कृष्णा जन्माष्टमी 2018 कब है – जानिए जन्माष्टमी पूजा विधि और शुभ मुहूर्त

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कृष्ण जन्माष्टमी 2018 : कृष्ण भगवान की भक्ति का त्यौहार

हिन्दू धर्म में उपासकों के लिए सबसे अहम पर्वों में से एक है कृष्ण जन्माष्टमी। यह तिथि भगवान श्रीकृष्ण की जन्मतिथि के रूप में मनाई जाती है। वर्ष 2018 में कृष्ण जन्माष्टमी 2 सितम्बर को मनाई जाएगी। यह त्यौहार भाद्रपद में अष्टमी तिथि को मनाया जाता है, ऐसा कहा जाता है की विष्णु के अवतार श्री कृष्ण का जन्म इस दिन रात को बारह बजे हुआ था।

कृष्ण जी का जन्म मथुरा के राजा के अत्याचारों का विनाश करने के लिए हुआ था। देवकी की कोख से जन्म लेने के बाद कृष्ण भगवान् ने अवतार लेकर कंस का विनाश किया था। उसी दिन से यह दिन भगवान् कृष्ण को समर्पित करते हुए उनके जन्मदिन की ख़ुशी में मनाया जाता है। इस अत्यंत शुभावसर पर श्रीकृष्ण के भक्त, उनके उपासक व्रत करते हैं और और प्रभु का ध्यान करते हैं। कुछ उपासक रात्रि जागरण भी करते हैं और कृष्ण के नाम के भजन-कीर्तन करते हैं। कृष्ण की जन्मभूमि मथुरा और वृन्दावन में जन्माष्टमी भव्य रूप से मनाया जाता है। यहाँ की रासलीला केवल भारत में ही नहीं बल्कि विदेश में भी प्रसिद्ध है। इन रासलीला में कृष्ण के जीवन के मुख्य वृतांतों को दर्शाया जाता है और राधा के प्रति उनके प्रेम का अभिनन्दन किया जाता है।

कईं शहरों में झांकियां भी बनाई जाती हैं जिनमें ना केवल श्रीकृष्ण और राधा बल्कि अन्य देवी-देवताओं के रूप में उनके भक्त विराजमान रहते हैं और बाकी के उपासक उनके दर्शन करते हैं। महाराष्ट्र में विशेष रूप से इस दिन मटकी फोड़ने की प्रथा प्रचलित है। उपासकों द्वारा इंसानी मीनार बनाकर धरती से कईं फुट ऊंची मटकी को तोड़कर यह प्रथा पूर्ण होती है। बड़ी तादाद में भक्तजन एकत्रित होते है और गाना-बजाना, नृत्य आदि करते हैं।

कृष्णभूमि द्वारका में इस विशेष अवसर पर बड़ी धूमधाम होती है। इस दिन यहाँ देश-विदेश से बहुत पर्यटक आते हैं। इस भव्य समारोह को कृष्ण जन्मोत्सव के नाम से भी जाना जाता है। तो आइये जानते है की इस साल 2018 में जन्माष्टमी कब है।

Shri Krishna Janmashtami Festival

जन्माष्टमी 2018 में कब है –

वर्ष 2018 में श्री कृष्ण जन्माष्टमी 2nd सितंबर 2018, रविवार को मनाई जाएगी।

कृष्ण जन्माष्टमी पूजा का शुभ मुहूर्त

जन्माष्टमी के दिन निशिता पूजा का समय = 23:57 से 24:43+ तक।
मुहूर्त की अवधि = 45 मिनट
जन्माष्टमी में मध्यरात्रि का क्षण = 24:20+
3rd सितंबर को, पारण का समय = 20:05 के बाद
पारण के दिन अष्टमी तिथि के समाप्त होने का समय = 19:19
पारण के दिन रोहिणी नक्षत्र के समाप्त होने का समय = 20:05

वैष्णव कृष्ण जन्माष्टमी 3 सितंबर 2018 को मनाई जाएगी।
वैष्णव जन्माष्टमी के लिये अगले दिन का पारण समय = 06:04 (सूर्योदय के बाद)

पारण के दिन अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र सूर्योदय से पहले समाप्त हो जाएंगे।

दही हाण्डी का उत्सव

जन्माष्टमी के अवसर पर जन्माष्टी से अगले दिन युवाओं की टोलियां काफी ऊंचाई पर बंधी दही की हांडी (एक प्रकार का मिट्टी का बर्तन) को तोड़ती हैं जो टोली दही हांडी को फोड़ती है उसे विजेता घोषित किया जाता है। प्रतियोगिता को मुश्किल बनाने के लिये प्रतिभागियों पर पानी की बौछार भी की जाती है। इन तमाम बाधाओं को पार कर जो मटकी फोड़ता है वही विजेता होता है। इस उतस्व की खास बात यह भी है कि जो भी इस प्रतियोगिता में हिस्सा लेता है उस हर युवक-युवती को गोविंदा कहा जाता है।

वहीं इस प्रतियोगिता से सीख भी मिलती है कि लक्ष्य भले ही कितना भी कठिन हो लेकिन मिलकर एकजुटता के साथ प्रयत्न करने पर उसमें कामयाबी जरुर मिलती है। यही उपदेश भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को गीता के जरिये भी देते हैं। इस बार दही हांड़ी उत्सव 3rd, सितंबर 2018 को मनाया जाएगा।

अष्टमी तिथि का प्रारंभ 2nd सितंबर 2018, रविवार को 20:47 बजे से होगा जिसका समापन 3rd सितंबर 2018, सोमवार को 19:19 बजे होगा।

जन्माष्टमी व्रत व पूजा विधि        

  • जन्माष्टमी की पूर्व रात्रि हल्का भोजन करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें। प्रातःकाल स्नानादि नित्यकर्मों से निवृत्त होकर सूर्य, सोम, यम, काल, संधि, भूत, पवन, दिक्‌पति, भूमि, आकाश, खचर, अमर और ब्रह्मादि को नमस्कार कर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख कर बैठें। इसके बाद हाथ में जल लेकर संकल्प करें।
  • अब मध्याह्न के समय काले तिलों के जल से स्नान कर देवकीजी के लिए प्रसूति-गृह  का निर्माण करें।  तत्पश्चात भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
  • मूर्ति या प्रतिमा में बालकृष्ण को स्तनपान कराती हुई देवकी अथवा लक्ष्मीजी उनके चरण स्पर्श किए हों। या ऐसी कृष्ण के जीवन के किसी भी अहम वृतांत का भाव हो।
  • तत्पश्चात श्री कृष्ण की प्रतिमा को पंचामृत से स्नान करवाया जाता है। उसके बाद उन्हें नए वस्त्र पहनाएं जाते है, और उनका अभिषेक किया जाता है। अभिषेक करने के बाद उन्हें सुगन्धित पुष्प, फल, मिष्ठान आदि अर्पित किये जाते है।
  • फिर उन्हें माखन मिश्री, जो की उनका प्रिय है उसका भोग लगाया जाता है। इसके अलावा आप जन्माष्टमी के प्रसाद में पंजीरी व् पंचामृत का भी भोग लगा सकते है।

व्रत अगले दिन सूर्योदय के पश्चात ही तोड़ा जाना चाहिए। इसका ध्यान रखना चाहिए कि व्रत अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के समाप्त होने के पश्चात ही तोड़ा जाएं। किन्तु यदि अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र सूर्यास्त से पहले समाप्त ना हो, तो किसी एक के समाप्त होने के पश्चात व्रत तोड़े। किन्तु यदि यह सूर्यास्त तक भी संभव ना हो, तो दिन में व्रत ना तोड़े और अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र में से किसी भी एक के समाप्त होने की प्रतीक्षा करें या निशिता समय में व्रत तोड़े। ऐसी स्थिति में दो दिन तक व्रत न कर पाने में असमर्थ, सूर्योदय के पश्चात कभी भी व्रत तोड़ सकते हैं।

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