नवरात्र 2018: दुर्गा पूजा विधि विधान में रखें वास्तु का ध्यान, ऐसे करें दुर्गा पूजा की तैयारी

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नवरात्र 2018 – वास्तु टिप्स नवरात्री में 

नवरात्र में मां के 9 स्‍वरूपों की पूजा सभी घरों में पूरे विधि विधान के साथ की जाती है। माता की पूजा में वास्तु का बड़ा महत्व है। कलश स्थापना से लेकर देवी-देवताओं की प्रतिमा की स्थापना और पूजा की दिशा भी आपकी पूजा के सफल और फलदायी बनाती है ऐसा वास्तुशास्त्र का मत है। इसलिए इस नवरात्र आप अपने पूजा घर में वास्तु का ध्यान रखते हुए दुर्गा पूजा करें ताकि आपकी पूजा सफल और सिद्धिदायक हो।

इस दिशा में करें कलश स्‍थापना

वास्‍तुशास्त्र के अनुसार, उत्तर और उत्तर-पूर्व दिशा यानी ईशान कोण को पूजा के लिए सर्वोत्तम स्‍थान माना गया है। इस दिशा को देवस्‍थान माना जाता है और यहां सर्वाधिक सकारात्‍मक ऊर्जा रहती है। नवरात्र में इसी कोण में कलश की स्‍थापना की जानी चाहिए।

इस दिशा में रखें मुख

पूजाघर को इस प्रकार से व्‍यवस्थित करना चाहिए कि पूजा करते वक्‍त आपका मुख पूर्व दिशा की ओर रहे। पूर्व दिशा में देवताओं का वास होने की वजह से इस दिशा को शक्ति का स्रोत माना जाता है।

ऐसे स्‍थापित करें माता की मूर्ति

नवरात्र में माता की मूर्ति को लकड़ी की चौकी या आसन पर स्थापित करना चाहिए। जहां मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें वहां पहले स्वास्तिक का चिह्न बनाएं। माना जाता है कि चंदन और आम की लकड़ी की चौकी पर माता की प्रतिमा स्थापित करना उत्तम होता है।

यहां रखें अखंड ज्‍योति

नवरात्र में कई लोग 9 दिन तक माता की ज्‍योति जलाकर रखते हैं। इसे अखंड ज्‍योति कहा जाता है। इसे अगर आप आग्‍नेय कोण में रखें तो यह अधिक शुभफलदायी होगा। अखंड ज्योति जलाकर पूजा करने वालों को पहले इसका संकल्प लेना चाहिए फिर ज्योति जलाकर माता की पूजा करनी चाहिए।

पूजा का सामान रखें इस दिशा में

पूजा की सारी सामग्री आप अपने मंदिर के दक्षिण-पूर्व दिशा में रखें। इनमें गुग्‍गल, लोबान, कपूर और देशी घी प्रमुख तौर पर शामिल हैं। माता की पूजा लाल रंग का बड़ा महत्व है इसलिए पूजन सामग्री लाल कपड़े के ऊपर रखें। पूजन में तांबा और पीतल के बर्तनों का प्रयोग करें। अगर चांदी की थाल या जलपात्र हो तो यह भी प्रयोग में ला सकते हैं।

स्‍वास्तिक से करें शुभारंभ

नवरात्र के पहले दिन घर के मुख्‍य द्वार के दोनों तरफ स्‍वास्तिक बनाएं और दरवाजे पर आम के पत्ते का तोरण लगाएं। ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि माता इस दिन भक्तों के घर में आती हैं। जहां कलश बैठा रहे हों वहां भी पहले स्वास्तिक बना लेना चाहिए इससे वास्तु दोष दूर होता है।

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