हरतालिका तीज व्रत, कथा एवं पूजा विधी

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Hartalika Teej – Vrat Katha & Puja Vidhi 

हरतालिका तीज का नाम सुनते ही महिलाओं एवम लड़कियों को एक अजीब सी घबराहट होने लगती हैं | वर्ष के प्रारम्भ से ही जब कैलेंडर घर लाया जाता हैं, कई महिलायें उसमे हरतालिका की तिथी देखती हैं | यूँ तो हरतालिक तीज बहुत उत्साह से मनाया जाता हैं, लेकिन उसके व्रत एवं पूजा विधी को जानने के बाद आपको समझ आ जायेगा कि क्यूँ हरतालिका का व्रत सर्वोच्च समझा जाता हैं और क्यूँ वर्ष के प्रारंभ से महिलायें तीज के इस व्रत को लेकर चिंता में दिखाई देती हैं |

हरतालिका तीज महत्व – Hartalika Teej Mahtva

हरतालिका तीज का व्रत हिन्दू धर्म में सबसे बड़ा व्रत माना जाता हैं | यह तीज का त्यौहार भादो की शुक्ल तीज को मनाया जाता हैं | खासतौर पर महिलाओं द्वारा यह त्यौहार मनाया जाता हैं | कम उम्र की लड़कियों के लिए भी यह हरतालिका का व्रत श्रेष्ठ समझा गया हैं | हरतालिका तीज में भगवान शिव, माता गौरी एवम गणेश जी की पूजा का महत्व हैं | यह व्रत निराहार एवं निर्जला किया जाता हैं | रत जगा कर नाच गाने के साथ इस व्रत को किया जाता हैं |

हरतालिका तीज व्रत कथा – Hartalika teej vrat katha in hindi

भाद्रपद मास के शुक्ल पक्षकी तृतीया तिथि कोमनाया जाने वाले हरतालिका तीज व्रत की कथा इस प्रकार से है-

कथानुसार मां पार्वती ने अपने पूर्व जन्म में भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्तकरने के लिए पर्वतराज हिमालय पर गंगा के तट पर अपनी बाल्यावस्था में अधोमुखी होकर घोर तप किया | इस दौरान उन्होंने अन्न का सेवन नहीं किया| कई अवधि तक सूखे पत्ते चबाकर काटी और फिर कई वर्षों तक उन्होंने केवल हवा पीकर ही व्यतीत किया| माता पार्वती के इस अवस्था को देखकर उनके पिता अत्यंत दुखी थे|

इसी दौरान एक दिन महर्षि नारद भगवान विष्णु की ओर से पार्वती के विवाह का प्रस्ताव लेकर मां पार्वती के पिता के पास पहुंचे, जिसे उन्होंने सहर्ष ही स्वीकार कर लिया| पिता ने जब मां पार्वती को उनके विवाह की बात बतलाई तो वह बहुत दुखी हो गई और जोर-जोर से विलाप करने लगी|

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फिर एक सखी के पूछने पर माता ने उसे बताया कि वह यह कठोर व्रत भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कर रही हैं जबकि उनके पिता उनका विवाह विष्णु से कराना चाहते हैं| तब सहेली की सलाह पर माता पार्वती घने वन में चली गई और वहां एक गुफा में जाकर भगवान शिव की अराधना में लीन हो गई|

भाद्रपद तृतीया शुक्ल के हस्त नक्षत्र को माता पार्वती ने रेत से शिवलिंग का निर्माण किया और भोलेनाथ की स्तुति में लीन होकर रात्रि जागरण किया| तब माता के इस कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिया और फिर माता के इच्छानुसार उनको अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया| मान्यता है कि इस दिन जो महिलाएं विधि-विधानपूर्वक और पूर्ण निष्ठा से इस व्रत को करती हैं, वह अपने मन के अनुरूप पति को प्राप्त करती हैं|

अन्य मान्यताओं के अनुसार हरतालिका तीज का कथा सार 

माता गौरी के पार्वती रूप में वे शिवजी को पति रूप में चाहती थी, जिस हेतु उन्होंने काठी तपस्या की थी उस वक्त पार्वती की सहेलियों ने उन्हें अगवा कर लिया था | इस करण इस व्रत को हरतालिका कहा गया हैं क्यूंकि हरत मतलब अगवा करना एवम आलिका मतलब सहेली अर्थात सहेलियों द्वारा अपहरण करना हरतालिका कहलाता हैं | शिव जैसा पति पाने के लिए कुँवारी कन्या इस व्रत को विधी विधान से करती हैं |

इस बार हरतालिका तीज कब मनाई जाएगी

हरितालिका तीज भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन मनाया जाता है. यह आमतौर पर अगस्त – सितम्बर के महीने में ही आती है. इसे गौरी तृतीया व्रत भी कहते है. यह इस वर्ष 12 सितम्बर 2018, दिन बुधवार को मनाई जाएगी.

हरतालिका तीज पूजा मुहूर्त

प्रातः काल हरितालिका पूजा मुहूर्त – 06:15 से 08:422 घंटा 26 मिनट

हरतालिका तीज के नियम 

  1. हरतालिका व्रत कुवांरी कन्या, सौभाग्यवती महिलाओं द्वारा किया जाता हैं, इसे विधवा महिलायें भी कर सकती हैं |
  2. हरतालिका व्रत का नियम हैं कि इसे एक बार प्रारंभ करने के बाद छोड़ा नहीं जा सकता, इसे प्रति वर्ष पुरे नियमो के साथ किया जाता हैं|
  3. हरतालिका व्रत के दिन रतजगा किया जाता हैं, पूरी रात महिलायें एकत्र होकर नाच गाना एवम भजन करती हैं | नये वस्त्र पहनकर पूरा श्रृंगार करती हैं |
  4. हरतालिका व्रत जिस घर में भी होता हैं, वहाँ इस पूजा का खंडन नहीं किया जा सकता अर्थात इसे एक परम्परा के रूप में प्रति वर्ष किया जाता हैं |
  5. सामान्यतह महिलायें यह हरतालिका पूजन मंदिर में करती हैं |
  6. हरतालिका व्रत निर्जला किया जाता हैं, अर्थात पूरा दिन एवं रात अगले सूर्योदय तक जल ग्रहण नहीं किया जाता हैं |

हरतालिका के व्रत से जुड़ी कई मान्यता हैं, जिनमे इस व्रत के दौरान जो सोती हैं, वो अगले जन्म में अजगर बनती हैं, जो दूध पीती हैं, वो सर्पिनी बनती हैं, जो व्रत नही करती वो विधवा बनती हैं, जो शक्कर खाती हैं मक्खी बनती हैं, जो मांस खाती शेरनी बनती हैं, जो जल पीती हैं वो मछली बनती हैं, जो अन्न खाती हैं वो सुअरी बनती हैं जो फल खाती है वो बकरी बनती हैं | इस प्रकार के कई मत सुनने को मिलते हैं |

हरतालिका पूजन सामग्री 

क्रम

हरतालिका पूजन सामग्री

1

फुलेरा विशेष प्रकार से  फूलों से सजा होता .

2

गीली काली मिट्टी अथवा बालू रेत

3

केले का पत्ता
4

सभी प्रकार के फल एवं फूल पत्ते

5

बैल पत्र, शमी पत्र, धतूरे का फल एवं फूल, अकाँव का फूल, तुलसी, मंजरी .
6

जनैव, नाडा, वस्त्र,

7

माता गौरी के लिए पूरा सुहाग का सामान जिसमे चूड़ी, बिछिया, काजल, बिंदी, कुमकुम, सिंदूर, कंघी, माहौर, मेहँदी आदि मान्यतानुसार एकत्र की जाती हैं . इसके अलावा बाजारों में सुहाग पुड़ा मिलता हैं जिसमे सभी सामग्री होती हैं .

8

घी, तेल, दीपक, कपूर, कुमकुम, सिंदूर, अबीर, चन्दन, श्री फल, कलश .
9

पञ्चअमृत- घी, दही, शक्कर, दूध, शहद .

 हरतालिका तीज पूजन विधी

  • हरतालिका पूजन प्रदोष काल में किया जाता हैं, प्रदोष काल अर्थात दिन रात के मिलने का समय |
  • हरतालिका पूजन के लिए शिव, पार्वती एवं गणेश जी की प्रतिमा बालू रेत अथवा काली मिट्टी से हाथों से बनाई जाती हैं |
  • फुलेरा बनाकर उसे सजाया जाता हैं, उसके भीतर रंगोली डालकर उस पर पटा अथवा चौकी रखी जाती हैं, चौकी पर एक सातिया बनाकर उस पर थाल रखते हैं, उस थाल में केले के पत्ते को रखते हैं |
  • तीनो प्रतिमा को केले के पत्ते पर आसीत किया जाता हैं |
  • सर्वप्रथम कलश बनाया जाता हैं जिसमे एक लौटा अथवा घड़ा लेते हैं, उसके उपर श्रीफल रखते हैं, अथवा एक दीपक जलाकर रखते हैं, घड़े के मुंह पर लाल नाडा बाँधते हैं, घड़े पर सातिया बनाकर उर पर अक्षत चढ़ाया जाता हैं |
  • कलश का पूजन किया जाता हैं . सबसे पहले जल चढ़ाते हैं, नाडा बाँधते हैं, कुमकुम, हल्दी चावल चढ़ाते हैं फिर पुष्प चढ़ाते हैं |
  • कलश के बाद गणेश जी की पूजा की जाती हैं |
  • उसके बाद शिव जी की पूजा जी जाती हैं |
  • उसके बाद माता गौरी की पूजा की जाती हैं, उन्हें सम्पूर्ण श्रृंगार चढ़ाया जाता हैं |
  • इसके बाद हरतालिका की कथा पढ़ी जाती हैं |
  • फिर सभी मिलकर आरती की जाती हैं जिसमे सर्प्रथम गणेश जी कि आरती फिर शिव जी की आरती फिर माता गौरी की आरती की जाती हैं |
  • पूजा के बाद भगवान् की परिक्रमा की जाती हैं |
  • रात भर जागकर पांच पूजा एवं आरती की जाती हैं |
  • सुबह आखरी पूजा के बाद माता गौरा को जो सिंदूर चढ़ाया जाता हैं, उस सिंदूर से सुहागन स्त्री सुहाग लेती हैं |
  • ककड़ी एवं हलवे का भोग लगाया जाता हैं, उसी ककड़ी को खाकर उपवास तोडा जाता हैं |
  • अंत में सभी सामग्री को एकत्र कर पवित्र नदी एवं कुण्ड में विसर्जित किया जाता हैं |
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