कीरो – जो हस्त रेखा शास्त्र के अलावा नक्षत्र शास्त्री, भविष्यवक्ता, अंक शास्त्री के महान ज्ञाता थे

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कीरो का जीवन परिचय – Biography of Cheiro

महान हस्त रेखा शास्त्री कीरो का पूरा नाम काउण्ट लुईस हेमन (Count Louis Hamon) था। ये पूरे संसार में ‘‘कीरो‘‘ उपनाम से प्रसिद्ध हुए। इनका जन्म सन् 1866 में नारमन के एक सम्पन्न परिवार में हुआ था। वे बाद में इंग्लैण्ड में जाकर बसे। आयु-पर्यन्त इंग्लैण्ड के वासी रहे। सन् 1936 में उनका निधन हुआ ।

हस्त रेखा शास्त्र के अलावा नक्षत्र शास्त्री, भविष्यवक्ता, अंक शास्त्री के रूप में भी उनका यश संसार के कोने-कोने में फैला। ज्योतिष विषय पर उनका अध्ययन इतना गहरा था कि अपने जीवन काल में उन्होंने जितनी प्रसिद्धि प्राप्त की, मृत्यु उपरांत साठ वर्ष से ऊपर का अरसा बीत जाने के बाद भी उनके लिखे ग्रंथ ज्योतिष विद्या में रूचि रखने वालों के लिए मील के पत्थर साबित हो रहे हैं। उनकी लिखी हस्त रेखा विषय पर पुस्तक जितनी प्रामाणिक मानी जाती है, उससे कम करके अंक शास्त्र, और नक्षत्र शास्त्र की विषयों पर लिखी पुस्तकों को नहीं माना जा सकता।

ईश्वर ने उन्हें अप्रतिम बुद्धि प्रदान करी थी

उनकी विश्व प्रसिद्ध भविष्यवाणिया उनके जीवन काल में जहा चर्चा का विषय बनती रहीं, वहीं उनकी मौत के बाद भी की गयी भविष्यवाणिया सत्य होकर लोगों को हैरत में डालती रहीं। ज्योतिष के विविध विषयों पर उन्होंने जिस तरह विषय को लेखन बद्ध किया, उसे देखकर विस्मय होता है कि एक व्यक्ति, इतने विषयों में पारंगत कैसे हो गया। इस सम्बन्ध में यही कहा जा सकता है कि स्वयं ईश्वर ने मानव मात्र के कल्याण हेतु उन्हें अप्रतिम बुद्धि प्रदान की थी ।

ज्योतिष ही नहीं इन विद्याओ के ज्ञाता भी थे

ज्योतिष और भविष्यवक्ता के रूप में प्रसिद्ध होने से पूर्व उन्हें एक अच्छा पत्रकार, प्राध्यापक, जनवक्ता और सम्पादक माना जाता रहा । अपनी इस प्रकृति जन्म प्रतिभा से उन्होंने इंग्लैण्ड और पैरिस में निवास के प्रारम्भिक दिनों में लोगों को परिचय कराया। बाद में जब वे ज्योतिष विषय के अध्ययन के लिए मैदान में उतरे तो फिर अन्य विषयों की और मुड़कर नहीं देखा। वे इसी विषय की गृढ़ता में उतरते चले गये। उन्हें आयु पर्यन्त और अधिक सीखने की लालसा और लगन रही। यही कारण है कि हस्त रेखा शास्त्री के रूप् में विख्यात् होने के बाद उसी पर बस न करके उन्होंनें नक्षत्र विद्या का पूर्ण अध्ययन किया तथा अंक शास्त्र पर महारत हासिल की।

कीरो ने इस बात की जानकारी दुनिया को दी कि हस्त रेखा, ज्योतिष शास्त्र और नक्षत्र शास्त्र के जन्मदाता भारतीय हिन्दू रहे हैं, जिनकी ज्ञानमयी सभ्यता और अनेकों प्राचीन ग्रंथ नष्ट हो गये हैं। इसके बाद भी वह ज्ञान और विद्या मौखिक रूप से भारत के कुछेक ज्ञानियों और पण्डितों के पास जीवित हैं ।

कीरो क भारत भ्रमण

भारत भूमि पर आकर कीरों ने जो कुछ महसूस किया, उसकी खोज में स्वयं लग गये। उन्हें भारत भ्रमण के दौरान यह ज्ञात हुआ कि आर्यो के समय में भी हस्त ज्योतिष और नक्षत्र विज्ञान की जानकारी भारतीयों को थी। उस समय के ज्ञान को प्रमाणित करने वाले कुछ ग्रंथों के अवशेषों के देखने का भी अवसर कीरोें को प्राप्त हुआ। कीरो ने इस बात को भी आगे चलकर जाना कि भारत की प्राचीन सभ्यता और उच्च ज्ञान के कुछ आंशिक प्रमाण अब भी बचे हुए हैं।

उन्हें उत्तर भारत के पश्चिमी भाग में जोशी जाति के कुछ विद्वानों के बारे में जानकारी मिली, जिनके पास नक्षत्र विज्ञान की प्रामाणिक जानकारीया पीढ़ी-दर -पीढ़ी सुरक्षित चली आ रही थीं। वे उनके बीच गये। उस ज्ञान को, उनके बीच रहकर सीखा-समझा, उसे पुस्तक रूप में उतार कर संसार के सामने पेश कर भारतीय ज्ञान को महिमा मण्डित किया ।

उन्हें जोशी घराने के बींच रहकर सीखने के दौरान एक ऐसा विलक्षण प्राचीन ग्रंथ देखने को मिला जो अपने आप में बड़ा अद्भुत था। उस ग्रंथ को उस घराने के लोग ही समझ सकते थे। वे उसे बहुमूल्य खजाने के रूप में अपने पास संजोए हुए थे। उस ग्रंथ के बारे में कीरो ने लिखा है –

” यह ग्रंथ आदमी की चमड़ी का बना हुआ था। इस ग्रंथ के पृष्ठों को अत्यंत सावधानी और निपुणता के साथ सम्भाला गया था। वह आकार में बहुत बड़ा था और इसमें सैंकड़ों विचित्र उदाहरण थे। इसमें यह लिखा था कि कब-कब उन चित्रों में दी हुई रेखाएं और चिन्ह प्रामाणिक सिद्व हुए थे। उस ग्रंथ में विचित्र बात यह थी कि वह किसी ऐसी लाल स्याही से लिखा गया था, जिसकी चमक और रंगत युगों के अन्तराल भी न मिटा पाये थे। लगता था ग्रन्थ अभी-अभी लिखा गया है। “

कीरो के मतानुसार हस्तरेखा और नक्षत्र विज्ञान भारत से ही दूसरे देशों में फैला। प्राचीन काल में चीन, तिब्बत और मिस़्त्र तक इस ज्ञान के फैलने का जिक्र मिलता है। बौद्व भिक्षुओं के माध्यम् से दो हजार वर्ष पूर्व यह विद्या भारत के पड़ौसी देशों में जहा-जहा बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार होता रहा, प्राचीन ग्रंथों के माध्यम से जाती रही । भारत के बाद, कीरो के मतानुसार यूनान में ईसा से 423 वर्ष पूर्व में विद्याएं मौजूद थीं।

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