की परंपरा है। इसलिए भी नवरात्र के दौरान संयम और ब्रह्मचर्य पालन को जरूरी माना गया है।

नवरात्र के दौरान संयम पालन का यह भी है वैज्ञानिक कारण

साल को दोनो नवरात्र आश्विन और चैत्र के दौरान ऋतु परिवर्तन होता है। आश्विन नवरात्र के साथ शीत ऋतु का आगमन होता और चैत्र नवरात्र के साथ ग्रीष्म ऋतु का आगमन होता है। इस तरह नवरात्र ऋतुओं का संक्रमण काल है। ऋषि-मुनियों ने आने वाले मौसम के लिए शरीर को तैयार करने के लिए और रोग प्रतिरोधी क्षमता विकसित करने के लिए शरीर को विकार मुक्त बनाने के लिए कहा है। इसके लिए नौ दिनों में व्रत और साधना का विधान बनाय गया है ताकि शरीर मौसम परिवर्तन से आहार-विहार में हो रहे परिवर्तनों को समझ सके। इसलिए नवरात्र के दौरान व्रत और यौनाचरण से बचने के लिए कहा गया है।

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नवरात्र में नवग्रहों की शांति का सटीक उपाय कर पाए सभी परेशानियों से मुक्ति

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नवरात्र में नवग्रहों की शांति – Navratri 2018

आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से मां दुर्गा की आराधना का पर्व आरंभ हो जाता है। इस दिन कलश स्थापना कर नवरात्रि पूजा शुरु होती है। वैसे तो नवरात्र में नवदुर्गा की पूजा की जाती है। जिसमें प्रतिपदा को मां शैलपुत्री तो अंतिम नवरात्रि में मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। लेकिन नवरात्र का महत्व केवल दुर्गा पूजा तक सीमित नहीं है। बल्कि नवरात्र को ज्योतिषीय दृष्टि से भी खास माना जाता है। जी हां विद्वान ज्योतिषाचार्यों का मानना है कि नवरात्र में नवदुर्गा की पूजा करने से नवग्रह शांति की जा सकती है। आइये जानते हैं नवरात्रि पूजा में कैसे होगी नवग्रहों की शांति ?

नवरात्र नवदुर्गा और नवग्रह

नौ दिनों के नवरात्र में नवदुर्गा यानि कि मां दुर्गा जिन्हें शक्ति का रूप माना जाता है के नौ रूपों की साधना की जाती है। इनमें पहले नवरात्र पर मां शैलपुत्री तो दूसरे नवरात्र में मां ब्रह्मचारिणी, तीसरे में माता चंद्रघंटा तो चौथे नवरात्र पर मां कुष्मांडा, पांचवें नवरात्र में स्कंदमाता तो छठे नवरात्र पर कात्यायनी माता की पूजा की जाती है। सातवें, आठवें और नवें नवरात्र में क्रमश: मां कालरात्रि, मां महागौरी एवं माता सिद्धिदात्रि का पूजन किया जाता है। लेकिन जब नवग्रह शांति के लिये पूजन किया जाता है तो इस क्रम में बदलाव हो जाता है। प्रत्येक ग्रह की माता अलग होती है।

किस नवरात्र को होती है किस ग्रह की पूजा

नव दुर्गा शक्ति के नौ रूपों का ही नाम है। इनकी साधना से ग्रह पीड़ा से भी निजात मिलती है लेकिन इसके लिये यह अवश्य ज्ञात होना चाहिये कि किस दिन कौनसे ग्रह की शांति के लिये पूजा होनी चाहिये। सर्वप्रथम तो नवरात्र में प्रतिपदा को कलश स्थापना की जाती है इसके पश्चात मां दुर्गा की पूजा करनी चाहिये। अब जानते हैं किस दिन किस ग्रह की शांति के लिये पूजा करनी चाहिये :-

पहला नवरात्र मंगल की शांति पूजा 

नवरात्र के पहले दिन यानि प्रतिपदा को मंगल ग्रह की शांति के लिये पूजा की जाती है। मंगल की शांति के लिये प्रतिपदा को स्कंदमाता के स्वरूप की पूजा करनी चाहिये।

दूसरा नवरात्र राहू की शांति पूजा 

द्वितीया तिथि को दूसरा नवरात्र होता है इस दिन राहू शांति के लिये पूजा की जाती है। मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से राहू ग्रह की शांति होती है।

तीसरा नवरात्र बृहस्पति की शांति पूजा 

तृतीया को तीसरे नवरात्र में मां महागौरी के स्वरूप की पूजा बृहस्पति की शांति के लिये होती है।

चौथा नवरात्र शनि की शांति पूजा 

चतुर्थी तिथि को शनि की शांति के लिये मां कालरात्रि के स्वरूप की पूजा करनी चाहिये।

पंचम नवरात्र बुध की शांति पूजा 

पांचवें नवरात्र में पंचमी तिथि को बुध की शांति के लिये पूजा की जाती है इस दिन मां कात्यायनी के स्वरूप की पूजा करनी चाहिये।

छठा नवरात्र केतु की शांति पूजा 

षष्ठी तिथि को छठा नवरात्र होता है जिसमें केतु की शांति के लिये पूजा की जाती है। मां कुष्मांडा की पूजा इस दिन कर केतु की शांति की जा सकती है।

सातवां नवरात्र शुक्र की शांति पूजा 

शुक्र की शांति के लिये सप्तमी तिथि को सातवें नवरात्र में माता सिद्धिदात्रि के स्वरूप का पूजन करना चाहिये।

आठवां नवरात्र सूर्य की शांति पूजा 

अष्टमी तिथि को आठवें नवरात्र पर माता शैलपुत्री के स्वरूप की पूजा करने से सूर्य की शांति होती है।

नवां नवरात्र चंद्रमा की शांति पूजा 

नवमी के दिन मां दुर्गा के चंद्रघंटा स्वरूप की पूजा करने से चंद्रमा की शांति होती है।

नवरात्र में नवग्रह शांति के लिये पूजा विधि

नवरात्र में नवग्रह की शांति के लिये जैसा कि ऊपर बताया भी गया है कि सर्वप्रथम कलश स्थापना करनी चाहिये उसके पश्चाता मां दुर्गा की पूजा। पूजा के पश्चात लाल रंग के वस्त्र पर यंत्र का निर्माण करना चाहिये। इसके लिये वर्गाकार रूप में 3-3-3 कुल 9 खानें बनाने चाहिये। ऊपर के तीन खानों में बुध, शुक्र व चंद्रमा की स्थापना करें। मध्य के तीन खानों में गुरु, सूर्य व मंगल को स्थापित करें। नीचे के तीन खानों में केतु, शनि व राहू को स्थापित करें। इस प्रकार यंत्र का निर्माण कर नवग्रह बीज मंत्र का जाप कर इस यंत्र की पूजा करके नवग्रहों की शांति का संकल्प करें।

पहले मंगल की शांति के लिये पूजा के पश्चात पंचमुखी रूद्राक्ष या फिर मूंगा या लाल अकीक की माला से मंगल के बीज मंत्र का 108 बार जप करना चाहिये। जप के पश्चात मंगल कवच एवं अष्टोत्तरशतनाम का पाठ करना चाहिये। इसी प्रकार आगामी नवरात्र में भी जिस ग्रह की शांति के लिये पूजा की जा रही है। उसके बीज मंत्रों का जाप कर संबंधित ग्रह के कवच एवं अष्टोत्तरशतनाम का पाठ भी करें। नवरात्र के पश्चात दशमी के दिन यंत्र की पूजा कर इसे पूजा स्थल में स्थापित करना चाहिये व नियमित रूप से इसकी पूजा करनी चाहिये।

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Happy Navratri SMS in Hindi | नवरात्रि SMS Messages 2018

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जगत पालन हार है माँ मुक्ति का धाम है माँ हमारी भक्ति का आधार है माँ हम सबकी रक्षा की अवतार है माँ नवरात्रि की शुभकामनाएं लक्ष्मी जी का हाथ हो सरस्वती जी का साथ हो गणेश जी का निवास हो माँ दुर्गा का आशीर्वाद हो आपके जीवन में हमेशा प्रकाश हो हैप्पी चैत्र दुर्गा पूजा सारा जहां है जिसकी शरण में नमन है उस माँ के चरण में हम हैं उस माँ के चरणों की धूल आओ मिलकर माँ को चढ़ाएं श्रद्धा के फूल शुभ नवरात्रि माँ दुर्गा की असीम कृपा से आप सबका जीवन सदा हँसता मुस्कुराता रहे

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Essay on Navratri in Hindi – नवरात्रि का महत्व और पौराणिक कहानियां

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Essay on Navratri in Hindi चैत्र और शारदीय नवरात्रि का महत्व हिन्दू धर्म में बहुत विशेष है| नवरात्रि (Navratri) माँ दुर्गा की पूजा का विशेष त्यौहार है। नौ दिन तक माँ दुर्गा के अलग अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है। ये शक्ति की पूजा है, वो शक्ति जो हम सबकी पालनहार है। हिन्दू धर्म में ये त्यौहार पूरे देश में बड़ी ही धूम धाम से मनाया जाता है। क्यों मानते हैं नवरात्रि का पर्व ? हमारे यहाँ नवरात्रि के सम्बन्ध में काफी सारी पौराणिक कथायें प्रचलित हैं – नवरात्री के समय ही माँ दुर्गा ने राक्षस महिषासुर का वध

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नवरात्र 2018: दुर्गा पूजा विधि विधान में रखें वास्तु का ध्यान, ऐसे करें दुर्गा पूजा की तैयारी

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नवरात्र 2018 – वास्तु टिप्स नवरात्री में 

नवरात्र में मां के 9 स्‍वरूपों की पूजा सभी घरों में पूरे विधि विधान के साथ की जाती है। माता की पूजा में वास्तु का बड़ा महत्व है। कलश स्थापना से लेकर देवी-देवताओं की प्रतिमा की स्थापना और पूजा की दिशा भी आपकी पूजा के सफल और फलदायी बनाती है ऐसा वास्तुशास्त्र का मत है। इसलिए इस नवरात्र आप अपने पूजा घर में वास्तु का ध्यान रखते हुए दुर्गा पूजा करें ताकि आपकी पूजा सफल और सिद्धिदायक हो।

इस दिशा में करें कलश स्‍थापना

वास्‍तुशास्त्र के अनुसार, उत्तर और उत्तर-पूर्व दिशा यानी ईशान कोण को पूजा के लिए सर्वोत्तम स्‍थान माना गया है। इस दिशा को देवस्‍थान माना जाता है और यहां सर्वाधिक सकारात्‍मक ऊर्जा रहती है। नवरात्र में इसी कोण में कलश की स्‍थापना की जानी चाहिए।

इस दिशा में रखें मुख

पूजाघर को इस प्रकार से व्‍यवस्थित करना चाहिए कि पूजा करते वक्‍त आपका मुख पूर्व दिशा की ओर रहे। पूर्व दिशा में देवताओं का वास होने की वजह से इस दिशा को शक्ति का स्रोत माना जाता है।

ऐसे स्‍थापित करें माता की मूर्ति

नवरात्र में माता की मूर्ति को लकड़ी की चौकी या आसन पर स्थापित करना चाहिए। जहां मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें वहां पहले स्वास्तिक का चिह्न बनाएं। माना जाता है कि चंदन और आम की लकड़ी की चौकी पर माता की प्रतिमा स्थापित करना उत्तम होता है।

यहां रखें अखंड ज्‍योति

नवरात्र में कई लोग 9 दिन तक माता की ज्‍योति जलाकर रखते हैं। इसे अखंड ज्‍योति कहा जाता है। इसे अगर आप आग्‍नेय कोण में रखें तो यह अधिक शुभफलदायी होगा। अखंड ज्योति जलाकर पूजा करने वालों को पहले इसका संकल्प लेना चाहिए फिर ज्योति जलाकर माता की पूजा करनी चाहिए।

पूजा का सामान रखें इस दिशा में

पूजा की सारी सामग्री आप अपने मंदिर के दक्षिण-पूर्व दिशा में रखें। इनमें गुग्‍गल, लोबान, कपूर और देशी घी प्रमुख तौर पर शामिल हैं। माता की पूजा लाल रंग का बड़ा महत्व है इसलिए पूजन सामग्री लाल कपड़े के ऊपर रखें। पूजन में तांबा और पीतल के बर्तनों का प्रयोग करें। अगर चांदी की थाल या जलपात्र हो तो यह भी प्रयोग में ला सकते हैं।

स्‍वास्तिक से करें शुभारंभ

नवरात्र के पहले दिन घर के मुख्‍य द्वार के दोनों तरफ स्‍वास्तिक बनाएं और दरवाजे पर आम के पत्ते का तोरण लगाएं। ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि माता इस दिन भक्तों के घर में आती हैं। जहां कलश बैठा रहे हों वहां भी पहले स्वास्तिक बना लेना चाहिए इससे वास्तु दोष दूर होता है।

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नवरात्री में 9 रंगो की महिमा, पहनें ये 9 लकी कलर नवरात्रा में और भरे अपनी झोली खुशियों से

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नवरात्री में 9 रंगो की महिमा – 9 Colors Of Navratri

नवरात्रि में मां के नौ स्वरूपों की अराधना की जाती है। मां के नौ स्वरूपों में नौ रंगों का भी इस्तेमाल किया जाता है, जो प्रकति का संचालन करते हैं। इन नौ रंगों का शास्त्रों में काफी महत्व बताया गया है। कहा जाता है इन दिनों अलग-अलग रंगों के कपड़े पहनने से घर में सुख-समृद्धि उमड़ती है। मां की पूजा भी सफल होती है। आइए जानते हैं कि किस दिन कौन से रंग के कपड़े पहनना शुभ माना जाता है…

मां दुर्गा का पहला रूप मां शैलपुत्री

मां के पहले स्वरूप का नाम है शैलपुत्री। पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती के स्वरूप में मां शैलपुत्री की पूजा देवी के मण्डपों में प्रथम नवरात्र के दिन होती है। भगवती का वाहन बैल है। इस दिन आप पीले रंग के वस्त्र धारण कर सकते हैं। बुधवार से नवरात्र आरंभ होने के कारण हरे वस्त्र भी धारण कर सकते हैं।

मां दुर्गा का दूसरा रूप मां ब्रह्राचारिणी

मां के दूसरे स्वरूप का नाम है ब्रह्राचारिणी। नारदजी के कहने पर माता पार्वती ने भगवान महादेव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की। इस कारण ही तपश्चारिणी या ब्रह्मचारिणी पड़ा। नवरात्र का दूसरा दिन गुरुवार है और देवी का स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है इसलिए पीला, गेरुआ वस्त्र भी धारण किया जा सकता है।

मां दुर्गा का तीसरे रूप मां चंद्रघंटा

मां के तीसरे स्वरूप का नाम है चंद्रघंटा। देवी का यह तीसरा स्वरूप ज्ञान का भंडार है। माना जाता है कि देवी के इस स्वरूप की पूजा करने से मन में अलौकिक शक्ति प्राप्त होती है। इस दिन आप सफेद रंग के कपड़े पहनें।

मां दुर्गा का चौथा रूप मां कूष्माण्डा

भगवती मां के चौथे स्वरूप का नाम है कूष्माण्डा। देवी का यह चौथे स्वरूप ने अंड रूप में ब्रह्मांड की रचना की। मान्यता है कि इनके तेज के कारण सभी व्याधियां यानी बिमारियां नष्ट हो जाती हैं। इस दिन आप नारंगी रंग को पहन सकते हैं। मां दुर्गा के इस स्वरूप को नारंगी रंग बहुत प्रिय है।

मां दुर्गा का पांचवा रूप मां स्कंदमाता

मां के पांचवे स्वरूप का नाम है स्कंदमाता। आदिशक्ति का यह स्वरूप सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं। इनकी पूजा करने से मोक्ष के दरवाजे खुल जाते हैं और जीवन में सुख-शांति बनी रहती है। भक्तों को इस दिन सफेद रंग के कपड़े पहनना शुभ बताया गया है।

मां दुर्गा का छठा रूप मां कात्यानी

मां के छठा रूप है कात्यानी। महर्षि कात्यायन की कठीन तपस्या से प्रसन्न होकर, मां ने उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया। महर्षि कात्यायन ने सबसे पहले इनकी पूजा की थी इसलिए इनका नाम कात्यानी हो गया। इस दिन मां की पूजा के लिए लाल रंग के कपड़े पहनें। मां के आशीर्वाद से लाल रंग बहुत शुभ माना जाता है।

मां दुर्गा का सातवां रूप मां कालरात्रि

भगवती मां का सातवां स्वरूप है कालरात्रि। देवी का यह रूप ऋद्धि सिद्धि प्रदान करने वाला है। तांत्रिक क्रिया की साधना करने वाले भक्तों के लिए अति महत्वपूर्ण होता है। मां के इस स्वरूप की पूजा नीले रंग के कपड़े पहनकर करें।

मां दुर्गा का आठवां रूप मां महागौरी

मां का आठवां स्वरूप है महागौरी। माता की पूजा करते समय गुलाबी रंग के कपड़े पहनने चाहिए। भगवती मां गृहस्थ आश्रम की देवी हैं और गुलाबी रंग प्रेम का प्रतीक है। यह रंग पूरे परिवार को एक करके रखता है। इसलिए इस गुलाबी रंग के कपड़े पहनना चाहिए।

मां दुर्गा का नौवां रूप मां सिद्धिदात्री

मां के नौवें दिन माता सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। माना जाता है कि भगवान भोलेनाथ ने माता पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होकर अष्टसिद्धियां प्राप्त की थीं। इस दिन जामुनी रंग के कपड़े पहनकर माता को प्रसन्न कर सकते हैं।

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क्या महिलाओ के लिए मासिक धर्म के उपरांत नवरात्रि में पूजा-उपासना सम्भव है?

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मासिक धर्म के दरमियान नवरात्रि में पूजा

नौ दिनों का बेहद लंबा पर्व है नवरात्रि। यह पर्व ध्यान, साधना, जप और पूजन द्वारा आत्मिक शक्ति के विकास के लिए प्रख्यात है। पर एक स्त्री के साथ बहुत अधिक संभावना है कि 28 से 32 दिनों के मध्य घटित होने वाला उसका मासिक धर्म इन नौ दिनों में ही घटित हो जाए। अब यह सवाल है कि तब क्या मासिक धर्म के दरमियान पूजा या उपासना संभव है या नहीं। इस प्रश्न के उत्तर की तलाश के लिए पहले पूजन और उपासना के अर्थ व प्रकार को समझना होगा।

मनुष्य के द्वारा परमात्मा के अभिवादन को पूजा कहा जाता है। पर उपासना का अर्थ है उप-आसना, यानी स्वयं के समक्ष वास करना। क्योंकि आध्यात्मिक दर्शन कहता है कि स्वयं में ही प्रभु का वास है। कर्मकांडीय पूजन में सूक्ष्म और स्थूल दोनों उपक्रमों को बराबर-बराबर समाहित किया गया है। लिहाज़ा, कर्मकांडीय-पूजा ध्यान, आह्वान, आसन, पाद्य, अर्घ्य और आचमन में पिरोई हुई दृष्टिगोचर होती है।

बिना भाव के पूजन का कोई अर्थ नहीं

ध्यान और आह्वान सूक्ष्म या मानसिक होते हैं और उसके बाद की पद्धति स्थूल पदार्थों से सम्पादित होती है। पर वहां भी भाव मुख्य सूत्रधार है। बिना भाव के किसी पूजन का कोई अर्थ नहीं है। स्थूल पूजन कई उपचारों में गूंथा हुआ है। यदा, पंचोपचार (5 प्रकार), दशोपचार (10 प्रकार), षोडशोपचार (16 प्रकार), द्वात्रिशोपचार (32 प्रकार), चतुषष्टि प्रकार (64 प्रकार), एकोद्वात्रिंशोपचार (132 प्रकार) इत्यादि, जिसमें अपने प्रभु की सूक्ष्म उपस्थिति को मानकर स्थापन, स्नान, अर्घ्य, वस्त्र, श्रृंगार, नैवेद्य, सुगंध , इत्यादि अर्पित कर उनका अभिनंदन करते हैं। स्तुति, प्रार्थना, निवेदन, मंत्र, भजन और आरती द्वारा उनकी कृपा की कामना करते हैं। ध्यान रहे कि यहां भाव मुख्य अवयव है। भाव दैहिक नहीं, आत्मिक और मानसिक है।

मानसिक जप या सुमिरन रहेगा सर्वश्रेष्ठ

महापुरुषों ने कहा है की जिस प्रकार आप कभी भी अपने प्रेम, क्रोध और घृणा को प्रकट कर सकते हैं, जिस प्रकार आप कभी भी अपने मस्तिष्क में शुभ-अशुभ विचार ला सकते हैं, जिस प्रकार आप कभी भी अपनी जुबान से कड़वे या मीठे वचन बोल सकते हैं, उसी प्रकार आप कभी भी, कहीं भी, किसी भी स्थिति में प्रभु का ध्यान, उनका चिंतन, उनका स्मरण, उनका सुमिरन या मानसिक जप कर सकते हैं।

व्रत रखकर पूजन कर सकते है ?

हां, परंपराएं और कर्मकांड मासिक धर्म में स्थूल उपक्रम यानी, देव प्रतिमा के स्पर्श, स्थूल पूजन और मंदिर जाने या धार्मिक आयोजनों में शामिल होने की सलाह नहीं देती हैं। यदि हम काम, क्रोध, लोभ, मोह, घृणा, द्वेष इत्यादि को मासिक धर्म के दौरान अंगीकार कर सकते हैं, तो भला शुभ चिंतन और सुमिरन में क्या आपत्ति है। निश्चित तौर पर मासिक धर्म के दौरान महिलाएं मात का व्रत रख सकती हैं। लेकिन मान्यताओं को ध्यान में रखते हुए इस बीच स्थूल पूजन यानी देवी-देवताओं का स्पर्श नहीं करना चाहिए। इस दौरान व्रत रखकर मानसिक जप और पूजन करने में कोई दिक्कत नहीं है।

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सफलता का रहस्य : Secret of सक्सेस in Hindi

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सक्सेस: एक बार की बात है कि किसी शहर में एक लड़का रहता था, जो बहुत गरीब था। मेहनत मजदूरी करके बड़ी मुश्किल से 2 वक्त का खाना जुटा पाता था। एक दिन वह किसी बड़ी कंपनी में चपरासी के लिए इंटरव्यू देने गया । बॉस ने उसे देखकर उसे काम दिलाने का भरोसा जताया । जब बॉस ने पूछा -“तुम्हारी email id क्या है”? लड़के ने मासूमियत से कहा कि उसके पास email id नहीं है । ये सुनकर बॉस ने उसे बड़ी घृणा दृष्टि से देखा और कहा कि आज दुनिया इतनी आगे निकल गयी है , और

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इंदिरा एकादशी 2018 – व्रत तिथि व पूजा मूहुर्त

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इंदिरा एकादशी 2018 – Indira Ekadashi 2018

एकादशी तिथि का हिंदू धर्म में आस्था रखने वालों के लिये खास महत्व है। प्रत्येक चंद्र मास में दो एकादशियां आती है। इस तरह साल भर में 24 एकादशियां आती है मलमास या कहें अधिक मास की भी दो एकादशियों को मिलाकर इनकी संख्या 26 हो जाती है। प्रत्येक एकादशी का अपना अलग महत्व होता है। हर एकादशी की एक कथा भी होती है। एकादशियों को असल में मोक्षदायिनी माना जाता है। लेकिन कुछ एकादशियां बहुत ही खास मानी जाती है। इन्हीं खास एकादशियों में से एक है इंदिरा एकादशी।

इंदिरा एकादशी क्या है

आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को इंदिरा एकादशी कहा जाता है। इस एकादशी की खास बात यह है कि यह पितृपक्ष में आती है जिसकारण इसका महत्व बहुत अधिक हो जाता है। मान्यता है कि यदि कोई पूर्वज़ जाने-अंजाने हुए अपने पाप कर्मों के कारण यमराज के पास अपने कर्मों का दंड भोग रहे हैं तो इस एकादशी पर विधिपूर्वक व्रत कर इसके पुण्य को उनके नाम पर दान कर दिया जाये तो उन्हें मोक्ष मिल जाता है और मृत्युपर्यंत व्रती भी बैकुण्ठ में निवास करता है।

इंदिरा एकादशी 2018 व्रत कथा

भगवान श्री कृष्ण धर्मराज युद्धिष्ठर को इंदिरा एकादशी का महत्व बताते हुए कहते हैं कि यह एकादशी समस्त पाप कर्मों का नाश करने वाली होती है एवं इस एकादशी के व्रत से व्रती के साथ-साथ उनके पितरों की भी मुक्ति होती है। हे राजन् इंदिरा एकादशी की जो कथा मैं तुम्हें सुनाने जा रहा हूं। इसके सुनने मात्र से ही वाजपेय यज्ञ के समान फल की प्राप्ति होती है।

आगे कथा शुरु करते हुए भगवन कहते हैं। बात सतयुग की है। महिष्मति नाम की नगरी में इंद्रसेन नाम के प्रतापी राजा राज किया करते थे। राजा बड़े धर्मात्मा थे प्रजा भी सुख चैन से रहती थी। धर्म कर्म के सारे काम अच्छे से किये जाते थे। एक दिन क्या हुआ कि नारद जी इंद्रसेन के दरबार में पंहुच जाते हैं। इंद्रसेन उन्हें प्रणाम करते हैं और आने का कारण पूछते हैं। तब नारद जी कहते हैं कि मैं तुम्हारे पिता का संदेशा लेकर आया हूं जो इस समय पूर्व जन्म में एकादशी का व्रत भंग होने के कारण यमराज के निकट उसका दंड भोग रहे हैं।

अब इंद्रसेन अपने पिता की पीड़ा को सुनकर व्यथित हो गये और देवर्षि से पूछने लगे हे मुनिवर इसका कोई उपाय बतायें जिससे मेरे पिता को मोक्ष मिल जाये। तब देवर्षि ने कहा कि राजन तुम आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करो और इस व्रत के पुण्य को अपने पिता के नाम दान कर दो इससे तुम्हारे पिता को मुक्ति मिल जायेगी। उसके बाद आश्विन कृष्ण एकादशी को इंद्रसेन ने नारद जी द्वारा बताई विधि के अनुसार ही एकादशी व्रत का पालन किया जिससे उनके पिता की आत्मा को शांति मिली और मृत्यु पर्यंत उन्हें भी मोक्ष की प्राप्ति हुई।

इंदिरा एकादशी व्रत व पूजा विधि

कथा के अनुसार महर्षि नारद ने व्रत की विधि बताते हुए कहा था कि आश्विन माह की कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन प्रात:काल श्रद्धापूर्वक स्नानादि से निवृत होकर फिर दोपहर के समय नदी आदि में जाकर स्नान करें। श्रद्धा पूर्वक अपने पितरों का श्राद्ध करें और दिन में केवल एक बार ही भोजन करें। एकादशी के दिन प्रात:काल में उठकर नित्य क्रियाओं से निवृत होकर स्नानादि करें व्रत के नियमों को श्रद्धा पूर्वक ग्रहण करें साथ ही संकल्प ले कि “मैं सार भोगों को त्याग कर निराहार एकादशी का व्रत करुंगा, हे प्रभु मैं आपकी शरण हूं आप मेरी रक्षा करें।”

इस प्रकार नियमपूर्वक शालिग्राम की मूर्ति के आगे विधिपूर्वक श्राद्ध करके पात्र ब्राह्मण को फलाहार का भोजन करवायें व दक्षिणादि से प्रसन्न करें। धूप, दीप, गंध, पुष्प, नैवेद्य आदि से भगवान ऋषिकेश की पूजा करें। रात्रि में प्रभु का जागरण करें व द्वादशी के दिन प्रात:काल भगवान की पूजा करके ब्राह्मण को भोजन करवाकर सपरिवार मौन होकर भोजन करें। लेकिन हमारी सलाह है कि आप व्रत व पूजा करने की विधि विद्वान ज्योतिषाचार्यों से अच्छे से जान लें।

इंदिरा एकादशी 2018 – व्रत तिथि व पूजा मूहुर्त

  • इंदिरा एकादशी व्रत तिथि – 5 अक्तूबर 2018
  • द्वादशी को पारण का समय – 06:20 से 08:39 बजे तक (6 अक्तूबर 2018)
  • एकादशी तिथि आरंभ – 21:49 बजे (4 अक्तूबर 2018
  • एकादशी तिथि समाप्त – 19:17 बजे (5 अक्तूबर 2018)
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सर्वपितृ अमावस्या 2018 – इस दिन करें सभी पितरों के लिये श्राद्ध

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सर्वपितृ अमावस्या 2018 – Sarvapitra Amavasya 

आश्विन मास, वर्ष के सभी 12 मासों में खास माना जाता है। लेकिन इस मास की अमावस्या तिथि (सर्व पितृ मोक्ष अमावस्या) तो और भी महत्वपूर्ण मानी जाती है। इसकी सबसे बड़ी वजह है पितृ पक्ष में इस अमावस्या का होना। अंग्रेजी कलैंडर के अनुसार इस साल पितृपक्ष अमावस्या 8 अक्तबूर को सोमवार के दिन है। सर्वपितृ अमावस्या के दिन ही सोमवती अमावस्या का महासंयोग बन रहा है जो कि बहुत ही सौभाग्यशाली है। आइये जानते हैं इस मोक्षदायिनी सर्वपितृ सोमवती अमावस्या के बारे में।

क्या है सर्वपितृ अमावस्या – What is Sarvapitra Amavasya 

पितृपक्ष का आरंभ भाद्रपद पूर्णिमा से हो जाता है। आश्विन माह का प्रथम पखवाड़ा जो कि माह का कृष्ण पक्ष भी होता है पितृपक्ष के रूप में जाना जाता है। इन दिनों में हिंदू धर्म के अनुयायि अपने दिवंगत पूर्वजों का स्मरण करते हैं। उन्हें याद करते हैं, उनके प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं। उनकी आत्मा की शांति के लिये स्नान, दान, तर्पण आदि किया जाता है। पूर्वज़ों के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के कारण ही इन दिनों को श्राद्ध भी कहा जाता है।

हालांकि विद्वान ब्राह्मणों द्वारा कहा जाता है कि जिस तिथि को दिवंगत आत्मा संसार से गमन करके गई थी आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की उसी तिथि को पितृ शांति के लिये श्राद्ध कर्म किया जाता है। लेकिन समय के साथ कभी-कभी जाने-अंजाने हम उन तिथियों को भूल जाते हैं जिन तिथियों को हमारे प्रियजन हमें छोड़ कर चले जाते हैं। दूसरा वर्तमान में जीवन भागदौड़ भरा है। हर कोई व्यस्त है। फिर विभिन्न परिजनों की तिथियां अलग-अलग होने से हर रोज समय निकाल कर श्राद्ध करना बड़ा ही कठिन है।

लेकिन विद्वान ज्योतिषाचार्यों ने कुछ ऐसे भी उपाय निकाले हैं जिनसे आप अपने पूर्वजों को याद भी कर सकें और जो आपके समय के महत्व को भी समझे। इसलिये अपने पितरों का अलग-अलग श्राद्ध करने की बजाय सभी पितरों के लिये एक ही दिन श्राद्ध करने का विधान बताया गया। इसके लिये कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि यानि अमावस्या का महत्व बताया गया है। समस्त पितरों का इस अमावस्या को श्राद्ध किये जाने को लेकर ही इस तिथि को सर्वपितृ अमावस्या कहा जाता है।

सर्वपितृ अमावस्या का महत्व – Importance of Sarvapitra Amavasya 

सबसे अहम तो यह तिथि इसीलिये है क्योंकि इस दिन सभी पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है। वहीं इस अमावस्या को श्राद्ध करने के पिछे मान्यता है कि इस दिन पितरों के नाम की धूप देने से मानसिक व शारीरिक तौर पर तो संतुष्टि या कहें शांति प्राप्त होती ही है लेकिन साथ ही घर में भी सुख-समृद्धि आयी रहती है। सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं। हालांकि प्रत्येक मास की अमावस्या तिथि को पिंडदान किया जा सकता है लेकिन आश्विन अमावस्या विशेष रूप से शुभ फलदायी मानी जाती है।

पितृ अमावस्या होने के कारण इसे पितृ विसर्जनी अमावस्या या महालया भी कहा जाता है। मान्यता यह भी है कि इस अमावस्या को पितृ अपने प्रियजनों के द्वार पर श्राद्धादि की इच्छा लेकर आते हैं। यदि उन्हें पिंडदान न मिले तो शाप देकर चले जाते हैं जिसके फलस्वरूप घरेलू कलह बढ़ जाती है व सुख-समृद्धि में कमी आने लगती है और कार्य भी बिगड़ने लगते हैं। इसलिये श्राद्ध कर्म अवश्य करना चाहिये।

पितृ अमावस्या को श्राद्ध करने की विधि 

सर्वपितृ अमावस्या को प्रात: स्नानादि के पश्चात गायत्री मंत्र का जाप करते हुए सूर्यदेव को जल अर्पित करना चाहिये। इसके पश्चात घर में श्राद्ध के लिये बनाये गये भोजन से पंचबलि अर्थात गाय, कुत्ते, कौए, देव एवं चीटिंयों के लिये भोजन का अंश निकालकर उन्हें देना चाहिये। इसके पश्चात श्रद्धापूर्वक पितरों से मंगल की कामना करनी चाहिये। ब्राह्मण या किसी गरीब जरूरतमंद को भोजन करवाना चाहिये व सामर्थ्य अनुसार दान दक्षिणा भी देनी चाहिये। संध्या के समय अपनी क्षमता अनुसार दो, पांच अथवा सोलह दीप भी प्रज्जवलित करने चाहियें।

सर्वपितृ अमावस्या तिथि व श्राद्ध कर्म मुहूर्त

सर्वपितृ अमावस्या तिथि – 8 अक्तूबर 2018, सोमवार

  • कुतुप मुहूर्त – 11:45 से 12:31
  • रौहिण मुहूर्त – 12:31 से 13:17
  • अपराह्न काल – 13:17 से 15:36
  • अमावस्या तिथि आरंभ – 11:31 बजे (8 अक्तूबर 2018)
  • अमावस्या तिथि समाप्त – 09:16 बजे (9 अक्तूबर 2018)
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रतन टाटा के जीवन की सबसे प्रेरक घटना : Real Change Thinking Story of Ratan Tata in Hindi

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Story of Ratan Tata in Hindi एक बार रतन टाटा Business के सिलसिले में जर्मन(Germany) गए हुए थे । अपने एक मित्र के साथ रतन टाटा हेमबर्ग नाम के एक शहर में रुके हुए थे । शाम हुई तो खाना खाने के लिए एक बड़े अच्छे से Hotel में दोनों लोग खाना खाने गए । दिन भर काम की व्यस्तता के कारण भूख काफी जोरों से लगी थी, वेटर मेनू लेकर आया तो रतन टाटा और उनके मित्र ने काफी सारे व्यंजन का ऑर्डर कर दिया । कुछ देर बाद खाना लाया गया दोनों ने बहुत मजे से खाया और

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50 Great Mahatma Gandhi Quotes in Hindi | महात्मा गांधी के विचार

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राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचार Best 50 Mahatma Gandhi Quotes in Hindi that Changed the World आप जो सोचते हैं, जो कहते हैं और जो करते हैं, इन सबमें सामंजस्य होना ही ख़ुशी है, – Mahatma Gandhi Happiness is when what you think, what you say, and what you do are in harmony. The weak can never forgive. Forgiveness is the attribute of the strong. कमज़ोर लोग कभी माफ़ी नहीं दे सकते, क्षमा तो ताकतवर लोगों की विशेषता होती है – Mahatma Gandhi My life is my message. मेरा जीवन मेरा संदेश है। – Mahatma Gandhi An eye for an

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