विवाह मुहूर्त 2018 – Vivah Muhurat
जानें वर्ष 2018 में विवाह के शुभ मुहूर्त, तारीख, समय और लग्न आदि की जानकारी। इसके अलावा पढ़ें विभिन्न मुहूर्त में किये जाने वाले विवाह के लिए लग्न से संबंधित उपाय और दान। गुरु की स्थिति बदलने, अधिकमास के आने, गुरु के अस्त होने, चातुर्मास तथा धनुर्मास आने के कारण विवाह के मुहूर्त काफी कम हैं।
विवाह मुहूर्त 2018 | ||||||||
मास | पक्ष | तिथि | वार | दिनांक | विवाह नक्षत्र | समय | लग्न | उपाय |
फाल्गुन | शुक्ल | तृतीया | रविवार | 18 फरवरी | उत्तरा भाद्रपद | 15:06 से प्रारंभ | कर्क | राहु दान |
फाल्गुन | शुक्ल | तृतीया | सोमवार | 19 फरवरी | उत्तरा भाद्रपद | 00:06 से प्रारंभ | वृश्चिक | मंगल दान |
फाल्गुन | शुक्ल | तृतीया | सोमवार | 19 फरवरी | उत्तरा भाद्रपद | 02:23 से प्रारंभ | धनु | शनि दान |
फाल्गुन | शुक्ल | चतुर्थी | सोमवार | 19 फरवरी | उत्तरा भाद्रपद | 09:13 से प्रारंभ | मेष | गुरु दान |
फाल्गुन | शुक्ल | पंचमी | मंगलवार | 20 फरवरी | रेवती | 09:09 से प्रारंभ | मेष | गुरु दान |
चैत्र | कृष्ण | प्रथमा | शुक्रवार | 2 मार्च | उत्तरा फाल्गुनी | 23:18 से प्रारंभ | वृश्चिक | मंगल दान |
चैत्र | कृष्ण | प्रथमा | शनिवार | 3 मार्च | उत्तरा फाल्गुनी | 01:35 से प्रारंभ | धनु | शनि दान |
चैत्र | कृष्ण | द्वितीया | शनिवार | 3 मार्च | उत्तरा फाल्गुनी | 06:57 से प्रारंभ | मीन | चंद्र दान |
चैत्र | कृष्ण | द्वितीया | शनिवार | 3 मार्च | उत्तरा फाल्गुनी | 14:14 से प्रारंभ | कर्क | राहु दान |
चैत्र | कृष्ण | द्वितीया | शनिवार | 3 मार्च | उत्तरा फाल्गुनी | 18:01 से प्रारंभ | गौधूलि | – |
चैत्र | कृष्ण | चतुर्थी | सोमवार | 5 मार्च | स्वाति | 18:38 से प्रारंभ | कन्या | बुध-शुक्र दान |
चैत्र | कृष्ण | चतुर्थी | सोमवार | 5 मार्च | स्वाति | 23:07 से प्रारंभ | वृश्चिक | मंगल दान |
चैत्र | कृष्ण | चतुर्थी | मंगलवार | 6 मार्च | स्वाति | 01:24 से प्रारंभ | धनु | शनि दान |
चैत्र | कृष्ण | पंचमी | मंगलवार | 6 मार्च | स्वाति | 06:46 से प्रारंभ | मीन | – |
चैत्र | कृष्ण | पंचमी | मंगलवार | 6 मार्च | स्वाति | 08:14 से प्रारंभ | मेष | चंंद्र, गुरु दान |
चैत्र | कृष्ण | पंचमी | मंगलवार | 6 मार्च | स्वाति | 14:02 से प्रारंभ | कर्क | राहु दान |
चैत्र | कृष्ण | पंचमी | मंगलवार | 6 मार्च | स्वाति | 18:03 से प्रारंभ | गौधूलि | – |
चैत्र | कृष्ण | पंचमी | मंंगलवार | 6 मार्च | स्वाति | 18:34 से प्रारंभ | कन्या | बुध-शुक्र दान |
चैत्र | कृष्ण | षष्टी | बुधवार | 7 मार्च | अनुराधा | 22:34 से 26:01 | वृश्चिक, तुला | चंद्र दान |
वैशाख | शुक्ल | तृतीया | बुधवार | 18 अप्रैल | रोहिणी | 11:13 से प्रारंभ | कर्क | शुक्र दान |
वैशाख | शुक्ल | चतुर्थी | गुरुवार | 19 अप्रैल | रोहिणी | 05:52 से 12:19 | वृषभ, सिंह, कन्या | – |
वैशाख | शुक्ल | चतुर्थी | गुरुवार | 19 अप्रैल | रोहिणी | 22:51 तक | वृश्चिक | – |
वैशाख | शुक्ल | पंचमी | शुक्रवार | 20 अप्रैल | मृगशिरा | 05:13 से प्रारंभ | मेष | राहु दान |
वैशाख | शुक्ल | पंचमी | शुक्रवार | 20 अप्रैल | मृगशिरा | 11:05 से प्रारंभ | कर्क | सूर्य-केतु दान |
वैशाख | शुक्ल | पंचमी | शुक्रवार | 20 अप्रैल | मृगशिरा | 13:23 से प्रारंभ | सिंह | राहु दान |
वैशाख | शुक्ल | पंचमी | शुक्रवार | 20 अप्रैल | मृगशिरा | 15:37 से प्रारंभ | कन्या | राहु दान |
वैशाख | शुक्ल | पंचमी | शुक्रवार | 20 अप्रैल | मृगशिरा | 17:33 से प्रारंभ | गौधूलि | – |
वैशाख | शुक्ल | एकादशी | गुरुवार | 26 अप्रैल | उत्तरा फाल्गुनी | 14:26 के बाद | सिंह | – |
वैशाख | शुक्ल | द्वादशी | शुक्रवार | 27 अप्रैल | उत्तरा फाल्गुनी | 06:28 से प्रारंभ | वृषभ | – |
वैशाख | शुक्ल | द्वादशी | शुक्रवार | 27 अप्रैल | उत्तरा फाल्गुनी | 10:38 से प्रारंभ | कर्क | केत-राहु दान |
वैशाख | शुक्ल | द्वादशी | शुक्रवार | 27 अप्रैल | हस्ता | 12:55 से प्रारंभ | सिंह | राहु दान |
वैशाख | शुक्ल | द्वादशी | शुक्रवार | 27 अप्रैल | हस्ता | 17:39 से प्रारंभ | गौधूलि | – |
वैशाख | शुक्ल | द्वादशी | शुक्रवार | 27 अप्रैल | हस्ता | 19:38 से प्रारंभ | वृश्चिक | शुक्र दान |
वैशाख | शुक्ल | त्रयोदशी | शनिवार | 28 अप्रैल | हस्ता | 06:24 से प्रारंभ | वृषभ | – |
वैशाख | शुक्ल | त्रयोदशी | शनिवार | 28 अप्रैल | हस्ता | 10:34 से प्रारंभ | कर्क | केतु दान |
वैशाख | शुक्ल | चतुर्दशी | रविवार | 29 अप्रैल | चित्रा | 14:07 तक | वृषभ, सिंह | – |
वैशाख | शुक्ल | पूर्णिमा | सोमवार | 30 अप्रैल | स्वाति | 04:33 से प्रारंभ | मेष | चंद्र-गुरु दान |
वैशाख | कृष्ण | नवमी | बुधवार | 9 मई | धनिष्ठा | 05:35 से 10:12 | वृषभ | शुक्र-शनि दान |
प्रथम ज्येष्ठ | कृष्ण | एकादशी | शुक्रवार | 11 मई | उत्तरा भाद्रपद | 12:00 से प्रारंभ | सिंह | – |
प्रथम ज्येष्ठ | कृष्ण | एकादशी | शुक्रवार | 11 मई | उत्तरा भाद्रपद | 14:14 से प्रारंभ | कन्या | चंद्र दान |
प्रथम ज्येष्ठ | कृष्ण | एकादशी | शुक्रवार | 11 मई | उत्तरा भाद्रपद | 18:43 से प्रारंभ | वृश्चिक | शुक्र दान |
प्रथम ज्येष्ठ | कृष्ण | एकादशी | शनिवार | 12 मई | उत्तरा भाद्रपद | 00:51 से प्रारंभ | कुंभ | – |
प्रथम ज्येष्ठ | कृष्ण | द्वादशी | शनिवार | 12 मई | उत्तरा भाद्रपद | 05:29 से प्रारंभ | वृषभ | – |
प्रथम ज्येष्ठ | कृष्ण | द्वादशी | शनिवार | 12 मई | उत्तरा भाद्रपद | 11:56 से प्रारंभ | सिंह | – |
प्रथम ज्येष्ठ | कृष्ण | द्वादशी | शनिवार | 12 मई | रेवती | 11:56 से प्रारंभ | सिंह | – |
प्रथम ज्येष्ठ | कृष्ण | द्वादशी | शनिवार | 12 मई | रेवती | 14:10 से प्रारंभ | कन्या | चंद्र दान |
प्रथम ज्येष्ठ | कृष्ण | द्वादशी | शनिवार | 12 मई | रेवती | 18:39 से प्रारंभ | वृश्चिक | शुक्र दान |
प्रथम ज्येष्ठ | कृष्ण | षष्टी | मंगलवार | 20 जून | उत्तरा फाल्गुनी | 04:59 तक | वृषभ | – |
द्वितीया ज्येष्ठ | शुक्ल | नवमी | गुरुवार | 21 जून | हस्ता | 09:19 से प्रारंभ | सिंह | – |
द्वितीया ज्येष्ठ | शुक्ल | नवमी | गुरुवार | 21 जून | हस्ता | 13:46 से प्रारंभ | तुला | – |
द्वितीया ज्येष्ठ | शुक्ल | नवमी | गुरुवार | 21 जून | हस्ता | 16:02 से प्रारंभ | वृश्चिक | – |
द्वितीया ज्येष्ठ | शुक्ल | नवमी | गुरुवार | 21 जून | हस्ता | 18:51 से प्रारंभ | गौधूलि | शनि दान |
द्वितीया ज्येष्ठ | शुक्ल | त्रयोदशी | सोमवार | 25 जून | अनुराधा | 09:03 से प्रारंभ | सिंह | – |
द्वितीया ज्येष्ठ | शुक्ल | त्रयोदशी | सोमवार | 25 जून | अनुराधा | 11:17 से प्रारंभ | कन्या | – |
द्वितीया ज्येष्ठ | शुक्ल | त्रयोदशी | सोमवार | 25 जून | अनुराधा | 13:30 से प्रारंभ | तुला | – |
द्वितीया ज्येष्ठ | शुक्ल | त्रयोदशी | सोमवार | 25 जून | अनुराधा | 18:52 से प्रारंभ | गौधूलि | शनि दान |
आषाढ़ | कृष्ण | अष्टमी | शुक्रवार | 6 जुलाई | रेवती | 10:34 से प्रारंभ | कन्या | चंद्र दान |
आषाढ़ | कृष्ण | अष्टमी | शुक्रवार | 6 जुलाई | रेवती | 15:03 से प्रारंभ | वृश्चिक | – |
आषाढ़ | कृष्ण | अष्टमी | शुक्रवार | 6 जुलाई | रेवती | 18:52 से प्रारंभ | गौधूलि | शनि दान |
आषाढ़ | कृष्ण | अष्टमी | शुक्रवार | 6 जुलाई | रेवती | 21:11 से प्रारंभ | कुंभ | शुक्र दान |
आषाढ़ | कृष्ण | अष्टमी | शनिवार | 7 जुलाई | रेवती | 01:48 से प्रारंभ | वृषभ | – |
आषाढ़ | कृष्ण | द्वादशी | मंगलवार | 10 जुलाई | रोहिणी | 08:04 से प्रारंभ | सिंह | – |
आषाढ़ | कृष्ण | द्वादशी | मंगलवार | 10 जुलाई | रोहिणी | 10:18 से प्रारंभ | कन्या | – |
आषाढ़ | कृष्ण | द्वादशी | मंगलवार | 10 जुलाई | रोहिणी | 12:31 से प्रारंभ | तुला | – |
आषाढ़ | कृष्ण | द्वादशी | मंगलवार | 10 जुलाई | रोहिणी | 14:47 से प्रारंभ | वृश्चिक | चंद्र दान |
आषाढ़ | शुक्ल | पंचमी | मंगलवार | 17 जुलाई | उत्तरा फाल्गुनी | 11:02 के बाद | कन्या | चंद्र दान |
आषाढ़ | शुक्ल | अष्टमी | शुक्रवार | 20 जुलाई | चित्रा | 08:09 तक | सिंह | सूर्य दान |
आषाढ़ | शुक्ल | अष्टमी | शुक्रवार | 20 जुलाई | स्वाति | 08:09 के बाद | सिंह | – |
आषाढ़ | शुक्ल | नवमी | शनिवार | 21 जुलाई | स्वाति | 09:08 तक | सिंह | सूर्य दान |
मार्गशीर्ष | शुक्ल | पंचमीी | बुधवार | 12 दिसंबर | धनिष्ठा | 16:36 के बाद | कन्या, तुला | शुक्र दान |
मार्गशीर्ष | शुक्ल | षष्टी | गुरुवार | 13 दिसंबर | धनिष्ठा | 07:05 से प्रारंभ | मेष, मीन | गुरु-शुक्र दान |
विवाह मुहूर्त
हिन्दू धर्म में विवाह मुहूर्त का विशेष महत्व है। विवाह एक पवित्र बंधन है और जीवन भर का साथ है। विवाह स्त्री और पुरुष की जीवन यात्रा की शुरुआत मानी जाती है, पुरुष का बायां और स्त्री का दाहिना भाग मिलाकर एक दूसरे की शक्ति को पूरक बनाने की क्रिया को विवाह कहा जाता है,भगवान शिव और पार्वती को अर्धनारीश्वर की संज्ञा देना इसी बात का प्रमाण है। विवाह जैसे पवित्र बंधन में बंधने से पहले कई तरह के विचार-विमर्श होते हैं।
इनमें कुंडली मिलान और विवाह के लिए शुभ मुहूर्त का चयन करना ये प्रमुख है। वर-वधु और दोनों परिवारों में सहमति के बाद बात आती है विवाह के लिए शुभ मुहूर्त की। चूंकि यह जिंदगी का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है इसलिए जरूरी है कि शादी शुभ समय पर हो, ताकि जीवन भर रिश्तों में मधुरता बनी रहे। विवाह के मुहूर्त का निर्धारण करने के लिए कुंडली में विवाह संबंधित भाव व भावेश की स्थिति, विवाह का योग देने वाले ग्रहों की दशा, अंतर्दशा तथा वर्तमान ग्रहों के गोचर की स्थित देखी जाती है।
कैसे निकाला जाता है विवाह मुहूर्त
हिन्दू धर्म के 16 संस्कारों में विवाह एक महत्वपूर्ण संस्कार है। विवाह से स्त्री और पुरुष के जीवन के नये अध्याय की शुरुआत होती है। विवाह का शुभ मुहूर्त जानने के लिए वर-वधु की जन्म राशि का प्रयोग किया जाता है।
- वर या वधु का जन्म जिस चंद्र नक्षत्र में हुआ होता है। उस नक्षत्र के चरण में आने वाले अक्षर को भी विवाह की तिथि ज्ञात करने के लिए प्रयोग में लाया जाता है।
- विवाह मुहूर्त का निर्णय करने के लिए वर-कन्या की राशियों में विवाह की एक समान तिथि को विवाह मुहूर्त के लिए लिया जाता है।
- वर-वधु की कुंडलियों का मिलान कर लेने के बाद उनकी राशियों में जो तारीखें समान होती हैं। उन तारीखों में वर और कन्या का विवाह शुभ माना जाता है।
विवाह मुहूर्त में लग्न का महत्व
किसी भी व्यक्ति के विवाह का दिन तय होने के बाद विवाह का लग्न निर्धारित किया जाता है। लग्न से अर्थ है जिस समय पाणिग्रहण संस्कार संपन्न होता है। वैदिक ज्योतिष में विवाह लग्न में होने वाली भूल को गंभीर दोष माना जाता है। दरअसल तिथि को शरीर, चंद्रमा को मन, योग-नक्षत्रों आदि को शरीर के अंग और लग्न को आत्मा माना गया है। अतः लग्न के बिना जो भी शुभ कार्य किया जाता है, उसका फल वैसे ही बेकार चला जाता है, जैसे गर्मी के दिनों में बिना जल के नदी।
विवाह लग्न के निर्धारण के समय निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए-
- वर-वधु के जन्म लग्न या जन्म राशि से अष्टम राशि का लग्न, विवाह लग्न नहीं होना चाहिए।
- वर और वधु की जन्मपत्रिका का अष्टमेश यानि अष्टम भाव का स्वामी विवाह लग्न में स्थित नहीं होना चाहिए।
- विवाह लग्न से 12वें भाव में शनि व 10वें भाव में मंगल स्थित नहीं होना चाहिए।
- विवाह लग्न से तीसरे स्थान में शुक्र व लग्न भाव में कोई पाप ग्रह स्थित नहीं होना चाहिए।
- विवाह लग्न में क्षीण चन्द्र स्थित नहीं होना चाहिए, साथ ही चंद्र व शुक्र छठे और मंगल अष्टम भाव में स्थित नहीं होना चाहिए।
- विवाह लग्न से सप्तम भाव में कोई भी ग्रह स्थित नहीं होना चाहिए।
- विवाह लग्न कर्तरी दोष युक्त नहीं होना चाहिए अर्थात विवाह लग्न के द्वितीय और द्वादश भाव में कोई पापी ग्रह स्थित नहीं होना चाहिए।
भद्रा में विवाह मुहूर्त का विचार
भद्राकाल में विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश आदि मांगलिक कार्यों को वर्जित माना गया है, इसलिए सामान्य परिस्थितियों में विवाह आदि शुभ मुहूर्तों में भद्रा का त्याग ही करना चाहिए लेकिन आवश्यक परिस्थितिवश भूलोक की भद्रा और भद्रा मुख को छोड़कर भद्रा पुच्छ में शुभ कार्य किये जा सकते हैं।
गोधूलि काल में विवाह मुहूर्त
जब कभी किसी परिस्थितिवश विवाह का कोई शुभ मुहूर्त नहीं निकल पा रहा हो और ग्रह संबंधी कोई दोष उत्पन्न हो रहा हो। ऐसी स्थिति में गोधूलि काल के लग्न में विवाह किया जा सकता है।
गोधूलि काल यानि जब सूर्यास्त होने वाला हो और गाय आदि चौपाय अपने-अपने गृहों को लौटते हुए अपने खुरों से रास्ते की धूल को आकाश में उड़ाकर जाने लगें, तो उस काल को गोधूलि काल कहा जाता है। यह मुहूर्त सभी दोषों को नष्ट कर देता है, इसलिए इस समय में विवाह किया जा सकता है।
विवाहकाल में सूतक
यदि विवाह के समय सूतक पड़ जाए, तो विवाह करना उचित नहीं माना जाता। ऐसी स्थिति में सूतक शुद्धि कर लेनी चाहिए। शास्त्रों के अनुसार सूतक काल में पूजा-पाठ व वैदिक अनुष्ठान वर्जित हैं।
चातुर्मास में विवाह मुहूर्त क्यों नहीं होते हैं
हिन्दू पंचांग के अनुसार चातुर्मास 4 महीने की अवधि है, जो आषाढ़ शुक्ल देवशयनी एकादशी से प्रारंभ होकर कार्तिक शुक्ल देवउठनी एकादशी तक चलती है। हिन्दू धर्म में ये 4 महीने भक्ति, ध्यान, जप, तप और शुभ कर्मों के लिए महत्वपूर्ण माने जाते हैं। हालांकि इन 4 महीनों के दौरान विवाह समेत अन्य मांगलिक कार्य नहीं होते हैं। दरअसल देवशयनी एकादशी से भगवान विष्णु 4 माह के लिए क्षीर सागर में शयन करते हैं, इसलिए इस अवधि में विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश समेत अन्य शुभ कार्य नहीं किये जाते हैं। कार्तिक मास में आने वाली देवउठनी एकादशी पर जब भगवान विष्णु निंद्रा से जागते हैं, उसके बाद विवाह कार्य शुरू होते हैं।
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