कर्णवेध मुहूर्त 2018 – Karnvedha Muhurat 2018
कर्णवेध का अर्थ है कर्ण यानि कान और वेधन का मतलब छेदना अर्थात कान को छेदना। कर्णवेध हिन्दू धर्म में वर्णित 16 संस्कारों में से 9वां संस्कार है। यह क्रमशः अन्नप्राशन और मुंडन संस्कार के बाद किया जाता है। बच्चों को शारीरिक व्याधि से बचाने और श्रवण व बौद्धिक शक्ति को मजबूत बनाने के लिए यह संस्कार किया जाता है। यह संस्कार 3, 5 और 7वें साल में या फिर अपनी कुल परंपरा के अनुसार किया जाता है। इसमें बालकों का दायाँ और बालिकाओं का बायाँ कान छेदने की परंपरा है।
कर्णवेध तिथि और मुहूर्त 2018
मार्गशीर्ष शुभ मुहूर्त शुक्ल पक्ष |
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12 दिसंबर 2018 | बुधवार | श्रवण | पंचमी |
13 दिसंबर 2018 | गुरुवार | धनिष्ठा | षष्ठी |
17 दिसंबर 2018 | सोमवार | रेवती | दशमी |
कर्णवेध संस्कार के लाभ और महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कर्णवेध संस्कार के बौद्धिक और शारीरिक लाभ बताये गये हैं इसलिए इसे विद्यारंभ संस्कार से पहले ही कराने की सलाह दी जाती है ताकि बच्चे की बौद्धिक शक्ति का विकास हो और वह अच्छे से विद्या ग्रहण कर सके।
- मान्यता है कि कान छिदवाने की वजह से श्रवण शक्ति में वृद्धि होती है और बालक प्रखर व बुद्धिमान होता है।
- कर्णवेध के बाद कानों में कुंडल पहनने से सौंदर्यता बढ़ती है और बच्चे के तेज में वृद्धि होती है।
- कर्णवेध के प्रभाव से हार्निया और लकवा जैसी बीमारियों से बचाव होता है। इसके अलावा अंडकोष की सुरक्षा भी होती है।
कब करें कर्णवेध संस्कार
बच्चों के कर्णवेध संस्कार के लिए शुभ लग्न, तिथि, माह और नक्षत्र का विशेष महत्व है।
- धर्म सिन्धु के अनुसार कर्णवेध संस्कार शिशु जन्म के बाद दसवें, बारहवे, सोलहवे दिन या छठे, सातवे, आठवे, दसवे और बारहवे माह में करना चाहिए। इसके बाद यह संस्कार विषम वर्षों जैसे 1,3 और 5वें वर्ष में करना चाहिए।
- कुल परंपरा के अनुसार भी शिशु जन्म के बाद उसका कर्णवेध संस्कार विषम वर्षों में किया जाता है।
- वहीं बालिकाओं का कर्णवेध संस्कार विषम वर्षों में किया जाना चाहिए। कान छिदवाने के साथ-साथ बालिकाओं की नाक छिदवाने की भी परंपरा है।
- कार्तिक, पौष, चैत्र, फाल्गुन मास कर्णवेध के लिए शुभ माने गये हैं।
- कर्णवेध संस्कार के समय वृषभ, धनु, तुला और मीन लग्न में बृहस्पति हो तो, यह समय इस संस्कार के लिए सबसे श्रेष्ठ माना गया है।
- कर्णवेध संस्कार के लिए मृगशिरा, रेवती, चित्रा, अनुराधा, हस्त, अश्विनी, पुष्य, अभिजीत, श्रवण, धनिष्ठा, पुनर्वसु
- सोमवार, बुधवार, गुरुवार और शुक्रवार का दिन कर्णवेध संस्कार के लिए शुभ माना गया है।
- चतुर्थी, नवमी, चतुर्दशी और अमावस्या की तिथि को छोड़कर अन्य तिथियों में कर्णवेध संस्कार करना चाहिए।
विशेष: कर्णवेध संस्कार खर मास यानि (जिस समय सूर्य धनु और मीन राशि में हो), क्षय तिथि, देवशयनी से देवउठनी एकादशी, जन्म मास और भद्रा में कर्णवेध संस्कार नहीं करना चाहिए।
कैसे करें कर्णवेध संस्कार
- शुभ मुहूर्त में पवित्र स्थान पर बैठकर देवी-देवताओं का पूजन करने के बाद सूर्य के सामने मुख करके चांदी, सोने या लोहे की सुई से बालक या बालिका के कानों में निम्न मंत्र बोलना चाहिए-
स्थिरैरंगैस्तुष्टुवां सस्तनूभिर्व्यशेमहि देवहितं यदायुः।।
- मंत्र पढ़ने के बाद पहले बालक के दाहिने कान में और फिर बाएँ कान में सुई से छेद करें और उनमें कुंडल पहनाएँ।
- वहीं बालिका के संदर्भ में पहले बाएँ कान में फिर दाहिने कान में छेद करें तथा बायीं नाक में भी छेद करके आभूषण पहनाएँ।
- मस्तिष्क के दोनों हिस्सों को विद्युत के प्रभावों से सशक्त बनाने के लिए नाक और कान में छिद्र करके सोना पहनना लाभकारी माना गया है।
- नाक में नथुनी धारण करने से नासिका से संबंधित रोग नहीं होते हैं और सर्दी-खांसी में राहत मिलती है।
- वहीं कानों में सोने के झुमके या कुंडल पहनने से बालिकाओं को मासिक धर्म से संबंधित कोई विकार नहीं होते हैं, साथ ही हिस्टीरिया रोग में भी लाभ मिलता है।
कर्णवेध के संदर्भ में धार्मिक मान्यता है कि सूर्य की किरणें कानों के छिद्र से प्रवेश करके बच्चों को शक्ति और ऊर्जा प्रदान करती है। इससे बच्चों की बौद्धिक शक्ति में वृद्धि होती है। वहीं शास्त्रों में कर्णवेध रहित पुरुषों को पितरों के श्राद्ध का अधिकारी नहीं माना गया है, इसलिए कर्णवेध संस्कार बहुत महत्वपूर्ण और अनिवार्य माना जाता है।
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