जाने रक्षाबंधन का धार्मिक महत्व और शास्त्रानुसार मंत्रो के साथ मनाये वैदिक राखी उत्सव

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रक्षाबंधन 2018 – Raksha Bandhan Festival 

यह तो सभी जानते हैं कि भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक रक्षाबंधन का त्यौहार हर वर्ष हर्ष और उल्लासा के साथ श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। श्रावण मास को भगवान शिव की पूजा का माह मानते हुए धार्मिक रुप से बहुत महत्व दिया जाता है। चूंकि रक्षाबंधन श्रावण पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है इसलिये इसका महत्व बहुत अधिक हो जाता है। आइये जानते हैं रक्षांधन के धार्मिक महत्व को बताने वाले अन्य पहलुओं के बारे में।

धार्मिक एवं पौराणिक ग्रंथों में उल्लेख

रक्षाबंधन के त्यौहार की उत्पत्ति धार्मिक कारणों से मानी जाती है जिसका उल्लेख पौराणिक ग्रंथों में, कहानियों में मिलता है। इस कारण पौराणिक काल से इस त्यौहार को मनाने की यह परंपरा निरंतरता में चलती आ रही है। चूंकि देवराज इंद्र ने रक्षासूत्र के दम पर ही असुरों को पराजित किया, चूंकि रक्षासूत्र के कारण ही माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को राजा बलि के बंधन से मुक्त करवाया, महाभारत काल की भी कुछ कहानियों का उल्लेख रक्षाबंधन पर किया जाता है अत: इसका त्यौहार को हिंदू धर्म की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।

उपाकर्म संस्कार और उत्सर्ज क्रिया

श्रावण पूर्णिमा यानि रक्षाबंधन के दिन ही प्राचीन समय में ऋषि-मुनि अपने शिष्यों का उपाकर्म कराकर उन्हें विद्या-अध्ययन कराना प्रारंभ करते थे। उपाकर्म के दौरान पंचगव्य का पान करवाया जाता है तथा हवन किया जाता है। उपाकर्म संस्कार के बाद जब जातक घर लौटते हैं तो बहनें उनका स्वागत करती हैं और उनके दांएं हाथ पर राखी बांधती हैं। इसलिये भी इसका धार्मिक महत्व माना जाता है। इसके अलावा इस दिन सूर्य देव को जल चढाकर सूर्य की स्तुति एवं अरुंधती सहित सप्त ऋषियों की पूजा भी की जाती है इसमें दही-सत्तू की आहुतियां दी जाती हैं। इस पूरी क्रिया को उत्सर्ज कहा जाता है।

कैसे बनायें वैदिक रक्षासूत्र (राखी)

अब सवाल यह उठता है कि बाज़ार से राखी न लाकर घर पर वैदिक राखी कैसे बनाई जाये। तो इसका समाधान भी हम आपको यहां दे रहे हैं। दरअसल वैदिक राखी बनाने के लिये आपको किसी ऐसी दुर्लभ चीज़ की आवश्यकता नहीं है जिसे प्राप्त करना आपके लिये कठिन हो बल्कि इसके लिये बहुत ही सरल लगभग घर में इस्तेमाल होने वाली चीज़ों की ही आवश्यकता होती है। वैदिक राखी के लिये दुर्वा यानि कि दूब जिसे आप घास भी कह सकते हैं चाहिये, अक्षत यानि चावल, चंदन, सरसों और केसर, ये पांच चीज़ें चाहिये। हां एक रेशम का कपड़ा भी चाहिये क्योंकि उसी में तो इन्हें डालना है।

दुर्वा, चावल, केसर, चंदन, सरसों को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लेकर एक पीले रंग के रेशमी कपड़े में बांध लें यदि इसकी सिलाई कर दें तो यह और भी अच्छा रहेगा। इन पांच पदार्थों के अलावा कुछ राखियों में हल्दी, कोड़ी व गोमती चक्र भी रखा जाता है। रेशमी कपड़े में लपेट कर बांधने या सिलाई करने के पश्चात इसे कलावे (मौली) में पिरो दें। आपकी राखी तैयार हो जायेगी। इसके साथ ही एक राखी कच्चे सूत से भी बनाई जाती है। ब्राह्मण अपने जजमान को यही रक्षासूत्र बांधते थे। इसमें कच्चे सूत के धागे को हल्दीयुक्त जल में भिगोकर उसे सुखाया जाता है। इस तरह कच्चे सूत की राखी तैयार हो जाती है।

वैदिक राखी का महत्व

दोनों ही राखियों में प्रयुक्त होने वाली सामग्री का विशेष महत्व माना जाता है। कच्चे सूत व हल्दी से बना रक्षासूत्र शुद्ध व शुभ माना जाता है। मान्यता है कि सावन के मौसम में यदि रक्षासूत्र को कलाई पर बांधा जाये तो इससे संक्रामक रोगों से लड़ने की हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है। साथ ही यह रक्षासूत्र हमारे अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचरण भी करता है।

वहीं दुर्वा, अक्षत, केसर, चंदन, सरसों से बना रक्षासूत्र भी शुभ व सौभाग्यशाली माना जाता है। विभिन्न धार्मिक क्रिया-कलापों में इन वस्तुओं का इस्तेमाल होते हुए आपने देखा होगा। हल्दी, चावल और दूब तो विशेष रूप से लगभग हर कर्मकांड, पूजा आदि में प्रयोग की जाती है। दरअसल रक्षासूत्र में इनके इस्तेमाल के पीछे की मान्यता भी यही है कि जिसे भी रक्षासूत्र बांधा जा रहा है उसकी वंशबेल दूब की तरह ही खूब फले-फैले, भगवान श्री गणेश को प्रिय होने से इसे विघ्नहर्ता भी माना जाता है। वहीं अक्षत यानि चावल आपसी रिश्तों में एक दूसरे के प्रति श्रद्धा के प्रतीक हैं साथ ही दीर्घायु स्वस्थ जीवन की कामना भी इनमें निहित मानी जाती है। केसर तेजस्विता के लिये तो चंदन शीतलता यानि संयम के लिये एवं सरसों हमें दुर्गुणों के प्रति तीक्ष्ण बनाये रखे इस कामना के साथ रखी जाती है। हल्दी, गोमती चक्र, कोड़ी भी शुभ माने जाते हैं।

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