मूलाधार चक्र – जानिए चक्र जागरण करने की विधि, मंत्र और नियम से होने वाले लाभ को

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मूलाधार चक्र जागरण – Muladhar Chakra

मूलाधार चक्र ऊर्जा-शरीर की बुनियाद है। आजकल लोग सोचते हैं कि मूलाधार सबसे निचला चक्र है इसलिए उसकी इतनी अहमियत नहीं है। जो भी यह सोचता है कि बुनियाद पर ध्यान देने की जरूरत नहीं है, वह दरअसल भ्रम में है। जैसे किसी इमारत की बुनियाद सबसे महत्वपूर्ण होती है, उसी तरह मूलाधार सबसे महत्वपूर्ण चक्र होता है। जब हम योग करते हैं, तो हम किसी और चीज से अधिक मूलाधार पर ध्यान देते हैं। क्योंकि अगर आपने इसे सुदृढ़ और स्थिर कर लिया, तो बाकियों का निर्माण आसान हो जाता है।

अगर आपका मूलाधार मजबूत हो, तो जीवन हो या मृत्यु, आप स्थिर रहेंगे क्योंकि आपकी नींव मजबूत है और बाकी चीजों को हम बाद में ठीक कर सकते हैं। लेकिन अगर नींव डगमगा रही हो, तो चिंता स्वाभाविक है।

मूलाधार चक्र क्या है

मूलाधार दो शब्दों से मिलकर बना है मूल + आधार | जहाँ पर मूल का अर्थ होता है जड़ और आधार का अर्थ होता है नीवं | मनुष्य शरीर का निर्माण उसकी माँ के गर्भ से होता है तो उसकी जड़ें वहीँ से होती है और उसका आधार भी वही है | आपको पता ही होगा कि शिशु के मनुष्य रूप में आकार लेने से पहले वो मात्र एक मांस का गोला होता है| धीरे धीरे वो मनुष्य शरीर धारण करता है |

मूलाधार चक्र का स्थान 

यह चक्र मेरुदंड की अंतिम हड्डी या गुदाद्वार के मुख्य के पास स्थित होता है या यु कहे की ये मनुष्य के रीढ़ की हड्डी के बिलकुल नीचे स्थित होता है | जिसके कारण इसे जड़ चक्र के नाम से भी जाना जाता है | यह मानव चक्रों में सबसे पहला चक्र है और इसका भौतिक शरीर के साथ एक अभिन्न संबंध है।

मूलाधार चक्र अनुत्रिक के आधार में स्थित है, यह मानव चक्रों में सबसे पहला है। मूलाधार चक्र पशु और मानव चेतना के मध्य सीमा निर्धारित करता है। इसका संबंध अचेतन मन से है, जहां पिछले जीवनों के कर्म और अनुभव संग्रहीत होते हैं। अत: कर्म सिद्धान्त के अनुसार यह चक्र हमारे भावी प्रारब्ध का मार्ग निर्धारित करता है। यह चक्र हमारे व्यक्तित्व के विकास की नींव भी है।
इस चक्र की 2 संभावनाएं हैं। इसकी पहली प्राकृतिक संभावना है सेक्स की और दूसरी संभावना है ब्रम्हचर्य की, जो ध्यान से प्राप्य है। सेक्स प्राकृतिक संभावना है और ब्रह्मचर्य इसका परिवर्तन है।

मूलाधार चक्र का मंत्र 

Muladhara-Chakra-hdइस चक्र का मन्त्र होता है – लं | मूलाधार चक्र को जाग्रत करने के लिए आपको लं मंत्र का जाप करते हुए ध्यान लगाना होता है, मूलाधार चक्र के चिह्न की ऊर्जा और ऊपर उठने की गति दोनों ही विशेषता होती हैं। चक्र का रंग लाल है जो शक्ति का रंग है। शक्ति का अर्थ है ऊर्जा, गति, जाग्रति और विकास।

लाल सुप्त चेतना को जाग्रत कर सक्रिय, सतर्क चेतना का प्रतीक है। मूलाधार चक्र का एक दूसरा प्रतीक चिह्न उल्टा त्रिकोण है, जिसके दो अर्थ हैं। एक अर्थ बताता है कि ब्रह्माण्ड की ऊर्जा खिंच रही है और नीचे की ओर इस तरह आ रही जैसे चिमनी में जा रही हो। अन्य अर्थ चेतना के ऊर्ध्व प्रसार का द्योतक है। त्रिकोण का नीचे कीओर इंगित करने वाला बिन्दु प्रारंभिक बिन्दु है, बीज है, और त्रिकोण के ऊपर की ओर जाने वाली भुजाएं मानव चेतना की ओर चेतना के प्रगटीकरण के द्योतक हैं।

मूलाधार चक्र का प्रतिनिधित्व करने वाला पशु ७ सूंडों वाला एक हाथी है। हाथी बुद्धि का प्रतीक है। ७ सूंडें पृथ्वी के ७ खजानों (सप्तधातु) की प्रतीक हैं। मूलाधार चक्र का तत्त्व पृथ्वी है, हमारी आधार और ‘माता’, जो हमें ऊर्जा और भोजन उपलब्ध कराती है।

मूलाधार चक्र जागरण के प्रभाव 

जब मनुष्य के अन्दर मूलाधार चक्र जागृत हो जाता है अपने आप ही उसके स्वभाव में परिवर्तन आने लगता है | व्यक्ति के भीतर वीरता, निर्भीकता और आनंद का भाव जाग्रत हो जाता है। और दुसरे शब्दों में हम कह सकते हैं की सिद्धियां प्राप्त करने के लिए वीरता, निर्भीकता और जागरूकता का होना जरूरी है। इस चक्र के जागृत होने से मन में आनंद का भाव भी उत्पन्न हो जाता है | ध्यान रहे की सबसे पहले मूलाधार चक्र को ही जागृत करना पड़ता है | जब व्यक्ति अपनी कुंदिलिनी शक्ति को जाग्रत करना चाहता है तो उसकी शुरुआत भी उसे मूलाधार चक्र से ही करनी पड़ती है

मूलाधार चक्र जागृत करने की विधि 

मूलाधार चक्र के सांकेतिक चित्र में चार पंखुडिय़ों वाला एक कमल है। ये चारों मन के चार कार्यों : मानस, बुद्धि, चित्त और अहंकार का प्रतिनिधित्व करते हैं 

मनुष्य तब तक पशुवत है, जब तक कि वह इस चक्र में जी रहा है इसीलिए भोग, निद्रा और संभोग पर संयम रखते हुए इस चक्र पर लगातार ध्यान लगाने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है। इसको जाग्रत करने का दूसरा नियम है यम और नियम का पालन करते हुए साक्षी भाव में रहना, और इस प्रणाली को अपनाना है –

  • आराम से बैठ जायें अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधा रखें और अपने ध्यान को अपने पेरिनियम (गुदा और जननेन्द्रियों के बीच के स्थान) पर केंद्रित करें।
  • अपनी तर्जनी ऊँगली और अंगूठे के साथ एक वृत्त बनाएं। हथेलियों को अपने घुटनों पर आकाश की ओर देखते हुए रखते हुए हाथों को विश्राम कराएं।
  • गहरा श्वास लें और छोड़ दें।
  • 7 से 10 श्वास लेते हुए दोहराएं।

मूलाधार चक्र के जागरण नियम

मूलाधार चक्र को जागृत करने के लिए आपको कुछ नियमों का पालन करना होगा इनका पालन करके ही आप मूलाधार चक्र को जागृत करने में समक्ष बन सकते हैं |वो नियम हैं जैसे कुछ दुष्कर्मों जैसे संभोग, भोग और नशा से दूर रहना होगा | जब तक कोई व्यक्ति अपने पहले शरीर में ब्रह्मचर्य तक नहीं पहुंचता, फिर अन्य केंद्रों (चक्र) की संभावना पर काम करना मुश्किल होता है।

मूलाधार चक्र जागरण के प्रभाव 

जब मनुष्य के अन्दर मूलाधार चक्र जागृत हो जाता है अपने आप ही उसके स्वभाव में परिवर्तन आने लगता है | व्यक्ति के भीतर वीरता, निर्भीकता और आनंद का भाव जाग्रत हो जाता है। और दुसरे शब्दों में हम कह सकते हैं की सिद्धियां प्राप्त करने के लिए वीरता, निर्भीकता और जागरूकता का होना जरूरी है। इस चक्र के जागृत होने से मन में आनंद का भाव भी उत्पन्न हो जाता है | ध्यान रहे की सबसे पहले मूलाधार चक्र को ही जागृत करना पड़ता है | जब व्यक्ति अपनी कुंदिलिनी शक्ति को जाग्रत करना चाहता है तो उसकी शुरुआत भी उसे मूलाधार चक्र से ही करनी पड़ती है

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