अन्नप्राशन मुहूर्त 2018 – Annaprashan Muhurat 2018
अन्नप्राशन संस्कार हिन्दू धर्म में किये जाने वाले 16 संस्कारों में से एक है। मुंडन की तरह अन्नप्राशन भी बाल्यकाल में किया जाने वाला एक प्रमुख संस्कार है। अन्नप्राशन का अर्थ है बच्चे को पहली बार अन्न ग्रहण कराना। दरअसल जन्म के बाद 6 माह तक बच्चे मां के दूध पर निर्भर होते हैं लेकिन इसके बाद पर्याप्त पोषण के लिए उन्हें अन्न दिया जाता है। सामान्यतः छठवे माह में बच्चों का अन्नप्राशन संस्कार किया जाता है।
हिन्दू धर्म में बच्चे के जन्म बाद कुंडली बनाई जाती है और अन्य धार्मिक अनुष्ठान किये जाते हैं। ठीक उसी प्रकार विभिन्न कर्णवेध, मुंडन और विद्यारंभ संस्कार संपन्न होते हैं। अन्नप्राशन संस्कार को देश के अलग-अलग क्षेत्रों में विभिन्न नाम से जाना जाता है। दक्षिण भारत के केरल राज्य में इसे चोरूनु, पश्चिम बंगाल में मुखे भात आदि नामों से जाना जाता है।
अन्नप्राशन मुहूर्त 2018 (September – December) | |||
दिनांक |
तिथि | वार |
टिप्पणी |
19 सितंबर | दशमी | बुधवार | उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में |
20 सितंबर | एकादशी | गुरुवार | उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में |
21 सितंबर | द्वादशी | शुक्रवार | श्रवण नक्षत्र में |
26 सितंबर | प्रथमा | बुधवार | रेवती नक्षत्र में |
27 सितंबर | द्वितीया | गुरुवार | अश्विनी नक्षत्र में |
1 अक्टूबर | सप्तमी | सोमवार | मृगशिरा नक्षत्र में |
4 अक्टूबर | दशमी | गुरुवार | पुष्य नक्षत्र में |
5 अक्टूबर | एकादशी | शुक्रवार | माघ नक्षत्र में |
10 अक्टूबर | प्रथमा | बुधवार | चित्रा नक्षत्र में |
11 अक्टूबर | तृतीया | गुरुवार | स्वाति नक्षत्र में |
5 नवंबर | त्रयोदशी | सोमवार | हस्ता नक्षत्र में |
9 नवंबर | द्वितीया | शुक्रवार | अनुराधा नक्षत्र में |
10 दिसंबर | तृतीया | सोमवार | उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में |
12 दिसंबर | पंचमी | बुधवार | श्रवण नक्षत्र में |
13 दिसंबर | षष्टी | गुरुवार | धनिष्ठा नक्षत्र में |
14 दिसंबर | सप्तमी | शुक्रवार | शतभिषा नक्षत्र में |
अन्नप्राशन संस्कार के लाभ
हिन्दू धर्म में अन्न को देवता का दर्जा दिया गया है। संसार में भोजन हर प्राणी की आवश्यकता है इसलिए गीता में कहा गया है कि अन्न से ही मनुष्य जीवित रहते हैं, इसलिए शास्त्रों में अन्नप्राशन संस्कार का महत्व बतलाया गया है-
- अन्न से न सिर्फ शरीर को पोषण प्राप्त होता है बल्कि मन और बुद्धि का भी पोषण होता है, इसलिए कहा जाता है कि जैसा खाने अन्न वैसे होये मन।
- अन्नप्राशन संस्कार का मुख्य उद्देश्य बच्चे को बच्चे को तेजस्वी और बलशाली बनाना है।
- जन्म के बाद छठवें और सातवें माह से बच्चे के दांत निकलने लगते हैं और पाचन क्रिया मजबूत हो जाती है। इसके बाद वह अन्न ग्रहण करना शुरू करता है और अन्न के प्रभाव से उसके तन और मन का विकास होता है।
- गर्भावस्था के समय शिशु के शरीर में गंदे भोजन के दोष आ जाते हैं। उसी के निवारण और बच्चे को शुद्ध भोजन कराने के उद्देश्य से अन्नप्राशन संस्कार कराया जाता है।
कब और कहां करें अन्नप्राशन संस्कार
जब शिशु छह माह का हो जाता है इसी समय में अन्नप्राशन संस्कार संपन्न किया जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार बालक और बालिका दोनों के संंबंध में अन्नप्राशन संस्कार के समय में थोड़ा अंतर है।
- बालक का अन्नप्राशन सम माह यानि 6 और 8वें महीने में किया जाता है, जबकि बालिकाओं का अन्नप्राशन विषम मास में 5 और सातवें महीने में होता है।
- अन्नप्राशन संस्कार में बच्चे को चावल की खीर या स्थानीय और कुल परंपरा के अनुसार भोज्य पदार्थ देना चाहिए।
- अन्नप्राशन संस्कार घर और मंदिर दोनों जगहों पर संपन्न किये जा सकते हैं। हालांकि घर पर विधिवत तरीके से या अपनी कुल परंपरा के अनुसार बच्चे का अन्नप्राशन कराना चाहिए।
- शुभ तिथि और नक्षत्र का चयन कर बच्चे का अन्नप्राशन संस्कार करना चाहिए। कुछ लोग कुल परंपरा के अनुसार नवरात्रिमें अष्टमी और नवमी तिथि पर भी अन्नप्राशन संस्कार कराने को शुभ मानते हैं।
कैसे करें बच्चों का अन्नप्राशन संस्कार
अन्नप्राशन संस्कार को कई क्षेत्रों में अलग-अलग नाम से जाना जाता है और उसी के अनुरूप यह कार्य उत्सव के साथ किया जाता है। दक्षिण भारत के केरल राज्य में बच्चों का अन्नप्राशन संस्कार प्रसिद्ध मंदिर गुरुवयूर में किया जाता है। वहीं उत्तर भारत में मंदिर के साथ-साथ घर पर भी बच्चों को अन्न ग्रहण कराया जाता है।
- इस दिन शिशु को स्नान कराके नये कपड़े विशेष रूप से धोती-कुर्ता या लहंगा-चोली पहनाएँ।
- घर में अन्नप्राशन संस्कार के अवसर पर यज्ञ व हवन करें और बच्चे के बेहतर स्वास्थ्य की कामना करनी चाहिए।
- बच्चे को अन्न खिलाने से पहले बने हुए भोज्य पदार्थ का भगवान को भोग लगाएँ और फिर शिशु का अन्नप्राशन कराएँ।
- शुभ मुहूर्त में देवी-देवताओं का पूजन करने के बाद दादा-दादी, माता-पिता और अन्य परिजन चांदी के चम्मच से चावल की खीर बच्चे को खिलाएँ।
- इस शुभ अवसर पर बच्चे को आशीष प्रदान करने के लिए रिश्तेदारों और बड़े-बुजुर्गों को बुलाएँ।
अन्नप्राशन संस्कार पर निभाई जाने वाली अनोखी प्रथा
अन्नप्राशन संस्कार संपन्न होने के बाद कहीं-कहीं एक अनोखी प्रथा का चलन भी है। इस दौरान परिवार के लोगों के बीच शिशु के आगे चांदी के बर्तन में पुस्तक, रत्न, कलम और मिट्टी आदि वस्तुएँ रखी जाती हैं। उन सामानों में से बच्चे कोई एक वस्तु उठता है और लोक परंपराओं के अनुसार भिन्न-भिन्न अर्थ होते हैं।
- पुस्तकें सीखने और समझने की लालसा को दर्शाती है
- रत्न धन को दर्शाता है
- कलम ज्ञान का प्रतीक है
- मिट्टी संपत्ति का प्रतीक है
मान्यता है कि बच्चा इनमें से जो वस्तु उठाता है उससे स्वभाव का पता चलता है और भविष्य में वह उसी वस्तु से संबंधित व्यवसाय या नौकरी करता है।
अन्नप्राशन संस्कार का महत्व और पौराणिक कथा
जब कोई शिशु माता के गर्भ में रहता है तो उसके अंदर मलिन भोजन के दोष आ जाते हैं और इसके प्रभावों को दूर करने के लिए बच्चे को शुद्ध भोजन करवाया जाता है। हालांकि जन्म के बाद 6 महीने तक पर्याप्त पोषण के लिए शिशु माँ के दूध पर निर्भर रहता है। इसके बाद उसे अन्न ग्रहण कराया जाता है, इसलिए अन्नप्राशन संस्कार का विशेष महत्व है।
शास्त्रों में अन्न को जीवन का प्राण कहा गया है और अन्न से ही मनुष्य को ऊर्जा व शक्ति मिलती है। अन्न के संदर्भ में एक बात यह भी कही गई है कि ‘जैसे खाए अन्न वैसा होए मन’ इसलिए हिन्दू धर्म में शुद्ध और सात्विक भोजन पर जोर दिया गया है। अन्न के महत्व से जुड़ी महाभारत काल में एक पौराणिक कथा भी मिलती है।
मान्यता है कि महाभारत के युद्ध के समय जब भीष्म पितामह बाणों की शैय्या पर लेटे हुए थे तो पांडव उनके उपदेश सुन रहे थे। पितामह धर्म से जुड़ी बातें कह रहे थे इसी दौरान द्रौपदी एकाएक हँसने लगी। पांचाली के इस व्यवहार से सभी हैरान हुए लेकिन पितामह ने द्रौपदी से उसकी हंसी का कारण पूछा। तब द्रौपदी ने कहा कि ‘पितामह आप धर्म और ज्ञान की बातें कर रहे हैं जो सुनने में अच्छी लग रही हैं लेकिन जब भरी सभा में कौरवों द्वारा मेरा चीरहरण किया जा रहा था उस समय आपका धर्म कहाँ गया था? उस समय आपने दुर्योधन को धर्म का ज्ञान क्यों नहीं दिया था। बस यही बात याद करके मैं हँसने लगी।’
द्रौपदी की इस बात का उत्तर देते हुए भीष्म पितामह ने कहा कि ‘पुत्री, उस समय मैं जो अन्न ग्रहण करता था वह दुर्योधन का था। उसी अन्न से मेरा रक्त बनता था इसलिए जैसा दुराचारी स्वभाव दुर्योधन का था वैसा ही दूषित अन्न मुझे मिलता था। उस भोजन को ग्रहण करने से मेरे मन व बुद्धि पर उसका असर था लेकिन अर्जुन के बाणों ने पाप के अन्न से बना सारा रक्त बहा दिया। जिसकी वजह से अब मेरा मन व भावनाएँ शुद्ध हैं और मैं वही बातें कह रहा हूं जो धर्म के अनुकूल हैं।
अन्नप्राशन संस्कार के संदर्भ में मिलने वाली ये सभी जानकारियाँ इस संस्कार के महत्व और उपयोगिता को दर्शाती है, इसलिए यह आवश्यक है कि शास्त्रों में दिये गये समय और तिथि के अनुसार हम अपने बच्चों का अन्नप्राशन कराएँ ताकि उन्हें बुद्धि, बल और पर्याप्त पोषण की प्राप्ति हो।
No comments:
Post a Comment