नवरात्रों कन्या पूजन 2018 – जानिए नवरात्रि में कन्या पूजन का महत्व, लाभ और पूजा करने की शास्त्रोक्त विधि

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नवरात्र में कन्या पूजन – Navratri Kanya Puja

नवरात्र पूजन में आदि शक्ति महामाया जगदम्बा की पूजा की जाती हैं | भक्तगण माँ की आराधना कर मन वांछित फल प्राप्त करते हैं. माँ की पूजा भक्तों को विश्वास और अडिगता के साथ कठिन से कठिन परिस्थियों में सदैव आगे बढ़ना सिखाती है तथा हमें जीवन में अपने पथ से भ्रष्ट हुए बिना पवित्रता और निष्कलंकित जीवन जीने की प्रेरणा देता है.

माँ की आराधना करने वालों का अहंकार नष्ट होता है एवं उनको असीम शांति और वैभवता की प्राप्ति होती हैमाँ दुर्गा को मातृ शक्ति यानी करूणा और ममता का स्वरूप मानकर पूजा की जाती है. अत: इनकी पूजा में सभी तीर्थों, नदियों, समुद्रों, नवग्रहों, दिग्पालों , दिशाओं, नगर देवता, ग्राम देवता सहित सभी योगिनियों आमंत्रित होती हैं. “नवरात्र” शब्द का अर्थ नव की सख्या हैं |

“ नवानां रात्रीणी समाहारं नवरात्रम “ नवरात्र में नौ दुर्गा को अलग-अलग दिन तिथि के अनुसार उनकी प्रिय वस्तुयें अर्पित करने का काफी महत्व हैं |

नवरात्र में 9 दिनों का भोग अर्पण

प्रथम दिन– उड़द, हल्दी |

द्वितीय दिन– तिल, शक्कर, चूड़ियाँ (लाल-पीली), गुलाब |

तृतीय दिन– खीर, काजल, लाल वस्त्र |

चतुर्थ दिन– दही, ऋतुफल, सिंदूर |

पंचम दिन– कमल-पुष्प, बिंदी |

षष्ठी दिन– चुनरी, पताका |

सप्तमी दिन– अड़हुल फूल, बताशा, ऋतुफल, इत्र |

अष्टमी दिन – पूड़ी, पीले रंग की मिठाई, कमलगटटा, लाल वस्त्र, चन्दन |

नवमी दिन – खीर, श्रृगार की सामग्री, साबूदाना, अक्षत, विविध (विभिन्न) फल |

नवरात्रि में कन्या पूजन का महत्व

नवरात्र में जितना दुर्गापूजन का महत्त्व है उतना ही कन्यापूजन का भी है | देवी पुराण के अनुसार इन्द्र ने जब ब्रह्मा जी भगवती दुर्गा को प्रसन्न करने की विधि पूछी तो उन्होंने सर्वोत्तम विधि के रूप में कन्या पूजन ही बताया और कहा कि माता दुर्गा का जप, ध्यान, पूजन और हवन से भी उतनी प्रसन्न नहीं होती जितना सिर्फ कन्या पूजन से हो जाती हैं

श्रीमद देवी भागवत के अनुसार कन्या पूजन के भी कुछ नियम हैं जिनको हमें पालन करना चाहिए, जैसे एक वर्ष की कन्या को नही बुलाना चाहिए, क्योकि वह कन्या गंध भोग आदि पदार्थो के स्वाद से बिलकुल अनभिज्ञ रहती हैं .

‘कुमारी’ कन्या वह कहलाती है जो दो वर्ष की हो चुकी हो, तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति, चार वर्ष की कल्याणी , पांच वर्ष की रोहिणी, छ:वर्ष की कालिका, सात वर्ष की चण्डिका, आठ वर्ष की शाम्भवी, नौ वर्ष की दुर्गा और दस वर्ष की कन्या सुभद्रा कहलाती हैं |

नवरात्र में कन्या पूजन की विधि

कन्याओं को माता का स्वरुप समझ कर पूरी भक्ति-भाव से कन्याओं के हाथ पैर धुला कर उनको साफ़ सुथरे स्थान पर बैठाएं | सभी कन्याओं के मस्तक पर तिलक लगाएं, लाल पुष्प चढ़ाएं, माला पहनाएं, चुनरी अर्पित करें तत्पश्चात भोजन करवाएं |

भोजन में मीठा आवश्यक है, दूध से निर्मित कोई मीठा हो तो यह और भी अच्छा है | भोजन करवाने के बाद सभी कन्याओं को यथासंभव फल, मिठाई, श्रीफल, दक्षिणा और वस्त्र अथवा कुछ भी उपहार स्वरुप प्रदान करें तत्पश्चात चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लें | कन्याओं को थोड़ा अक्षत (चावल) दें आपके चरण स्पर्श के दौरान कन्याएं अक्षत आपके सर पर डालेंगी, यही माता का आशीर्वाद है |

कन्याओं के पूजन के साथ बटुक पूजन का भी महत्त्व है, दो बालकों को भी साथ में पूजना चाहिए एक गणेश जी के निमित्य और दूसरे बटुक भैरो के निमित्य कहीं कहीं पर तीन बटुकों का भी पूजन लोग करते हैं और तीसरा स्वरुप हनुमान जी का मानते हैं | एक-दो-तीन कितने भी बटुक पूजें पर कन्या पूजन बिना बटुक पूजन के अधूरी होती है |

नवरात्र में कन्या पूजन लाभ

कुमारी कन्यायों के पूजन से प्राप्त होने वाले लाभ इस तरह से हैं

“कुमारी” नाम की कन्या जो दो वर्ष की होती हैं पूजित हो कर दुःख तथा दरिद्रता का नाश, शत्रुओं का क्षय और धन, आयु की वृद्धि करती हैं |

“त्रिमूर्ति” नाम की कन्या का पूजन करने से धर्म-अर्थ काम की पूर्ति होती हैं पुत्र- पौत्र आदि की वृद्धि होती है |

“कल्याणी” नाम की कन्या का नित्य पूजन करने से विद्या, विजय, सुख-समृद्धि प्राप्त होती हैं |

“रोहणी” नाम की कन्या के पूजन रोगनाश हो जाता हैं |

“कालिका” नाम की कन्या के पूजन से शत्रुओं का नाश होता हैं |

“चण्डिका” नाम की कन्या के पूजन से धन एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होती हैं |

“शाम्भवी” नाम की कन्या के पूजन से सम्मोहन, दुःख-दरिद्रता का नाश व किसी भी प्रकार के युद्ध (संग्राम) में विजय प्राप्त होती हैं |

“दुर्गा” नाम की कन्या के पूजन से क्रूर शत्रु का नाश, उग्र कर्म की साधना व पर-लोक में सुख पाने के लिए की जाती हैं |

“सुभद्रा”– मनुष्य को अपने मनोरथ की सिद्धि के लिए “सुभद्रा”की पूजा करनी चाहिए |

मार्कण्डेय-पुराण के अनुसार माँ दुर्गा के नौ रूप है (श्लोक के रूप में)

प्रथमं शैलपुत्री च द्दितियं ब्रह्मचारिणी | तृतीयं चन्द्रघण्टेति, कुष्मंडेति चतुर्थकम ||

पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च | सप्तं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टकम् ||

नवं सिद्दिदात्री च नव दुर्गा प्रकीर्तिता: || (तंत्रेक्तं देवी कवच)

सिर्फ 9 दिन ही नहीं है यह कन्या देवियाँ 

नवरात्रों में भारत में कन्याओ को देवी तुल्य मानकर पूजा जाता है पर कुछ लोग नवरात्रि के बाद यह सब भूल जाते है | बहूत जगह कन्याओ पर शोषण होता है , उनका अपनाम किया जाता है | आज भी भारत में बहूत सारे गाँवों में कन्या के जन्म पर दुःख मनाया जाता है | ऐसा क्यों ? क्या आप देवी माँ के इन रूपों को क्यों ऐसा अपमान करते है | हर कन्या अपना भाग्य खुद लेकर आती है | कन्याओ के प्रति हमहें हम्हारी सोच बदलनी पड़ेगी | यह देवी तुल्य है | इनका सम्मान करना इन्हे आदर देना ही ईश्वर की पूजा के तुल्य है |

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