शुभ मुहूर्त: सम्पूर्ण जानकारी के साथ जाने महत्व और उपयोगिता

http://bit.ly/2N7iBdZ

शुभ मुहूर्त – Shubh Muhurat & Tithi 

मुहूर्त का मतलब है किसी शुभ और मांगलिक कार्य को शुरू करने के लिए एक निश्चित समय व तिथि का निर्धारण करना। अगर हम सरल शब्दों में इसे परिभाषित करें तो, किसी भी कार्य विशेष के लिए पंचांग के माध्यम से निश्चित की गई समयावधि को ‘मुहूर्त’ कहा जाता है। हिन्दू धर्म और वैदिक ज्योतिष में बिना मुहूर्त के किसी भी शुभ कार्य की कल्पना नहीं की जा सकती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हर शुभ कार्य को आरंभ करने का एक निश्चित समय होता है।

ऐसा इसलिए क्योंकि उस समय विशेष में ग्रह और नक्षत्र के प्रभाव से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, अतः इस समय में किये गये निर्विघ्न रूप से संपन्न और सफल होते हैं। हिंदू धर्म में विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन, अन्नप्राशन और कर्णवेध संस्कार समेत कई मांगलिक कार्य शुभ मुहूर्त में ही किये जाते हैं।

मुहूर्त का महत्व और उपयोगिता

प्राचीन काल से ही हिंदू धर्म में मुहूर्त को महत्व दिया जाता रहा है। मुहूर्त को लेकर किए गए कई अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि, ग्रह और नक्षत्रों की स्थिति की गणना करके ही मुहूर्त का निर्धारण किया जाता है। इसके अलावा हर महत्वपूर्ण और शुभ कार्य के दौरान यज्ञ और हवन करने की परंपरा है। ऐसी मान्यता है कि यज्ञ व हवन से उठने वाला धुआं वातावरण को शुद्ध करता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। हिन्दू समाज में लोग आज भी मांगलिक कार्यों के सफलतापूर्वक संपन्न होने की कामना के लिए शुभ घड़ी का इंतज़ार करते हैं।

मुहूर्त को लेकर अलग-अलग तर्क और धारणाओं के बीच, हमें चाहिए कि हम स्वयं जीवन में इसकी प्रासंगिकता और महत्व का अवलोकन करें। मुहूर्त की आवश्यकता क्यों होती है ? दरअसल मुहूर्त एक विचार है, जो इस धारणा का प्रतीक है कि एक तय समय और तिथि पर शुरू होने वाला कार्य शुभ व मंगलकारी होगा और जीवन में खुशहाली लेकर आएगा। ब्रह्मांड में होने वाली खगोलीय घटनाओं का हमारे जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है।

क्योंकि विभिन्न ग्रहों की चाल के फलस्वरूप जीवन में परिवर्तन आते हैं। ये बदलाव हमें अच्छे और बुरे समय का आभास कराते हैं। इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि हम वार, तिथि और नक्षत्र आदि की गणना करके कोई कार्य आरंभ करें, जो शुभ फल देने वाला साबित हो।

कैसे जानें शुभ मुहूर्त के बारे में 

मुहूर्त के बारे में जानने का एकमात्र साधन है पंचांग। वैदिक ज्योतिष में पंचांग का बड़ा महत्व होता है। पंचांग के 5 अंग; वार, तिथि, नक्षत्र, योग और करण की गणना के आधार पर मुहूर्त निकाला जाता है। इनमें तिथियों को पांच भागों में बांटा गया है। नंदा, भद्रा, जया, रिक्ता, और पूर्णा तिथि है। उसी प्रकार पक्ष भी दो भागों में विभक्त है; शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष।

वहीं नक्षत्र 27 प्रकार के होते हैं। एक दिन में 30 मुहूर्त होते हैं। इनमें सबसे पहले मुहूर्त का नाम रुद्र है जो प्रात:काल 6 बजे से शुरू होता है। इसके बाद क्रमश: हर 48 मिनट के अतंराल पर आहि, मित्र, पितृ, वसु, वराह, विश्वेदवा, विधि आदि होते हैं। इसके अलावा चंद्रमा और सूर्य के निरायण और अक्षांश को 27 भागों में बांटकर योग की गणना की जाती है।

नामकरण संस्कार

संक्रांति के दिन और भद्रा को छोड़कर 1, 2, 3, 5, 7, 10, 11, 12, 13 तिथियों में, जन्मकाल से ग्यारहवें या बारहवें दिन, सोमवार, बुधवार अथवा शुक्रवार को तथा जिस दिन अश्विनी, रोहिणी, मृगशिरा, हस्त, चित्रा, अनुराधा, तीनों उत्तरा, अभिजित, पुष्य, स्वाति, पुनर्वसु, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा इनमें से किसी नक्षत्र में चंद्रमा हो, तब बच्चे का नामकरण करना चाहिए।

मुण्डन संस्कार

जन्मकाल से अथवा गर्भाधान काल से तीसरे अथवा सातवें वर्ष में, चैत्र को छोड़कर उत्तरायण सूर्य में, सोमवार, बुधवार, बृहस्पतिवार अथवा शुक्रवार को ज्येष्ठा, मृगशिरा, चित्रा, स्वाति, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पुनर्वसु, अश्विनी, अभिजित व पुष्य नक्षत्रों में, 2, 3, 5, 7, 10, 11, 13 तिथियों में बच्चे का मुंडन संस्कार करना चाहिए।

विद्या आरंभ संस्कार

उत्तरायण में (कुंभ का सूर्य छोड़कर) बुध, बृहस्पतिवार, शुक्रवार या रविवार को, 2, 3, 5,6, 10, 11, 12 तिथियों में पुनर्वसु, हस्त, चित्रा, स्वाति, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, मूल, तीनों उत्तरा, रोहिणी, मूल, पूष्य, अनुराधा, आश्लेषा, रेवती, अश्विनी नक्षत्रों में विद्या प्रारंभ करना शुभ होता है।

मकान खरीदने के लिए

बना हुआ मकान खरीदने के लिए मृगशिरा, अश्लेषा, मघा, विशाखा, मूल, पुनर्वसु एवं रेवती नक्षत्र उत्तम हैं।

पैसों के लेन-देन के लिए

मंगलवार, संक्रांति दिन, हस्त नक्षत्र वाले दिन रविवार को ऋण लेने पर ऋण से कभी मुक्ति नहीं मिलती। मंगलवार को ऋण वापस करना अच्छा है। बुधवार को धन नहीं देना चाहिए। कृत्तिका, रोहिणी, आर्द्रा, आश्लेषा, उत्तरा तीनों, विशाखा, ज्येष्ठा, मूल नक्षत्रों में, भद्रा, अमावस्या में गया धन, फिर वापस नहीं मिलता बल्कि विवाद बढ़ जाता है।

ध्यान रखें की रोजमर्रा के कार्यों को करने के लिए कोई मुहूर्त नहीं निकाला जाता है, लेकिन विशेष कर्म व कार्यों की सफलता हेतु मुहूर्त निकलवाना चाहिए ताकि शुभ घड़ियों का लाभ मिल सके।

विशेष अवसरों पर शुभ मुहूर्त का महत्व

शुभ मुहूर्त किसी भी मांगलिक कार्य को शुरू करने का वह शुभ समय होता है जिसमें सभी ग्रह और नक्षत्र उत्तम परिणाम देने वाले होते हैं। हमारे जीवन में कई शुभ और मांगलिक अवसर आते हैं। इन अवसरों पर हमारी कोशिश रहती है कि ये अवसर और भी भव्य व बिना किसी रुकावट के शांतिपूर्वक संपन्न हों। ऐसे में हम इन कार्यों की शुरुआत से पूर्व शुभ मुहूर्त के लिए ज्योतिषी की सलाह लेते हैं।

लेकिन विवाह ,मुंडन और गृह प्रवेश समेत जैसे खास समारोह पर मुहूर्त का महत्व और भी बढ़ जाता है। विवाह जीवन भर साथ निभाने का एक अहम बंधन है इसलिए इस अवसर को शुभ बनाने के लिए हर परिवार शुभ घड़ी का इंतज़ार करता है ताकि उनके बच्चों के जीवन में सदैव खुशहाली बनी रहे। इसके अलावा कई अवसर जैसे गृह प्रवेश, प्रॉपर्टी और वाहन खरीदी जैसे कई कामों में भी शुभ मुहूर्त देखने की परंपरा है।

मुहूर्त से संबंधित सावधानियां

शुभ मुहूर्त में किये गये कार्य सफलता पूर्वक संपन्न होते हैं लेकिन अगर मुहूर्त को लेकर कोई चूक हो जाती है तो परिणाम इसके विपरीत भी आ सकते हैं। इसलिए जरूरी है कि सही मुहूर्त का चयन किया जाये। आजकल कई टीवी, इंटरनेट और समाचार पत्र में कई तीज, त्यौहार और व्रत से जुड़े मुहूर्त का उल्लेख होता है लेकिन फिर भी भ्रम की स्थिति से बचने के लिए एक बार ज्योतिषी से ज़रूर संपर्क करें। खासकर विवाह, मुंडन और गृह प्रवेश आदि कार्यों के लिए बिना ज्योतिषी की सलाह के आगे नहीं बढ़ें। क्योंकि शुभ मुहूर्त पर शुरू किया गया हर कार्य जीवन में सफलता, सुख-समृद्धि और खुशहाली लेकर आता है।

https://ift.tt/2DA3uB5 http://bit.ly/2pnaflz Bhaktisanskar.com – भक्ति और अध्यात्म का संगम शुभ मुहूर्त: सम्पूर्ण जानकारी के साथ जाने महत्व और उपयोगिता

आर्यभट्ट और ज़ीरो की खोज, Aryabhatta and Discovery of Zero in Hindi

http://bit.ly/2N72jSn

दुनिया के महानतम गणितज्ञ और खगोलविद “आर्यभट्ट” का जन्म पाटलिपुत्र में हुआ था, जो आज पटना के नाम से जाना जाता है| बहुत से मतों के अनुसार उनका जन्म दक्षिण भारत(केरल) में भी माना जाता है| आर्यभट्ट ने “आर्यभट्ट सिद्धांत” और “आर्यभट्टिया” नामक ग्रंथों का स्रजन किया था| उन्होंने अपने ग्रन्थ आर्यभट्टिया में गणित और खगोलविद का संग्रह किया है| इसमें उन्होंने अंकगणित, बीजगणित, सरल त्रिकोणमिति और गोलीय त्रिकोणमिति का उल्लेख किया है| इसमें उन्होंने वर्गमूल, घनमूल, सामानान्तर श्रेणी तथा विभिन्न प्रकार के समीकरणों का वर्णन भी किया है | उन्होनें ही पहली बार by= ax+ c aur by= ax-c

The post आर्यभट्ट और ज़ीरो की खोज, Aryabhatta and Discovery of Zero in Hindi appeared first on Hindi Soch.

https://ift.tt/2DA3uB5 http://bit.ly/2MfX52I Hindi Soch आर्यभट्ट और ज़ीरो की खोज, Aryabhatta and Discovery of Zero in Hindi

शीश गंग अर्धंग पार्वती सदा विराजत कैलासी

कृष्ण जन्माष्टमी : संसार के तारणहार का अलौकिक आगमन

http://bit.ly/2PftXKk

कृष्ण जन्माष्टमी – Krishna janmashtami

Lord Krishna Story in Hindi : भगवान के माता-पिता वसुदेव-देवकी विवाह के तत्काल बाद बड़े प्रेम से विदा होते हैं और ऐश्वर्यशाली कंस रथ के घोड़ों की बागडोर थाम बड़े प्रेम से बहिन को पहुंचाने के लिए चलता है। इतने में ही आकाशवाणी हुई:- ’कंस, तेरी मृत्यु देवकी के आठवें गर्भ से है।’

कंस का सारा प्रेम उड़ गया, स्वार्थी का प्रेम तभी तक रहता है जब तक उसके स्वार्थ में बाधा न पड़े। कंस देवकी के केश पकड़कर तलवार से उनका गला काटने ही वाला है। माता देवकी मौन है, न कंस से कहती हैं कि मुझे छोड़ दो और न वसुदेव से कहतीं है कि मुझे बचाओ।

ऐसी क्षमा, ऐसी शान्ति, ऐसी समता और ऐसा मौन जो देवकी जी को उस उच्च सिंहासन पर बिठा देता है कि वे वस्तुत: भगवान की माता बनने के योग्य हैं। वसुदेव शुद्ध अंतकरण, सत्त्वगुण का स्वरूप हैं और सूक्ष्म निष्काम एकाग्र बुद्धि देवकी हैं, इन दोनों के ही मिलन होने पर भगवान का जन्म होता है। ऐसे अवसर पर बल काम नहीं देता, बुद्धि काम देती है, वसुदेव जी ने साम, दाम एवं भेद से काम लिया। वसुदेवजी के द्वारा देवकी के बालकों के जन्म लेते ही कंस को देने की प्रतिज्ञा करने पर कंस मान गया, क्योंकि वसुदेवजी के सत्यप्रतिज्ञ होने का लोहा कंस भी मानता था।

पर कंस की बुद्धि स्थिर नहीं रही, कंस ने ही उनके सत्य पर संशय करके अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी और अविश्वास से वसुदेव-देवकी को बंदी बना लिया। अभिमान, यातना और आसुरी वृत्ति का साम्राज्य हो गया। कंस के अधीन रहकर ही देवकी-वसुदेव ने अपने को भगवान के अवतरण के योग्य बना लिया। कंस ने वसुदेव-देवकी को बहुत सताया तो भगवान का प्राकट्य शीघ्र हो गया। भक्तों के दु:ख भगवान से सहे नहीं जाते, दु:ख को सुख मानकर जो भक्ति करते हैं, उन्हें आनन्द मिलता है, आनन्द ही श्रीकृष्ण हैं।

माता देवकी के गर्भ में छह बालक आए और मारे गए। परमात्मा जगत में आते हैं तो उन्हें भी माया की जरुरत पड़ती है, परमात्मा माया को दासी बनाकर आते हैं। भगवान ने योगमाया को दो काम करने की आज्ञा दी, पहला काम देवकी का जो सातवां गर्भ है, उसे वहां से ले जाकर नन्दबाबा के गोकुल में रह रहीं वसुदेवजी की पत्नी रोहिणीजी के गर्भ में स्थापित कर दो और दूसरे, यशोदाजी के घर कन्या के रूप में जन्म लो।

भगवान के अंशस्वरूप ‘श्रीशेषजी’ सातवें बालक के रूप में माता देवकी के गर्भ में आए, योगमाया ने उन्हें रोहिणी जी के गर्भ में पहुंचा दिया। रोहिणी जी सगर्भा हुईं और भाद्रपद शुक्ल षष्ठी के दिन उसी गर्भ से भगवान अनन्त प्रकट हुए जो ‘बलदेव व संकर्षण’ कहलाए। कारागार के रक्षकों ने कंस को सूचना दी कि देवकी का सातवां गर्भ नष्ट हो गया है। तदनन्तर माता देवकी का आठवां गर्भ प्रकट हुआ।

जैसे प्राची (पूर्व दिशा) जगत को आह्लाद देने वाले चन्द्रमा को धारण करती है, वैसे ही जगदात्मा भगवान को माता देवकी जी ने धारण किया।

अब वसुदेवजी का मन भगवान के चिन्तन से भर गया और वसुदेवजी के मन में भगवान अपनी समस्त कलाओं के साथ प्रकट हो गए। जैसे दीये की लौ से दूसरी लौ प्रज्जवलित हो जाती है, वैसे ही वसुदेवजी के मन से देवकीजी का मन भी भगवच्चिन्तन से चमक उठा। वसुदेव जी के हृदय से भगवान देवकी जी के हृदय में आ गए। जब देवकी जी ने श्रीकृष्ण को धारण किया तो उनके मुख पर मुसकान थी।

बन्दीगृह देवकी जी के शरीर की कान्ति से जगमगा रहा था, वसुदेवजी स्वयं सूर्य के समान तेजस्वी प्रतीत हो रहे थे। जब कंस ने कारागार में इन दोनों को देखा तो मन-ही-मन उसने सोचा कि हो-न-हो यह विष्णु नामक मेरा शत्रु मेरे प्राणों को हरने के लिए जन्म लेने वाला है।

यह भी पढ़े :

ऐसा लगता है कि इस गुहा में कहीं मेरा प्राणहर्ता सिंह तो नहीं आ गया, देवकी जी को देखकर उसके क्रूर विचारों में अचानक परिवर्तन आ गया। ऐसा क्यों न हो; आज वह जिस देवकी को देख रहा है, उसके गर्भ में भगवान हैं। जिसके भीतर भगवान हैं, उसके दर्शन से सद्गुणों का उदय होना कोई आश्चर्य नहीं है। फिर भी कंस के मन में श्रीकृष्ण के प्रति दृढ़ वैरभाव था, वैर का भाव भी भक्ति का ही एक अंग है; क्योंकि वह उठते-बैठते, खाते-पीते, सोते-जागते–हर समय श्रीकृष्ण का ही चिन्तन किया करता था।

ईश्वर किसी को नहीं मारते, मनुष्य को उसका पाप ही मारता है। ब्रह्मा जी, शंकर जी तथा सभी देवता, नारदादि मुनियों के साथ वहां आए और गर्भस्थित भगवान की स्तुति करने लगे। यद्यपि गर्भवास को शास्त्रों में महादु:ख कहा गया है पर देवकी के इस गर्भ से न केवल पृथ्वीवासियों बल्कि देवताओं को भी आशा बंधीं थी।

उन्होंने गर्भस्थ ज्योति की वन्दना की:-

सत्यव्रतं सत्यपरं त्रिसत्यं सत्यस्य योनि निहितं च सत्ये।
सत्यस्य सत्यमृतसत्यनेत्रं सत्यात्मकं त्वां शरणं प्रपन्ना:॥ (श्रीमद्भागवत १०।२।२६)

अर्थात्:- ’तुम सत्यव्रती, सत्य परायण, सत्य के कारण, सत्य में आश्रित, सत्य के सत्य, ऋत और सत्य की दृष्टि से देखने वाले, तुम्हीं सत्य को प्रतिष्ठापित करोगे।’

इस प्रकार भगवान की स्तुति कर सभी देवता स्वर्ग में चले गए। जैसे अंत:करण शुद्ध होने पर उसमें भगवान का आविर्भाव होता है, श्रीकृष्णावतार के अवसर पर भी ठीक उसी प्रकार अष्टधा प्रकृति की शुद्धि का वर्णन किया गया है। जिस मंगलमय क्षण में परमानन्दघन श्रीकृष्ण का प्राकट्य हुआ, उस समय मध्यरात्रि थी, चारों ओर अंधकार का साम्राज्य था; परन्तु अकस्मात् सारी प्रकृति उल्लास से भरकर उत्सवमयी बन गई।

भगवान के आविर्भाव के पूर्व प्रकृति की शुद्धि व श्रृंगार स्वामी के शुभागमन का सूचक है। अपने स्वामी के मंगलमय आगमन की प्रतीक्षा में पृथ्वी नायिका के समान सज-धजकर स्वागत के लिए तैयार हो गयी। श्रीकृष्ण के आगमन के आनन्द में पंचमहाभूत पृथ्वी मंगलमयी, जल कमलाच्छादित, वायु सुगन्धपूर्ण और आकाश निर्मल होकर तारामालाओं से जगमगा उठा। लकड़ी के अंदर से अग्नि प्रकट होकर अपनी शिखाओं को हिला-हिलाकर नाचने लगी।

ऋषि, मुनि और देवता जब अपने सुमनों की वर्षा करने के लिए मथुरा की ओर दौड़े, तब उनका आनन्द भी पीछे छूट गया और उनके पीछे-पीछे दौड़ने लगा।

जय श्रीकृष्णा

https://ift.tt/2DA3uB5 http://bit.ly/2pnaflz Bhaktisanskar.com – भक्ति और अध्यात्म का संगम कृष्ण जन्माष्टमी : संसार के तारणहार का अलौकिक आगमन

जन्माष्टमी का दिन लागे बड़ा प्यारा ..

बाजे रे मुरलिया बाजे अधर धरे मोहन मुरली पर …

शुक्र का तुला राशि में गोचर- जानिए इस महासंयोग का प्रभाव आपकी राशि पर

http://bit.ly/2PMEKNn

तुला राशि में शुक्र का परिवर्तन – Venus Transition 2018

भोर का तारा नाम से मशहूर शुक्र ज्योतिषशास्त्र में अहम स्थान रखते हैं। इन्हें लाभ का कारक माना जाता है। कला में पारंगत अधिकांश वही जातक मिलते हैं जिनकी कुंडली में शुक्र का अच्छे हों। शुक्र के गोचर में होने वाली प्रत्येक हलचल से अनेक ज्योतिषीय घोषणाओं में परिवर्तन आते हैं। इन्हें मीन राशि में उच्च तो कन्या राशि में नीच का माना जाता है। हाल ही में अपनी नीच राशि को त्याग कर शुक्र स्वराशि तुला में प्रवेश कर रहे हैं। तुला राशि में बृहस्पति पहले से गोचर कर रहे हैं जो कि 10 अक्तूबर तक यहीं रहेंगें। शुक्र ग्रह का साल 2018 में यह अंतिम राशि परिवर्तन होगा। वर्ष के बाकि समय में शुक्र तुला राशि में बने रहेंगें। 6 अक्तूबर 2018 को शुक्र उल्टी चाल चलने लगेंगें जिसके पश्चात वह 16 नवंबर को मार्गी होंगे।

शुक्र ग्रह 1 सितंबर 2018, शनिवार को रात्रि 11:46 बजे कन्या से तुला राशि में गोचर करेगा और 1 जनवरी 2019, मंगलवार रात्रि 8:58 बजे तक इसी राशि में स्थित रहेगा। चूंकि शुक्र स्वयं तुला राशि का स्वामी है इसलिए तुला राशि वालों के लिए यह गोचर विशेष रूप से लाभकारी होगा। आईये जानते हैं सभी 12 राशियों पर शुक्र के गोचर का प्रभाव-

मेष राशि पर ये रहेगा प्रभाव 

मेष राशि वालों के लिये शुक्र सप्तम भाव में बृहस्पति के साथ गोचर कर रहे हैं। बृहस्पति के साथ शुक्र सम भाव रखते हैं ऐसे में आपके लिये सप्तम भाव में शुक्र का गुरु के साथ युति करना सेहत के मामले में मिले-जुले परिणाम लेकर आ सकता है। विद्यार्थियों के लिये समय अच्छा कहा जा सकता है। इस समय आपका रोमांटिक जीवन बहुत ही शानदार रहने की उम्मीद कर सकते हैं। जो विवाहित जातक संतान प्राप्ति के लिये प्रयासरत हैं उन्हें भी खुशखबरी मिल सकती है। अविवाहित जातकों को विवाह के प्रस्ताव मिल सकते हैं। व्यावसायिक तौर पर भी आप लाभ की स्थिति में रह सकते हैं।

उपायः शुक्रवार को सफेद चंदन दान करें।

वृष राशि पर ये रहेगा प्रभाव 

शुक्र आपकी राशि के स्वामी भी हैं। राशि स्वामी शुक्र का छठे घर में बृहस्पति के साथ होना आपके लिये, संतान प्राप्ति के योग बना रहा है। शिक्षाक्षेत्र से जुड़े जातकों के लिये भी समय सकारात्मक रह सकता है। इस समय आप अपने प्रतिद्वंदियों पर हावि रह सकते हैं। स्वास्थ्य भी अच्छा रहने की उम्मीद कर सकते हैं। तन मन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार रहेगा। जो जातक नौकरी बदलना चाहते हैं या रोजगार पाने के अभिलाषी हैं उनके लिये नई नौकरी पाने के अवसर मिल सकते हैं। ननिहाल से कोई शुभ समाचार मिल सकता है।

उपायः किसी मंदिर की पुजारिन को इत्र भेंट करें।

मिथुन राशि पर ये रहेगा प्रभाव 

मिथुन राशि वालों के लिये पंचम भाव में आ रहे हैं। प्रेम पाने की चाह रखने वाले जातकों के लिये अपने प्यार को प्रभावित करने के अच्छे अवसर मिल सकते हैं। उनकी नज़रों में आने का आपका उद्देश्य भी पूर्ण हो सकता है। जिसे आप चाहते हैं उनसे अपने दिल की बात कहने के लिये यह समय सही साबित हो सकता है। आपका रोमांटिक जीवन रोमांच से भरपूर रहने के आसार हैं। विद्यार्थी भी अपनी शिक्षा व अध्ययन पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं।

उपायः ‘’ॐ शुं शुक्राय नमः’’ मंत्र का जाप करें।

कर्क राशि पर ये रहेगा प्रभाव 

आपकी राशि से शुक्र सुख भाव में बृहस्पति के साथ गोचररत हैं। यह समय आपके लिये लाभप्राप्ति के योग बना रहा है। जो जातक फैशनेबल या फैबरिक कपड़ों का व्यवसाय शुरु करना चाहते हैं उनके लिये परिस्थितियां अनुकूल रहने की उम्मीद कर सकते हैं। अपने लिये नया घर अथवा गाड़ी संजोने का सपना भी इस समय पूरा कर सकते हैं। कुल मिलाकर इस समय आप एक शाही जीवन का आनंद ले सकते हैं।

उपायः भगवान शिव की आराधना करें और उन्हें सफेद पुष्प चढ़ाएँ।

सिंह राशि पर ये रहेगा प्रभाव 

शुक्र आपकी राशि से पराक्रम भाव में गोचर कर रहे हैं जहां पर बृहस्पति पहले से विचरण कर रहे हैं। दोनों ग्रहों का यह योग आपके लिये छोटी यात्राओं के योग बना रहा है जिनका आप लुत्फ़ उठा सकते हैं। धन प्राप्ति के योग भी इस समय आपके लिये बन रहे हैं। किसी पुराने मित्र अथव संबंधी से मुलाकात हो सकती है जिनसे बहुत दिनों से आपकी मुलाकात नहीं हो पाई है। व्यावसायिक जीवन के लिये भी समय अनुकूल रह सकता है।

उपायः गाय की पूजा करें और उन्हें चारा खिलाएँ।

कन्या राशि पर ये रहेगा प्रभाव 

आपकी राशि से धन भाव में शुक्र, बृहस्पति के साथ द्विग्रही योग बना रहे हैं। वित्तीय रूप से लाभ प्राप्ति की उम्मीद इस समय आप कर सकते हैं। क्रय-विक्रय यानि सौदेबाजी के लिये समय अच्छा कहा जा सकता है आपको फायदा मिल सकता है। संचार कौशल ही इस समय आपकी सफलता की कुंजी साबित हो सकता है। आपका रोमांटिक मूड आपके प्रेम जीवन में रोमांच पैदा कर सकता है। इस समय आप अपने साथी को खुश रख सकते हैं।

उपायः शुष्क चावल से भगवान शिव एवं माँ पार्वती की आराधना करें।

तुला राशि पर ये रहेगा प्रभाव 

शुक्र आपकी राशि के स्वामी भी हैं जो कि अपनी नीच राशि को त्याग कर आपकी राशि में दाखिल हुए हैं। बृहस्पति पहले से ही आपकी राशि में विराजमान हैं। ग्रहों का यह योग आपके लिये अनुकूल रहने की उम्मीद कर सकते हैं। इस समय आप अपेक्षित परिणाम मिलने की उम्मीद रख सकते हैं। आपका कोई सपना साकार हो सकता है। नये घर अथवा गाड़ी की खरीद को लेकर उत्साहित हो सकते हैं। घरेलू जीवन भी सौहार्दपूर्ण रहने के आसार हैं। साथी के साथ किसी पर्यटक स्थल की यात्रा का विचार बना सकते हैं।

उपायः ‘’ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः’’ मंत्र का जाप करें:

वृश्चिक राशि पर ये रहेगा प्रभाव 

आपकी राशि से शुक्र बारहवें भाव में बृहस्पति के साथ गोचर कर रहे हैं। इस समय आप अपनी पसंद का कुछ खरीद सकते हैं। इसके लिये आप आर्थिक तौर पर भी सक्षम रह सकते हैं। किसी लंबी दूरी की यात्रा भी आप इस समय कर सकते हैं। कुल मिलाकर यह समय आपके लिये बेहतरीन कहा जा सकता है। आप जीवन का पूरा लुत्फ़ उठा सकते हैं।

उपायः कन्याओं को खीर खिलाएं।

धनु राशि पर ये रहेगा प्रभाव 

धनु राशि वालों के लिये शुक्र लाभ क्षेत्र के स्वामी हैं जो कि स्वराशिगत गोचर कर रहे हैं। लाभ स्थान में बृहस्पति के साथ होने से इस समय आप अपेक्षित परिणाम मिलने की उम्मीद कर सकते हैं। गत दिनों आपने जो कठिन परिश्रम किया है उसका लाभ भी आपको मिल सकता है। रोमांटिक जीवन भी इस समय शानदार रहने के आसार हैं। साथी का भरपूर सहयोग आपको मिलने की संभावना है। यात्रा के योग भी आपके लिये बन रहे हैं। खाने-पीने पर कुछ ज्यादा जोर रहने के आसार भी हैं।

उपायः माँ लक्ष्मी जी की कृपा दृष्टि पाने के लिए श्री सूक्त का जाप करें।

मकर राशि पर ये रहेगा प्रभाव 

आपकी राशि से शुक्र का परिवर्तन कर्मक्षेत्र में हुआ है जहां वे गुरु के साथ गोचर कर रहे हैं। व्यावसायिक रूप से यह समय आपके लिये शानदार कहा जा सकता है। कार्यस्थल पर आपके काम की सराहना भी हो सकती है। व्यवसायी जातकों के लिये भी यह समय अनुकूल रहने के आसार हैं। हालांकि व्यावसायिक व्यस्तताओं के कारण आपका व्यक्तिगत जीवन प्रभावित हो सकता है। जहां तक संभव हो सके अपने व्यक्तिगत एवं व्यावसायिक जीवन में संतुलन बनाये रखने का प्रयास करें। कुल मिलाकर देखा जाये तो यह आपके लिये शानदार दौर कहा जा सकता है।

उपायः माँ दुर्गा की आराधना करें।

कुंभ राशि पर ये रहेगा प्रभाव 

आपकी राशि से शुक्र भाग्य स्थान में बृहस्पति के साथ विचरण कर रहे हैं। इस समय आपको भाग्य का पूरा साथ मिलने के आसार हैं। कामकाजी जीवन में भी यह आपके लिये कार्योन्नति का समय है, विकास करने का समय है। इस समय आपको अपेक्षित परिणाम मिल सकते हैं। स्वास्थ्य के मामले में भी यह आपके लिये बेहतरीन समय रहने वाला है। परिवार में किसी विवाह समारोह का आयोजन हो सकता है। कुल मिलाकर यह समय आपके लिये मौज-मस्ती करने का समय है।

उपायः छोटी कन्याओं का आशीर्वाद लें।

मीन राशि पर ये रहेगा प्रभाव 

आपकी राशि से शुक्र का प्रवेश अष्टम भाव में हुआ है। छोटे भाई बहनों की सेहत के प्रति आप थोड़े चिंतित रह सकते हैं। हालांकि यह परिस्थितियां बदलते भी देर नहीं लगेगी और सब कुछ ठीक होने की संभावनाएं हैं। कार्यस्थल पर काम का दबाव रह सकता है। प्रतिस्पर्धात्मक अवसरों पर आपको सफलता प्राप्त हो सकती है। लेकिन अपनी सेहत को लेकर थोड़ा सचेत रहें। विशेषकर डॉयबिटिक रोगी सावधानी बरतें।

उपायः शुक्रवार के दिन माँ दुर्गा को केसर युक्त खीर का भोग लगाएँ।

https://ift.tt/2DA3uB5 http://bit.ly/2pnaflz Bhaktisanskar.com – भक्ति और अध्यात्म का संगम शुक्र का तुला राशि में गोचर- जानिए इस महासंयोग का प्रभाव आपकी राशि पर

बल्ले बल्ले बधाई सारे भगतां ने 

http://bit.ly/2PQ89Gu

नन्द के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की
हाथी घोडा पालकी जय कन्हैया लाल की

सारे ब्रज में शोर मचा है, गोकुल में है हल्ला
नन्द यशोदा के घर जन्मा सोहणा सोहणा लल्ला
बल्ले बल्ले बधाई सारे भगतां ने

धन घड़ी धन भाग्य हमारा ऐसा शुभ दिन आया
हम भगतों की रक्षा करने कृष्णा कन्हैया आया
बल्ले बल्ले बधाई सारे भगतां ने

बाल कृष्णा के दर्शन करने देवी देवता आएं
पलने में पालनहारी को देख सभी सुख पाएं
बल्ले बल्ले बधाई सारे भगतां ने

सोड़ा सोड़ा चाँद सा मुखड़ा नजर नहीं लग जावे
लल्ला के मस्तक पे मैया काली टिकी लगावे
बल्ले बल्ले बधाई सारे भगतां ने

बनवारी जन्माष्टमी आई घर घर थाल बजाओ
झूमो नाचो ख़ुशी मनाओ जय जयकार लगाओ
बल्ले बल्ले बधाई सारे भगतां ने

https://ift.tt/2DA3uB5 http://bit.ly/2pnaflz Bhaktisanskar.com – भक्ति और अध्यात्म का संगम बल्ले बल्ले बधाई सारे भगतां ने 

मै तो सांवरे के रंग राची – मीरा बाई के पद

वो काला एक बासुँरी वाला, सुध बिसरा गया मोरि रे ..

मैया मोरी मैं नहिं माखन खायो …

मूलाधार चक्र – जानिए चक्र जागरण करने की विधि, मंत्र और नियम से होने वाले लाभ को

http://bit.ly/2PKv5GY

मूलाधार चक्र जागरण – Muladhar Chakra

मूलाधार चक्र ऊर्जा-शरीर की बुनियाद है। आजकल लोग सोचते हैं कि मूलाधार सबसे निचला चक्र है इसलिए उसकी इतनी अहमियत नहीं है। जो भी यह सोचता है कि बुनियाद पर ध्यान देने की जरूरत नहीं है, वह दरअसल भ्रम में है। जैसे किसी इमारत की बुनियाद सबसे महत्वपूर्ण होती है, उसी तरह मूलाधार सबसे महत्वपूर्ण चक्र होता है। जब हम योग करते हैं, तो हम किसी और चीज से अधिक मूलाधार पर ध्यान देते हैं। क्योंकि अगर आपने इसे सुदृढ़ और स्थिर कर लिया, तो बाकियों का निर्माण आसान हो जाता है।

अगर आपका मूलाधार मजबूत हो, तो जीवन हो या मृत्यु, आप स्थिर रहेंगे क्योंकि आपकी नींव मजबूत है और बाकी चीजों को हम बाद में ठीक कर सकते हैं। लेकिन अगर नींव डगमगा रही हो, तो चिंता स्वाभाविक है।

मूलाधार चक्र क्या है

मूलाधार दो शब्दों से मिलकर बना है मूल + आधार | जहाँ पर मूल का अर्थ होता है जड़ और आधार का अर्थ होता है नीवं | मनुष्य शरीर का निर्माण उसकी माँ के गर्भ से होता है तो उसकी जड़ें वहीँ से होती है और उसका आधार भी वही है | आपको पता ही होगा कि शिशु के मनुष्य रूप में आकार लेने से पहले वो मात्र एक मांस का गोला होता है| धीरे धीरे वो मनुष्य शरीर धारण करता है |

मूलाधार चक्र का स्थान 

यह चक्र मेरुदंड की अंतिम हड्डी या गुदाद्वार के मुख्य के पास स्थित होता है या यु कहे की ये मनुष्य के रीढ़ की हड्डी के बिलकुल नीचे स्थित होता है | जिसके कारण इसे जड़ चक्र के नाम से भी जाना जाता है | यह मानव चक्रों में सबसे पहला चक्र है और इसका भौतिक शरीर के साथ एक अभिन्न संबंध है।

मूलाधार चक्र अनुत्रिक के आधार में स्थित है, यह मानव चक्रों में सबसे पहला है। मूलाधार चक्र पशु और मानव चेतना के मध्य सीमा निर्धारित करता है। इसका संबंध अचेतन मन से है, जहां पिछले जीवनों के कर्म और अनुभव संग्रहीत होते हैं। अत: कर्म सिद्धान्त के अनुसार यह चक्र हमारे भावी प्रारब्ध का मार्ग निर्धारित करता है। यह चक्र हमारे व्यक्तित्व के विकास की नींव भी है।
इस चक्र की 2 संभावनाएं हैं। इसकी पहली प्राकृतिक संभावना है सेक्स की और दूसरी संभावना है ब्रम्हचर्य की, जो ध्यान से प्राप्य है। सेक्स प्राकृतिक संभावना है और ब्रह्मचर्य इसका परिवर्तन है।

मूलाधार चक्र का मंत्र 

Muladhara-Chakra-hdइस चक्र का मन्त्र होता है – लं | मूलाधार चक्र को जाग्रत करने के लिए आपको लं मंत्र का जाप करते हुए ध्यान लगाना होता है, मूलाधार चक्र के चिह्न की ऊर्जा और ऊपर उठने की गति दोनों ही विशेषता होती हैं। चक्र का रंग लाल है जो शक्ति का रंग है। शक्ति का अर्थ है ऊर्जा, गति, जाग्रति और विकास।

लाल सुप्त चेतना को जाग्रत कर सक्रिय, सतर्क चेतना का प्रतीक है। मूलाधार चक्र का एक दूसरा प्रतीक चिह्न उल्टा त्रिकोण है, जिसके दो अर्थ हैं। एक अर्थ बताता है कि ब्रह्माण्ड की ऊर्जा खिंच रही है और नीचे की ओर इस तरह आ रही जैसे चिमनी में जा रही हो। अन्य अर्थ चेतना के ऊर्ध्व प्रसार का द्योतक है। त्रिकोण का नीचे कीओर इंगित करने वाला बिन्दु प्रारंभिक बिन्दु है, बीज है, और त्रिकोण के ऊपर की ओर जाने वाली भुजाएं मानव चेतना की ओर चेतना के प्रगटीकरण के द्योतक हैं।

मूलाधार चक्र का प्रतिनिधित्व करने वाला पशु ७ सूंडों वाला एक हाथी है। हाथी बुद्धि का प्रतीक है। ७ सूंडें पृथ्वी के ७ खजानों (सप्तधातु) की प्रतीक हैं। मूलाधार चक्र का तत्त्व पृथ्वी है, हमारी आधार और ‘माता’, जो हमें ऊर्जा और भोजन उपलब्ध कराती है।

मूलाधार चक्र जागरण के प्रभाव 

जब मनुष्य के अन्दर मूलाधार चक्र जागृत हो जाता है अपने आप ही उसके स्वभाव में परिवर्तन आने लगता है | व्यक्ति के भीतर वीरता, निर्भीकता और आनंद का भाव जाग्रत हो जाता है। और दुसरे शब्दों में हम कह सकते हैं की सिद्धियां प्राप्त करने के लिए वीरता, निर्भीकता और जागरूकता का होना जरूरी है। इस चक्र के जागृत होने से मन में आनंद का भाव भी उत्पन्न हो जाता है | ध्यान रहे की सबसे पहले मूलाधार चक्र को ही जागृत करना पड़ता है | जब व्यक्ति अपनी कुंदिलिनी शक्ति को जाग्रत करना चाहता है तो उसकी शुरुआत भी उसे मूलाधार चक्र से ही करनी पड़ती है

मूलाधार चक्र जागृत करने की विधि 

मूलाधार चक्र के सांकेतिक चित्र में चार पंखुडिय़ों वाला एक कमल है। ये चारों मन के चार कार्यों : मानस, बुद्धि, चित्त और अहंकार का प्रतिनिधित्व करते हैं 

मनुष्य तब तक पशुवत है, जब तक कि वह इस चक्र में जी रहा है इसीलिए भोग, निद्रा और संभोग पर संयम रखते हुए इस चक्र पर लगातार ध्यान लगाने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है। इसको जाग्रत करने का दूसरा नियम है यम और नियम का पालन करते हुए साक्षी भाव में रहना, और इस प्रणाली को अपनाना है –

  • आराम से बैठ जायें अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधा रखें और अपने ध्यान को अपने पेरिनियम (गुदा और जननेन्द्रियों के बीच के स्थान) पर केंद्रित करें।
  • अपनी तर्जनी ऊँगली और अंगूठे के साथ एक वृत्त बनाएं। हथेलियों को अपने घुटनों पर आकाश की ओर देखते हुए रखते हुए हाथों को विश्राम कराएं।
  • गहरा श्वास लें और छोड़ दें।
  • 7 से 10 श्वास लेते हुए दोहराएं।

मूलाधार चक्र के जागरण नियम

मूलाधार चक्र को जागृत करने के लिए आपको कुछ नियमों का पालन करना होगा इनका पालन करके ही आप मूलाधार चक्र को जागृत करने में समक्ष बन सकते हैं |वो नियम हैं जैसे कुछ दुष्कर्मों जैसे संभोग, भोग और नशा से दूर रहना होगा | जब तक कोई व्यक्ति अपने पहले शरीर में ब्रह्मचर्य तक नहीं पहुंचता, फिर अन्य केंद्रों (चक्र) की संभावना पर काम करना मुश्किल होता है।

मूलाधार चक्र जागरण के प्रभाव 

जब मनुष्य के अन्दर मूलाधार चक्र जागृत हो जाता है अपने आप ही उसके स्वभाव में परिवर्तन आने लगता है | व्यक्ति के भीतर वीरता, निर्भीकता और आनंद का भाव जाग्रत हो जाता है। और दुसरे शब्दों में हम कह सकते हैं की सिद्धियां प्राप्त करने के लिए वीरता, निर्भीकता और जागरूकता का होना जरूरी है। इस चक्र के जागृत होने से मन में आनंद का भाव भी उत्पन्न हो जाता है | ध्यान रहे की सबसे पहले मूलाधार चक्र को ही जागृत करना पड़ता है | जब व्यक्ति अपनी कुंदिलिनी शक्ति को जाग्रत करना चाहता है तो उसकी शुरुआत भी उसे मूलाधार चक्र से ही करनी पड़ती है

http://bit.ly/2PdZSuH http://bit.ly/2pnaflz Bhaktisanskar.com – भक्ति और अध्यात्म का संगम मूलाधार चक्र – जानिए चक्र जागरण करने की विधि, मंत्र और नियम से होने वाले लाभ को

हस्त मुद्राऐं – जाने कैसे पांच उंगलियां ब्रह्मांड के पांच तत्वों का प्रतिनिधित्व करती हैं

http://bit.ly/2ogWJyM

हस्त मुद्राऐं – 11 Hast Mudra 

क्या आप जानते हैं कि आपके हाथों में एक सहज चिकित्सा शक्ति है जिसका उपयोग सदियों से विभिन्न बीमारियों को उपचार करने के लिए किया गया है | योग विज्ञान के अनुसार, मानव शरीर में पांच बुनियादी तत्व शामिल हैं – पंच तत्व । हाथ की पांच अंगुलियां शरीर में इन महत्वपूर्ण तत्वों से जुड़ी हुई हैं और इन मुद्राओं का अभ्यास करके आप अपने शरीर में इन 5 तत्वों को नियंत्रित कर सकते हैं। इन मुद्राओं को आपके शरीर के विभिन्न भागों में ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित करने के लिए उपयोग किया जाता है।

पांच उंगलियां ब्रह्मांड के पांच तत्वों का प्रतिनिधित्व करती हैं

  • तर्जनी ऊँगली – यह उंगली हवा के तत्व का प्रतिनिधित्व करती है । ये उंगली आंतों Gstro intestinal tract से जुडी होती है । अगर आप के पेट में दर्द है तो इस उंगली को हल्का सा रगड़े , दर्द गयब हो जायेगा।
  • छोटी उंगली ( कनिष्ठ ) – यह जल तत्व का प्रतिनिधित्व करती है ।
  • अंगूठा – यह अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करता है ।
  • अनामिका – यह पृथ्वी तत्व का प्रतिनिधित्व करती है ।
  • बीच की उंगली (मध्यमा ) – यह आकाश तत्व का प्रतिनिधित्व करती है । यह हमारे शरीर में भक्ति और धैर्य से भावनाओं के रूपांतरण को नियंत्रित करती है।

महत्वपूर्ण हस्त मुद्रायों के नाम 

1- अग्नि मुद्रा
2- अपान मुद्रा
3- अपानवायु मुद्रा
4- शून्य मुद्रा
5- लिंग मुद्रा
6- वायु मुद्रा
7- वरुण मुद्रा
8- सूर्य मुद्रा
9- प्राण मुद्रा
10- ज्ञान मुद्रा
11- पृथ्वी मुद्रा

हस्त मुद्राये – विशेष निर्देश

1. कुछ मुद्राएँ ऐसी हैं जिन्हें सामान्यत पूरे दिनभर में कम से कम 45 मिनट तक ही लगाने से लाभ मिलता है | इनको आवश्यकतानुसार अधिक समय के लिए भी किया जा सकता है | कोई भी मुद्रा लगातार 45 मिनट तक की जाए तो तत्व परिवर्तन हो जाता है |

2. कुछ मुद्राएँ ऐसी हैं जिन्हें कम समय के लिए करना होता है, इनका वर्णन उन मुद्राओं के आलेख में किया गया है |

3. कुछ मुद्राओं की समय सीमा 5-7 मिनट तक दी गयी है | इस समय सीमा में एक दो मिनट बढ़ जाने पर भी कोई हानी नहीं है, परन्तु ध्यान रहे की यदि किसी भी मुद्रा को अधिक समय तक लगाने से कोई कष्ट हो तो मुद्रा को तुरंत खोल दें |

4. ज्ञान मुद्रा, प्राण मुद्रा, अपान मुद्रा काफी लम्बे समय तक की जा सकती है |

5. कुछ मुद्राएँ तुरंत प्रभाव डालती है जैसे- कान दर्द में शून्य मुद्रा, पेट दर्द में अपान मुद्रा/अपानवायु मुद्रा, एन्जायना में वायु मुद्रा/अपानवायु मुद्रा/ऐसी मुद्रा करते समय जब दर्द समाप्त हो जाए तो मुद्रा तुरंत खोल दें |

6. लम्बी अविधि तक की जाने वाली मुद्राओं का अभ्यास रात्री को करना आसन हो जाता है | रात सोते समय मुद्रा बनाकर टेप बांध दें, और रात्री में जब कभी उठें तो टेप हटा दें | दिन में भी टेप लगाई जा सकती है क्यूंकि लगातार मुद्रा करने से जल्दी आराम मिलता है |

7. वैसे तो अधिकतर मुद्राएँ चलते-फिरते, उठते-बैठते, बातें करते कभी भी कर सकते हैं, परन्तु यदि मुद्राओं का अभ्यास बैठकर, गहरे लम्बे स्वासों अथवा अनुलोम-विलोम के साथ किया जाए तो लाभ बहुत जल्दी हो जाता है |

8. छोटे बच्चों, कमजोर व्यक्तियों व् अपत स्थिति उदहारण के लिए अस्थमा, अटैक, लकवा आदि में टेप लगाना ही अच्छा है |

9. दायें हाथ की मुद्रा शरीर के बायें भाग को और बाएं हाथ की मुद्रा शरीर के दायें भाग को प्रभावित करती है | जब शरीर के एक भाग का ही रोग हो तो एक हाथ से वांछित मुद्रा बनायें और दुरे हाथ से प्राण मुद्रा बना लें | प्राण मुद्रा हमारी जीवन शक्ति बढ़ाती है, और हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है | परन्तु सामान्यत कोई भी मुद्रा दोनों हाथों से एक साथ बनानी चाहिए |

10. भोजन करने के तुरंत बाद सामान्यतः कोई भी मुद्रा न लगाएं | परन्तु भोजन करने के बाद सूर्य मुद्रा लगा सकते हैं | केवल आपात स्थिति में ही भोजन के तुरंत बाद मुद्रा बना सकते हैं जैसे-कान दर्द, पेट दर्द, उल्टी आना, अस्थमा अटैक होना इत्यादि.

11. यदि एक साथ दो तीन मुद्रायों की आवश्यकता हो और समय का आभाव हो तो एक साथ दो मुद्राएँ भी लगाई सकती हैं | जैसे- सूर्य मुद्रा और वायु मुद्रा एक साथ लागएं अन्यथा एक हाथ से सूर्य मुद्रा और दुसरे हाथ से वायु मुद्रा भी बना सकते हैं | ऐसी परिस्थिति में 15-15 मिनट बाद हाथ की मुद्राएँ बदल लें |

12. एक मुद्रा करने के बाद दूसरी मुद्रा तुरंत लगा सकते हैं, परन्तु विपरीत मुद्रा न हो |

हस्त मुद्रायों से लाभ –

1- शरीर की सकारात्मक सोच का विकास करती है ।

2- मस्तिष्क, हृदय और फेंफड़े स्वस्थ बनते हैं।

3- ब्रेन की शक्ति में बहुत विकास होता है।

4- इससे त्वचा चमकदार बनती है|

5- इसके नियमित अभ्यास से वात-पित्त एवं कफ की समस्या दूर हो जाती है।

6- सभी मानसिक रोगों जैसे पागलपन, चिडचिडापन, क्रोध, चंचलता, चिंता, भय, घबराहट, अनिद्रा रोग, डिप्रेशन में बहुत लाभ पहुंचता है ।

7- वायु संबन्धी समस्त रोगों में लाभ होता है ।

8- मोटापा घटाने में बहुत सहायक होता है ।

9- ह्रदय रोग और आँख की रोशनी में फायदा करता है।

10- साथ ही यह प्राण शक्ति बढ़ाने वाला होता है।

11- कब्ज और पेशाब की समस्याओ में फायदा है।

12- इसको निरंतर अभ्यास करने से नींद अच्छी तरह से आने लगती है और साथ में आत्मविश्वास भी बढ़ता है।

http://bit.ly/2BTqzmD http://bit.ly/2pnaflz Bhaktisanskar.com – भक्ति और अध्यात्म का संगम हस्त मुद्राऐं – जाने कैसे पांच उंगलियां ब्रह्मांड के पांच तत्वों का प्रतिनिधित्व करती हैं

रे मन मूरख, जनम गँवायौ …

अपनी विफलताओं से सीखो | Failure is The Best Teacher

http://bit.ly/2ogKqm4

थॉमस अल्वा एडिसन, ये नाम है उस छोटे से बच्चे का जिसे लोग मूर्ख समझा करते थे | बचपन में अपनी कई शरारतों की वजह से इसको स्कूल से भी निकाल दिया गया | एडिसन का एक famous किस्सा तो सभी जानते ही होंगे जब एक बार क्लास में टीचर पढ़ा रही थी कि पक्षी आसमान में उड़ते हैं क्यूंकी उनके पंख होते हैं | एडिसन ने कुछ सोचकर टीचर से पूछा की पतंग के तो कोई पंख नहीं होते फिर भी वो कैसे उड़ती है| टीचर को बच्चे का ये सवाल मूर्खतापूर्ण लगा और उसे डाँट दिया | लेकिन

The post अपनी विफलताओं से सीखो | Failure is The Best Teacher appeared first on Hindi Soch.

https://ift.tt/2DA3uB5 http://bit.ly/2MfX52I Hindi Soch अपनी विफलताओं से सीखो | Failure is The Best Teacher

तेरो लाल यशोदा छल गयो री, मेरो माखन चुराकर …

समय का सदुपयोग और महत्व पर एक प्रेरक कहानी

http://bit.ly/2LsVF3Z

युवाओं के लिए समय का सदुपयोग और महत्व पर एक प्रेरक कहानी समय अमूल्य चीज़ है| दुनिया में अधिकतर लोग तो इसका मूल्य जीवन भर जान ही नहीं पाते और पूरा जीवन बस इधरउधर भटकने में निकाल देते हैं| समय एक ऐसी चीज़ है जो कभी किसी के लिए नहीं रुकता वो बस चलता जाता है| जो लोग इसका सही उपयोग करते है वो life मे कुछकर जाते हैं और बाकी लोगों को सिर्फ़ पछताना पड़ता है| एक उदाहरण के लिए, सोचो अगर आपका किसी बैंक में कोई अकाउंट है और रोज सुबह उसमें कोई 86,400 रुपये जमा करा देता

The post समय का सदुपयोग और महत्व पर एक प्रेरक कहानी appeared first on Hindi Soch.

https://ift.tt/2DA3uB5 http://bit.ly/2MfX52I Hindi Soch समय का सदुपयोग और महत्व पर एक प्रेरक कहानी

सावन के बाद आया भगवान श्रीकृष्ण के प्रकटोत्सव का मास भाद्रपद

http://bit.ly/2w2HfTx

श्री कृष्ण के प्रकटोत्सव का मास भाद्रपद – Bhado 2018

हिन्दू पंचांग के अनुसार साल के छठे महीने को भाद्रपद अथवा भादों का महीना कहा जाता है। ये श्रावण माह के बाद और आश्विन माह से पहले आता है। सावन शंकर का महीना है तो भादों श्रीकृष्ण का माह माना जाता है। इस माह में श्री कृष्ण जन्माष्टमी का त्यौहार सभी हिन्दू मनाते हैं। 27 अगस्त 2018 से 25 सितम्बर 2018 तक भादों का माह रहेगा।

भादों भगवान श्रीकृष्ण के प्रकटोत्सव का मास है। इस दिन भगवान विष्णु के 8वें अवतार के रूप में श्रीकृष्ण ने भादों के महीने के कृष्ण पक्ष में रोहिणी नक्षत्र के अंतर्गत हर्षण योग वृष लग्न में जन्म लिया। श्रीकृष्ण की उपासना को समर्पित भादों मास विशेष फलदायी कहा गया है। भाद अर्थात कल्याण देने वाला। कृष्ण पक्ष स्वयं श्रीकृष्ण से संबंधित है। भादों का माह भी, सावन की तरह ही पवित्र माना जाता है। इस माह में कुछ विशेष पर्व पड़ते हैं जिनका अपना-अपना अलग महत्त्व होता है। आइये जानते हैं, भादों माह के कुछ विशेष व्रत और पर्व

कजली या कजरी तीज

भाद्रपद कृष्ण तृतीया को कज्जली तीज के नाम से भी जाना जाता है। इस त्यौहार को राजस्थान के कई क्षेत्रों में विशेष रूप से मनाया जाता है। 29 अगस्त के दिन बुधवार को यह त्यौहार मनाया जायेगा। यह माना जाता है कि इस पर्व का आरम्भ महाराणा राजसिंह ने अपनी रानी को प्रसन्न करने के लिये आरम्भ किया था।

जन्माष्टमी

भाद्रपद मास में आने वाला अगला पर्व कृष्ण अष्टमी या जन्माष्टमी के नाम से जाना जाता है। यह उपवास पर्व उत्तरी भारत में विशेष महत्व रखता है। दिनांक 2 सितम्बर को यह पर्व है। पूरे भारत में जन्माष्टमी बड़ी श्रद्धा और धूमधाम से मनाई जाती है। इस दिन में व्रत रखकर श्रद्धालु रात 12 बजे तक नाना प्रकार के सांस्कृतिक व आध्यात्मिक आयोजन करते हैं। इस दिन के लिए मंदिरों की सजावट हफ्तों पहले से शुरू हो जाती है। इस मौके पर मथुरा में विशेष आयोजन किए जाते हैं। आधी रात को कृष्ण का जन्म होता है। गोविंद की पूजा-अर्चना के बाद प्रसाद वितरण किया जाता है और भक्त व्रत खोलते हैं।

गणेश चतुर्थी

भाद्रपद माह में शुक्ल पक्ष की चतुर्थ तिथि को गणेश चतुर्थी मनाई जाती है। इस दिन भगवान श्री गणेश की पूजा, उपवास व आराधना का शुभ कार्य किया जाता है। पूरे दिन उपवास रख श्री गणेश को लड्डूओं का भोग लगाया जाता है। प्राचीन काल में इस दिन लड्डूओं की वर्षा की जाती थी, जिसे लोग प्रसाद के रूप में लूट कर खाया जाता था। गणेश मंदिरों में इस दिन विशेष धूमधाम रहती है। गणेश चतुर्थी को चन्द्र दर्शन नहीं करने चाहिए। विशेष कर इस दिन उपवास रखने वाले उपासकों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए, अन्यथा उपवास का पुण्य प्राप्त नहीं होता है। 2018 में गणेश चतुर्थी 13 सितम्बर को है।

देवझूलनी अथवा पदमा अथवा परिवर्तनी एकादशी

भाद्रपद, शुक्ल पक्ष, एकादशी तिथि, उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में देवझूलनी एकादशी मनाई जाती है। देवझूलनी एकादशी में विष्णु जी की पूजा, व्रत, उपासना करने का विधान है। देवझूलनी एकादशी को पदमा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन विष्णु देव की पाषाण की प्रतिमा अथवा चित्र को पालकी में ले जाकर जलाशय से स्थान करना शुभ माना जाता है। इस उत्सव में नगर के निवासी विष्णु गान करते हुए पालकी के पीछे चल रहे होते है। उत्सव में भाग लेने वाले सभी लोग इस दिन उपवास रखते है। 20 सितम्बर, दिन गुरुवार को भक्त इस दिन का लाभ उठा सकते हैं।

अनंत चतुर्दशी

भाद्रपद माह में आने वाले पर्वों की श्रंखला में अगला पर्व अनन्त चतुर्दशी के नाम से प्रसिद्ध है। यह 23 सितम्बर, दिन रविवार को है। भाद्रपद चतुर्दशी तिथि, शुक्ल पक्ष, पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र में यह उपवास पर्व इस वर्ष मनाया जाता है। इस पर्व में दिन में एक बार भोजन किया जाता है। यह पर्व भगवान विष्णु के अनन्त स्वरूप पर आधारित है। इस दिन “ऊँ अनन्ताय नम:’ का जाप करने से विष्णु जी प्रसन्न होते है।

https://ift.tt/2DA3uB5 http://bit.ly/2pnaflz Bhaktisanskar.com – भक्ति और अध्यात्म का संगम सावन के बाद आया भगवान श्रीकृष्ण के प्रकटोत्सव का मास भाद्रपद

40 Best Raksha Bandhan Images & Raksha Bandhan HD Photos Free

http://bit.ly/2MJoxty

Photo Gallery of Traditional Raksha Bandhan Images, Photos, Pictures, Wallpapers and HD Pics for Rakhi 2018. Find Over 100+ Images for Raksha Bandhan with Rakhi Wishes, Messages, Quotes and Status. Rakhi is a sacred thread that strengthens the love of brother and sister. Sister ties a rakhi on her brother’s wrist and prayer for his prosperity and happiness. Brother promise her to protect his sister during any trouble. Brothers give beautiful gifts to her sisters with a promise that he will be always there to protect her in every problem. This is the beauty of Raksha Bandhan Festivel. The festival

The post 40 Best Raksha Bandhan Images & Raksha Bandhan HD Photos Free appeared first on Hindi Soch.

https://ift.tt/2DA3uB5 http://bit.ly/2MfX52I Hindi Soch 40 Best Raksha Bandhan Images & Raksha Bandhan HD Photos Free

कृष्णा जन्माष्टमी 2018 कब है – जानिए जन्माष्टमी पूजा विधि और शुभ मुहूर्त

http://bit.ly/2ByPkoa

कृष्ण जन्माष्टमी 2018 : कृष्ण भगवान की भक्ति का त्यौहार

हिन्दू धर्म में उपासकों के लिए सबसे अहम पर्वों में से एक है कृष्ण जन्माष्टमी। यह तिथि भगवान श्रीकृष्ण की जन्मतिथि के रूप में मनाई जाती है। वर्ष 2018 में कृष्ण जन्माष्टमी 2 सितम्बर को मनाई जाएगी। यह त्यौहार भाद्रपद में अष्टमी तिथि को मनाया जाता है, ऐसा कहा जाता है की विष्णु के अवतार श्री कृष्ण का जन्म इस दिन रात को बारह बजे हुआ था।

कृष्ण जी का जन्म मथुरा के राजा के अत्याचारों का विनाश करने के लिए हुआ था। देवकी की कोख से जन्म लेने के बाद कृष्ण भगवान् ने अवतार लेकर कंस का विनाश किया था। उसी दिन से यह दिन भगवान् कृष्ण को समर्पित करते हुए उनके जन्मदिन की ख़ुशी में मनाया जाता है। इस अत्यंत शुभावसर पर श्रीकृष्ण के भक्त, उनके उपासक व्रत करते हैं और और प्रभु का ध्यान करते हैं। कुछ उपासक रात्रि जागरण भी करते हैं और कृष्ण के नाम के भजन-कीर्तन करते हैं। कृष्ण की जन्मभूमि मथुरा और वृन्दावन में जन्माष्टमी भव्य रूप से मनाया जाता है। यहाँ की रासलीला केवल भारत में ही नहीं बल्कि विदेश में भी प्रसिद्ध है। इन रासलीला में कृष्ण के जीवन के मुख्य वृतांतों को दर्शाया जाता है और राधा के प्रति उनके प्रेम का अभिनन्दन किया जाता है।

कईं शहरों में झांकियां भी बनाई जाती हैं जिनमें ना केवल श्रीकृष्ण और राधा बल्कि अन्य देवी-देवताओं के रूप में उनके भक्त विराजमान रहते हैं और बाकी के उपासक उनके दर्शन करते हैं। महाराष्ट्र में विशेष रूप से इस दिन मटकी फोड़ने की प्रथा प्रचलित है। उपासकों द्वारा इंसानी मीनार बनाकर धरती से कईं फुट ऊंची मटकी को तोड़कर यह प्रथा पूर्ण होती है। बड़ी तादाद में भक्तजन एकत्रित होते है और गाना-बजाना, नृत्य आदि करते हैं।

कृष्णभूमि द्वारका में इस विशेष अवसर पर बड़ी धूमधाम होती है। इस दिन यहाँ देश-विदेश से बहुत पर्यटक आते हैं। इस भव्य समारोह को कृष्ण जन्मोत्सव के नाम से भी जाना जाता है। तो आइये जानते है की इस साल 2018 में जन्माष्टमी कब है।

Shri Krishna Janmashtami Festival

जन्माष्टमी 2018 में कब है –

वर्ष 2018 में श्री कृष्ण जन्माष्टमी 2nd सितंबर 2018, रविवार को मनाई जाएगी।

कृष्ण जन्माष्टमी पूजा का शुभ मुहूर्त

जन्माष्टमी के दिन निशिता पूजा का समय = 23:57 से 24:43+ तक।
मुहूर्त की अवधि = 45 मिनट
जन्माष्टमी में मध्यरात्रि का क्षण = 24:20+
3rd सितंबर को, पारण का समय = 20:05 के बाद
पारण के दिन अष्टमी तिथि के समाप्त होने का समय = 19:19
पारण के दिन रोहिणी नक्षत्र के समाप्त होने का समय = 20:05

वैष्णव कृष्ण जन्माष्टमी 3 सितंबर 2018 को मनाई जाएगी।
वैष्णव जन्माष्टमी के लिये अगले दिन का पारण समय = 06:04 (सूर्योदय के बाद)

पारण के दिन अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र सूर्योदय से पहले समाप्त हो जाएंगे।

दही हाण्डी का उत्सव

जन्माष्टमी के अवसर पर जन्माष्टी से अगले दिन युवाओं की टोलियां काफी ऊंचाई पर बंधी दही की हांडी (एक प्रकार का मिट्टी का बर्तन) को तोड़ती हैं जो टोली दही हांडी को फोड़ती है उसे विजेता घोषित किया जाता है। प्रतियोगिता को मुश्किल बनाने के लिये प्रतिभागियों पर पानी की बौछार भी की जाती है। इन तमाम बाधाओं को पार कर जो मटकी फोड़ता है वही विजेता होता है। इस उतस्व की खास बात यह भी है कि जो भी इस प्रतियोगिता में हिस्सा लेता है उस हर युवक-युवती को गोविंदा कहा जाता है।

वहीं इस प्रतियोगिता से सीख भी मिलती है कि लक्ष्य भले ही कितना भी कठिन हो लेकिन मिलकर एकजुटता के साथ प्रयत्न करने पर उसमें कामयाबी जरुर मिलती है। यही उपदेश भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को गीता के जरिये भी देते हैं। इस बार दही हांड़ी उत्सव 3rd, सितंबर 2018 को मनाया जाएगा।

अष्टमी तिथि का प्रारंभ 2nd सितंबर 2018, रविवार को 20:47 बजे से होगा जिसका समापन 3rd सितंबर 2018, सोमवार को 19:19 बजे होगा।

जन्माष्टमी व्रत व पूजा विधि        

  • जन्माष्टमी की पूर्व रात्रि हल्का भोजन करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें। प्रातःकाल स्नानादि नित्यकर्मों से निवृत्त होकर सूर्य, सोम, यम, काल, संधि, भूत, पवन, दिक्‌पति, भूमि, आकाश, खचर, अमर और ब्रह्मादि को नमस्कार कर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख कर बैठें। इसके बाद हाथ में जल लेकर संकल्प करें।
  • अब मध्याह्न के समय काले तिलों के जल से स्नान कर देवकीजी के लिए प्रसूति-गृह  का निर्माण करें।  तत्पश्चात भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
  • मूर्ति या प्रतिमा में बालकृष्ण को स्तनपान कराती हुई देवकी अथवा लक्ष्मीजी उनके चरण स्पर्श किए हों। या ऐसी कृष्ण के जीवन के किसी भी अहम वृतांत का भाव हो।
  • तत्पश्चात श्री कृष्ण की प्रतिमा को पंचामृत से स्नान करवाया जाता है। उसके बाद उन्हें नए वस्त्र पहनाएं जाते है, और उनका अभिषेक किया जाता है। अभिषेक करने के बाद उन्हें सुगन्धित पुष्प, फल, मिष्ठान आदि अर्पित किये जाते है।
  • फिर उन्हें माखन मिश्री, जो की उनका प्रिय है उसका भोग लगाया जाता है। इसके अलावा आप जन्माष्टमी के प्रसाद में पंजीरी व् पंचामृत का भी भोग लगा सकते है।

व्रत अगले दिन सूर्योदय के पश्चात ही तोड़ा जाना चाहिए। इसका ध्यान रखना चाहिए कि व्रत अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के समाप्त होने के पश्चात ही तोड़ा जाएं। किन्तु यदि अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र सूर्यास्त से पहले समाप्त ना हो, तो किसी एक के समाप्त होने के पश्चात व्रत तोड़े। किन्तु यदि यह सूर्यास्त तक भी संभव ना हो, तो दिन में व्रत ना तोड़े और अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र में से किसी भी एक के समाप्त होने की प्रतीक्षा करें या निशिता समय में व्रत तोड़े। ऐसी स्थिति में दो दिन तक व्रत न कर पाने में असमर्थ, सूर्योदय के पश्चात कभी भी व्रत तोड़ सकते हैं।

http://bit.ly/2MGc9L4 http://bit.ly/2pnaflz Bhaktisanskar.com – भक्ति और अध्यात्म का संगम कृष्णा जन्माष्टमी 2018 कब है – जानिए जन्माष्टमी पूजा विधि और शुभ मुहूर्त

कृष्ण जन्माष्टमी 2018 : जानिए व्रत के नियम और श्रेष्ठ दिवस जन्माष्टमी पर्व का

http://bit.ly/2w3SCun

कृष्ण जन्माष्टमी 2018 – भगवान श्रीकृष्ण का 5245वाँ जन्मोत्सव

भक्त लोग, जो जन्माष्टमी का व्रत करते हैं, जन्माष्टमी के एक दिन पूर्व केवल एक ही समय भोजन करते हैं। व्रत वाले दिन, स्नान आदि से निवृत्त होने के पश्चात, भक्त लोग पूरे दिन उपवास रखकर, अगले दिन रोहिणी नक्षत्र और अष्टमी तिथि के समाप्त होने के पश्चात व्रत कर पारण का संकल्प लेते हैं। कुछ कृष्ण-भक्त मात्र रोहिणी नक्षत्र अथवा मात्र अष्टमी तिथि के पश्चात व्रत का पारण कर लेते हैं। संकल्प प्रातःकाल के समय लिया जाता है और संकल्प के साथ ही अहोरात्र का व्रत प्रारम्भ हो जाता है।

जन्माष्टमी के दिन, श्री कृष्ण पूजा निशीथ समय पर की जाती है। वैदिक समय गणना के अनुसार निशीथ मध्यरात्रि का समय होता है। निशीथ समय पर भक्त लोग श्री बालकृष्ण की पूरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना करते हैं। विस्तृत विधि-विधान पूजा में षोडशोपचार पूजा के सभी सोलह (16) चरण सम्मिलित होते हैं। जन्माष्टमी की विस्तृत पूजा विधि, वैदिक मन्त्रों के साथ जन्माष्टमी पूजा विधि पृष्ठ पर उपलब्ध है।

कृष्ण जन्माष्टमी पर व्रत के नियम 

एकादशी उपवास के दौरान पालन किये जाने वाले सभी नियम जन्माष्टमी उपवास के दौरान भी पालन किये जाने चाहिये। अतः जन्माष्टमी के व्रत के दौरान किसी भी प्रकार के अन्न का ग्रहण नहीं करना चाहिये। जन्माष्टमी का व्रत अगले दिन सूर्योदय के बाद एक निश्चित समय पर तोड़ा जाता है जिसे जन्माष्टमी के पारण समय से जाना जाता है।

जन्माष्टमी का पारण सूर्योदय के पश्चात अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के समाप्त होने के बाद किया जाना चाहिये। यदि अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र सूर्यास्त तक समाप्त नहीं होते तो पारण किसी एक के समाप्त होने के पश्चात किया जा सकता है। यदि अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र में से कोई भी सूर्यास्त तक समाप्त नहीं होता तब जन्माष्टमी का व्रत दिन के समय नहीं तोड़ा जा सकता। ऐसी स्थिति में व्रती को किसी एक के समाप्त होने के बाद ही व्रत तोड़ना चाहिये।

अतः अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के अन्त समय के आधार पर कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत दो सम्पूर्ण दिनों तक प्रचलित हो सकता है। हिन्दु ग्रन्थ धर्मसिन्धु के अनुसार, जो श्रद्धालु-जन लगातार दो दिनों तक व्रत करने में समर्थ नहीं है, वो जन्माष्टमी के अगले दिन ही सूर्योदय के पश्चात व्रत को तोड़ सकते हैं। कृष्ण जन्माष्टमी को कृष्णाष्टमी, गोकुलाष्टमी, अष्टमी रोहिणी, श्रीकृष्ण जयन्ती और श्री जयन्ती के नाम से भी जाना जाता है।

कृष्ण जन्माष्टमी के दो अलग-अलग दिनों के विषय में

अधिकतर कृष्ण जन्माष्टमी दो अलग-अलग दिनों पर हो जाती है। जब-जब ऐसा होता है, तब पहले दिन वाली जन्माष्टमी स्मार्त सम्प्रदाय के लोगो के लिये और दूसरे दिन वाली जन्माष्टमी वैष्णव सम्प्रदाय के लोगो के लिये होती है।

प्रायः उत्तर भारत में श्रद्धालु स्मार्त और वैष्णव जन्माष्टमी का भेद नहीं करते और दोनों सम्प्रदाय जन्माष्टमी एक ही दिन मनाते हैं। हमारे विचार में यह सर्वसम्मति इस्कॉन संस्थान की वजह से है। “कृष्ण चेतना के लिए अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय”संस्था, जिसे इस्कॉन के नाम से अच्छे से जाना जाता है, वैष्णव परम्पराओं और सिद्धान्तों के आधार पर निर्माणित की गयी है। अतः इस्कॉन के ज्यादातर अनुयायी वैष्णव सम्प्रदाय के लोग होते हैं।

इस्कॉन संस्था सर्वाधिक व्यावसायिक और वैश्विक धार्मिक संस्थानों में से एक है जो इस्कॉन संस्कृति को बढ़ावा देने के लिये अच्छा-खासा धन और संसाधन खर्च करती है। अतः इस्कॉन के व्यावसायिक प्रभाव और विज्ञापिता की वजह से अधिकतर श्रद्धालु-जन इस्कॉन द्वारा चयनित जन्माष्टमी को मनाते हैं। जो श्रद्धालु वैष्णव धर्म के अनुयायी नहीं हैं वो इस बात से अनभिज्ञ हैं कि इस्कॉन की परम्पराएँ भिन्न होती है और जन्माष्टमी उत्सव मनाने का सबसे उपयुक्त दिन इस्कॉन से अलग भी हो सकता है।

स्मार्त अनुयायी, जो स्मार्त और वैष्णव सम्प्रदाय के अन्तर को जानते हैं, वे जन्माष्टमी व्रत के लिये इस्कॉन द्वारा निर्धारित दिन का अनुगमन नहीं करते हैं। दुर्भाग्यवश ब्रज क्षेत्र, मथुरा और वृन्दावन में, इस्कॉन द्वारा निर्धारित दिन का सर्वसम्मति से अनुगमन किया जाता है। श्रद्धालु जो दूसरों को देखकर जन्माष्टमी के दिन का अनुसरण करते हैं वो इस्कॉन द्वारा निर्धारित दिन को ही उपयुक्त मानते हैं।

लोग जो वैष्णव धर्म के अनुयायी नहीं होते हैं, वो स्मार्त धर्म के अनुयायी होते हैं। स्मार्त अनुयायियों के लिये, हिन्दु ग्रन्थ धर्मसिन्धु और निर्णयसिन्धु में, जन्माष्टमी के दिन को निर्धारित करने के लिये स्पष्ट नियम हैं। श्रद्धालु जो वैष्णव सम्प्रदाय के अनुयायी नहीं हैं, उनको जन्माष्टमी के दिन का निर्णय हिन्दु ग्रन्थ में बताये गये नियमों के आधार पर करना चाहिये। इस अन्तर को समझने के लिए एकादशी उपवास एक अच्छा उदाहरण है। एकादशी के व्रत को करने के लिये, स्मार्त और वैष्णव सम्प्रदायों के अलग-अलग नियम होते हैं। ज्यादातर श्रद्धालु एकादशी के अलग-अलग नियमों के बारे में जानते हैं परन्तु जन्माष्टमी के अलग-अलग नियमों से अनभिज्ञ होते हैं। अलग-अलग नियमों की वजह से, न केवल एकादशी के दिनों बल्कि जन्माष्टमी और राम नवमी के दिनों में एक दिन का अन्तर होता है।

वैष्णव धर्म को मानने वाले लोग अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र को प्राथमिकता देते हैं और वे कभी सप्तमी तिथि के दिन जन्माष्टमी नहीं मनाते हैं। वैष्णव नियमों के अनुसार हिन्दु कैलेण्डर में जन्माष्टमी का दिन अष्टमी अथवा नवमी तिथि पर ही पड़ता है।

जन्माष्टमी का दिन तय करने के लिये, स्मार्त धर्म द्वारा अनुगमन किये जाने वाले नियम अधिक जटिल होते हैं। इन नियमों में निशिता काल को, जो कि हिन्दु अर्धरात्रि का समय है, को प्राथमिकता दी जाती है। जिस दिन अष्टमी तिथि निशिता काल के समय व्याप्त होती है, उस दिन को प्राथमिकता दी जाती है। इन नियमों में रोहिणी नक्षत्र को सम्मिलित करने के लिये कुछ और नियम जोड़े जाते हैं। जन्माष्टमी के दिन का अन्तिम निर्धारण निशिता काल के समय, अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के शुभ संयोजन, के आधार पर किया जाता है। स्मार्त नियमों के अनुसार हिन्दु कैलेण्डर में जन्माष्टमी का दिन हमेशा सप्तमी अथवा अष्टमी तिथि के दिन पड़ता है।

जन्माष्टमी पर्व तिथि व मुहूर्त 2018

  • 2 सितंबर, जन्माष्टमी 2018
  • निशिथ पूजा– 23:57 से 00:43
  • पारण– 20:05 (3 सितंबर) के बाद
  • रोहिणी समाप्त– 20:05
  • अष्टमी तिथि आरंभ – 20:47 (2 सितंबर)
  • अष्टमी तिथि समाप्त – 19:19 (3 सितंबर)
https://ift.tt/2DA3uB5 http://bit.ly/2pnaflz Bhaktisanskar.com – भक्ति और अध्यात्म का संगम कृष्ण जन्माष्टमी 2018 : जानिए व्रत के नियम और श्रेष्ठ दिवस जन्माष्टमी पर्व का

अरे द्वारपालों कन्हैया से कह दो, दर पे सुदामा गरीब आ …

http://bit.ly/2whBIry

अरे द्वारपालों कन्हैया – Are Dwarpalo Kanhaiya Mp3 & Lyrics

देखो देखो यह गरीबी, यह गरीबी का हाल,
कृष्ण के दर पे यह विश्वास ले के आया हूँ।
मेरे बचपन का दोस्त हैं मेरा श्याम,
येही सोच कर मैं आस ले कर के आया हूँ ॥

अरे द्वारपालों कन्हैया से कह दो,
दर पे सुदामा गरीब आ गया है।
भटकते भटकते ना जाने कहाँ से,
तुम्हारे महल के करीब आ गया है॥

ना सर पे हैं पगड़ी, ना तन पे हैं जामा
बतादो कन्हैया को नाम है सुदामा।
इक बार मोहन से जाकर के कह दो,
मिलने सखा बदनसीब आ गया है॥

सुनते ही दोड़े चले आये मोहन,
लगाया गले से सुदामा को मोहन।
हुआ रुकमनी को बहुत ही अचम्भा,
यह मेहमान कैसा अजीब आ गया है॥

और बराबर पे अपने सुदामा बिठाये,
चरण आंसुओं से श्याम ने धुलाये।
न घबराओ प्यारे जरा तुम सुदामा,
ख़ुशी का समा तेरे करीब आ गया है।

अरे द्वारपालो, कन्हैया से कह दो,
दर पे सुदामा, गरीब आ गया है।

https://ift.tt/2DA3uB5 http://bit.ly/2pnaflz Bhaktisanskar.com – भक्ति और अध्यात्म का संगम अरे द्वारपालों कन्हैया से कह दो, दर पे सुदामा गरीब आ …

पुत्रदा या पवित्रा एकादशी 2018: जानें, पूजा विधि और शुभ मुहूर्त

http://bit.ly/2Lf4Y7x

पुत्रदा एकादशी 2018 – Pavitra Ekadashi Vrat Katha

सावन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा या पवित्रा एकादशी भी कहते हैं। इस बार यह एकादशी 22 अगस्त, दिन बुधवार को पड़ रही है। जैसा कि इसके नाम से पता चलता है कि इस एकादशी का व्रत पुत्र प्राप्ति के लिए किया जाता है। इस दिन जोड़े से पति और पत्नी जोड़े से व्रत रखते हैं और एक संतान के लिए भगवान विष्णु की पूजा करते हैं।

जोड़े से इस एकादशी का व्रत करने से माता लक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं। साथ ही भगवान शिव भी प्रसन्न होते हैं क्योंकि सावन मास में इस एकादशी का व्रत किया जाता है। इस दिन आप शिवजी का अभिषेक जरूर करें। इस व्रत को केवल सावन माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को किया जाता है।

एकादशी का धार्मिक महत्व

शास्त्रों में बताया गया है कि जोड़े से इस एकादशी का व्रत करने से जातकों की गोद कभी सूनी नहीं रहती। उन्हें संतान सुख जरूर प्राप्त होता है। यह एकादशी सभी पापों को नाश करनेवाली होती है। धार्मिक मान्यता है कि इस एकादशी की कथा पढ़ने और सुनने से कई गायों के दान बराबर पुण्य फल प्राप्त होता है। इस व्रत में आप भगवान विष्णु और पीपल की पूजा करने का शास्त्रों में विधान है।

पौराणिक कथा

महाराज युधिष्ठिर ने पूछा- हे भगवान! आपने कामिका एकादशी का माहात्म्य बताकर बड़ी कृपा की। अब कृपा करके यह बतलाइए कि श्रावण शुक्ल एकादशी (Shravana shukal ekadashi) का क्या नाम है, उसकी विधि क्या है और उसमें कौन-से देवता का पूजन किया जाता है।

श्री युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवान! श्रावण शुक्ल एकादशी का क्या नाम है? व्रत करने की विधि तथा इसका माहात्म्य कृपा करके कहिए। मधुसूदन कहने लगे कि इस एकादशी का नाम पुत्रदा है। अब आप शांतिपूर्वक इसकी कथा सुनिए। इसके सुनने मात्र से ही वायपेयी यज्ञ का फल मिलता है।

द्वापर युग के आरंभ में महिष्मति नाम की एक नगरी थी, जिसमें महीजित नाम का राजा राज्य करता था, लेकिन पुत्रहीन होने के कारण राजा को राज्य सुखदायक नहीं लगता था। उसका मानना था कि जिसके संतान न हो, उसके लिए यह लोक और परलोक दोनों ही दु:खदायक होते हैं। पुत्र सुख की प्राप्ति के लिए राजा ने अनेक उपाय किए परंतु राजा को पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई।

वृद्धावस्था आती देखकर राजा ने प्रजा के प्रतिनिधियों को बुलाया और कहा- हे प्रजाजनों! मेरे खजाने में अन्याय से उपार्जन किया हुआ धन नहीं है। न मैंने कभी देवताओं तथा ब्राह्मणों का धन छीना है। किसी दूसरे की धरोहर भी मैंने नहीं ‍ली, प्रजा को पुत्र के समान पालता रहा। मैं अपराधियों को पुत्र तथा बांधवों की तरह दंड देता रहा। कभी किसी से घृणा नहीं की। सबको समान माना है। सज्जनों की सदा पूजा करता हूं। इस प्रकार धर्मयुक्त राज्य करते हुए भी मेरे पु‍त्र नहीं है। सो मैं अत्यंत दु:ख पा रहा हूं, इसका क्या कारण है?

राजा महीजित की इस बात को विचारने के लिए मं‍त्री तथा प्रजा के प्रतिनिधि वन को गए। वहां बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों के दर्शन किए। राजा की उत्तम कामना की पूर्ति के लिए किसी श्रेष्ठ तपस्वी मुनि को देखते-फिरते रहे।

एक आश्रम में उन्होंने एक अत्यंत वयोवृद्ध धर्म के ज्ञाता, बड़े तपस्वी, परमात्मा में मन लगाए हुए निराहार, जितेंद्रीय, जितात्मा, जितक्रोध, सनातन धर्म के गूढ़ तत्वों को जानने वाले, समस्त शास्त्रों के ज्ञाता महात्मा लोमश मुनि को देखा, जिनका कल्प के व्यतीत होने पर एक रोम गिरता था।

सबने जाकर ऋषि को प्रणाम किया। उन लोगों को देखकर मुनि ने पूछा कि आप लोग किस कारण से आए हैं? नि:संदेह मैं आप लोगों का हित करूंगा। मेरा जन्म केवल दूसरों के उपकार के लिए हुआ है, इसमें संदेह मत करो।

लोमश ऋषि के ऐसे वचन सुनकर सब लोग बोले- हे महर्षे! आप हमारी बात जानने में ब्रह्मा से भी अधिक समर्थ हैं। अत: आप हमारे इस संदेह को दूर कीजिए। महिष्मति पुरी का धर्मात्मा राजा महीजित प्रजा का पुत्र के समान पालन करता है। फिर भी वह पुत्रहीन होने के कारण दु:खी है। उन लोगों ने आगे कहा कि हम लोग उसकी प्रजा हैं। अत: उसके दु:ख से हम भी दु:खी हैं। आपके दर्शन से हमें पूर्ण विश्वास है कि हमारा यह संकट अवश्य दूर हो जाएगा क्योंकि महान पुरुषों के दर्शन मात्र से अनेक कष्ट दूर हो जाते हैं। अब आप कृपा करके राजा के पुत्र होने का उपाय बतलाएं।

यह वार्ता सुनकर ऋषि ने थोड़ी देर के लिए नेत्र बंद किए और राजा के पूर्व जन्म का वृत्तांत जानकर कहने लगे कि यह राजा पूर्व जन्म में एक निर्धन वैश्य था। निर्धन होने के कारण इसने कई बुरे कर्म किए। यह एक गांव से दूसरे गांव व्यापार करने जाया करता था। एक समय ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी के दिन मध्याह्न के समय वह जबकि दो दिन से भूखा-प्यासा था, एक जलाशय पर जल पीने गया। उसी स्थान पर एक तत्काल की ब्याही हुई प्यासी गौ जल पी रही थी।

राजा ने उस प्यासी गाय को जल पीते हुए हटा दिया और स्वयं जल पीने लगा, इसीलिए राजा को यह दु:ख सहना पड़ा। एकादशी के दिन भूखा रहने से वह राजा हुआ और प्यासी गौ को जल पीते हुए हटाने के कारण पुत्र वियोग का दु:ख सहना पड़ रहा है। ऐसा सुनकर सब लोग कहने लगे कि हे ऋषि! शास्त्रों में पापों का प्रायश्चित भी लिखा है। अत: जिस प्रकार राजा का यह पाप नष्ट हो जाए, आप ऐसा उपाय बताइए।

लोमश मुनि कहने लगे कि श्रावण शुक्ल पक्ष की एकादशी को जिसे पुत्रदा एकादशी भी कहते हैं, तुम सब लोग व्रत करो और रात्रि को जागरण करो तो इससे राजा का यह पूर्व जन्म का पाप अवश्य नष्ट हो जाएगा, साथ ही राजा को पुत्र की अवश्य प्राप्ति होगी। लोमश ऋषि के ऐसे वचन सुनकर मंत्रियों सहित सारी प्रजा नगर को वापस लौट आई और जब श्रावण शुक्ल एकादशी आई तो ऋषि की आज्ञानुसार सबने पुत्रदा एकादशी का व्रत और जागरण किया।

इसके पश्चात द्वादशी के दिन इसके पुण्य का फल राजा को दिया गया। उस पुण्य के प्रभाव से रानी ने गर्भ धारण किया और प्रसवकाल समाप्त होने पर उसके एक बड़ा तेजस्वी पुत्र उत्पन्न हुआ। इसलिए हे राजन! इस श्रावण शुक्ल एकादशी का नाम पुत्रदा पड़ा। अत: संतान सुख की इच्छा हासिल करने वाले इस व्रत को अवश्य करें। इस कथा को पढ़ने तथा इसके माहात्म्य को सुनने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है और इस लोक में संतान सुख भोगकर परलोक में स्वर्ग को प्राप्त होता है।

एकादशी के दिन क्या करें और क्या ना करें

जो भी जातक पुत्रदा एकादशी का व्रत करता है, उसे सदाचार का पालन करना होता है। इस व्रत में वैष्णव धर्म का पालन करना होता है। इस दिन प्याज, बैंगन, पान-सुपारी, लहसुन, मांस-मदिरा आदि चीजों से दूर रहना चाहिए। दशमी तिथि से पति-पत्नी भगवान विष्णु का ध्यान करना चाहिए और मूली, मसूरदाल से परहेज रखना चाहिए। व्रत में नमक से दूर रहना चाहिए। साथ ही कांसे के बर्तन में भोजन नहीं करना चाहिए।

इस तरह करें पूजा

पति-पत्नी दोनों सुबह स्नानादि से निवृत होकर व्रत का संकल्प लें। घर या मंदिर में भगवान का साथ में पूजन करें। पूजन के दौरान सबसे पहले भगवान के विग्रह को गंगाजल से स्नान कराएं या उस पर गंगाजल के छींटे दें, साथ ही पवित्रिकरण का मंत्र बोलते हुए खुद पर भी गंगाजल छिड़कें। इसके बाद दीप-धूप जलाएं और भगवान को टीका लगाते हुए अक्षत अर्पित करें। फिर भोग लगाएं। व्रत कथा का पाठ करें और विष्णु-लक्ष्मीजी की आरती करें। पुत्र प्राप्ति के लिए गरीबों में दान जरूर करें। भगवान से इस व्रत के सफलतापूर्वक पूरा होने के प्रार्थना करें।

एकादशी का तिथि व मुहूर्त

पुत्रदा एकादशी: 22 अगस्त, 2018 दिन बुधवार
एकादशी पारणा मुहूर्त: 05:54 से 08:30 तक 23 अगस्त
अवधि: 2 घंटे 35 मिनट

https://ift.tt/2DA3uB5 http://bit.ly/2pnaflz Bhaktisanskar.com – भक्ति और अध्यात्म का संगम पुत्रदा या पवित्रा एकादशी 2018: जानें, पूजा विधि और शुभ मुहूर्त

आएगा कोई आएगा, जग पे छा जायेगा डगमग सी नैया को पार

एक सलाह सफल होने के लिए Advice for Successful Life

http://bit.ly/2nQG3hn

Successful Life Tips कुछ दिन पहले हिंदीसोच पर किसी व्यक्ति का एक ईमेल आया था। मैंने उस मेल को गंभीरता से पढ़ा उसमें लिखा था – “श्री मान, मैं हिंदीसोच का पाठक हूँ, मैं बहुत सारी मोटिवेशनल कहानियां पढता हूँ, उन्हें पढ़कर बहुत अच्छा लगता है। मैंने और भी बहुत सारी प्रेरक पुस्तकें पढ़ी हैं लेकिन मैं इतना मोटिवेशन पढ़ने के बावजूद भी खुद को सफल महसूस नहीं करता। मैं कई बार नए लक्ष्य बनाता हूँ लेकिन हमेशा किसी ना किसी कारण से अपने लक्ष्य पूरा नहीं कर पाता। मैं अच्छी संगति में रहता हूँ अच्छी पुस्तकें पढता हूँ लेकिन

The post एक सलाह सफल होने के लिए Advice for Successful Life appeared first on Hindi Soch.

https://ift.tt/2DA3uB5 http://bit.ly/2MfX52I Hindi Soch एक सलाह सफल होने के लिए Advice for Successful Life

रक्षा बंधन 2018 – शुभ मुहूर्त सहित जानें क्यों खास है इस बार राखी का पर्व

http://bit.ly/2Bod2Dt

रक्षा बंधन – Raksha Bandhan Date & Muhurat 2018

वर्ष 2018 में रक्षा बंधन 26 अगस्त, रविवार को मनाया जाएगा। भारत में यह त्यौहार भाई-बहन के अटूट प्रेम को समर्पित है और इस त्यौहार का प्रचलन सदियों पुराना बताया गया है। इस दिन बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बाँधती हैं और भाई अपनी बहनों की रक्षा का संकल्प लेते हुए अपना स्नेहाभाव दर्शाते हैं।

कब तक रहेगी भद्रा

पिछले साल रक्षाबंधन के पर्व को भद्रा की नजर लगी हुई थी जिस कारण राखी बांधने के समय में फेरबदल हो रखा था लेकिन सौभाग्य से इस बार इस पावन पर्व को भद्गा की नजर नहीं लगी है। इसलिये बहनें भाइयों की कलाई पर सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त के बीच रक्षाबंधन का अनुष्ठान कर सकती हैं। अनुष्ठान का समय प्रात: 05:59 से सांय 17:25 बजे तक रहेगा। अपराह्न मुहूर्त 13:39 बजे से 16:12 बजे तक है।

क्या है भद्रा

शास्त्रों की मान्यता के अनुसार भद्रा का संबंध सूर्य और शनि से होता है। हिन्दू धर्म शास्त्रों में, भद्रा भगवान सूर्य देव की पुत्री और शनिदेव की बहन है। शनि की तरह ही इसका स्वभाव भी क्रूर बताया गया है। इस उग्र स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए ही भगवान ब्रह्मा ने उसे कालगणना या पंचाग के एक प्रमुख अंग करण में स्थान दिया। जहां उसका नाम विष्टी करण रखा गया। भद्रा की स्थिति में कुछ शुभ कार्यों, यात्रा और उत्पादन आदि कार्यों को निषेध माना गया। इसलिये इस बार भद्रा का साया समाप्त होने पर ही रक्षाबंधन अनुष्ठान किया जाता है। लेकिन इस बार भद्रा मुक्त रक्षाबंधन होने से यह बहनों के लिये बहुत ही हर्ष का पर्व है।

इसलिये भी खास है इस बार राखी

रक्षाबंधन का यह पवित्र त्यौहार इस बार रविवार के दिन है। हालांकि सोमवार को भगवान भोलेनाथ का दिन माने जाने की वजह से श्रावण माह में सोमवार का महत्व कुछ बढ़ जाता है लेकिन आपको बता दें कि सावन माह का तो प्रत्येक दिन भगवान भोलेनाथ को समर्पित होता है इसलिये रविवार के दिन होने से रक्षाबंधन का महत्व कम नहीं हो जाता।

ग्रहण मुक्त है इस बार की राखी

पिछले वर्ष राखी का त्यौहार भद्रा व ग्रहण से पीड़ित होने के कारण बहुत ज्यादा सौभाग्यशाली नहीं माना गया था लेकिन इस बार राखी ग्रहण से मुक्त है क्योंकि इस वर्ष का दूसरा और अंतिम चंद्रग्रहण 28 जुलाई को लगा था। श्रावण पूर्णिमा इस बार ग्रहण से मुक्त रहेगी जिससे यह और भी सौभाग्यशाली हो जाती है।

रक्षा बंधन शुभ महूर्त तिथि 

रक्षा बंधन तिथि – 26 अगस्त 2018, रविवार

अनुष्टान समय – 05:59 से 17:25 (26 अगस्त 2018)

अपराह्न मुहूर्त – 13:39 से 16:12 (26 अगस्त 2018)

पूर्णिमा तिथि प्रारंभ – 15:16 बजे (25 अगस्त 2018)

पूर्णिमा तिथि समाप्त – 17:25 बजे (26 अगस्त 2018)

भद्रा समाप्ति समय – सूर्योदय से पहले

भक्तिसंस्कार की तरफ से सभी पाठकों को रक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनाएं और हम आशा करते है कि आप के बीच यूँही प्रेम, स्नेह बना रहें।

https://ift.tt/2DA3uB5 http://bit.ly/2pnaflz Bhaktisanskar.com – भक्ति और अध्यात्म का संगम रक्षा बंधन 2018 – शुभ मुहूर्त सहित जानें क्यों खास है इस बार राखी का पर्व

आनंद उमंग भयो, जय हो नन्द लाल की नन्द के आनंद भयो …

जाने रक्षाबंधन का धार्मिक महत्व और शास्त्रानुसार मंत्रो के साथ मनाये वैदिक राखी उत्सव

http://bit.ly/2PhNQ4g

रक्षाबंधन 2018 – Raksha Bandhan Festival 

यह तो सभी जानते हैं कि भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक रक्षाबंधन का त्यौहार हर वर्ष हर्ष और उल्लासा के साथ श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। श्रावण मास को भगवान शिव की पूजा का माह मानते हुए धार्मिक रुप से बहुत महत्व दिया जाता है। चूंकि रक्षाबंधन श्रावण पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है इसलिये इसका महत्व बहुत अधिक हो जाता है। आइये जानते हैं रक्षांधन के धार्मिक महत्व को बताने वाले अन्य पहलुओं के बारे में।

धार्मिक एवं पौराणिक ग्रंथों में उल्लेख

रक्षाबंधन के त्यौहार की उत्पत्ति धार्मिक कारणों से मानी जाती है जिसका उल्लेख पौराणिक ग्रंथों में, कहानियों में मिलता है। इस कारण पौराणिक काल से इस त्यौहार को मनाने की यह परंपरा निरंतरता में चलती आ रही है। चूंकि देवराज इंद्र ने रक्षासूत्र के दम पर ही असुरों को पराजित किया, चूंकि रक्षासूत्र के कारण ही माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को राजा बलि के बंधन से मुक्त करवाया, महाभारत काल की भी कुछ कहानियों का उल्लेख रक्षाबंधन पर किया जाता है अत: इसका त्यौहार को हिंदू धर्म की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।

उपाकर्म संस्कार और उत्सर्ज क्रिया

श्रावण पूर्णिमा यानि रक्षाबंधन के दिन ही प्राचीन समय में ऋषि-मुनि अपने शिष्यों का उपाकर्म कराकर उन्हें विद्या-अध्ययन कराना प्रारंभ करते थे। उपाकर्म के दौरान पंचगव्य का पान करवाया जाता है तथा हवन किया जाता है। उपाकर्म संस्कार के बाद जब जातक घर लौटते हैं तो बहनें उनका स्वागत करती हैं और उनके दांएं हाथ पर राखी बांधती हैं। इसलिये भी इसका धार्मिक महत्व माना जाता है। इसके अलावा इस दिन सूर्य देव को जल चढाकर सूर्य की स्तुति एवं अरुंधती सहित सप्त ऋषियों की पूजा भी की जाती है इसमें दही-सत्तू की आहुतियां दी जाती हैं। इस पूरी क्रिया को उत्सर्ज कहा जाता है।

कैसे बनायें वैदिक रक्षासूत्र (राखी)

अब सवाल यह उठता है कि बाज़ार से राखी न लाकर घर पर वैदिक राखी कैसे बनाई जाये। तो इसका समाधान भी हम आपको यहां दे रहे हैं। दरअसल वैदिक राखी बनाने के लिये आपको किसी ऐसी दुर्लभ चीज़ की आवश्यकता नहीं है जिसे प्राप्त करना आपके लिये कठिन हो बल्कि इसके लिये बहुत ही सरल लगभग घर में इस्तेमाल होने वाली चीज़ों की ही आवश्यकता होती है। वैदिक राखी के लिये दुर्वा यानि कि दूब जिसे आप घास भी कह सकते हैं चाहिये, अक्षत यानि चावल, चंदन, सरसों और केसर, ये पांच चीज़ें चाहिये। हां एक रेशम का कपड़ा भी चाहिये क्योंकि उसी में तो इन्हें डालना है।

दुर्वा, चावल, केसर, चंदन, सरसों को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लेकर एक पीले रंग के रेशमी कपड़े में बांध लें यदि इसकी सिलाई कर दें तो यह और भी अच्छा रहेगा। इन पांच पदार्थों के अलावा कुछ राखियों में हल्दी, कोड़ी व गोमती चक्र भी रखा जाता है। रेशमी कपड़े में लपेट कर बांधने या सिलाई करने के पश्चात इसे कलावे (मौली) में पिरो दें। आपकी राखी तैयार हो जायेगी। इसके साथ ही एक राखी कच्चे सूत से भी बनाई जाती है। ब्राह्मण अपने जजमान को यही रक्षासूत्र बांधते थे। इसमें कच्चे सूत के धागे को हल्दीयुक्त जल में भिगोकर उसे सुखाया जाता है। इस तरह कच्चे सूत की राखी तैयार हो जाती है।

वैदिक राखी का महत्व

दोनों ही राखियों में प्रयुक्त होने वाली सामग्री का विशेष महत्व माना जाता है। कच्चे सूत व हल्दी से बना रक्षासूत्र शुद्ध व शुभ माना जाता है। मान्यता है कि सावन के मौसम में यदि रक्षासूत्र को कलाई पर बांधा जाये तो इससे संक्रामक रोगों से लड़ने की हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है। साथ ही यह रक्षासूत्र हमारे अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचरण भी करता है।

वहीं दुर्वा, अक्षत, केसर, चंदन, सरसों से बना रक्षासूत्र भी शुभ व सौभाग्यशाली माना जाता है। विभिन्न धार्मिक क्रिया-कलापों में इन वस्तुओं का इस्तेमाल होते हुए आपने देखा होगा। हल्दी, चावल और दूब तो विशेष रूप से लगभग हर कर्मकांड, पूजा आदि में प्रयोग की जाती है। दरअसल रक्षासूत्र में इनके इस्तेमाल के पीछे की मान्यता भी यही है कि जिसे भी रक्षासूत्र बांधा जा रहा है उसकी वंशबेल दूब की तरह ही खूब फले-फैले, भगवान श्री गणेश को प्रिय होने से इसे विघ्नहर्ता भी माना जाता है। वहीं अक्षत यानि चावल आपसी रिश्तों में एक दूसरे के प्रति श्रद्धा के प्रतीक हैं साथ ही दीर्घायु स्वस्थ जीवन की कामना भी इनमें निहित मानी जाती है। केसर तेजस्विता के लिये तो चंदन शीतलता यानि संयम के लिये एवं सरसों हमें दुर्गुणों के प्रति तीक्ष्ण बनाये रखे इस कामना के साथ रखी जाती है। हल्दी, गोमती चक्र, कोड़ी भी शुभ माने जाते हैं।

https://ift.tt/2DA3uB5 http://bit.ly/2pnaflz Bhaktisanskar.com – भक्ति और अध्यात्म का संगम जाने रक्षाबंधन का धार्मिक महत्व और शास्त्रानुसार मंत्रो के साथ मनाये वैदिक राखी उत्सव

झूलन चलो हिडोलना वृषभानु नंदनी, सावन की तीज आई …

स्वतंत्रता दिवस पर महान देशभक्तो के आदर्शो पर अडिग रहने का ले प्रण

http://bit.ly/2Bbdh4L

स्वतंत्रता दिवस के मंगलमय अवसर पर समस्त राष्ट्र के साथ हम सबको राष्ट्रीय आदर्शों से प्रेरित होना होगा| आदर्शो में अपराजेय शक्ति और प्रेरणा भरी होती है और मनुष्य को महान बनाते हैं| उनके बिना भौतिक समृद्धि तो आ सकती है, परन्तु मनुष्य जीवन का लक्ष्य प्राप्त नहीं किया जा सकता| विज्ञान और तकनीकी ज्ञान रेलगाड़ी एवं विमान की गति को बढ़ा सकते है, परन्तु किसी राष्ट्र की चेतना को जाग्रत करके आदर्श के बीज नहीं बो सकते हैं| व्यक्ति जब ऊँचे आदर्शो से जुड़ता है, तभी उसका जीवन उदात्त बनता है|

भारत एक पुण्यभूमि है, महान भूमि है| इस पूरी वसुधा पर यदि कोई एक देश है, जहाँ आध्यात्मिक अन्वेषण अपने शिखर को उपलब्ध हो सका तो वह भारत ही है| अत्यंत प्राचीनकाल से ही यहाँ पर भिन्न-भिन्न धर्मो के संस्थापकों ने अवतार लेकर सारे संसार को सत्य की आध्यात्मिक, सनातन और पवित्र धारा से बांरबार सराबोर किया है|

इस देश की मिट्टी ऐसी पवित्र मिट्टी है कि यदि वो तप जाती है तो छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप, पृथ्वीराज चौहान जैसे शूरमाओं को जन्म देती है, यदि वो गल जाती है तो स्वामी रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, महर्षि अरविंद जैसे संतो को जन्म देती है तुलसी, सूर, मीरा, चैतन्य जैसे भक्तों में बदल जाती है, यदि वो ज्ञान के साथ जुड़ जाती है तो शंकर, रामानुज, मध्व, पंतजलि जैसे विद्वानों को जन्म देती है और यदि वह अर्पित हो जाती है तो सप्तर्षियों में, गुरूओं में, अवतारों में व तीर्थकरों में बदल जाती है|

संभवतया इसीलिए अपने विदेश प्रवास से लौटने पर स्वामी विवेकानंद ने कहा था “यदि पृथ्वी पर कोई ऐसा देश है, जिसे हम पुण्यभूमि कह सकते हैं, यदि कोई ऐसा स्थान है, जहाँ पृथ्वी के सब जीवों को अपना कर्मफल भोगने के लिए आना ही पड़ता है, यदि कोई स्थान जहाँ भगवान की ओर उन्मुख होने के प्रयत्न में संलग्न रहने वाले जीवमात्र को अंततः आना होगा, यदि कोई ऐसा देश है, जहाँ मानव जाति की क्षमा, दया, शुद्धता आदि सद्वृत्तियों का सर्वाधिक विकास हुआ है और यदि कोई देश है, जहाँ आध्यात्मिकता तथा आत्मान्वेषण का सर्वाधिक विकास हुआ है, तो वह भूमि भारत ही है|”

पवित्रता व प्रखरता की धाराओं से आप्लावित उन शब्दों को साक्षी मानकर आज यह विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि आने वाले समय में इसी देश से आदर्शो की वह धारा बहेगी, जो भटकी मानवता को सही दिशा प्रदान करेगी| और यह विश्वास करने की आवश्यकता है कि कल यही होने जा रहा है, यही सत्य है और यही भारत का सुनिश्चित एवं गौरवशाली भविष्य है|

समस्त देशवासियों को भक्तिसंस्कार की तरफ से स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं – जयहिंद

http://bit.ly/2PbjjFB http://bit.ly/2pnaflz Bhaktisanskar.com – भक्ति और अध्यात्म का संगम स्वतंत्रता दिवस पर महान देशभक्तो के आदर्शो पर अडिग रहने का ले प्रण

रामायण मनका 108 – रघुपति राघव राजाराम पतितपावन सीताराम …

2018 Independence Day Quotes in Hindi स्वतन्त्रता दिवस की शुभकामनायें

http://bit.ly/2OtaKVl

15 August Our Independence Day Quotes in Hindi ना सर झुका है कभी और ना झुकायेंगे कभी जो अपने दम पे जियो असल में जिंदगी है वही 15 अगस्त एक ऐसा दिन है जो हमें आजादी की याद दिलाता है और उन शहीदों की याद दिलाता है जिन्होंने इस देश के लिए अपना घर, अपना परिवार एवं अपनी जिंदगी सब कुर्बान कर दिया आओ देश का सम्मान करें शहीदों की शहादत याद करें एक बार फिर से राष्ट्र की कमान हिंदुस्तानी अपने हाथ धरें आओ स्वतंत्रता दिवस का मान करें आजादी की कभी शाम ना होने देंगे शहीदों की कुर्बानी

The post 2018 Independence Day Quotes in Hindi स्वतन्त्रता दिवस की शुभकामनायें appeared first on Hindi Soch.

https://ift.tt/2DA3uB5 http://bit.ly/2MfX52I Hindi Soch 2018 Independence Day Quotes in Hindi स्वतन्त्रता दिवस की शुभकामनायें

देशभक्ति कविता इन हिंदी : चन्द्रशेखर आजाद! Desh Bhakti Poem

http://bit.ly/2vFzjqY

देश प्रेम पर देशभक्ति कविता ये देशभक्ति कविता (Hindi Deshbhakti Kavita/Poem) महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद के बलिदान और उनके आजाद भारत के सपने पर आधारित है| इस हिंदी देशभक्ति कविता में कवि ने अपनी बातों से झकझोर कर रख दिया है| जिस आजादी के लिए चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह जैसे वीरों ने अपनी कुर्बानी दी थी, क्या आज उन सेनानियों के लिए हमारे हृदय में कोई स्थान नहीं है| चंद पैसे और कुर्सी के लालच में लोग इन क्रांतिकारियों का मजाक उड़ाने तक से बाज नहीं आते| कुछ ऐसे ही विद्रोही बोलों के साथ कवि ने यह कविता लिखी

The post देशभक्ति कविता इन हिंदी : चन्द्रशेखर आजाद! Desh Bhakti Poem appeared first on Hindi Soch.

https://ift.tt/2DA3uB5 http://bit.ly/2MfX52I Hindi Soch देशभक्ति कविता इन हिंदी : चन्द्रशेखर आजाद! Desh Bhakti Poem

हरियाली तीज 2018 – जानें श्रावणी तीज की व्रत कथा व पूजा विधि और आवश्यक सामग्री

http://bit.ly/2vE9Qhz

श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को “श्रावणी तीज” कहते हैं। परन्तु ज्यादातर लोग इसे हरियाली तीज के नाम से जानते हैं। यह त्यौहार मुख्य रूप से उत्तर भारत में मनाया जाता है। इस दिन स्त्रियाँ माता पार्वती जी और भगवान शिव जी की पूजा करती हैं। इस दिन महिलायें निर्जला व्रत रखती हैं। इस व्रत को करवा चौथ से भी कठिन व्रत बताया जाता है। इस दिन महिलायें पूरा दिन बिना भोजन-जल के दिन व्यतीत करती हैं तथा दूसरे दिन सुबह स्नान और पूजा के बाद व्रत पूरा करके भोजन ग्रहण करती हैं। इसी वजह से इस व्रत को “करवा चौथ” से भी कठिन माना जाता है।

साल 2018 में हरियाली तीज 13 अगस्त को मनाई जाएगी। इस दिन जगह-जगह झूले पड़ते हैं। इस त्यौहार में स्त्रियाँ गीत गाती हैं, झूला झूलती हैं और नाचती हैं। हरियाली तीज के दिन अनेक स्थानों पर मेले लगते हैं और माता पार्वती की सवारी बड़े धूमधाम से निकाली जाती है।

हरियाली तीज व्रत कथा

इस व्रत के महत्त्व की कथा भगवान शिव ने पार्वती जी को उनके पूर्व जन्म का स्मरण करवाने के उद्देश्य से इस प्रकार से कही थी-

शिवजी कहते हैं: हे पार्वती। बहुत समय पहले तुमने हिमालय पर मुझे वर के रूप में पाने के लिए घोर तप किया था। इस दौरान तुमने अन्न-जल त्याग कर सूखे पत्ते चबाकर दिन व्यतीत किया था। मौसम की परवाह किए बिना तुमने निरंतर तप किया। तुम्हारी इस स्थिति को देखकर तुम्हारे पिता बहुत दुःखी और नाराज़ थे। ऐसी स्थिति में नारदजी तुम्हारे घर पधारे।

जब तुम्हारे पिता ने उनसे आगमन का कारण पूछा तो नारदजी बोले – ‘हे गिरिराज! मैं भगवान् विष्णु के भेजने पर यहाँ आया हूँ। आपकी कन्या की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर वह उससे विवाह करना चाहते हैं। इस बारे में मैं आपकी राय जानना चाहता हूँ।’ नारदजी की बात सुनकर पर्वतराज अति प्रसन्नता के साथ बोले- हे नारदजी। यदि स्वयं भगवान विष्णु मेरी कन्या से विवाह करना चाहते हैं तो इससे बड़ी कोई बात नहीं हो सकती। मैं इस विवाह के लिए तैयार हूं।”

शिवजी पार्वती जी से कहते हैं, “तुम्हारे पिता की स्वीकृति पाकर नारदजी, विष्णुजी के पास गए और यह शुभ समाचार सुनाया। लेकिन जब तुम्हें इस विवाह के बारे में पता चला तो तुम्हें बहुत दुख हुआ। तुम मुझे यानि कैलाशपति शिव को मन से अपना पति मान चुकी थी।

तुमने अपने व्याकुल मन की बात अपनी सहेली को बताई। तुम्हारी सहेली से सुझाव दिया कि वह तुम्हें एक घनघोर वन में ले जाकर छुपा देगी और वहां रहकर तुम शिवजी को प्राप्त करने की साधना करना। इसके बाद तुम्हारे पिता तुम्हें घर में न पाकर बड़े चिंतित और दुःखी हुए। वह सोचने लगे कि यदि विष्णुजी बारात लेकर आ गए और तुम घर पर ना मिली तो क्या होगा। उन्होंने तुम्हारी खोज में धरती-पाताल एक करवा दिए लेकिन तुम ना मिली।

तुम वन में एक गुफा के भीतर मेरी आराधना में लीन थी। भाद्रपद तृतीय शुक्ल को तुमने रेत से एक शिवलिंग का निर्माण कर मेरी आराधना कि जिससे प्रसन्न होकर मैंने तुम्हारी मनोकामना पूर्ण की। इसके बाद तुमने अपने पिता से कहा कि ‘पिताजी, मैंने अपने जीवन का लंबा समय भगवान शिव की तपस्या में बिताया है। और भगवान शिव ने मेरी तपस्या से प्रसन्न होकर मुझे स्वीकार भी कर लिया है। अब मैं आपके साथ एक ही शर्त पर चलूंगी कि आप मेरा विवाह भगवान शिव के साथ ही करेंगे।” पर्वत राज ने तुम्हारी इच्छा स्वीकार कर ली और तुम्हें घर वापस ले गये। कुछ समय बाद उन्होंने पूरे विधि – विधान के साथ हमारा विवाह किया।”

भगवान् शिव ने इसके बाद बताया कि – “हे पार्वती! भाद्रपद शुक्ल तृतीया को तुमने मेरी आराधना करके जो व्रत किया था, उसी के परिणाम स्वरूप हम दोनों का विवाह संभव हो सका। इस व्रत का महत्त्व यह है कि मैं इस व्रत को पूर्ण निष्ठा से करने वाली प्रत्येक स्त्री को मन वांछित फल देता हूं। भगवान शिव ने पार्वती जी से कहा कि इस व्रत को जो भी स्त्री पूर्ण श्रद्धा से करेंगी उसे तुम्हारी तरह अचल सुहाग प्राप्त होगा।

हरियाली तीज 2018 पूजा विधि

सुबह उठ कर स्‍नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करने के बाद मन ही मन पूजा करने का संकल्प लें और ‘उमामहेश्वरसायुज्य सिद्धये हरितालिका व्रतमहं करिष्ये’ मंत्र का जाप करें। पूजा शुरू करने से पहले काली मिट्टी के प्रयोग से भगवान शिव और मां पार्वती तथा भगवान गणेश की मूर्ति बनाएं। फिर थाली में सुहाग की सामग्रियों को सजा कर माता पार्वती को अर्पित करें। ऐसा करने के बाद भगवान शिव को वस्त्र चढ़ाएं। उसके बाद तीज की कथा सुने या पढ़ें ।

तृतीया तिथि आरंभ08:36 बजे से (13 अगस्त 2018)

तृतीया तिथि समाप्त05:45 बजे तक ( 14 अगस्त 2018)

पूजा के लिए आवश्यक सामग्री 

बेल पत्र , केले के पत्ते, धतूरा, अंकव पेड़ के पत्ते, तुलसी, शमी के पत्ते, काले रंग की गीली मिट्टी, जनैव, धागा और नए वस्त्र |

पार्वती जी के श्रृंगार के लिए जरूरी सामग्री

चूडियां, महौर, खोल, सिंदूर, बिछुआ, मेहंदी, सुहाग पूड़ा, कुमकुम, कंघी, सुहागिन के श्रृंगार की चीज़ें।  इसके अलावा श्रीफल, कलश,अबीर, चंदन, तेल और घी, कपूर, दही, चीनी, शहद ,दूध और पंचामृत आदि।

https://ift.tt/2DA3uB5 http://bit.ly/2pnaflz Bhaktisanskar.com – भक्ति और अध्यात्म का संगम हरियाली तीज 2018 – जानें श्रावणी तीज की व्रत कथा व पूजा विधि और आवश्यक सामग्री

इन 5 योग से आपका कुंडली में लिखा राजयोग भी असफल हो जाता है, करे ये उपाय तुरंत …

http://bit.ly/2M9OZNx

भाग्य में राजयोग – Rajyog in Astrology

ज्योतिष अनुसार कुंडली में नौवें और दशवें भाव का बहुत बड़ा महत्व है। नौवां भाव भाग्य का और दशवाँ कर्म का भाव माना जाता है। कोई भी व्यक्ति इन दोनों घरों की वजह से ही जीवन में सुख और समृधि प्राप्त करता है। कर्म से ही भाग्य का निर्माण होता है और अच्छा भाग्य,हमेशा व्यक्ति से अच्छा ही कार्य करवाता है। अगर जन्म कुंडली के लग्न,नौवें या दशवें घर में सूर्य और गुरु ग्रह मौजूद रहते हैं तो उन परिस्थितियों में राजयोग (Rajyog in indian astrology) का निर्माण होता है। राज योग एक ऐसा योग होता है जो प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप में राजा के समान सुख प्रदान करता है। इस योग को प्राप्त करने वाला व्यक्ति सभी प्रकार की सुख-सुविधाओं को प्राप्त करने वाला होता है।

कुंडली में सामान्यतः ज्यादातर राजयोगों की ही चर्चा होती है कई बार ज्योतिषी कुछ दुर्योगों को नजरअंदाज कर जाते हैं जिस कारण राजयोग फलित नहीं होते और जातक को ज्योतिष विद्या पर संशय होता है परन्तु कुछ ऐसे दुर्योग हैं जिनके प्रभाव से जातक कई राजयोगों से लाभांवित होने से चूक जाते हैं हम आपको कुछ ऐसे ही योगों से परिचित करायेंगे जिनके कुंडली में उपस्थित होने से राजयोग भंग हो जाता है। तो आइये जानते हैं वह दुर्योग कौन से हैं और कुंडली में कैसे बनते हैं…

ग्रहण योग

कुंडली में कहीं भी सूर्य अथवा चन्द्रमा की युति राहू या केतु से हो जाती है तो इस दोष का निर्माण होता है। यदि यह योग चन्द्रमा के साथ बना तो जातक हमेशा डर व घबराहट महसूस करता है और चिड़चिड़ापन उसके स्वभाव का हिस्सा बन जाता है साथ ही माँ के सुख में कमी, किसी भी कार्य को शुरू करने के बाद उसे अधूरा छोड़ देना व नये काम के बारे में सोचना इस योग के लक्षण हैं।

किसी भी प्रकार के फोबिया अथवा किसी भी मानसिक बीमारी जैसे डिप्रेशन, सिज्रेफेनिया आदि इसी योग के कारण माने गये हैं यदि चन्द्रमा अधिक दूषित हो जाता है या कहें अन्य पाप प्रभाव में भी हो जाता है तो मिर्गी, चक्कर व मानसिक संतुलन खोने का डर भी होता है।

सूर्य द्वारा बनने वाला ग्रहण योग पिता के सुख में कमी करता है जातक का शारारिक ढांचा कमजोर रह जाता है। आंखों व ह्रदय संबंधी रोगों का कारक बनता है सरकारी नौकरी या तो मिलती नहीं या उस में निर्वाह मुश्किल से होता है। डिपार्टमैंटल इंक्वाइरी, सजा, तरक्की में रूकावट आदि सब इसी योग का परिणाम हैं।

गुरू चांडाल दोष

गुरू की किसी भाव में राहू से युति चंडाल योग बनाती है शरीर पर घाव का चिन्ह लिए ऐसा जातक भाग्यहीन होता है। आजीविका से जातक कभी संतुष्ट नहीं होता, बोलने में अपनी शक्ति व्यर्थ करता है व अपने सामने औरों को ज्ञान में कम आंकता है जिस कारण स्वयं धोखे में रहकर पिछड़ जाता है यह योग जिस भी भाव में बनता है उस भाव को साधारण कोटि का बना देता है। मतांतर से कुछ विद्वान राहू की दृष्टि गुरू पर या गुरू की केतू से युति को भी इस योग का लक्षण मानते हैं।

दरिद्र योग

लग्न या चन्द्रमा से चारों केन्द्र स्थान खाली हों या चारों केन्द्रों में पाप ग्रह हों तो दरिद्र योग बनता है ऐसा जातक अरबपति के घर में जन्म में भी ले ले तो भी उसे आजीविका के लिए भटकना पड़ता है व दरिद्र जीवन बिताने के लिए मजबूर होना पड़ता है।

शकट योग

चन्द्रमा से छठे या आठवें भाव में गुरू हो व ऐसा गुरू लग्न से केंद्र में न बैठा हो तो शकट योग का होना माना जाता है ऐसा जातक जीवन भर किसी न किसी कर्ज से दबा रहता है व सगे संबंधी उपेक्षा करते हैं और जातक अपने जीवन में अनगिनत उतार चढाव देखता है।

कलह योग

यदि चन्द्रमा पाप ग्रह के साथ राहू से युक्त हो 12वें,5वें या 8वें भाव में हो तो कलह योग माना गया है ऐसा जातक जीवन भर किसी न किसी बात को लेकर कलह करता रहता है और अंत में इसी कलह के कारण तनाव में उसका जीवन तक नष्ट हो जाता है।

यद्दपि उपरोक्त दुर्योग किसी की कुंडली में राजयोग को भंग कर देते हैं किन्तु हमारे ज्योतिष शास्त्र में किसी दुर्योग को उपाय के माध्यम से कम किया जा सकता है। संबन्धित ग्रह की पूजा, दान, मंत्र जाप से इन योगों के दुष्प्रभावों को कम करके जीवन खुशहाल बनाया जा सकता है।

बिगड़े राजयोग को पुनः मजबूत करने के उपाय

  • पीतल के गणपति भगवान की एक मूर्ति लें (जिसका पहले पूजन न किया गया हो ) वह छोटी बडी़ किसी भी आकार की हो सकती है। बुधवार के दिन प्रात:काल उसे स्नान करा कर, उस पर केसर लगाएं तथा उसे रक्त चंदन का तिलक करें। गुड़ का भोग लगाएं और 21 पुष्पो से पूजन करें। पुष्प कनेर के होने चाहिए। गणपति पर पुष्प चढ़ाते समय अपनी धन-संबंधी कामना को अवश्य करते रहें।
  • पांच कुंआरी कन्याओं को भोजन कराएं और उन्हें यथोचित भेंट दें। ऐसा करने पर व्यक्ति जिस कामना से यह साधना करता है, वह अवश्य ही पूर्ण हो जाती हैं।
  • घर के उत्तर-पश्चिम कोण में मिट्टी के पात्र में कुछ सोने-चांदी के सिक्के लाल वस्त्र में बांधकर रखें। फिर पात्र को गेहूं या चावलो से भर दें। इससे धन का अभाव नहीं रहेगा।
  • बुधवार के दिन गाय को अपने हाथों से हरी घास खिलाये तो आर्थिक स्थिति की अनुकूलता का योग बनेगा।
  • पीपल के पांच पत्ते लेकर उन्हें पीले चंदन से रंगकर, बहते हुए जल में छोड़ दें। यह उपाय शुक्ल पक्ष से आरंभ करें। गुरु पुष्प नक्षत्र हो तो बहुत अच्छा है।
  • किसी भी व्यक्ति का ऋण उतारने के लिए किसी भी मंगलवार के दिन शिवमंदिर में जाकर शिव-पिंडी पर मसूर की दाल चढ़ाए। जब तक ऋण न उतरजाए, यह प्रयोग करते रहें।
  • यदि धनमार्ग अवरुद्ध हो तो केसर तथा पीले चंदन का तिलक मस्तक परलगाएं। ऐसा करने से आमदनी के स्रोत खुल जाते हैं। यह क्रिया शुक्ल पक्ष के बृहस्पतिवार को दोपहर बारह बजे शुरु करें। मंदिर में जाकर राम दरबारके समक्ष दंड़वत् प्रणाम करते रहें। इससे धन मार्ग प्रशस्त हो जायेगा।
  • प्रत्येक गुरुवार को पीपल के वृक्ष पर जल चढ़ायें । इससे राजयोग योगबनता है।
  • किसी भी शुभ समय में एक पंचमुखी रूद्राक्ष तथा स्फटिक के 2 मोतियों को अभिमंत्रित करें। फिर रूद्राक्ष के दोनों ओर उन मोतियों को लाल धागे में पिरोकर धारण करने से आपके जीवन में राजयोग बनेगा।
  • सुख, समृद्धि एवं उन्नति के लिए किसी भी महीने के पहले गुरुवार के दिन कच्चे सूत को केसर से रंग कर अपने घर के बाहरी दरवाजे पर बांध दें।
https://ift.tt/2DA3uB5 http://bit.ly/2pnaflz Bhaktisanskar.com – भक्ति और अध्यात्म का संगम इन 5 योग से आपका कुंडली में लिखा राजयोग भी असफल हो जाता है, करे ये उपाय तुरंत …

सत्यम शिवम सुंदरम ईश्वर सत्य है, सत्य ही शिव है …

हरियाली अमावस्या 2018 – शास्त्रनुसार एक पेड़ दस पुत्र समान होता है, जाने इस अमावस्या पर सुख समृद्धि के उपाय

http://bit.ly/2nqLCTq

हरियाली अमावस्या 2018 – Hariyali Amawasya

हिन्दू धर्म में अमावस्या का अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान है। अमावस्या के दिन हर व्यक्ति अपने पितरों को याद करते हैं और श्रद्धा भाव से उनका श्राद्ध भी करते हैं। अपने पितरों की शांति के लिए हवन आदि कराते हैं। ब्राह्मण को भोजन कराते हैं और साथ ही दान-दक्षिणा भी देते हैं। शास्त्रों के अनुसार इस तिथि के स्वामी पितृदेव हैं। पितरों की तृप्ति के लिए इस तिथि का अत्यधिक महत्व है। अमावस्या में श्रावण मास की अमावस्या का अपना अलग ही महत्व है। इसे हरियाली अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है।

शनिचरी हरियाली अमावस्या 2018 सावन कृष्ण अमावस्या को पड़ रही है। इस महीने शनिचरी अमावस्या 11 अगस्त 2018 को मनाई जाएगी। मान्यता है कि इस दिन पौधे लगाना शुभ माना जाता है। इसलिए इस उत्सव को शनिचरी अमावस्या का नाम दिया गया है। कुछ स्थानों पर इस दिन पीपल के वृक्ष की पूजा कर उसके फेरे लगाने और मालपुए का भोग लगाने की भी परंपरा है। |

Amavasya Tithi Begins = 19:07 on 10/Aug/2018
Amavasya Tithi Ends = 15:27 on 11/Aug/2018

शास्त्रों में कहा गया है कि एक पे़ड दस पुत्रों के समान होता है। पे़ड लगाने के सुख बहुत होते है और पुण्य उससे भी अधिक। क्योंकि यह वसुधैव कुटुम्बकम की भावना पर आधारित होते है। वृक्ष सदा उपकार की खातिर जीते है। इसलिये हम वृक्षों के कृतज्ञ है। वृक्षों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने हेतु परिवार के प्रति व्यक्ति को हरियाली अमावस्या पर एक-एक पौधा रोपण करना चाहिये। पे़ड-पौधों का सानिध्य हमारे तनाव को तथा दैनिक उलझनों को कम करता है।

वृक्षों में देवताओं का वास

धार्मिक मान्यता अनुसार वृक्षों में देवताओं का वास बताया गया है। शास्त्र अनुसार पीपल के वृक्ष में त्रिदेव याने ब्रह्मा, विष्णु और शिव का वास होता है। इसी प्रकार आंवले के पे़ड में लक्ष्मीनारायण के विराजमान की परिकल्पना की गई है। इसके पीछे वृक्षों को संरक्षित रखने की भावना निहित है। पर्यावरण को शुद्ध बनाए रखने के लिए ही हरियाली अमावस्या के दिन वृक्षारोपण करने की प्रथा बनी। इस दिन कई शहरों व गांवों में हरियाली अमावस के मेलों का आयोजन किया जाता है।

इसमें सभी वर्ग के लोंगों के साथ युवा भी शामिल हो उत्सव व आनंद से पर्व मनाते हैं। गु़ड व गेहूं की धानि का प्रसाद दिया जाता है। स्त्री व पुरूष इस दिन गेहूं, ज्वार, चना व मक्का की सांकेतिक बुआई करते हैं जिससे कृषि उत्पादन की स्थिति क्या होगी का अनुमान लगाया जाता है। मध्यप्रदेश में मालवा व निम़ाड, राजस्थान के दक्षिण पश्चिम, गुजरात के पूर्वोत्तर क्षेत्रों, उत्तर प्रदेश के दक्षिण पश्चिमी इलाकों के साथ ही हरियाणा व पंजाब में हरियाली अमावस्या को पर्व के रूप में मनाया जाता है।

हरियाली अमावस्या का महत्व

हमारी धर्म संस्कृति में वृक्षों को देवता स्वरूप माना गया है। मनु-स्मृति के अनुसार वृक्ष योनि पूर्व जन्मों के कमों के फलस्वरूप मानी गयी है। परमात्मा द्वारा वृक्षों का सर्जन परोपकार एवं जनकल्याण के लिए किया गया है। पीपल- हिन्दू धर्म में पीपल के वृक्ष को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है क्योंकि पीपल के वृक्ष में अनेकों देवताओं का वास माना गया है। पीपल के मूल भाग में जल, दूध चढाने से पितृ तृप्त होते है तथा शनि शान्ति के लिये भी शाम के समय सरसों के तेल का दिया लगाने का विधान है।

केला- केला, विष्णु पूजन के लिये उत्तम माना गया है। गुरूवार को बृहस्पति पूजन में केला का पूजन अनिवार्य हैं। हल्दी या पीला चन्दन, चने की दाल, गु़ड से पूजा करने पर विद्यार्थियों को विद्या तथा कुँवारी कन्याओं को उत्तम वर की प्राप्ति होती है।

इसलिए हरियाली अमावस्या के दिन केले का पौधा जरूर लगायें

ब़ड- ब़ड वृक्ष की पूजा सौभाग्य प्राप्ति के लिये की जाती है। जिस प्रकार सावित्री ने ब़ड की पूजा कर यमराज से अपनी पति के जीवित होने का वरदान मांगा था। उसी प्रकार सौभाग्यवती çस्त्रयां अपने पति की लम्बी उम्र की कामना हेतु यह व्रत करके ब़ड वृक्ष की पूजा एवं सेवा करती है। तुलसी- तुलसी एक बहुश्रूत, उपयोगी वनस्पति है। स्कन्दपुराण एवं पद्मपुराण के उत्तर खण्ड में आता है कि जिस घर में तुलसी होती है वह घर तीर्थ के समान होता है। समस्त वनस्पतियों में सर्वाधिक धार्मिक, आरोग्यदायिनी एवं शोभायुक्त तुलसी भगवान नारायण को अतिप्रिय है।

पौधा रोपण हेतु ज्योतिषीय मुहूर्त

पौधा रोपण हेतु ज्योतिष के अनुसार नक्षत्रों का महत्व है। उत्तरा फाल्गुनी, उत्तराषाढा, उत्तरा भाद्रपदा, रोहिणी, मृगशिर, रेवती, चित्रा, अनुराधा, मूल, विशाखा, पुष्य, श्रवण, अश्विनी, हस्त इत्यादि नक्षत्रों में किये गये पौधारोपण शुभ फलदायी होते है। वास्तु के अनुसार- घर के समीप शुभ प्रभावकारी वृक्ष घर के समीप शुभ करने वाले वृक्ष- निम्ब, अशोक, पुन्नाग, शिरीष, बिल्वपत्र, आँक़डा तथा तुलसी का पौधा आरोग्य वर्धक होता है।

वास्तु के अनुसार

घर के समीप अशुभ प्रभावकारी वृक्ष- पाकर, गूलर, नीम, बहे़डा, पीपल, कपित्थ, बेर, निर्गुण्डी, इमली, कदम्ब, बेल, खजूर ये सभी घर के समीप अशुभ है। घर में बेर, केला, अनार, पीपल और नींबू लगाने से घर की वृद्धि नहीं होती। घर के पास कांटे वाले, दूध वाले और फल वाले वृक्ष हानिप्रद होते है। घर की आग्नेय दिशा में पीपल, वट, सेमल, गूलर, पाकर के वृक्ष हो तो शरीर में पीडा एवं मृत्यु तुल्य कष्ट होता है। वक्षों के विनाश का दुष्परिणाम मानव समुदाय को सीधे तौर पर भुगतना प़ड रहा है। इस हरियाली अमावस्या पर हम संकल्प ले कि हम अपने-अपने नगर को हरियाला एवं स्वच्छ बनाये ताकि धरती पर जैविक संतुलन भी बना रहे।

विशेष कामना सिद्धि हेतु कौन से वृक्ष लगाये

1. लक्ष्मी प्राप्त के लिए- तुलसी, आँवला, केल, बिल्वपत्र का वृक्ष लगाये।
2. आरोग्य प्राप्त के लिए- ब्राह्मी, पलाश, अर्जुन, आँवला, सूरजमुखी, तुलसी लगाये।
3. सौभाग्य प्राप्त हेतु- अशोक, अर्जुन, नारियल, ब़ड (वट) का वृक्ष लगाये।
4. संतान प्राप्त हेतु- पीपल, नीम, बिल्व, नागकेशर, गु़डहल, अश्वगन्धा को लगाये।
5. मेधा वृद्धि प्राप्त हेतु- आँक़डा, शंखपुष्पी, पलाश, ब्राह्मी, तुलसी लगाये।
6. सुख प्राप्त के लिए- नीम, कदम्ब, धनी छायादार वृक्ष लगाये।
7. आनन्द प्राप्त के लिए- हरसिंगार (पारिजात) रातरानी, मोगरा, गुलाब लगाये।

https://ift.tt/2DA3uB5 http://bit.ly/2pnaflz Bhaktisanskar.com – भक्ति और अध्यात्म का संगम हरियाली अमावस्या 2018 – शास्त्रनुसार एक पेड़ दस पुत्र समान होता है, जाने इस अमावस्या पर सुख समृद्धि के उपाय

Featured Post

5 Famous – देशभक्ति गीत – Desh Bhakti Geet in Hindi

https://bit.ly/2ncchn6 स्कूल में गाने के लिए देश भक्ति गीत – भारतीय देश भक्ति गीत (सॉन्ग) ये देश भक्ति गीत उन शहीदों को समर्पित हैं जिन्हो...