काली पूजा 2018 – जाने पूजा विधि, मंत्र जप, शुभ मुहूर्त और सावधानियां

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काली पूजा 2018 – Kali Puja 2018

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देवी दुर्गा के विभिन्न अवतारों में से एक हैं काली माता। काली मां सिद्धि और पराशक्तियों की आराधना करने वाले साधकों की इष्ट देवी मानी गई हैं। लेकिन केवल तांत्रिक साधना के लिए ही नहीं अपितु आम जन के लिए भी मां काली की आराधना समान रूप से फलदायी मानी गई हैं।

कई लोग मां काली का भयंकर रूप देख इनसे डरते हैं जो गलत है जबकि सत्य तो यह है कि मां काली की आराधना से मनुष्य स्वयं सभी भयों से मुक्त हो सकता है। अगर आप भी मां काली को नवरात्रों से इतर घर पर पूजने से कतराते हैं तो आइये इस लेख के माध्यम से जानें मां काली की घर पर आराधना करने से कौन-से लाभ होते हैं और कैसे घर पर मां काली की पूजा की जानी चाहिए?

काली पूजा को महानिशा और श्यामा पूजा भी कहते है 

कार्तिक माह की अमावस्या को देश के अधिकतर हिस्सों में दिवाली मनाई जाती है। परंतु कुछ राज्य ऐसे भी हैं जहां इस दिन काली पूजा मनाई जाती है। कार्तिक अमावस्या को मुख्य रूप से लक्ष्मी पूजन के लिए जाना जाता है लेकिन पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, असम और झारखंड में इस दिन को काली पूजा के लिए जाना जाता है।

काली पूजा को महानिशा और श्यामा पूजा भी कहा जाता है। मुख्य रूप से यह एक बंगाली पर्व है को कार्तिक अमावस्या को मनाया जाता है। जहाँ पूरा भारत इस दिन महालक्ष्मी की पूजा करते है वहीं बंगाली, उड़ीसी, आसामी इस दिन महाकाली का पूजन करते हैं। भारत और नेपाल के मिथिला क्षेत्र के मैथिली लोग इस दिन महानिशा पूजा करते हैं।

काली पूजा कब की जाती है?

पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और असम में देवी लक्ष्मी की पूजा के लिए सबसे प्रमुख दिन अश्विन माह की पूर्णिमा के दिन होता है। यह पर काली पूजा के दिन बड़े-बड़े पंडालों में काली माँ की मूर्तियां स्थापित की जाती हैं रात्रि में उनका पूजन किया जाता है। दुर्गा पूजा की तरह काली पूजा के पंडालों में भी भक्त माँ काली के दर्शन करने आते हैं और उनका आशीर्वाद लेते है। अश्विन माह में पूर्णिमा तिथि के दिन लक्ष्मी पूजा को कोजागर पूजा के नाम से जाना जाता है और सामान्यतः बंगाल लक्ष्मी पूजा के रूप में जाना जाता है। काली पूजा को श्यामा पूजा के नाम से भी जाना जाता है।

महाकाली पूजन का पौराणिक महत्व

हिन्दू पुराणों के अनुसार दुष्टों का संघार करने के लिए माँ दुर्गा ने महाकाली का स्वरुप लिया था। और फिर दोनों देवियों ने मिलकर पृथ्वी से सभी दुष्टों का सफाया कर दिया था। माना जाता है काली पूजा के दिन पुरे विधि-विधान और श्रद्धा से माँ काली का पूजन करने से मनुष्य को जीवन के प्रत्येक दुःख से छुटकारा मिलता है।

इस दिन दस महाविद्याओं का भी पूजन किया जाता है। कहा जाता है, माँ काली को दस महाविद्याओं का पूर्ण ज्ञान है। इसके अलावा तंत्र साधना पूर्ण करने और सिद्धियां प्राप्त करने के लिए भी काली पूजा की जाती है। कहते हैं, काली पूजन से राहू-केतु भी शांत होते हैं।

महाकाली पूजा 2018

वर्ष 2018 में काली पूजा 6 नवंबर 2018, मंगलवार को मनाई जाएगी।

काली पूजा का मुहूर्त

2018 काली पूजा निशीथ समय = 23:38 से 24:31+ तक।
मुहूर्त की अवधि = 52 मिनट

अमावस्या तिथि का आरंभ 6 नवंबर 2018, मंगलवार को 22:27 से प्रारंभ होगी।
जिसका समापन 7 नवंबर 2018, बुधवार को 21:31 पर होगा।

मां काली की पूजा-अर्चना

  • घर में मां की पूजा करना बेहद आसान है। इसके लिए आप घर के मंदिर में मां काली की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। इसपर तिलक लगाएं और पुष्प आदि अर्पित करें। मां काली की पूजा में पुष्प लाल रंग का और कपडे काले रंग के होने चाहिए।
  • एक आसन पर बैठकर प्रतिदिन मां काली के किसी भी मंत्र का 108 बार जप करें। काली गायत्री मंत्र या मां के बीज मंत्रों का जप करना बेहद फलदायी माना जाता है।
  • जप के बाद प्रसाद के रूप में मां काली को भोग अवश्य अर्पण करें। अपनी इच्छा पूरी होने तक इस प्रयोग को जारी रखें। यदि आप विशेष उपासना करना चाहते हैं तो सवा लाख, ढाई लाख, पांच लाख मंत्र का जप अपनी सुविधा अनुसार कर सकते हैं।

माँ काली की पूजा मंत्र

सामान्य जातक मां को प्रसन्न करने के लिए कुछ विशेष मंत्रों का भी प्रयोग कर सकते हैं। यह मंत्र शस्त्रों में वर्णित हैं और इन्हें काफी असरदार माना जाता है। परंतु इस बात का विशेष ध्यान रखें कि मंत्रोच्चारण शुद्ध होना चाहिए और कुछ मंत्रों को विशेष संख्या में ही जपना चाहिए। “ह्रीं” और “क्रीं” मंत्र का प्रयोग फलकारी माना गया है।

ये दोनों एकाक्षर मंत्र है। इसे विशेष रूप से दक्षिण काली का मंत्र कहा जाता है। ज्ञान और सिद्धी प्राप्ति के लिए इस मंत्र का विशेष महत्व है। इसके अलावा घर पर प्रतिदिन “क्रीं क्रीं क्रीं स्वाहा” मंत्र का 108 बार जप करने से सभी दुखों का निवारण करके घन-धान्य की वृद्धि होती है। इसके जप से पारिवारिक शांति भी बनी रहती है।

इसके अलावा द्विअक्षर मंत्र “क्रीं क्रीं” और त्रिअक्षरी मंत्र ‘क्रीं क्रीं क्रीं’ काली की साधनाओं और उनके प्रचंड रूपों की आराधनाओं का विशिष्ट मंत्र है। द्विअक्षर और त्रिअक्षरी मंत्र का प्रयोग तांत्रिक साधना मंत्र के पहले और बाद में किया जा सकता है।

दुर्गासप्तशती में वर्णित “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै:’ मंत्र का वर्णन है जो मां के नौ स्वरूपों को समर्पित है। नवरात्र के विशेष समय पर आप इस मंत्र का जाप घर पर कर सकते हैं। इससे ग्रहों से जुड़ी समस्याएं समाप्त होती हैं।

“ॐ क्रीं क्रीं क्रीं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं स्वाहा:” मां काली को समर्पित एक बेहद शक्तिशाली मंत्र है जिसका जाप नवरात्रों के विशेष मौके पर करना चाहिए। मां काली को समर्पित कई अन्य मंत्र भी हैं लेकिन इनका प्रयोग अधिकांश तांत्रिक क्रियाओं के लिए ही होता है।

 मां काली पूजा के समय रखने वाली सावधानियां

देवी दुर्गा के सभी रूपों में से उग्र मां काली की घर पर पूजा करने से बेशक काफी जल्दी फल प्राप्त होता है लेकिन इनकी आराधना में कुछ विशेष बातों का अवश्य ध्यान रखना चाहिए। साफ-सफाई और शुद्धता के अलावा विशेष मुहूर्तों में मां की आराधना करने का श्रेष्ठ समय मध्य रात्रि या अमावस्या का होता है।

इसके अतिरिक्त आप प्रात: काल भी मां की पूजा कर सकते हैं। शास्त्रों के अनुसार अगर आप प्रतिदिन नियमपूर्वक मां काली की पूजा कर रहे हैं तो हो सकता है आपको कुछ समय बाद किसी पराशक्ति का अनुभव हो जिससे घबरा ना, यह केवल एक तरह की शक्ति है जो मां की पूजा करने के कारण आपकी रक्षा के लिए उत्पन्न हुई है।

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